दिल्ली में एक बुज़ुर्ग कोविड मरीज़ के दर-दर भटकने की कहानी

  • दिलनवाज़ पाशा
  • बीबीसी संवाददाता
गाड़ी में लेटे सुरिंदर सिंह
इमेज कैप्शन, गाड़ी में लेटे सुरिंदर सिंह

मारुति ओमनी एंबुलेंस में लेटे सुरिंदर सिंह की साँसें टूट रहीं थीं. दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल के डॉक्टर उन्हें देखने एंबुलेंस तक तो आए लेकिन भर्ती करने से हाथ खड़े कर दिए. ये रात 11 बजे की बात है.

डॉक्टरों ने उनके साथ आए चंदीप सिंह और दूसरे युवाओं से कहा, "इनकी हालत बहुत ख़राब है, इन्हें तुरंत वेंटिलेटर की ज़रूरत है. हमारे पास बेड उपलब्ध नहीं हैं, आप तुरंत इन्हें कहीं और ले जाइए."

होली फ़ैमिली अस्पताल

चंदीप सिंह और उनके साथी हाथ जोड़कर डॉक्टरों की मिन्नतें करते रहे लेकिन डॉक्टर अस्पताल में बेड उपलब्ध न होने की बात दोहराते रहे.

मैं दूर से ये सब देख रहा था. कुछ देर पहले ही मैं शाहीन बाग़ के अल-शिफ़ा अस्पताल का हाल देखकर लौटा था. वहां तीन बेड ख़ाली होने की जानकारी मिली थी.

ये जानकारी चंदीप को दी तो वो तुरंत अपनी गाड़ियों को लेकर अल शिफ़ा की तरफ़ चल पड़े. एक एंबुलेंस में मरीज़ और अटेंडेंट था और दूसरी गाड़ी में बाक़ी साथी.

आगे भी मिली नाकामी

सुरिंदर सिंह जब अल शिफ़ा पहुँचे तो वहाँ कोई बेड उपलब्ध न होने की जानकारी दी गई.

अल-शिफ़ा अस्पताल

सुरिंदर सिंह का ऑक्सीजन लेवल गिरकर 50 के पास पहुँच गया था. अब उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट के बावजूद सांस लेने में दिक्क़त हो रही थी. उनके साथ आए संप्रीत सिंह लगातार उन्हें हाथ से पंखा झल रहे थे.

अल शिफ़ा के डॉक्टरों की टीम ने एंबुलेंस में ही उन्हें देखा और तुरंत किसी वेंटिलेटर वाले बेड पर ले जाने की सलाह दी. मिन्नतें करने के बाद भी अस्पताल आईसीयू बेड नहीं दे पाया.

अस्पताल के डॉक्टरों का कहना था, "मरीज़ को वेंटिलेटर वाले बेड की ज़रूरत है, अभी हमारे पास वेंटिलेटर नहीं है. हम इस स्थिति में मरीज़ को भर्ती नहीं कर सकते हैं."

हमने अस्पताल के प्रबंधन से जुड़े कुछ लोगों से बात की. उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर वेंटिलेटर वाला बेड ख़ाली हुआ तो ज़रूर दे दिया जाएगा. थोड़ी देर बाद पता करने पर ही वही जवाब मिला कि आइसीयू बेड ख़ाली नहीं है.

सुरिंदर सिंह

इस दौरान सुरिंदर सिंह को जो सिलिंडर लगा था वो ख़त्म हो गया. वो ऑक्सीजन के लिए तड़पने लगे. बहुत गुहार करने पर कुछ देर के लिए अल शिफ़ा अस्पताल ने अपना एक सिलिंडर दिया.

दिल्ली के आश्रम इलाक़े के रहने वाले सुरिंदर सिंह को बचाने के लिए उनके पोते और उसके दोस्त जी-जान से जुटे हुए थे.

फिर जागी उम्मीद

जब उनके एक पड़ोसी ने रोते हुए अल शिफ़ा के डॉक्टरों से भर्ती करने की गुहार लगाई तो उन्होंने बताया कि लाजपत नगर के आईबीएस अस्पताल (इंस्टीट्यूट ऑफ़ ब्रेन एंड स्पाइन) में बेड उपलब्ध हैं.

कुछ देर में चंदीप के साथी एक और सिलिंडर लेकर अल शिफ़ा पहुंचे. मरीज़ को नया सिलिंडर लगाने के बाद गाड़ी आईबीएस अस्पताल की तरफ़ दौड़ने लगी. लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

सुरिंदर सिंह
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समाप्त

एक और अस्पताल ने फिर वही कहा जो दो अस्पताल पहले कह चुके थे, कोई आइसीयू बेड ख़ाली नहीं है.

अब तक रात के दो बज चुके थे. अब सुरिंदर सिंह को सफ़दरजंग अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां भी बेड नहीं मिला. वो रात भर एंबुलेंस में ही अस्पताल दर अस्पताल भटकते रहे. आख़िरकार परिजन थक-हारकर उन्हें घर वापस ले गए.

दस दिनों से बीमार सुरिंदर सिंह के लिए ऑक्सीजन जुटाने के लिए चंदीप और उनके साथी अलग-अलग लाइनों में लगते हैं, कहीं ऑक्सीजन मिलती है, कहीं नहीं.

