कोरोना: अब गंगा किनारे रेत में 'दफ़नाए' जा रहे हैं शव

  • समीरात्मज मिश्र
  • लखनऊ (यूपी) से, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
गंगा किनारा

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बिहार और यूपी में गंगा नदी में बहते शवों के बाद अब गंगा किनारे की रेत में बड़ी संख्या में दफ़नाए गए शव मिल रहे हैं.

कानपुर, उन्नाव और फ़तेहपुर में सैकड़ों की संख्या में ऐसे शव मिलने से हड़कंप मच गया है. प्रशासन का कहना है कि कुछ लोग अपनी परंपरा के अनुसार शव दफ़नाते हैं, जबकि स्थानीय लोगों के मुताबिक़, श्मशान घाटों की भीड़ और महँगे अंतिम संस्कार की वजह से लोग शवों को रेत में गाड़कर चले जा रहे हैं.

बुधवार को उन्नाव में गंगा नदी के किनारे कुछ घाटों पर जब बडी संख्या में कौवे और चील मँड़राते दिखे तो लोगों को संदेह हुआ. कुछ लोगों ने पास जाकर देखा तो भयानक तस्वीर दिखी.

गंगा नदी के किनारे कई शव रेत में ही दफ़न कर दिये गए थे. कुछ शव रेत से बाहर निकल आए थे जिन्हें कुत्ते नोंचकर खा रहे थे. कुछ शव बेहद क्षत-विक्षत अवस्था में मिले क्योंकि रेत में उन्हें ज़्यादा भीतर नहीं गाड़ा गया था.

गंगा घाट

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उन्नाव के शुक्लागंज में गंगा किनारे कई घाट हैं जहाँ रेत पर बने ऐसे क़ब्रिस्तान बुधवार को दिखाई दिये.

तस्वीरें वायरल होने पर पता चला कि पिछले कई दिनों से गाँवों में मर रहे लोगों को उनके परिजन यहाँ आकर रेत में दबाकर चले जा रहे हैं.

शुक्लागंज के रहने वाले दिनकर साहू बताते हैं कि ऐसा कई दिनों से हो रहा है, लेकिन लोगों को पता नहीं चल पाया.

दिनकर साहू इसकी वजह बताते हैं, "श्मशान घाटों पर भीड़ और महँगी लकड़ी मिलने के कारण ग़रीब लोगों ने शवों को दफ़नाना शुरू कर दिया है. हालांकि आमतौर पर ऐसा नहीं होता है. लेकिन जिन लोगों ने भी ऐसा किया है उन्होंने मजबूरी में ही किया होगा."

हालांकि उन्नाव के ज़िलाधिकारी रवींद्र कुमार कहते हैं कि आस-पास के गाँवों में ऐसी परंपरा है कि लोग शवों को दफ़ना देते हैं, फिर भी हम इसकी जाँच कर रहे हैं.

ज़िलाधिकारी रवींद्र कुमार

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ज़िलाधिकारी रवींद्र कुमार कहते हैं, "नदी से दूर रेत में दबे शवों के बारे में पता चला है. दूसरे इलाकों में शवों की तलाशी की जा रही है. कुछ लोग परंपरा के अनुसार शव जलाते नहीं बल्कि दफ़ना देते हैं, लेकिन इतनी ज़्यादा संख्या में शवों का दिखना गंभीर बात है. जाँच के आदेश दिये गए हैं. जो भी जानकारी मिलेगी, उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी. हालांकि जो लोग परंपरा के अनुसार दफ़नाते हैं उन्हें भी कहा जा रहा है कि वो गहराई में दफनाएं ताकि जानवर नुकसान ना पहुँचा पाएं. शवों का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाए. जो लोग विवशता में ऐसा कर रहे हैं, उनके लिए भी हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि लकड़ी इत्यादि की कमी ना होने पाए."

उन्नाव के बक्सर घाट पर भी बड़ी संख्या में रेत में दबाये गए शव मिले हैं.

