मुकुल रॉय का बीजेपी को झटका, ममता का हाथ पकड़ा, टीएमसी में लौटे, पश्चिम बंगाल की राजनीति में क्या होगा असर?

  • प्रभाकर मणि तिवारी
  • कोलकाता से, बीबीसी हिंदी के लिए
ममता बनर्जी और मुकुल रॉय

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अटकलों और क़यासों को विराम देते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय अपने बेटे शुभ्रांशु के साथ आख़िरकार शुक्रवार को टीएमसी में लौट आए.

टीएमसी सांसद सौगत राय ने गुरुवार को जो टिप्पणी की थी उससे संकेत मिले थे कि शायद मुकुल के प्रति पार्टी नेतृत्व नरमी बरतेगा. इसके बाद 24 घंटे के भीतर तेज़ी से बदले घटनाक्रम के बाद आख़िर मुकुल और पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की दूरियां ख़त्म हो गईं.

मुकुल रॉय, टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अनबन के बाद नवंबर, 2017 में ही बीजेपी में शामिल हुए थे.

ममता बनर्जी ने टीएमसी मुख्यालय में मुकुल के साथ क़रीब एक घंटे तक बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में उनकी वापसी का औपचारिक एलान किया.

इस दौरान ममता ने कहा, "मुकुल इसी परिवार के सदस्य हैं. हमारे बीच कोई मतभेद नहीं था. मुकुल ने चुनाव अभियान के दौरान कभी टीएमसी के ख़िलाफ़ कोई बात नहीं की थी."

ममता बनर्जी और मुकुल रॉय

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ग़द्दारी करने वालों को कभी वापस नहीं लेंगे: ममता बनर्जी

टीएमसी प्रमुख ने शुभेंदु अधिकारी का नाम लिए बिना कहा कि चुनाव से पहले ग़द्दारी कर बीजेपी का हाथ मज़बूत करने वालों को पार्टी कभी वापस नहीं लेगी. ममता का कहना था कि सीबीआई और ईडी का डर दिखा कर बीजेपी मुकुल को साथ ले गई थी. उनका कहना था, "ओल्ड इज़ ऑलवेज़ गोल्ड."

इस मौक़े पर मुकुल ने कहा, "लंबे समय बाद जानी-पहचानी जगह पर आकर पुराने लोगों से मिलना बहुत अच्छा लग रहा है. बीजेपी की यहां जो हालत है उसमें कोई भी नेता वहां नहीं रहेगा. मैं वहां नहीं रह सका. इसलिए घर लौट आया." उन्होंने ममता की जमकर सराहना भी की.

राज्य में कोरोना महामारी की परिस्थिति सुधरने के बाद कोलकाता नगर निगम समेत 100 से ज़्यादा नगर निकायों के चुनाव होने हैं. ऐसे मौक़े पर मुकुल की वापसी टीएमसी के लिए बेहद अहम है. उनको संगठन की धुरी माना जाता है.

प्रदेश के कोने-कोने में टीएमसी संगठन को मज़बूत करने में उनकी भूमिका बेहद अहम रही है. इसी वजह से मुकुल को 'बंगाल की राजनीति का चाणक्य' भी कहा जाता है.

टीएमसी में मुकुल की जगह अब भी ख़ाली थी. ममता बनर्जी ने मुकुल के बीजेपी में शामिल होने के बाद उस ख़ाली जगह को भरने के लिए शुभेंदु अधिकारी को आगे ज़रूर बढ़ाया था. लेकिन वो उसकी भरपाई करने में नाकाम रहे और चुनाव से चार महीने पहले ही बीजेपी में चले गए थे.

ममता बनर्जी और मुकुल रॉय

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चुनाव के दौरान ममता बनर्जी पर उंगली नहीं उठाई

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टीएमसी के एक नेता बताते हैं, "मुकुल के रवैए ने भी उनकी वापसी में अहम भूमिका निभाई है. वे बीजेपी में शामिल होने वाले उन चुनिंदा नेताओं में थे जिन्होंने पूरे चुनाव अभियान के दौरान कभी ममता बनर्जी पर उंगुली नहीं उठाई थी."

मुकुल रॉय की वापसी ने बीजेपी को पश्चिम बंगाल में भारी झटका दिया है और मुकुल की वापसी टीएमसी के लिए कई लिहाज़ से अहम है. वो टीएमसी छोड़कर बीजेपी में जाने वाले पहले नेता थे.

