विजय कपूर। काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) के हालिया सर्वे में तीन महत्वपूर्ण बातें निकलकर सामने आई हैं जिनसे देश में कोविड की भयंकर स्थिति को समझने में थोड़ी मदद मिलती है। शायद इनके सहारे संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कोई सहायक रास्ता भी मिल जाए। पहला, इस साल मार्च में आई नए कोरोना वायरस की दूसरी लहर शायद सीरो-पॉजिटिव व्यक्तियों में ‘अर्थपूर्ण एंटीबॉडीज’ के अभाव के कारण है। दूसरा, हालांकि स्मोकिंग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है व अनेक रोगों की वजह भी, बावजूद इसके कि कोविड सांस संबंधी रोग है, लेकिन यह संभव है कि स्मोकिंग के कारण जो अधिक बलगम बनता है, वह कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने में ‘रक्षा की पहली पंक्ति’ बनता हो। तीसरा, जिस शाकाहारी भोजन में फाइबर की मात्रा अधिक होती है उसकी भी कोविड के विरुद्ध इम्युनिटी प्रदान करने में भूमिका पाई गई है।

यह अध्ययन 140 डॉक्टरों व विज्ञानियों की टीम ने उन 10,427 वयस्क व्यक्तियों पर किया है जो देश के 17 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित सीएसआइआर की 40 प्रयोगशालाओं में काम करते हैं या उनके परिवार के सदस्य हैं। इस अध्ययन के अनुसार पहली लहर के दौरान संक्रमण सितंबर 2020 में अपनी चरम पर था और इसके बाद नए मामलों में अक्टूबर से देशव्यापी पतन शुरू हो गया। फिर दूसरी लहर क्यों आई? यह जान लीजिए कि एंटी-एनसी यानी न्यूक्लियोकैप्सिड एंटीबॉडीज से वायरल एक्सपोजर या संक्रमण के दीर्घकालीन साक्ष्य उपलब्ध हो जाते हैं। इस अध्ययन में कहा गया है कि उसके वालंटियर्स में औसत सीरो-पॉजिटिविटी करीब 10 प्रतिशत थी, जिसका अर्थ यह है कि भारत में सितंबर तक ठीक हुए व्यक्तियों की बड़ी संख्या थी, जिससे नए संक्रमणों में कमी आई। लेकिन इस प्रकार की इम्युनिटी भविष्य में संक्रमण आउटब्रेक को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। संक्रमण को रोकने वाली एंटीबॉडीज पांच-छह माह बाद बहुत कम हो जाती हैं, जिससे पुन: संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। सर्वे से मालूम हुआ कि लगभग 20 प्रतिशत सीरो-पॉजिटिव व्यक्तियों में ‘अर्थपूर्ण एंटीबॉडीज’ का अभाव था। इसलिए सितंबर के संक्रमण चरम के बाद मार्च 2021 में संक्रमण की दूसरी लहर आरंभ हो गई, जिसके मध्य मई में विस्फोटक होने की आशंका है। यूनिर्विसटी ऑफ मिशिगन में एपिडेमियोलॉजी की प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी के अनुसार भारत में संक्रमण के रोजाना छह से आठ लाख तक नए मामले आ सकते हैं और कोविड से औसतन चार हजार तक लोगों की रोजाना मौतें हो सकती हैं।

गौरतलब है कि सितंबर 2020 में ही विशेषज्ञों के अनुमान आने लगे थे कि मार्च-अप्रैल 2021 में भारत में कोविड की दूसरी लहर आ सकती है जो पहले से अधिक चिंताजनक होगी और उसमें आक्सीजन की अधिक जरूरत होगी। लेकिन अफसोस इस बात का कि भारत में इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। हमारे राजनीतिक नेतृत्व ने यह मान लिया कि अब सबकुछ ठीक हो गया है, लिहाजा राजनीतिक सम्मान व प्रशंसा अर्जित करने के लिए भारतीय वैक्सीन दुनियाभर के देशों को बेची या मुफ्त में दी जाने लगीं। मेडिकल आक्सीजन का निर्यात भी पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुना कर दिया गया। अब अपने यहां स्थिति यह है कि दोनों वैक्सीन व आक्सीजन की कमी पड़ रही है। यही नहीं, हमारा राजनीतिक नेतृत्व धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों में ऐसे व्यस्त हो गया जैसे कोविड कोई समस्या है ही नहीं। नतीजा आवश्यक दवाओं और आक्सीजन की जबरदस्त कमी के रूप में हमारे सामने है। (ईआरसी)

[वरिष्ठ पत्रकार]