कोरोना वैश्विक महामारी के कारण देश भर के शैक्षणिक संस्थाएं फिलहाल बंद है। लेकिन सभी शैक्षणिक संस्थानों ने वैकल्पिक तौर पर आॅनलाइन कक्षा का आयोजन करना शुरू कर दिया है। इसके कुछ फायदे और ज्यादा नुकसान, दोनों पहलू निकल कर सामने आ रहा है। किसी भी कक्षा का सत्र पीछे न हो और नियमित समय पर छात्र-छात्राएं सत्र पूरा करके आगे के सत्र में प्रवेश पा सकें, यह कमोबेश आॅनलाइन कक्षा से संभव हो पाया है।

लेकिन सच यह है कि इस दौरान देश भर के आमलोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। किसान और मजदूर वर्ग को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है, जिसे देखते हुए उच्च शैक्षणिक संस्थानों में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ने फैसला किया है कि पिछले वर्ष के परीक्षा फार्म शुल्क को अगले वर्ष के परीक्षा फार्म शुल्क में समायोजित किया जाएगा। इससे इग्नू से पढ़ाई करने वाले छात्र-छत्राओं को कुछ आर्थिक राहत जरूर मिली है। यह सराहनीय फैसला है।

जबकि अन्य राज्यों के सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों को भी ऐसी आर्थिक राहत देने पर विचार करना चाहिए। कोरोना महामारी के दौर में स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय आॅनलाइन कक्षाओं का संचालन कर रहे हैं। इससे सभी शैक्षणिक संस्थानों में बाहरी खर्च होने के बजाय अन्य खर्च बच रहा है। दूसरी ओर शिक्षक और विद्यार्थियों को अपने सिम कार्ड को रिचार्ज करा कर कक्षा में शामिल होना पड़ रहा है।

ऐसे में यहां शिक्षक और विद्यार्थियों को दोहरा आर्थिक शुल्क का वहन करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए देश के सभी शिक्षण संस्थानों को शैक्षणिक शुल्क के अलावा विविध शुल्क में केवल आॅनलाइन कक्षा संचालन होने तक कटौती करके छात्र-छत्राओं को आर्थिक राहत देने पर विचार करना चाहिए। वरना छात्र-छात्राओं के परिवार को आर्थिक रूप से दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।
’नितेश कुमार सिन्हा, मोतिहारी, बिहार</p>

मुश्किल में मासूम

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार हमारे देश में बच्चे तेजी से चिड़चिड़े हो रहे हैं। उनमें मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों का डर बना रहता है। यह सब महामारी के दौर में कई तरह की मुश्किलों के कारण हो रहा है। महामारी में स्कूल बंद हैं और बच्चे घरों में कैद हैं। वे स्कूल जाने के लिए बहुत उत्सुक हैं, क्योंकि घर पर उनकी गतिविधियां कुछ कम हो गई हैं। स्कूलों में वे अपने कार्यक्रम के अनुसार हर समय व्यस्त रहते हैं। वहां पढ़ने, खेलने और खाने का एक निश्चित समय है। स्कूलों में वे रोजाना अपने दोस्तों से मिलते थे और दोस्ती जीवन में मानसिक और शारीरिक रूप से बढ़ने का सबसे अच्छा साधन है। वे शिक्षकों के साथ आमने-सामने बातचीत करते हैं और इससे उन्हें समस्याओं का हल करने में मदद मिलती है।

घर पर उनके पास बिस्तर से उठने और खाने और खेलने का कोई निश्चित समय नहीं होता है। इन सभी कारणों ने बच्चों को चिड़चिड़ा बना दिया है। अगर यह लंबे समय तक बना रहा तो हालात और खराब हो जाएंगे और देश का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए माता-पिता को उन्हें उचित समय देना चाहिए। उनसे बात करनी होगी, प्यार और स्नेह देना होगा। उनका समय स्कूल की तरह तय करना होगा। अगर हम ऐसा करेंगे तो समस्या कुछ हद तक हल हो सकती है।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, जोगिंदर नगर, हिप्र