दिल्ली में चल रही कई वातानुकूलित लाल डीटीसी बसें अब बस नाम की वातानुकूलित रह गई हैं। बीते दिनों नोएडा-धौलाकुआं वाया डीएनडी रूट पर यात्रियों व परिचालक के बीत हुए तर्क-वितर्क ने सरकार की परतें खोल दी। हुआ यंू कि टिकट लेने के बाद जैसे ही यात्रियों ने एसी चलाने की मांग की तो पता चला कि अभी एसी काम नहीं कर रहा। लोग बिदक पड़े। लोगों ने महंगे टिकट और टोल टैक्स का हवाला देकर परिचालक को आड़े हाथ लेना शुरू किया। परिचालक ने साफ कर दिया कि यह बस उसके घर की नहीं है, वो भी निविदा पर नौकरी कर रहा है। बस तो जैसा है वैसा है उसके बस में एसी ठीक करना नहीं है।

वो तो अपना काम ही करेगा। दरअसल, बढ़ रही गर्मी ने सवारियों की परेशानी बढ़ा दी है।
बहरहाल मसले को गंभीर होता देख एक महिला यात्री बीच बचाव करने उठीं। उसने कम से कम पंखा चला देने की सलाह दी। बाकी लोगों ने भी उनमें हां में हां मिलाया। पता चला कि पंखे भी खराब हैं। फिर लोग और बिदक पड़े। यहां तक कि महिला यात्रियों ने भी डीटीसी को कोसना शुरू कर दिया। यह अलग बात है कि जैसे ही उन्हें किसी अन्य महिला ने ‘फ्री सुविधा’ की याद दिलाई तो वो चुप हो गईं। और एसी को लेकर शुरू हुई बात घूम-फिर कर महिलाओं को मिल रही फ्री बस सुविधा पर खत्म हो गई। परिचालक का सिर तो बच गया लेकिन इस प्रकरण ने सरकारी कामकाज की पोल खोल दी।

सलाहकार की कुर्सी

सेवानिवृत्ति से पहले खुद को प्रचारित करने का काम इन दिनों दिल्ली पुलिस में तेजी से चल रहा है। नौकरी से विदाई के बाद अधिकारी अपना रौब जाता देख कर रुतबा बचाने का हर जतन कर रहे हैं। इसलिए अधिकारी कुछ न कुछ करके सेवा में बने रहना चाहते हैं। बेदिल ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि दिल्ली पुलिस में ये चलन हाल के दिनों में ज्यादा बढ़ गया है, जब सेवानिवृत्ति के बाद अधिकारी सलाह देने के बहाने विभाग और कुर्सी से चिपके हुए हैं। यहां तक कि उपायुक्त स्तर के अधिकारी भी खुद की अहमियत साबित करते हुए आयुक्त से अपने लिए सलाहकार का पद पाने में सफल हो रहे हैं। इस समय भी कुछ ऐसे ही एसीपी और इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी हैं जो सेवानिवृत्ति से छह महीने पहले से खुद को प्रचारित करते दिख रहे हैं ताकि उन्हें सलाहकार का पद मिल जाए। इससे फैसले न सही सलाह देने से ही काम चल जाएगा।

चुनौती की चिंता

दिल्ली नगर निगम के पांच सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद अब सभी पार्टियों में मंथन का दौर शुरू हो गया है। भाजपा ज्यादा मंथन कर रही है क्योंकि उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। कांग्रेस यूं भी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा बचाने की जुगत में है। सबसे ज्यादा मंथन ‘आप’ में हो रहा है। कारण उसके पांच में चार उम्मीदवार जीते जरूर लेकिन जो एक सीट हारा गया उसपर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को सबसे ज्यादा जीत की उम्मीद रखते थे। बेदिल को भाजपा के एक निगम पदाधिकारी ने कहा कि हमें अब अगले साल होने वाले निगम के चुनाव को चुनौती की तरह लेना पड़ेगा। कारण ज्यादा आत्मविश्वास का परिणाम रहा कि इस उपचुनाव में एक भी सीट पार्टी के हाथ नहीं आ सकी।

अंगूर खट्टे हैं!