डीएम रवींद्र कुमार कहते हैं कि इस जगह उन्नाव, फ़तेहपुर और रायबरेली से भी लोग अंतिम संस्कार करने आते हैं और कुछ लोगों के यहाँ दफ़नाए जाने की ही परंपरा है. हालांकि स्थानीय लोगों के मुताबिक़, यह परंपरा महज़ कुछेक जातियों में ही है, वो भी तब जबकि उनके पास अंतिम संस्कार के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं होते.

गंगा में शव

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इमेज कैप्शन, बिहार-यूपी में कोरोना महामारी के बीच बहती लाशें

उन्नाव में स्थानीय पत्रकार विशाल प्रताप सिंह कहते हैं कि गाँवों में कुछ लोग बच्चों के शव या फिर कुछ बुज़ुर्गों के शव जलाने की बजाय ज़मीन में गाड़ देते हैं. उनके मुताबिक़, "कई बार लोग खेतों में भी शव गाड़ देते हैं. कुछ समुदायों में यह परंपरा होती है. लेकिन ऐसे लोग बहुत कम होते हैं."

उन्नाव के अलावा कानपुर में भी गंगा किनारे कई घाटों पर ऐसे शव मिले हैं. कानपुर में वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण मोहता के मुताबिक़, "बिल्हौर तहसील के खेरेश्वर गंगाघाट पर रेत में बड़ी संख्या में शव दफ़नाए गए हैं. यहाँ भी उन्नाव जैसा हाल है. बड़े क्षेत्र में दफ़नाए गए शवों के कफ़न साफ़ दिख रहे हैं. आस-पास के लोग इस विषय में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. शव दफ़नाने की परंपरा वाले आस-पास के कोई लोग यहाँ नहीं मिले और ना ही इससे पहले कभी यहाँ शवों को दफ़नाते हुए देखा गया है. इक्का-दुक्का अपवाद हो सकते हैं लेकिन परंपरा जैसी चीज़ तो नहीं दिखती."

कानपुर में कोई भी अधिकारी बिल्हौर के खेरेश्वर घाट पर मिले शवों के बारे में कुछ भी नहीं बता रहा है. प्रवीण मोहता कहते हैं कि गाँवों में बीते कुछ हफ्तों में इतनी मौतें हुईं कि लोगों को शवों के दाह संस्कार का समय नहीं मिला और बड़ी संख्या में शव गंगा की रेती में दफ़नाए गए.

अब गंगा किनारे रेत में 'दफ़नाए' जा रहे हैं शव

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उन्नाव में अंतिम संस्कार संपन्न कराने वाले पुरोहित विजय शर्मा बताते हैं, "उन्नाव और फ़तेहपुर ज़िले में पिछले एक महीने में बड़े पैमाने पर लोगों की बुखार और साँस फूलने जैसी बीमारियों से मौत हुई है. गंगा किनारे दाह संस्कार के लिए बने घाटों पर जब अंतिम संस्कार के लिए ज़्यादा समय लगने लगा तो रायबरेली, फ़तेहपुर और उन्नाव से आए शवों को उन्नाव में बक्सर घाट से कुछ ही दूरी पर गंगा की रेती में दबा दिया गया. यहाँ पहले हर दिन 10-12 शवों का अंतिम संस्कार होता था, लेकिन फ़िलहाल रोज़ाना सौ से ज़्यादा शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है."

यह बात स्पष्ट नहीं हो सकी है कि दफ़नाए गए शव किनके हैं, यानी उनकी मृत्यु कोरोना संक्रमण की वजह से हुई है या फिर किसी और वजह से.

स्थानीय लोगों के मुताबिक़, इन सभी घाटों पर आस-पास के गाँवों से ही लोग आते हैं लेकिन अब शवों की पहचान करना बड़ा मुश्किल है.

शवों के रेत में दबे होने की सूचना के बाद बुधवार शाम ही उन्नाव और फ़तेहपुर ज़िले के अधिकारी मौक़े पर पहुँचे.

फ़िलहाल वहाँ मशीनों से रेत डलवा दी गई और कफ़न वहाँ से हटा दिये गए हैं. निगरानी के लिए प्रशासन ने टीमें तैयार कर दी हैं ताकि अब लोग इस तरह से शवों को ना दफ़न कर सकें.

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