कोरोना की गंभीर स्थिति के बीच अदालतों के निशाने पर केंद्र और राज्य

भारत में कोरोना

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देश भर में कोरोना के बढ़ते मामले और ऑक्सीजन से लेकर, अस्पतालों में बेड और दवा की क़िल्लत की ख़बरों के बीच अदालतों ने अब सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को पिछले कुछ दिनों से जमकर फटकार लगाई है.

मंगलवार को भी ऐसा ही कुछ हुआ जब कई हाईकोर्टों ने सरकारों को कठघरे में खड़ा किया.

कई समाजसेवी संगठनों ने ऑक्सीजन की कमी, आईसीयू बेड की दिक़्क़त, दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाज़ारी को लेकर पीआईएल दाख़िल किया है और कई मामलों में तो अदालतों ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकारों से जवाब माँगा है.

दिल्ली

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दिल्ली हाईकोर्ट ने तो सख़्त रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा कि दिल्ली को पर्याप्त ऑक्सीजन सप्लाई करने के कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने के लिए उनके ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का मामला क्यों नहीं दर्ज किया जाए.

मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने साफ़ कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 30 अप्रैल के आदेश में कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मुहैया कराए.

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हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो है ही लेकिन अब हम भी कह रहें हैं कि चाहे जैसे भी हो केंद्र सरकार फ़ौरन दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मुहैया कराए.

गुजरात

गुजरात हाईकोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया कि वो इस बात से बहुत व्यथित है कि कोरोना के मामले में सरकार उसके आदेशों की पूरी तरह अनदेखी कर रही है.

क़ानूनी मामलों की जानकारी देने वाली वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस भार्गव डी कारिया की खंडपीठ ने कहा, "हम राज्य सरकार और निगम के रवैए से बहुत व्यथित हैं. इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है. पिछले तीन आदेशों से, हम रियल टाइम अपडेट के मुद्दे का उल्लेख कर रहे हैं, लेकिन आज तक, राज्य या निगम द्वारा कुछ भी नहीं किया गया है."

ऑक्सीजन की कमी

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अदालत ने अहमदाबाद नगर निगम को आदेश दिया है कि वह COVID-19 अस्पतालों में विभिन्न श्रेण‌ियों के बेड की उपलब्धता का रियल टाइम अपडेट प्रदान करने के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड पेश करे.

पटना

पटना हाईकोर्ट

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बिहार में हर दिन बढ़ते कोरोना संक्रमण और उस पर राज्य सरकार की कार्यशैली को लेकर पटना उच्च न्यायालय ने कड़ी आपत्ति जताई है. शिवानी कौशिक की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अपनी नाराज़गी जताई और कहा कि कोरोना से निपटने में बिहार सरकार पूरी तरह नाकाम हो रही है, पूरी व्यवस्था ही ढेर हो चुकी है.

जानकारों का मानना है कि सोमवार को प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर पटना उच्च न्यायालय की फटकार के बाद ही मंगलवार को राज्य भर में 15 मई तक के लिए लॉकडाउन लगाया गया है.

बिहार में कोरोना के हर दिन बढ़ते संक्रमण को लेकर चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था पर कोर्ट की नाराज़गी इस बात को लेकर थी कि राज्य के विभिन्न अस्पतालों में निरंतर ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर अब तक कोई ठोस एक्शन प्लान क्यों नहीं दिया गया है.

अस्पतालों में बिस्तर और वेंटीलेटर की कमी है. वहीं केंद्रीय कोटा से हर दिन मिलने वाले 194 मीट्रिक टन की जगह 160 मीट्रिक टन ही क्यों आपूर्ति की जा रही है. कोर्ट के निर्देश के बावजूद इएसआई अस्पताल, बिहटा पूरी क्षमता के साथ नहीं चालू किया जा सका है.

पटना से वरिष्ठ पत्रकार नीरज सहाए के अनुसार मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के पास डॉक्टर, वैज्ञानिक, अधिकारियों की कोई सलाहकार समिति तक नहीं है जो अपने अनुभवी विचार इस महामारी से निपटने के लिए दे सके.

ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर बार- बार निर्देश देने के बावजूद अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है.