सुरिंदर के पोते संप्रीत कहते हैं, ''सबसे मुश्किल है ऑक्सीजन जुटाना, चार लोग लाइनों में लगते हैं तो किसी एक को वक़्त पर ऑक्सीजन मिल पाती है. जब हमें दिल्ली में कहीं ऑक्सीजन नहीं मिली तो हम हरियाणा गए. वहाँ गैस तो थी लेकिन हमें ये कहकर मना कर दिया गया कि दिल्ली के लोगों के लिए ऑक्सीजन नहीं है, सिर्फ़ लोकल लोगों के सिलिंडर भरे जा रहे हैं.''

डॉक्टरों ने कहा था कि बिना वेंटिलेटर के सुरिंदर सिंह बच नहीं पाएंगे लेकिन उनकी जान बचाने में लगी युवाओं की टीम हर हालत में उन्हें दिलासा देती रही. जब उनकी सांस टूटती तो वो हाथ थाम लेते और कहते कि अंकल आपको कुछ होने नहीं देंगे.

सुरिंदर सिंह

हर स्तर पर प्रयास करने के बाद अगले दो दिनों तक उनके लिए कहीं बेड नहीं मिल सका, लेकिन इस दौरान शायद लगातार मिले ऑक्सीजन सपोर्ट की वजह से उनकी हालत में थोड़ा सुधार आया और उनका ऑक्सीजन लेवल 50 से बढ़कर 70 तक पहुंच गया.

फिर ऑक्सीजन ख़त्म

तीसरे दिन उनका सिलिंडर कहीं भी नहीं भर सका तो एक बार फिर उनकी जान बचाने की कोशिश में जुटे युवाओं का हौसला टूटने लगा. संदीप ने कांपती हुई आवाज़ में फ़ोन करके बताया कि अंकल की हालत सुधर रही है लेकिन एक घंटे में ऑक्सीजन ख़त्म हो जाएगी.

एक दिन पहले ही मैं जीबी पंत इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर जोशिल के संपर्क में आया था.

वो सिलिंडर भरवाकर लोगों की मदद कर रहे हैं. जब सुरिंदर सिंह की जान बचाने में लगे नौजवान ने फ़ोन किया तो ऑक्सीजन ख़त्म होने से ठीक पहले प्रोफ़ेसर जोशिल उनके लिए सिलिंडर लेकर घर पहुंच गए. वे अब तक दो सिलिंडर सुरिंदर सिंह के लिए उपलब्ध करवा चुके हैं.

काली शर्ट में सबसे बाएं डॉक्टर जोशिल
इमेज कैप्शन, काली शर्ट में सबसे बाएं डॉक्टर जोशिल

चौथे और पाँचवें दिन भी सुरिंदर सिंह के लिए बेड की तलाश जारी रही लेकिन हर तरफ़ से निराशा ही हाथ लगी.

हालांकि पाँचवा दिन आते-आते डॉक्टरों ने ये भरोसा ज़रूर दिया कि सुरिंदर सिंह की हालत में अब सुधार हो रहा है. उनकी डूब रही आंखों में चमक-सी लौट आई है. लेकिन वो अब भी ऑक्सीजन सपोर्ट पर ही हैं.

आख़िरकार मिला बेड

ये रिपोर्ट लिखे जाने के वक़्त आख़िरकार शुक्रवार की देर रात उनका ऑक्सीजन स्तर 70 से 80 के बीच था, तभी दिल्ली के एक अस्पताल में उन्हें बेड मिल गया लेकिन अब उन्हें वेंटिलेटर की ज़रूरत नहीं होगी.

चंदीप और उनके साथी फिर भी ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था करने में जुटे थे क्योंकि आगे का कुछ पता नहीं. चंदीप के मुताबिक़ अब तक सुरिंदर सिंह के लिए आठ जंबो सिलिंडर ऑक्सीजन इस्तेमाल की जा चुकी है.

सुरिंदर सिंह

वो कहते हैं, "एक गुरुद्वारे से जुड़े लोगों ने भी हमें ऑक्सीजन भेजी है. इस दौरान जो भी शख़्स हमारी मदद कर रहा है वो हमारे लिए किसी भगवान से कम नहीं है."

चंदीप कहते हैं, "हम 10 दिनों से जद्दोजहद कर रहे हैं. सरकार कहीं नज़र नहीं आ रही है. जिस तरह से हम मोहल्ले के लोग जुटकर अपने अंकल को बचाने में लगे हैं सरकार भी तो ऐसा कर सकती है. ऐसा लग रहा है कि संकट की इस घड़ी में हमें बेसहारा छोड़ दिया गया है."

ये कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू भर आए. उनके अंकल की सेहत अब सुधर रही है.

बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए वो कहते हैं, "अस्पतालों ने तो कह दिया था कि हमारे अंकल नहीं बचेंगे लेकिन हम जुटे रहे. अब बस आपकी दुआओं का सहारा है. अगर ऑक्सीजन मिलती रही तो हम अपने अंकल को बचा लेंगे. ना उनका हौसला टूटा है और ना ही हमारा."

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