मोटे अनाज उपजाने में भारत पांचवें पायदान पर है। अमेरिका, चीन, ब्राजील और रूस इस मामले में हमसे आगे हैं। हमारे यहां राजस्थान, दक्कन, कर्नाटक, मराठवाड़ा और मध्य भारत के आदिवासी इलाके मोटे अनाज के बड़े घर रहे हैं। इन क्षेत्रों के करीब 60 फीसद इलाके ये फसलें होती हैं। बारिश की किल्लत वाले, दूर-दराज की बसावट और सामाजिक-आर्थिक मायने में पीछे रहे इन इलाकों की हिम्मत काफी हद तक मोटे अनाज ने बंधाए रखी है। कम पानी में उगने वाली, मवेशियों के लिए भरपूर चारे का इंतजाम करने वाली और लोहे, केल्शियम और विटामिन सहित तमाम फायदेमंद तत्वों से भरपूर इन फसलों ने सेहत पर भी आंच नहीं आने दी।

इनकी अनदेखी का थोड़ा ठीकरा ब्रितानी सरकार पर भी फोड़ें तो उन्होंने ही बाजरे जैसी फसलों को मोटा अनाज कहकर कमतर दर्जे में रखा और इसकी अहमियत घटा दी। इन्हें गरीबों का अनाज मानकर किनारे कर दिया गया। आज से तीन दशक पहले तक देश में भरपूर उपजने वाला मोटा अनाज पिछले दशक भर में ही ग्रामीण इलाकोंमें 35 फीसद से पांच और शहरी इलाकों में 17 से घटकर केवल तीन फीसद रह गया। आज खाद्य सुरक्षा से बड़ी फिक्र पोषण के महफूज घेरे की है, जिसे कायम करना मोटे अनाज के बगैर मुमकिन नहीं।