उनके बाद अर्जुन सिंह, सब्यसाची दत्त, शोभन चटर्जी, शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी जैसे कई नेता बीजेपी में शामिल हुए थे. ऐसे में अब यह अटकलें तेज़ हो गईं हैं कि क्या मुकुल से ही फिर उस मामले की पुनरावृत्ति होगी?

अब तक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सोनाली गुहा समेत कम से चार नेता तो सार्वजनिक रूप से ममता बनर्जी से माफ़ी मांगते हुए दोबारा पार्टी की सेवा का मौक़ा देने की अपील कर चुके हैं.

तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने तो यहां तक दावा किया है कि बीजेपी के 10 विधायक और तीन सांसद पार्टी के संपर्क में हैं. पूर्व सिंचाई मंत्री राजीव बनर्जी भी बीजेपी की नीति की आलोचना कर चुके हैं.

अपने संसाधनों के साथ पूरी ताक़त से विधानसभा चुनाव में उतरने वाली बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि पश्चिम बंगाल में इतिहास इतनी जल्दी ख़ुद को दोहराने लगेगा. चुनाव से पहले जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होने की होड़ मची थी वहीं अब उल्टी गंगा बहने लगी है.

मुकुल रॉय

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पीएम मोदी का फ़ोन भी नहीं रोक पाया मुकुल रॉय को

बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय की कथित नाराज़गी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उनको फ़ोन किए जाने के बाद बंगाल की राजनीति में क़यासों का दौर अचानक तेज़ हो गया था.

इस क़यास को उस समय बल मिला जब ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी मुकुल रॉय की कोरोना संक्रमित पत्नी को देखने अस्पताल पहुँचे थे. मुकुल और उनकी पत्नी दोनों कोरोना संक्रमित हो गए थे.

मुकुल तो ठीक हो गए. लेकिन उनकी पत्नी कृष्णा राय बीते महीने से ही कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं और फ़िलहाल उनकी हालत नाज़ुक है. लेकिन प्रदेश या केंद्र के किसी बीजेपी नेता ने उनकी ख़ैर-ख़बर नहीं ली थी. इससे मुकुल काफ़ी नाराज़ बताए जाते हैं. उन्होंने अपने क़रीबियों से इस बात का ज़िक्र भी किया था.

अभिषेक बनर्जी के अचानक अस्पताल पहुँचने और वहां मुकुल के बेटे शुभ्रांशु रॉय से मुलाक़ात के बाद बीजेपी में सक्रियता बढ़ी. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष उसी दिन पहले से एलान कर अस्पताल पहुँचे और अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी मुकुल को फ़ोन कर पत्नी की ख़ैरियत पूछी.

शुभ्रांशु ने तब पत्रकारों से कहा था, "पार्टी के नेताओं का अस्पताल आना या फ़ोन करना तो सामान्य है. लेकिन विपक्ष में रहते हुए अभिषेक ने यहां आकर एक मिसाल क़ायम की है. वो बचपन से मेरी मां को जानते हैं और उनको काकी मां यानी चाची कहते हैं."

क्या आप तृणमूल में वापसी की सोच रहे हैं? इस सवाल शुभ्रांशु ने कहा था, "पहले मां स्वस्थ हो जाए. उसके बाद इन मुद्दों पर विचार किया जाएगा. राजनीति तो चलती रहती है."

मुकुल रॉय

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'बीजेपी में मुकुल रॉय की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं'

बीजेपी के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से मुकुल रॉय की नाराज़गी किसी से छिपी नहीं है. उनको पार्टी में कभी वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हक़दार थे. विपक्ष के नेता के तौर पर भी उनका नाम सामने आया था. लेकिन उनकी जगह शुभेंदु अधिकारी को इस पद पर बिठा दिया गया."

मुकुल रॉय के बेटे शुभ्रांशु ने लगातार बाग़ी तेवर अपना रखा था. पहले उन्होंने अपने एक ट्वीट में पार्टी को टीएमसी की आलोचना करने की बजाय आत्ममंथन की सलाह दी थी और उसके बाद पत्रकारों से बातचीत में ममता बनर्जी और अभिषेक की भी सराहना की थी.

राजनीति पर्यवेक्षकों का कहना है कि मुकुल रॉय जिन उम्मीदों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे वो पूरी नहीं हुईं. प्रदेश नेतृत्व ने उनको ख़ास तवज्जो नहीं दी. यही वजह है कि चुनावों के बाद उन्होंने ख़ुद को राजनीति से लगभग काट लिया था.

