ईरान का राष्ट्रपति चुनावः मुक़ाबले में कौन-कौन हैं?
- बीबीसी मॉनीटरिंग
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ईरान में 18 जून को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. इन चुनावों में सात उम्मीदवारों को भाग लेने की इजाज़त दी गई है.
हालांकि चुनावों में शिरकत करने के लिए सैकड़ों लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था.
लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया पर रखने वाली संस्था गार्डियन काउंसिल ने ज़्यादातर को अयोग्य करार दे दिया.
जिन लोगों को चुनाव लड़ने की मंज़ूरी दी गई है, उनमें पांच 'कट्टरपंथी' माने जाते हैं और बाक़ी दो उम्मीदवार 'उदारवादी.'
जब बात पश्चिमी देशों के साथ संबंधों की हो तो ईरान की राजनीति में 'उदारवादी' उसे समझा जाता है जो 'कम रूढ़ीवादी' होते हैं.
सामाजिक आज़ादी और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर जिनकी राय 'ज़्यादा उदारवादी' होती है, ईरान में वे 'सुधारवादी' कहे जाते हैं.
इब्राहिम राइसी: निज़ाम के पसंदीदादा उम्मीदवार
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बहुत से लोगों का ये मानना है कि ईरान में अगर किसी एक उम्मीदवार की जीत का रास्ता साफ़ है तो उनका नाम इब्राहिम राइसी है. इब्राहिम ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख हैं. उन्हें कट्टरपंथी माना जाता है.
उन्हें न केवल मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी के उत्तराधिकार की रेस में सबसे आगे देखा जा रहा है बल्कि कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई के वारिस भी शायद वही हों.
ईरान के चुनाव में भाग ले रहे बाक़ी छह उम्मीदवारों के पास इब्राहिम राइसी जैसा रसूख और रुतबा हासिल नहीं है.
इब्राहिम राइसी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत इस वादे से की थी कि वो मुल्क के सामने खड़ी आर्थिक चुनौतियों के कारण बनी 'निराशा और नाउम्मीदगी' के माहौल से लोगों को उबारेंगे.
रूढ़ीवादी खेमे में राइसी को खासा समर्थन हासिल है. अन्य प्रभावशाली उम्मीदवारों की दावेदारी खारिज कर दिए जाने के बाद माना जा रहा है कि इब्राहिम राइसी की राह आसान हो गई है. साल 1979 की क्रांति के बाद इब्राहिम राइसी ज्यूडीशियल सर्विस में आए थे.
अपने करियर के ज्यादातर समय वे सरकारी वकील रहे और उनके इस दौर को विवादों से परे नहीं कहा जा सकता है. साल 1988 में राजनीतिक कैदियों और असंतुष्टों को सामूहिक रूप से मृत्युदंड का फैसला सुनाने वाले विशेष आयोग का वे हिस्सा रहे थे.
तब वे तेहरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशन कोर्ट में डिप्टी प्रॉसिक्यूटर के ओहदे पर थे. वे ईरान के सबसे समृद्ध सामाजिक संस्था और मशहाद शहर में मौजूद आठवें शिया इमाम रेज़ा की पवित्र दरगाह अस्तान-ए-क़ोद्स के संरक्षक भी रह चुके हैं.
ईरान में सुप्रीम लीडर की नियुक्ति करने और उसे पद से हटाने की हैसियत रखने वाले ताक़तवर संस्था 'विशेषज्ञों की परिषद' के वे सदस्य भी हैं.
मोहसिन रेज़ाईः मिलिट्री मैन
ज़िंदगी के 66 साल देख चुके दिग्गज मोहसिन रेज़ाई को साल 1981 में इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) का कमांडर नियुक्त किया गया था. साल 1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक युद्ध में मोहसिन रेज़ाई ने आईआरजीसी का नेतृत्व किया था.
वे तीन बार मुल्क के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके हैं और सार्वजनिक जीवन उन्होंने कभी कोई जिम्मेदारी नहीं संभाली है. यहां तक कि साल 2000 में वे संसद के लिए चुने जाने में भी नाकाम हो गए थे. ईरान की राजनीति में उन्हें एक 'सदाबहार उम्मीदवार' कहा जाता है.
इराक़-ईरान युद्ध के दौरान लिए गए उनके फ़ैसलों पर कुछ लोग अब भी सवाल उठाते हैं. मोहसिन रेज़ाई पर ये इलज़ाम लगाया जाता रहा है कि उन्हीं के फैसलों की वजह से सैनिकों की जानें गईं और जंग खिंचती चली गई.
मोहसिन रेज़ाई इन आरोपों से इनकार करते हैं. उन्होंने तेहरान यूनिवर्सिटी से इकॉनमिक्स से पीएचडी किया है.
सईद जालिली: पुरानी पीढ़ी के राजनेता
राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के कार्यकाल में साल 2007 से 2013 तक ईरान के मुख्य परमाणु वार्ताकार के रूप में सईद जालिली को शोहरत मिली. अहमदीनेजाद की हुकूमत में वे उपविदेश मंत्री भी थे.
रूढ़ीवादी खेमे के नौजवान लोगों के बीच सईद जालिली को 'पुरानी पीढ़ी के राजनेता' के तौर पर देखा जाता है. इसकी वजह भी है. आज की तारीख में वे जिन पदों पर रहे, सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामनेई ने उनकी सीधी नियुक्ति की थी.
