जितिन प्रसाद के आने से बीजेपी को क्या हासिल होगा

  • अनंत प्रकाश
  • बीबीसी संवाददाता
जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, ANI

इमेज कैप्शन, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ जितिन प्रसाद

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने के बाद से एक नया सवाल खड़ा हो गया है.

सवाल ये है कि इस राजनीतिक घटनाक्रम से किसका फायदा और किसका नुकसान होगा.

फिलहाल राजनीतिक विश्लेषक जितिन प्रसाद के फायदे या नुकसान पर कम और बीजेपी और कांग्रेस के फायदे-नुकसान पर ज्यादा बात कर रहे हैं.

कई राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस के लिए बड़ा धक्का बताते हुए कह रहे हैं कि अब वो समय आ गया है जब गाँधी परिवार को गंभीरता से सोचना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी को बिखरने से कैसे बचाया जाए.

वहीं, कुछ लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने पर अतिरिक्त उत्साह दिखाया जा रहा है क्योंकि प्रसाद के कहीं जाने-आने से ज़मीनी राजनीतिक में बड़ा बदलाव नहीं आएगा.

छोड़िए Twitter पोस्ट, 1
Twitter सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में Twitter से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Twitter cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

पोस्ट Twitter समाप्त, 1

जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, Twitter@JitinPrasada

कांग्रेस पार्टी की नाराज़गी

कांग्रेस पार्टी में बड़े नेताओं से लेकर प्रदेश शाखाओं के ट्विटर हैंडल से जितिन प्रसाद के प्रति नाराज़गी जताई गई है.

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है, “जितिन प्रसाद एक पारंपरिक कांग्रेसी थे. हमने उन्हें सम्मान दिया और उन्हें अनदेखा नहीं किया. वह महासचिव थे, बंगाल में इन-चार्ज थे. और हर बार चुनाव लड़ने की अनुमति पाते रहे. इसके बावजूद अगर वह कांग्रेस और विचारधारा पर आरोप लगाते हैं, जिसके लिए वह खुद और उनके पिता ने काम किया और लड़ाई की, तो ये दुख की बात है.”

छोड़िए Twitter पोस्ट, 2
Twitter सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में Twitter से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Twitter cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

पोस्ट Twitter समाप्त, 2

वहीं, शीर्ष कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, “जितिन प्रसाद बीजेपी में शामिल हुए. सवाल ये है कि क्या उन्हें बीजेपी से “प्रसाद” मिलेगा या वह यूपी चुनाव के लिए बीजेपी के एक नये ‘शिकार’ हैं. इस तरह की डीलों में अगर विचारधारा की जगह नहीं है तो बदलाव आसान है.”

कांग्रेस पार्टी की राज्य शाखाओं के ट्विटर हैंडलों पर जितिन प्रसाद के प्रति स्पष्ट रूप से नाराज़गी और गुस्से का इज़हार किया गया है.

जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, ANI

मध्य प्रदेश कांग्रेस के ट्विटर हैंडल पर लिखा गया कि जितिन प्रसाद के जाने से कांग्रेस खुश है – “यह एक कूड़ा कूड़ेदान में डालने जैसी सामान्य प्रक्रिया है.”

हालांकि, बाद में इस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया.

छोड़िए Twitter पोस्ट, 3
Twitter सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में Twitter से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Twitter cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

पोस्ट Twitter समाप्त, 3

जितिन प्रसाद ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं कोई टिप्पणी नहीं दूंगा. सभी आलोचना करने के लिए स्वतंत्र हैं. जिनकी सोच छोटी है, वो हमेशा छोटी रहेगी. मैं सभी की आलोचना को प्रसाद की तरह ले रहा हूं. मुझे विश्वास है कि मेरा फैसला सही है और देश हित में है.”

राजनीतिक बयानबाजी से आगे बढ़कर देखें तो एक सवाल अभी भी मौजूद है कि जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने और कांग्रेस छोड़ने से दोनों पार्टियों पर क्या असर पड़ेगा.

जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, Twitter@JitinPrasada

ज़मीन पर किसके लिए क्या बदलेगा?

उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां की राजनीति में ब्राह्मण वोट बैंक की अपनी अहमियत रही है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय से ये मान्यता रही है कि ब्राह्मणों को साथ लेकर राज्य की सत्ता हासिल की जा सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक मायावती से लेकर अखिलेश यादव तक को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने का श्रेय ब्राह्मण वोट बैंक को देते रहे हैं.

इसी से समझा जा सकता है कि बीजेपी, सपा और बसपा ब्राह्मणों को अपने साथ लाने के लिए ब्राह्मण मंच से लेकर परशुराम की मूर्ति लगवाने जैसे वादे करते रहे हैं. संख्या बल की दृष्टि से भी ब्राह्मण समाज को मजबूत माना जाता है.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के निदेशक संजय कुमार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण एक निश्चित रूप से अहम वर्ग है.

वे कहते हैं, “आँकड़ों के आधार पर देखें तो यूपी में तकरीबन आठ से दस फीसदी वोट ब्राह्मणों का है. और किसी भी राज्य में किसी जाति का इतनी बड़ी संख्या में मतदाता होना चुनावी गणित के लिहाज़ से अहम होता है.”

जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, Twitter@JitinPrasada

क्या बीजेपी को कोई फायदा होगा?

लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वर्ग में पार्टी के प्रति असंतोष पनपने की बात कही जा रही है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जितिन प्रसाद आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए ब्राह्मणों का गुस्सा शांत कर पाएंगे.

क्योंकि कुछ समय पहले तक वह स्वयं ब्राह्मणों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के लिए योगी आदित्यनाथ को आड़े हाथों ले रहे थे.

इस सवाल पर संजय कुमार कहते हैं, “आँकड़ों को देखें तो पिछले कई चुनावों में ब्राह्मण वोट बीजेपी के साथ ही रहा है. मेरी राय में जितिन प्रसाद इतने बड़े जनाधार वाले कद्दावर नेता नहीं है जिनके बीजेपी में जाने से बचा-खुचा ब्राह्मण वोट भी बीजेपी में चला जाएगा.”

जितिन प्रसाद के चुनावी प्रदर्शन की बात करें तो वह पिछले दोनों चुनाव हार चुके हैं. कांग्रेस ने उन्हें पश्चिम बंगाल में कमान सौंपी थी जहां कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है.

जितिन प्रसाद

इमेज स्रोत, ANI

यूपी की राजनीति में जाति समीकरणों को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस इस समय जिस जगह पर है, वहां उसे जितिन प्रसाद के जाने से किसी तरह का नुकसान होने की संभावना नहीं है.

वे कहते हैं, “राजनीति में कोई व्यक्ति या तो एसेट यानी ताकत या लायबिलिटी यानी बोझ होता है. जितिन प्रसाद के पिछले चुनावी प्रदर्शन पर नज़र डालें तो वह किसी भी स्थिति में कांग्रेस पार्टी की ताकत या सामर्थ्य के रूप में खड़े हुए नज़र नहीं आते हैं.”

“अगर बात करें बीजेपी को होने वाले फायदे की तो मैं ये कहूंगा कि इससे बीजेपी को भी किसी तरह का फायदा होता नहीं दिख रहा है. क्योंकि, उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस कहीं लड़ाई में नहीं है. इस समय टक्कर में समाजवादी पार्टी है. और अगर बीजेपी सपा में से किसी ब्राह्मण नेता को लेकर आती तो इससे ब्राह्मणों में एक संदेश जाता. लेकिन जितिन प्रसाद को लाकर संदेश भेजने के स्तर पर भी बड़ा काम नहीं किया गया है. जाति के स्तर पर भी बड़ा काम नहीं किया गया है.”

छोड़िए Twitter पोस्ट, 4
Twitter सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में Twitter से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Twitter cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

पोस्ट Twitter समाप्त, 4

कांग्रेस को होगा फायदा या नुकसान?

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समाज ने नरेंद्र मोदी के नाम पर 2014 के आम चुनाव, 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव और 2019 के आम चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समय ऐसा भी था जब कांग्रेस को ब्राह्मणों का समर्थन मिलता था.

लेकिन नब्बे के दशक में हुए राजनीतिक बदलावों के बाद कांग्रेस के लिए यूपी का ब्राह्मण वर्ग लगातार दूर होता चला गया. कांग्रेस को एक लंबे समय से देख रहीं वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी मानती हैं कि जितिन प्रसाद कभी भी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज को कांग्रेस तक लाने में सफल नहीं हुए हैं.

वे कहती हैं, “इन बड़े नेताओं की एक समस्या ये होती है कि ये बड़े नेता इसलिए होते हैं क्योंकि ये बड़े परिवारों से आते हैं. इनका खुद का कोई जनाधार नहीं होता है. जितिन प्रसाद के साथ भी यही समस्या नज़र आती है. वह अपना चुनाव हारने के साथ-साथ अब ऐसी स्थिति में भी नहीं हैं कि अपने परिवार जनों को जिला पंचायत स्तर का चुनाव जितवा सकें. वह स्वयं को ब्राह्मणों का नेता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ब्राह्मण चेतना मंच से लेकर परशुराम भगवान की मूर्तियां तक लगवाईं लेकिन इससे वह ज़मीन पर अपने प्रति ब्राह्मणों का कितना समर्थन जुटा पाएं हैं, ये अब तक साबित नहीं हुआ है. ऐसे में जब वह कांग्रेस में थे तब पार्टी को इसका ख़ास फायदा मिलता नहीं दिखा. ऐसे में अभी कहना मुश्किल है कि उनके जाने से पार्टी को बड़ा नुकसान हो जाएगा क्योंकि पार्टी इस समय जहां पर है, वहां से उसे कितना ही नुकसान हो सकता है.”

प्रोफेसर संजय कुमार भी अपर्णा द्विवेदी की बात से सहमत नज़र आते हैं.

वे कहते हैं, “अगर आप कांग्रेस का वोट शेयर देखें तो कांग्रेस के पास तकरीबन 8 से 10 फीसदी वोट है जिसमें ब्राह्मण वोट की तादाद काफ़ी छोटी है. बड़ा शेयर मुस्लिम मतदाताओं का है. ऐसे में जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है.”

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)