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स्विटजरलैंड को आशंका 2030 तक पूरा नहीं कर सकेगा पेरिस समझौते में किया वादा, जानें- क्‍यों

स्विटजरलैंड के लोगों ने एक जनमत संग्रह में सरकार के उस प्रस्‍ताव को ठुकरा दिया है जिससे वो 2030 तक कार्बन उत्‍सर्जन के अपने लक्ष्‍य को पाने में सफल हो सकता। सरकार का कहना है कि अब उसको कुछ और उपाय अपनाने होंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 02:39 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 02:39 PM (IST)
स्विटजरलैंड को आशंका 2030 तक पूरा नहीं कर सकेगा पेरिस समझौते में किया वादा, जानें- क्‍यों
स्विटजरलैंड में सरकार के प्रस्‍तावों पर हुआ जनमत संग्रह

बर्न, स्विटजरलैंड (रॉयटर्स)। दुनिया के बढ़ते तापमान को लेकर बार-बार अंतरराष्‍ट्रीय संगठन चेतावनी दे रहे हैं। वहीं विकसित देश इस दिशा में कदम उठाने के लिए विकासशील देशों पर लगातार दबाव डाल रहे हैं। लेकिन हकीकत ये भी है कि ऐसे देशों के लोग खुद आगे आकर कोई सहयोग नहीं देना चाहते हैं। इसका ताजा उदाहरण स्विटजरलैंड हैं, जहां के लोगों ने सरकार के उन कानूनों को खारिज कर दिया है कि जिसमें कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए कदम उठाए जाने की बात कही गई थी। इसके लिए सरकार ने एक जनमत संग्रह कराया था जिसमें सरकार को मुंह की खानी पड़ी है।

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दरअसल स्विटजरलैंड में सरकार ने तीन प्रस्‍तावों पर लोगों की राय जाननी चाही थी। इनमें से एक कार्बन उत्‍सर्जन को कम करने के लिए नए और कड़े कदम उठाना भी शामिल था। इसके तहत सरकार ने कार फ्यूल पर सरचार्ज और एयर टिकट पर लेवी लगाने का प्रस्‍ताव रखा था। लेकिन 51 फीसद से भी अधिक लोगों ने सरकार के विरोध में अपना वोट दिया। आपको बता दें कि स्विटजरलैंड में सरकार के किसी भी कदम के लिए लोगों की सहमति ली जाती है। ताजा प्रस्‍तावों पर जो मतदान कराया गया उसका नतीजा रविवार को घोषित कर दिया गया, जिसमें सरकार को हार का सामना करना पड़ा है।

इस परिणाम के सामने आने के बाद देश के पर्यावरण मंत्री सिमोनेटा सोमारुगा ने कहा कि ऐसे में स्विटजरलैंड के लिए वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी के अपने लक्ष्य को पाना मुश्किल हो जाएगा। गौरतलब है कि पेरिस समझौते के मुताबिक स्विटजरलैंड को वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 1990 के स्तर से आधा करना है। सोमारुगा का ये भी कहना है कि लोगों ने सिर्फ एक कानून को मानने से और लागू करने से इनकार किया है। देश की जनता ने पर्यावरण की सुरक्षा से इनकार नहीं किया है। उन्‍होंने ये भी कहा कि लोग चाहते हैं कि पर्यावरण की सुरक्षा और मजबूत हो लेकिन वो ये नहीं चाहते हैं कि इस तरह का कानून इसका जरिया बने। उनका ये भी कहना है कि अब जबकि सरकार का प्रस्‍ताव गिर गया है तो वो उन कदमों को उठाने पर विचार करेगी जिस पर विवाद न बन सके। ऐसे में सरकार ईंधर के आयात पर कर लगा सकती है। साथ ही सरकार आम सहमति के जरिए पर्यावरण संबंधी नीतियां भी बनाने की कोशिश करेगी।

सरकार ने जिन प्रस्‍ताव पर जनमत संग्रह कराया था उसमें कृत्रिम कीटनाशकों को इस्‍तेमाल से पूरी तरह से प्रतिबंधित करना भी शामिल था। इस तरह का नियम केवल भूटान में ही लागू है। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से खाने-पीने की चीजें काफी महंगी हो जाएंगी। इसके अलावा केमिकल का इस्‍तेमाल न करने वाले किसानों को सब्सिडी देने के मुद्दे पर भी लोगों से उनकी राय जानी गई थी। इस प्रस्‍ताव को लाने का मकसद खेती में रसायन का कम से कम इस्‍तेमाल करना है। जानकारों की राय में स्विटजरलैंड के लोग मौजूदा समस्‍या से सही तरह से परिचित नहीं हैं। हालांकि वो पर्यावरण प्रेमी भी हैं।


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