नरपत दान चारण

क्षमा बलं अशक्तानां शक्तानां भूषणं क्षमा।
क्षमा वशीकृते लोके क्षमाय किं न साध्ये॥

अर्थात् क्षमा एक तरफ जहां दुर्बल की ताकत है, दूसरी तरफ बलवान का गहना है। ऐसा कौन सा काम है जो क्षमा के द्वारा संभव नहीं है। इस शस्त्र के बल पर तो हम सारे जहां पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। क्षमा के जीवन में महत्त्व को अनेक ज्ञान ग्रंथो में उद्धृत किया गया है।

बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार, ‘क्षमा हि मूलं सर्वतपसाम्’ अर्थात् क्षमा सभी तपस्याओं का मूल है। वहीं, महाभारत में उल्लेख है, ‘गुणवानों का बल क्षमा है’। अलेक्जेंडर पॉप का कथन है, ‘त्रुटी करना मानवीय है, क्षमा करना ईश्वरीय’। ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए यही कहा था, ‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं’। भगवान महावीर स्वामी और हमारे अन्य संत-महात्मा भी प्रेम और क्षमा भाव की शिक्षा देते हैं। जैन धर्मावलंबी अपनी आत्मा को निर्मल बनाने के लिए संवत्सरी पर्व के तहत ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते है।

सभी पुरातन उक्तियों से हम क्षमाशीलता के गुण की गहराई को अनुभव कर सकते हैं। कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि अपनी रोज की जिंदगी में हम कितनों को क्षमा करते हैं और कितनों से क्षमा पाते हैं। अगर नहीं, तो यह बताता है कि क्षमा का हमारे जीवन व्यवहार में अभाव है। और इसके अभाव में, हम एक अपरिपक्व इंसान है। अक्सर जाने अनजाने कोई त्रुटि या नुकसान होने पर क्षमा याचना की जाती है।

कई दफा क्षमा को एक औपचारिकता भर मान लिया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। क्षमा हृदय और मन की शुद्धता का स्रोत है, जो सत्य के अनुभव को आत्मा में स्थान दिलाता है। जब कोई गलत करें या खुद से कोई गलती हो और फिर जब उसकी सत्यता का अहसास होता है, तो हमें क्षमा के द्वारा उसे अपनाना चाहिए। किसी को क्षमा करना और आत्मग्लानि से मुक्ति दिलाना बहुत बड़ा परोपकार है।

क्षमा करने की प्रक्रिया में क्षमा करने वाला, क्षमा पाने वाले से कहीं अधिक आत्मिक संतुष्टि और सुख पाता है। चूंकि किसी भी छोटी या बड़ी गलती को कभी भी अतीत में जाकर सुधारना मुमकिन नहीं होता, तो ऐसे में क्षमा ही ऐसा उपाय है, जो ना केवल आत्म ग्लानि को दूर करता है बल्कि गलती की पुनरावृत्ति को रोक लेता है और आत्मिक शुद्धि करता है।

अगर हम किसी की भूल को माफ करते हैं, तो उस व्यक्ति की सहायता तो करते ही हैं, साथ ही साथ स्वयं की सहायता भी करते हैं। हालांकि क्षमा के गुण अर्जन के लिए कई और गुणों की भी जरूरत होती है। यूं ही कोई क्षमाशील नहीं बन पाता। इसके लिए व्यक्ति को सर्वप्रथम अपने अहम का त्याग करना पड़ता है। ऐसा काम सहनशील व्यक्ति ही इसे कर सकता है।

ध्यान रह रखना चाहिए कि क्षमा-याचना आत्मिक भाव से करनी चाहिए। जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी, तब तक क्षमा का कोई अर्थ नहीं है। हम अक्सर ईश्वर से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते है, इसलिए अगर हम किसी को क्षमा नहीं कर सकते तो, हम ईश्वर से अपने लिए माफी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। और अगर क्षमा नाम का परोपकार इस दुनिया में ना हो तो कोई किसी से कभी प्रेम ही नहीं कर जाएगा।