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नए रोग की दस्तक: संक्रमण के साथ पहले नौ दिन काला फंगस तो जान का खतरा

अमर उजाला रिसर्च टीम, नई दिल्ली Published by: Jeet Kumar Updated Tue, 11 May 2021 07:36 AM IST
सार

  • कोरोना महामारी के बीच नए रोग से सांसत में मरीजों की जान
  • अस्पताल में भर्ती रहते हुए हाई डोज की दवाएं इसमें खतरनाक
  • नाक काली दिखने लगेगी तो है ब्लैक फंगस का हमला

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first nine days after corona infection are very important, Black fungus
ब्लैक फंगस - फोटो : amar ujala
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कोरोना मरीजों के लिए अब ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) जान का दुश्मन बन गया है। लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. सूर्यकांत बताते हैं कि संक्रमण के बाद पहले नौ दिन बहुत अहम हैं। 



संक्रमण के साथ मरीज में काले फंगस की शिकायत हुई , तो उसकी जान पर खतरा बढ़ जाता है। यह फंगस त्वचा के साथ नाक, फेफड़ों और मस्तिष्क तक को नुकसान पहुंचा सकता है। डॉ. सूर्यकांत के अनुसार काला फंगस पहले से ही हवा और जमीन में मौजूद है। 


जैसे ही कोई कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला व्यक्ति इसके संपर्क में आता है, तो उसके चपेट में आने की आशंका अधिक रहती है। वे बताते हैं, जो मरीज जितने लंबे समय तक अस्पताल में रहेगा और जितनी अधिक उसे स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाएं चलती रहेंगी, उसे इससे खतरा बढ़ता जाएगा। 
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वे बताते हैं कि हवा में फंगस की मौजूदगी के कारण यह सबसे पहले नाक में घुसता है। फेफड़ों के बाद रक्त से मस्तिष्क तक पहुंच सकता है। ब्लक फंगस का संक्रमण जितना गंभीर होगा, लक्षण भी उतने ही गंभीर होंगे। 
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नाक पर जहाँ चश्मा अटकता है, वो काली दिखने लगेगी जिसे नेजल ब्रिज कहते हैं। काला फंगस जब मस्तिष्क तक पहुंचेगा, तो व्यक्ति बेहोशी की हालत में रहेगा। जबड़े और दांतों में संक्रमण का स्तर गंभीर होने पर ऑपरेशन की भी जरूरत पड़ सकती है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा और दिल्ली में मरीज मिल चुके हैं।

एक्स - रे या सीटी स्कैन में दिखता है कालापन 
डॉ. सूर्यकांत बताते हैं कि काले फंगस का लक्षण दिखने के बाद जब रोगी के सीने या सिर का एक्स - रे किया जाता है, तो उसमें स्पष्ट तौर पर कालापन दिखता है। संक्रमण की चपेट में आकर मौत की दर 50 फीसदी है। सबसे अधिक खतरा मधुमेह रोगी, गुर्दा प्रत्यारोपण करा चुके व्यक्ति या जिनका शुगर लेवल 300 से 500 तक है, उन लोगों में समय के साथ मौत की आशंका बढ़ जाती है। 
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अस्पताल में हर दिन खतरनाक 
फंगल संक्रमण का खतरा उन कोरोना संक्रमितों को अधिक है जो लंबे समय तक अस्पताल में रहते हैं। आईसीयू और वेंटिलेटर यूनिट में भर्ती मरीजों को कई तरह की दवाएं दी जाती हैं। दवाएं शरीर को कमजोर करती हैं। इससे हवा में मौजूद काला फंगस आसानी से शरीर में प्रवेश कर रोगी की जान का दुश्मन बन रहा है।

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