कोर्ट के आदेश की अवहेलना और हर दिन औसत 12 हज़ार एक्टिव केस मिलने पर नाराज़ खंडपीठ ने यहाँ तक कह दिया कि या तो सरकार बेहतर निर्णय ले या फिर कोर्ट कोई बड़ा निर्णय लेने को बाध्य होगा.

कोर्ट की नाराज़गी भरे निर्देश के बाद राज्य सरकार ने आनन-फ़ानन में पाँच सदस्यों वाली एक्सपर्ट एडवाइज़री कमेटी गठित करने का निर्णय लिया है. इसके सदस्यों के नाम सोमवार को ही सौंप दिए गए हैं.

इसपर कोर्ट ने अपनी सहमति देते हुए सरकार को आदेश दिया कि इन विशिष्ट जनों की सलाह को व्यावहारिक रूप से ज़मीन पर उतारने के लिए एक तेज़-तर्रार लोकसेवकों को भी कमेटी में शामिल किया जाना चाहिए. कोर्ट ने इसके लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संदीप पौंड्रिक का नाम भी सुझाया.

राजस्थान

राजस्थान हाईकोर्ट ने भी मंगलवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो अस्पतालों में बेड की उपलब्धता की जानकारी रियल टाइम में करे.

अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को निर्देश दे दिए गए हैं कि वो अस्पतालों को ऑक्सीजन और दूसरी ज़रूरी दवाएँ युद्ध स्तर पर मुहैया कराएं. अदालत ने राज्य सरकार से भी कहा कि वो ऐसे प्लांट से ऑक्सीजन जेनेरेट करने के बारे में सोचें जो प्लांट फ़िलहाल बंद पड़े हैं लेकिन उन्हें चालू किया जा सकता है.

कर्नाटक

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कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी सख़्त रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार से ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के लिए कहा.

मंगलवार को राज्य सरकार की तरफ़ से अदालत को जानकारी दी गई कि राज्य में फ़िलहाल रोज़ाना 1692 मेट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत है और केंद्र सरकार ने उसके कोटे को 802 से बढ़ाकर 856 मेट्रिक टन किया है.

क़ानूनी मामलों की वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार मंगलवार को सुनवाई के दौरान चीफ़ जस्टिस अभय श्रीनिवास ने केंद्र सरकार के वकील ने नाराज़गी जताते हुए कहा, "आप चाहते हैं कि लोग मरें? आप हमें यह बताएं कि आप राज्य (कर्नाटक) को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा कब बढ़ाएंगे?"

केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि वो सरकार से बातचीत किए बिना अदालत के सामने कोई बयान नहीं दे सकते हैं और वो बुधवार को राज्य में ऑक्सीजन का कोटा बढ़ाने के बारे में केंद्र सरकार से बात करेंगे.

कोर्ट को राज्य सरकार ने बताया कि उन्हें रेमडेसिविर दवा भी ज़रूरत की आधी मिल रही है. अदालत ने इस मामले में बुधवार को आदेश पास करने को कहा है.

महाराष्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि चीफ़ जस्सिट दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली बेंच गर्मी की छुट्टियों के दौरान भी कोरोना से जुड़ी जनहित याचिकाओं की सुनवाई करेगी.

हाईकोर्ट की गर्मियों की छुट्टियां 10 मई, 2021 से शुरू होंगी और छह जून, 2021 को समाप्त होंगी.

इस बीच बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर विचार करने के लिए अपनी मंज़ूरी दे दी है जिसमें माँग की गई है कि आईपीएल को रद्द किया जाए.

इसी याचिका में यह माँग भी कई गई है कि कोरोना महामारी के बीच आईपीएल आयोजित करने के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर 1000 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया जाए और इस पैसे को लोगों के उपचार के लिए दवाओं और चिकित्सकीय ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ख़र्च करने के निर्देश दिए जाएं.

अदालत ने इस पर गुरुवार को सुनवाई करने के निर्देश दिए हैं लेकिन इस बीच आईपीएल को इस सीज़न के लिए स्थगित कर दिया गया है तो रद्द करने की याचिका का अब तो कोई महत्व नहीं रह जाता है लेकिन देखने वाली बात होगी कि बॉम्बे हाईकोर्ट क्या जुर्माना लगाने की बात मानता है या नहीं.

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