दिल्ली के निगम उपचुनाव में भाजपा कोई सीट नहीं निकाल पाई है। हालांकि यह प्रतिकात्मक ही है लेकिन इसे भाजपा का सूपड़ा साफ बताया जा रहा है। इसका श्रेण सत्तारूढ़ दल ने लेना भी शुरू कर दिया है। इस मामले में अपनी कमियां तलाशने की जगह अब भाजपा नेता नए अंदाज में ही अपनी खीज निकाल रहे हैं। उनके लिए चुनाव न जीत पाना ‘अंगूर खट्टे हैं’ वाली कहावत जैसी लग रही है। नेताओं का मानना है कि चार सीट पर तो पहले से ही आम आदमी पार्टी का कब्जा था। इस चुनाव में तकनीकी तौर पर देखें तो ‘आप’ के हाथ में उसकी वर्तमान सीट गई है। अब दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में कुछ इसी आधार पर उप चुनाव के नफे नुकसान को समझाने की कोशिश की जा रही है।

नाम की राजनीति

दिल्ली में भाजपा नेताओं की चली तो चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन का नाम बदल जाएगा और दिल्ली मेट्रो में एक ही लाइन पर दो-दो गुरुतेग बहादुर नगर (जीटीबी) स्टेशन हो जाएंगे। यह अजूबा भाजपा के नेताओं ने किया है। दरअसल, हाल ही में दिल्ली भाजपा के नेताओं का एक दल शहरी विकास मंत्रालय में मंत्री हरदीप सिंह पुरी से मुलाकात के लिए पहुंचा था। इस मामले में भाजपा की तरफ से मंत्रालय को एक लिखित ज्ञापन सौंपा गया है, जबकि भाजपा नेताओं को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि इसी लाइन पर जीटीबी नगर के नाम से पहले ही एक स्टेशन है। पहले चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन का नाम पुरानी दिल्ली मेट्रो स्टेशन रखने की तैयारी थी। लेकिन उस समय भाजपा नेताओं की सक्रियता के बाद ही इसे पुरानी दिल्ली से चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन कराया गया था।

गजब तरीका

नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जहां प्राधिकरण से जमीन लेकर तय मानकों पर बहुमंजिला बिल्डर इमारतों के फ्लैट खरीदार प्रशासनिक सामंजस्य की कमी के चलते रजिस्ट्री कराने की जद्दोजहद में लगे हैं। वहीं, महानगर के अधिसूचित क्षेत्र में गांवों के किनारे अवैध की श्रेणी में आने वाले बहुमंजिला फ्लैटों की बिक्री पिछले कई महीनों से तेजी पर है। इसकी मुख्य वजह प्राधिकरण से जमीन लेकर और नक्शा मंजूर कराने के बाद काफी संख्या में बनाए गए फ्लैटों का कब्जा मिलने में हो रही देरी को ठहराया जा रहा है। इस गतिरोध के लंबा खिंचने का पता चलते ही छुटभईया बिल्डर गांवों के किनारे पड़ी खाली जमीन पर निर्धारित भू उपयोग से इतर बहुमंजिला फ्लैट बनाकर बेच रहे हैं। खास बात यह है कि इन फ्लैटों की रजिस्ट्री होने में भी कोई देरी नहीं हो रही है। सौदा तय होने के बाद चंद दिनों में रजिस्ट्री होकर खरीदार को मिल रहे हैं।

मोबाइल से प्यार

नगर निगर उपचुनाव के परिणाम आने के बाद दिल्ली में वनवास झेल रही एक पार्टी के प्रदेश कार्यालय में जमकर खुशी मनाई गई। साल 2017 के बाद यह पहली जीत थी। खुशी को साझा करने पत्रकारों को बुलाया गया। इस दौरान वहां मौजूद सारे नेतागण जश्न में डूबे हुए थे तो वहीं पार्टी में दूसरे ओहदे के नेताजी अपने मोबाइल फोन में खोए दिखे। जब उन पर बड़े नेताजी की नजर पड़ी तो मोबाइल फोन देखते पकड़े जाने पर नेताजी शर्मा कर मुस्करा दिए। बेदिल की नजर भी दोनों के इशारों पर पड़ी। लेकिन गौर करने वाली बात है कि यह पहली बार नहीं हुआ था। अकसर देखने को मिलता है कि प्रेसवार्ता में दूसरे ओहदे के नेताजी अपने मोबाइल फोन में खो जाते हैं।

रेवड़ी का बंटवारा

अंधा बांटे रेवड़ी, फिर फिर अपने को दे। यह कहावत राजधानी दिल्ली में इन दिनों साकार होती दिख रही है। मामला दिल्ली सरकार के एक अस्पताल का है जहां स्वास्थ्य कर्मियों को बांटने के लिए एक निजी संस्था ने कई पेटी जूते भेजे। जूते आए तो प्रशासन के पास जहां से उसे कर्मचारियों के झंडाबरदार वालों ने यह कह कर हथिया लिया कि हम सभी कर्मचारियों को बांट देंगे। उन्होंने तमाम विभागों से कर्मचारियों की सूची भी मांग ली। फिर क्या था जूते आए व पर जूते दिए जो उनके अपने करीबी थे। महोदय ने जूते अपने चेले चपाटो को देने के बाद, खजाना खाली हो गया का एलान कर दिया। कोरोना वार्ड व अन्य विभागों में ड्यूटी दे रहे तमाम कर्मचारी ठगे से देखते रह गए।
-बेदिल