विधायक के तौर पर शपथ लेने के बाद उनको सार्वजनिक तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं देखा गया था. उन्होंने विधानसभा चुनाव भी काफ़ी अनिच्छा से ही लड़ा था. वो तो जीत गए. लेकिन उनके बेटे बीजपुर सीट से हार गए.

बीते शनिवार को यहां तृणमूल कांग्रेस कार्यकारी समिति की बैठक में बाग़ियों की वापसी के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई.

टीएमसी के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "मुकुल की वापसी में ममता के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी की अहम भूमिका रही है. उन्होंने अस्पताल में उनकी पत्नी को देखने के बहाने शुभ्रांशु से बातचीत शुरू कर इसका ज़रिया खोला था. बाद में ममता ने भी इसे हरी झंडी दिखा दी."

प्रदेश बीजेपी की बैठक में भी मुकुल रॉय और उनके पुत्र के अटपटे बयानों के संदर्भ में पार्टी का अनुशासन भंग करने के आरोप लगे और इस मुद्दे पर बाक़ायदा चर्चा हुई थी.

प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष और मुकुल रॉय के बीच पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है. बैठक से छनकर पहुंचने वाली ख़बरों ने मुकुल की नाराज़गी की आग में घी डालने का काम किया.

हाल में बीजेपी नेता सायंतन चक्रवर्ती ने बीजेपी को हाथी और शुभ्रांशु को चींटी बताते हुए कहा था कि हाथी की पीठ से अगर एक चींटी उतर भी जाए तो उसकी सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. ऐसी टिप्पणियों ने मुकुल की नाराज़गी और बढ़ा दी थी.

मुकुल रॉय अपने बेटे शुभ्रांशु के साथ

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मुकुल रॉय की वापसी का बंगाल पर क्या असर होगा?

वैसे, मुकुल की घर वापसी की अटकलें तो चुनाव नतीजों के बाद ही तेज़ हो गई थीं. लेकिन तब मुकुल को एक ट्वीट के ज़रिए सफ़ाई देनी पड़ी थी कि वो बीजेपी में थे, हैं और रहेंगे.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उनके ट्वीट को रीट्वीट करते हुए मुकुल की सराहना की थी. लेकिन शुभ्रांशु की ओर से केंद्र और राज्य के बीच लगातार तेज़ होती तनातनी पर नाराज़गी जताने के बाद इन अटकलों को बल मिला था.

मुकुल रॉय के बीजेपी से नाता तोड़ने का बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य पर क्या और कैसा असर होगा?

इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, "मुकुल रॉय की सांगठनिक दक्षता किसी से छिपी नहीं है. उनकी वजह से बीजेपी को ख़ासकर वर्ष 2018 के पंचायत और 2019 के लोकसभा चुनावों में काफ़ी फ़ायदा मिला था.''

वो कहते हैं, ''मुकुल की वापसी से जहां बीजेपी में शामिल होने वाले दूसरे बाग़ियों में भगदड़ मचेगी वहीं निकट भविष्य में होने वाले शहरी निकाय के चुनावों के बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. यह कहना ज़्यादा सही होगा कि मुकुल की वापसी बीजेपी में बिखराव की शुरुआत हो सकती है."

एक अन्य सवाल पर उनका कहना था कि मुकुल के टीएमसी में लौटने से अब पार्टी मतुआ वोटों के बिखराव पर अंकुश लगाने की दिशा में भी ठोस क़दम उठा सकती है. इस वोट बैंक में हाल में बीजेपी ने कुछ हद तक सेंध लगाई है.

बंगाल में मतुआ वोट बैंक कम से कम 70 सीटों पर निर्णायक स्थिति में है. अब मुकुल के पार्टी में लौटने से इस वोट बैंक का जो हिस्सा बीजेपी के खेमे में चला गया था उसके टीएमसी की ओर लौटने की संभावना बढ़ गई है.

इसकी वजह यह है कि मुकुल की सांगठनिक दक्षता किसी से छिपी नहीं है. उस उत्तर 24-परगना जिले में उनकी मजबूत पकड़ है जहां इस समुदाय के लोग सबसे ज्यादा रहते हैं. वे बीते चुनाव में नदिया जिले की कृष्णा नगर उत्तर सीट से ही जीते थे. वहां भी मतुआ वोटरों की खासी तादाद है.

इस बीच बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, "कोई भी किसी पार्टी में जाने के लिए स्वतंत्र है. उनके आने से तो कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ था. अब देखते हैं जाने से क्या नुक़सान होगा."

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