पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रतिष्ठापूर्ण नन्दीग्राम सीट से अपना चुनाव हार गईं। ममता ने कहा है कि वे नन्दीग्राम में हुई शरारत के खिलाफ अदालत जाएंगी। दरअसल, शाम होने से पहले ही ममता की जीत की खबर आने लगी थीं। बताया जा रहा था कि उन्होंने भाजपा के शुभेंदु अधिकारी को 1200 वोटों से हरा दिया है। फिर अचानक शाम ढले घोषणा हुई कि ममता 1622 वोटों से हार गई हैं।

पहले जीत और फिर अचानक हार के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि उनको जनादेश स्वीकार है। लेकिन वे इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगी। उन्होंने कहा, जानकारी मिली है कि वहां नतीजे की घोषणा के बाद कुछ खेल हुआ है। ममता ने मतदाताओं से नन्दीग्राम के नतीजे पर चिंता न करने की अपील की है और याद दिलाया है कि टीएमसी ने 221 से भी ज्यादा सीटें जीती हैं।

इसके पहले जब टीएमसी ने जीत का आंकड़ा छुआ तो वे सबके सामने आईं, पैर के प्लास्टर के बगैर। उन्होंने जय बंगाल का नारा लगाते हुए उपस्थित लोगों से घर जाने को कहा। ममता ने जनता को अभूतपूर्व जीत के लिए धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि अब उन्हें कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष में कूदना है। उन्होंने कहा कि महामारी के कारण शपथग्रहण समारोह बहुत सादगीपूर्ण और संक्षिप्त रखा जाएगा। उन्होंने सबको कोविड से सुरक्षित रहने की अपील करते हुए मौजूद लोगों से घर जाने को कहा। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग ने पहले ही विजय जुलूसों और समारोहों पर रोक लगा रखी है ताकि कोरोना संक्रमण नहीं फैले।

बात कुछ भी हो ममता की हार के बाद टीएमसी के अंदर जीत की खुशी थोड़ी दरक सी गई है। भाजपा वाले तो अभी से पूछने लगे हैं कि क्या चुनाव हारने के बाद ममता को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी चाहिए। उधर, लोग उद्धव ठाकरे और योगी आदित्यनाथ का उदाहरण दे रहे हैं। इस बीच टीएमसी के एक वर्ग में यह चर्चा भी है कि ममता मुख्यमंत्री का पद महुआ मोइत्रा को दे सकती हैं और खुद राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ सकती हैं।

गौरतलब है कि बंगाल चुनाव में तृणमूल ने बीजेपी को जोरदार पटखनी तो दे दी लेकिन नंदीग्राम सीट को लेकर पार्टी की सांसें आखिर तक अटकी रहीं। देर शाम तक भी यह पता नहीं लग सका था कि कौन वहां से जीता और कौन हारा। BJP IT सेल के चीफ अमित मालवीय का दावा था कि नंदीग्राम में ममता 1622 वोटों से हार गई हैं। उधर, बंगाल सीएम ने कहा- जो फैसला होगा उसे वह मानेंगी। उनका कहना है कि अभी जीत हार को लेकर कयासबाजी न करें। नंदीग्राम में मतगणना जारी है।

वैसे बंगाल का ये चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अलग जगह रखेगा। पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने वो सारे दांव खेले जिनसे ममता को ठिकाने लगाया जा सके। लेकिन ममता ने खेला होबे का नारा देकर जता दिया कि उन्हें घेर पाना इतना आसान नहीं है। ममता ने आखिरी समय तक एक योद्धा की तरह से लड़ाई लड़ी और जीती। बीजेपी ने उन्हें घेरने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। चुनाव शुरू होने से पहले तृणमूल के नेताओं को तोड़कर अपने पास लाने का सिलसिला बीेजेपी लंबे अर्से से चला रही थी। मुकुल रॉय से शुरुआत हुई और फिर दिनेश त्रिवेदी, राजीव बनर्जी जैसे नेता बीजेपी के पाले में आ गए। लेकिन सबसे ज्यादा हैरत लोगों को तब हुई जब ममता के खासमखास रहे शुभेंदु अधिकारी बीजेपी के हो गए। पहले वो खुद भगवा दल में गए। फिर उनके भाई और पिता शिशिर बनर्जी।

शुभेंदु की दगाबाजी से ममता आहत थीं। यही वजह रही कि उन्होंने खुद नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया। ममता मे हुंकार भरी और अपना नामांकन दाखिल कर दिया। उनका यह कदम बीजेपी को भी हैरत में डालने वाला था। यही वजह रही कि नंदीग्राम को फोकस करते हुए पीएम मोदी और गृह मंत्री अणित शाह ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं। ममता के आत्मविश्वास को डिगाने के लिए ये प्रचार भी किया गया कि वो दूसरी सीट से नामांकन दाखिल करने की फिराक में हैं। ममता इससे पहले भवानीपुर से चुनाव लड़ती रही थीं।

अलबत्ता ममता ने बीजेपी के दबाव में आने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, नंदीग्राम में शुभेंदु उनकी वजह से थे। वो शुभेंदु की वजह से नहीं थीं। वो दूसरी सीट से चुनाव लड़ने नहीं जा रही हैं। वो नंदीग्राम में शुभेंदु को पटखनी देकर अधिकारी परिवार को उसकी हैसियत बताना चाहती हैं। ममता ने आखिरी तक शुभेंदु को निशाने पर रखा। उन्हें मीरजाफऱ जैसी संज्ञा भी दी।

हालांकि, रविवार को नंदीग्राम का परिणाम शुरू से ही उतार चढ़ाव वाला रहा। कभी शुभेंदु 7 हजार से आगे निकले तो कभी ममता 27 सौ से आगे हो गईं। आखिरी चरण तक पता ही नहीं चल पा रहा था कि ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है। अभी भी नंदीग्राम को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। लेकिन बंगाल में ममता की जीत हर मायने में खास है। यही वजह रही कि शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि ममता ने मोदी और शाह को बता दिया कि उन्हें भी हराया जा सकता है।

गौरतलब है कि नंदीग्राम सीट की बंगाल की राजनीति में एक खास अहमियत है। ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्थान की वजह नंदीग्राम का भूमि अधिग्रहण आंदोलन था। इसमें अधिकारी परिवार ने कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दिया। ममता ने भी उन्हें अच्छा रिटर्न दिया और परिवार के तकरीबन सभी सदस्यों को बेहतरीन तरीके से एडजस्ट किया। शुभेंदु को उन्होंने अपना सिपहसालार बनाया, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा की वजह से शुभेंदु ने उन्हें छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया। अधिकारी परिवार के इस कदम से ममता बिफऱ गईं और उन्होंने परिवार को जड़ से खत्म करने के लिए नंदीग्राम से ताल ठोक दी।