भारत ही नहीं, विश्व में विभिन्न प्रकार से सामाजिक असमानता आज भी कायम है। कहीं गोरे और काले का भेद है तो कहीं जातीय द्वेष की भावना। भारत के विभिन्न राज्यों में सामाजिक विषमता स्वतंत्रता से पहले और बाद भी देखने को मिलती रही है। समय-समय पर विभिन्न राज्यों में इस प्रकार से सामाजिक विषमता के कारण अनेक त्रासद घटनाएं भी होती रहती हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा हो या फिर राजस्थान या तमिलनाडु, कहीं पर दलित समुदाय भेदभाव से मुक्त नहीं है।

दलितों के किसी सार्वजनिक नल से पानी पीने पर उनके प्रति अत्याचार की घटनाएं या दूसरे बहानों से दलितों से भेदभाव आम रहा है। शादी के अवसर पर अगर दलित वर घोड़ी पर चढ़ कर जाता है तो उच्च कही जाने वाली जातियों द्वारा उसमें विभिन्न प्रकार की बाधाएं डाली जाती हैं, हिंसा तक की जाती है। कहीं दलितों की समूची बस्ती को फूंक दिया जाता है तो कहीं दलित परिवारों को ऐसे अत्याचारों से डर कर घर और गांव तक छोड़ना पड़ता है।

स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद और सामाजिक विषमता दूर करने के लिए समय-समय पर बनाए गए कानूनों के बावजूद दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले सामने आते रहे है। बहुत कम मामलों में दोषियों को सजा हो पाती है। किसी भी राज्य में दलितों के उत्पीड़न की घटना होती है तो उस सरकार को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। सरकार द्वारा अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के तर्ज पर विभिन्न प्रकार के आयोगों का गठन किया गया है। समय-समय पर उनकी रिपोर्टें भी आर्इं। लेकिन हकीकत क्या है?

इस तरह की सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए विभिन्न संगठनों की ओर अपनी सीमा में कुछ काम किए जाते हैं। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने शिक्षा के माध्यम से सामाजिक चेतना और जागरूकता लाने का प्रयास किया। उसके बाद कांशीराम साहब ने भी संघर्ष का एक रास्ता तैयार किया। लेकिन आज भी दलित समाज दबंग तबकों और जातियों के उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्ति नहीं पा सका है। जबकि आजाद देश और सभ्य समाज होने के नाते इस तरह की शिकायत का मौका तक नहीं आना चाहिए था। इसमें बदलाव समूचे समाज और देश के हित में है।
’विजय कुमार धनिया, दिल्ली</p>

प्यासे को पानी

जल ही जीवन है, इसके बारे में हम सबको अच्छे से पता है। जल के बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता, चाहे मनुष्य हो या पशु-पक्षी या पेड़-पौधे। वर्तमान समय में लोगों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, फिर भी लोग पानी की कीमत को नहीं समझ रहे। हालांकि इसका खुद लोगों के जीवन पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यह अलग से समझने की जरूरत नहीं है कि मनुष्य का जीवन जल पर ही आधारित है। पक्षियों की प्यास वर्षा के द्वारा ही बुझाई जा सकती है। पक्षी यह इंतजार करते हैं कि कब बारिश होगी और उनकी प्यास बुझेगी। क्या मनुष्य के द्वारा पक्षियों की प्यास को नहीं बुझाया जा सकता? लेकिन मनुष्य तो खुद अपने लिए ही जोखिम पैदा करने में लगा है।

कुछ पशु भी ऐसे होते है जो भोजन-पानी की जरूरत को पूरा करने की कोशिश में सड़कों पर घूमते हैं और भूख-प्यास से कुछ दिन बाद मर जाते हैं। यह सब इसलिए होता है कि मनुष्य को जीव-जगत में प्रकृति और साहचर्य के बारे में समझना अभी बाकी है। सभी कार्यों को करने के लिए पानी की जरूरत होती है। लेकिन पानी बचाना कभी हमने जरूरी नहीं समझा। आज नौबत यह है कि हमें पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है। राजस्थान मे अभी भी वर्षा के जल को इकठा किया जाता है, जिसे जरूरत पड़ने पर साल भर इस्तेमाल किया जाता है। हमें पानी की कीमत को समझना होगा, वरना आने वाली पीढ़ी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
’लवली शर्मा, फरीदाबाद, हरियाणा