वृंदावन में यमुना पार स्थित तहसील मांट क्षेत्र के जहांगीरपुर ग्राम का ‘बेलवन’ लक्ष्मी देवी की तपस्थली है। यहां से यमुना पार मांट की ओर जाने पर, रास्ते में बेलवन मंदिर आता है। यहां लक्ष्मी माता का भव्य सिद्ध मंदिर है। इस स्थान पर पौष माह में दूर-दराज के असंख्य श्रद्धालु अपनी सुख-समृद्धि के लिए पूजा-अर्चना करने आते हैं। इस दौरान यहां प्रत्येक गुरुवार को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

यहां बेल वृक्षों की भरमार होने के चलते यह स्थान ‘बेलवन’ के नाम से प्रख्यात हुआ। माना जाता है कि कृष्ण और बलराम यहां अपने सखाओं के साथ गाए चराने आया करते थे। श्रीमद्भागवत में इस स्थान की महत्ता का विशद् वर्णन है। भविष्योत्तर पुराण में भी इसकी महिमा का बखान करते हुए लिखा गया है…‘तप: सिद्धि प्रदायैवनमोबिल्ववनायच। जनार्दन नमस्तुभ्यंविल्वेशायनमोस्तुते॥’ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में एक बार श्रीकृष्ण राधा और 16,108 गोपियों के साथ रासलीला कर रहे थे। जब भगवान श्रीकृष्ण ने रास रचाने के दौरान बांसुरी बजाई तो उसकी आवाज देवलोक तक पहुंची। तब महालक्ष्मी ने नारद जी से पूछा कि यह आवाज कैसी है।

तो, नारद जी बोले कि बेलवन में भगवान श्रीकृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं। माना जाता है कि मां लक्ष्मी को भी भगवान श्रीकृष्ण की इस रासलीला के दर्शन करने की इच्छा हुई। इसके लिए वह सीधे ब्रज जा पहुंचीं। लेकिन, गोपिकाओं के अलावा किसी अन्य को इस रासलीला को देखने के लिए प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ऐसे में उन्हें ललिता सखी ने यह कह कर दर्शन करने से रोक दिया कि आपका ऐश्वर्य लीला से संबंध है, जबकि वृंदावन माधुर्यमयी लीला का स्थान है।

इसके बाद वह नाराज होकर वृंदावन की ओर मुख करके बैठ गर्ईं और तपस्या करने लगीं। इधर, भगवान श्रीकृष्ण जब महारास लीला करके अत्यंत थक गए तब लक्ष्मी माता ने अपनी साड़ी से अग्नि प्रज्ज्वलित कर उनके लिए खिचड़ी बनाई। इस खिचड़ी को खाकर भगवान श्रीकृष्ण उनसे अत्यधिक प्रसन्न हुए। प्रसन्न भगवान को देखकर, लक्ष्मी माता ने उनसे ब्रज में रहने की अनुमति मांगी तो श्रीकृष्ण ने महालक्ष्मी जी से कहा कि ये साधारण गोपियां नहीं हैं। इन गोपियों ने हजारों वर्ष तपस्या कर रास में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त किया है।

लक्ष्मी जी यदि आपको रास में शामिल होना है तो पहले हजारों वर्ष तपस्या कर गोपियों को खुश करना होगा। इसके बाद आपको रास में शामिल किया जाएगा। मंदिर के सेवायत राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि मां लक्ष्मी आज भी श्रीकृष्ण की यहां आराधना कर रही हैं। यह घटना पौष माह के गुरुवार की है। कालांतर में इस स्थान पर लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर स्थापित हुआ। इस मंदिर में मां लक्ष्मी वृंदावन की ओर मुख किए हाथ जोड़े विराजमान हैं। साथ ही, खिचड़ी महोत्सव आयोजित करने की परंपरा भी पड़ी।

इस सब के चलते अब यहां स्थित लक्ष्मी माता मंदिर में खिचड़ी से ही भोग लगाए जाने की ही परंपरा है। यहां पौष माह में प्रत्येक गुरुवार को जगह-जगह असंख्य भट्टियां चलती हैं। साथ ही हजारों भक्त-श्रद्धालु सारे दिन खिचड़ी के बड़े-बड़े भंडारे करते हैं। मथुरा से बेलवन मंदिर करीब 20-22 किमी दूर है। वृंदावन से यमुना पार बेलवन मंदिर की दूरी करीब तीन किलोमीटर है। वृंदावन से यहां नाव के जरिये पहुंचा जा सकता है जबकि मथुरा से यहां आने के लिए बस से जाया जा सकता है। इसके अलावा मांट, पानीगांव, नौहझील, बाजना, राया से आने वाले श्रद्धालु मांट के रास्ते बेलवन पहुंचते हैं।