सरकार ने पिछले वर्ष भारत को आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की शुरुआत की थी, जिसका मकसद था भारतीय अर्थव्यवस्था को उत्पादन और आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करना। लेकिन हमें समझना होगा कि केवल आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित कर लेने से ही हम आत्मनिर्भर नहीं हो सकते। इसके लिए हमें कुछ चुनौतियों से निपटना होगा।

पहली चुनौती हमारे समाज में असमानता की जमी जड़ें, क्योंकि आज भी हमारे समाज में जाति, लैंगिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, आधार पर समाज के किसी खास तबके के साथ पक्षपात किया जाता है। दूसरी चुनौती महिला सुरक्षा है। देश में महिला सुरक्षा के लिए बने तमाम कानूनों के बावजूद आज भी घरेलू हिंसा, बाल विवाह, बलात्कार, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, यौन-उत्पीड़न, दहेज प्रताड़ना आदि की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। फिर भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्थान 186वां है। इसके रहते हम किस तरह की आत्मनिर्भरता की बात करते हैं।

अब अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, लेकिन अभी भी महामारी की चुनौती कम नहीं हुई है। इसके अलावा, बेरोजगारी का बढ़ता स्तर एक अलग समस्या है। आज देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हैं, जिसके चलते समाज में तनाव, आत्महत्या, प्रतिभा की उपेक्षा में वृद्धि हो रही है। एक अन्य चुनौती यह है कि कोई राज्य सरकार आर्थिक मोर्चे पर कितनी मजबूत है, क्योंकि जीएसटी आने के बाद इनके राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसके चलते स्थानीय स्वशासन और ग्राम पंचायत को भी आर्थिक स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

हम जानते हैं कि शुरू से ही आर्थिक विकास और पर्यावरण में द्वंद बना रहा है। कर्ज में डूबते वित्तीय संस्थान भी एक अहम समस्या है, जिसके कारण नकदी तरलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि देश में न्याय की तीव्रता दर कितनी बेहतर है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इससे निपटने के लिए कोई प्रयास नहीं किए हों। सरकार समय-समय पर इन चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठाती रहती है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि उनको लागू करने की दर बेहद चिंताजनक है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह केवल कागजों पर ही नीतियों की खानापूर्ति न करे, बल्कि जमीनी स्तर पर तीव्रता से नीतियों को लागू करे। तभी हम आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार कर सकते हैं।
’सौरभ बुंदेला, भोपाल, मप्र

पड़ोसी प्रथम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा हमारी पहली पड़ोस नीति को दर्शाती है। संबंधों को बदला जा सकता है, लेकिन पड़ोसी देशों को नहीं बदला जा सकता है। कोरोना की अवधि में प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश को यात्रा के लिए चुना। यह हमारी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की प्रतिबद्धता है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हवाईअड्डे पर प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया।

दोनों ओर से उपहार दिए गए। बांग्लादेश ने एक संप्रभु देश के रूप में अपने पचास वर्ष पूरे किए। मोदी ने बांग्लादेश बनाने के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी के योगदान को भी याद किया। ये सभी चीजें वसुदेव कुटुम्बकम की हमारी नीति को दर्शाती हैं। हमारे पड़ोसी देशों में चीन के हस्तक्षेप के कारण इस यात्रा का विशेष महत्त्व है। चीन के हस्तक्षेप को देखते हुए हमें अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ताना संबंध बनाना चाहिए।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, जोगिंदर नगर, हिप्र