सईद जालिली के समर्थकों का कहना है, "उनकी आलोचना इसलिए की जाती है क्योंकि वे 'बौद्धिक रूप से एक खुदमुख्तार शख़्सियत' हैं और उन पर 'भ्रष्टाचार का आरोप कभी नहीं' लगा."
ईरान की एक्सपिडिएंसी काउंसिल (मजमा तसखिस मसलाहत निज़ाम) के मेंबर की हैसियत से उनका ख़ासा रसूख है. ये संस्था किसी विवाद की सूरत में ईरान की संसद और गार्डियन काउंसिल के बीच मध्यस्था कराती है.
वे अतीत में भी ईरान के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके हैं. साल 2013 के चुनावों में वे तीसरे स्थान पर रहे थे.
मोहसिन मेहरालिज़ादेह: अकेला सुधारवादी
मोहसिन मेहरालिज़ादेह अकेले ऐसे सुधारवादी उम्मीदवार हैं जिन्हें इन चुनावों में हिस्सा लेने की इजाजत दी गई है. हालांकि वे निर्दलीय उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ रहे हैं.
ईरान में राजनीतिक सुधार की मांग करने वाले 27 सियासी दलों और गुटों के गठबंधन रिफॉर्म्स फ्रंट की लिस्ट में उनका नाम शामिल नहीं किया गया है. इस गठबंधन के सभी नौ उम्मीदवारों की दावेदारी गार्डियन काउंसिल ने खारिज कर दी थी.
ये साफ़ नहीं है कि इन चुनावों में सुधारवादी कहे जा रहे अन्य उम्मीदवारों की तुलना में मोहसिन मेहरालिज़ादेह को तरजीह क्यों दी गई.
साल 2005 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उनका आवेदन खारिज कर दिया गया था लेकिन बाद में सुप्रीम लीडर के दखल देने के बाद उन्हें चुनाव में भाग लेने की इजाजत दी गई थी. तब ये मामला सुर्खियों में रहा था.
साल 2016 में उन्हें संसदीय चुनावों में भाग लेने से रोक दिया गया था. ईरान की राजनीति में सुधारवादियों को इस समय कोई बहुत ज्यादा शोहरत हासिल नहीं है. मौजूदा सरकार को वोट देने वाले बहुत से ईरानी लोगों का मोहभंग हो चुका है.
वे देश की आर्थिक चुनौतियों के लिए मौजूदा सरकार को दोष देते हैं. साल 2015 के परमाणु करार से बाहर आने के बाद अमेरिका ने ईरान पर नए सिरे में पाबंदियां लगा दी थी. इससे ईरान की आर्थिक दिक्कतें और बढ़ गई हैं.
अब्दुल नासिर हिम्मती: एक निष्पक्ष टेक्नोक्रेट
मोहसिन मेहरालिज़ादेह के अलावा अब्दुल नासिर हिम्मती एक मात्र ऐसे ग़ैर-रूढ़ीवादी राजनेता हैं जिन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत दी गई है. वे एक ऐसे उदारवादी टेक्नोक्रेट हैं जो साल 2018 से देश के रिजर्व बैंक का गवर्नर है.
राष्ट्रपति अहमदीनेजाद और राष्ट्रपति रूहानी, दोनों ने ही अब्दुल नासिर हिम्मती को बड़े पदों पर नियुक्त किया. इससे ये संकेत मिलता है कि अब्दुल नासिर हिम्मती ईरान की राजनीति की परस्पर विरोधी राजनीतिक धाराओं के साथ भी काम कर सकते हैं.
अमेरिकी पाबंदियों की मार झेल रहे ईरान के बैंकिंग सेक्टर, सेंट्रल बैंक, मुद्रा का अवमूल्यन, घरेलू चुनौतियों, विदेशी मुद्रा का संकट और अस्थिर शेयर बाज़ार, ऐसी तमाम चुनौतियों का अब्दुल नासिर हिम्मती ने सामना किया है.
अब्दुल नासिर हिम्मती ने तेहरान यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीचएडी किया है और वे वहां एसोशिएट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाते भी हैं.
अन्य उम्मीदवार
कट्टरपंथी माने जाने वाले सांसद आमिर हुसैन क़ाज़ीज़ादेह हाशमी पेशे से ईएनटी सर्जन भी हैं. वे साल 2008 से ही मशहद सीट से चुने जाते रहे हैं. मई, 2020 में उन्हें पहले डिप्टी स्पीकर के तौर पर साल भर के लिए काम करने का मौका मिला.
पचास साल की उम्र के आमिर हुसैन क़ाज़ीज़ादेह हाशमी इन चुनावों में सबसे कम उम्र के उम्मीदवार हैं.
अली रज़ा ज़कानी उन रूढ़ीवादी सांसदों में से हैं जिन्होंने साल 2015 के परमाणु करार की पुरजोर मुखालफत की थी. साल 2000 के दशक की शुरुआत में उन्होंने ईरान-इराक़ युद्ध में भी हिस्सा लिया था.
साल 2004 से 2016 तक वे तेहरान के सांसद रहे. साल 2020 में वे एक बार फिर संसद के लिए चुने गए. राष्ट्रपति चुनावों में वे तीसरी बार हिस्सा ले रहे हैं. साल 2013 और 2017 में गार्डियन काउंसिल ने उनकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया था.
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