फ्रीडम हाउस रिपोर्ट 'भारत विरोधी एजेंडे का हिस्सा': बीजेपी

  • प्रवीण शर्मा
  • बीबीसी हिंदी के लिए
रिपोर्ट

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वॉशिंगटन स्थित प्रतिष्ठित थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में भारत के फ्रीडम स्कोर को घटा दिया है. इस रिपोर्ट में भारत का दर्जा पिछले साल के "फ्री" यानी स्वतंत्र से "पार्टली फ्री" यानी आंशिक रूप से स्वतंत्र कर दिया गया है. इंटरनेट फ्रीडम स्कोर के आधार पर भी भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा दिया गया है.

क्या है रिपोर्ट में?

फ्रीडम हाउस की जारी की गई इस वैश्विक रिपोर्ट का नाम फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 है. फ्रीडम इन द वर्ल्ड एक सालाना वैश्विक रिपोर्ट है जिसमें दुनियाभर के देशों में राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता का आकलन किया जाता है.

इसके अलावा इसमें कुछ चुनिंदा जगहों को मानवीय और राजनीतिक स्वतंत्रता के कई मानकों के आधार पर परखा जाता है. सभी मानकों के आधार पर इस रिपोर्ट में देशों को स्कोर दिया जाता है.

2021 के अंक में 195 देशों और 15 इलाकों में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक हुए घटनाक्रमों का विश्लेषण किया गया है.

भारत के बारे में क्या लिखा गया?

भारत के बारे में संस्थान ने कहा है कि भारत में एक बहुपार्टी लोकतंत्र है, बावजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार ने भेदभाव वाली नीतियों और मुस्लिम आबादी को प्रभावित करने वाली बढ़ती हिंसा की अगुवाई की है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत का संविधान नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी और धार्मिक आज़ादी शामिल हैं. लेकिन, पत्रकारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और सरकार की आलोचना करने वाले अन्य लोगों को परेशान किए जाने की घटनाओं में मोदी शासन में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है."

संघ विचारक और बीजेपी के राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं, "ये साम्राज्यवादी हथकंडा है. देश में भौगोलिक साम्राज्यवाद चला गया है, लेकिन वैचारिक साम्राज्यवाद जारी है."

राकेश सिन्हा

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रिपोर्ट भारत विरोधी एजेंडा का हिस्सा: बीजेपी

प्रो. सिन्हा कहते हैं, "भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद लोग पूरी स्वतंत्रता के साथ सरकार की नीतियों की, न्यायपालिका की आलोचना कर पा रहे हैं. लेकिन, पश्चिम की एक ताक़त है जो भारत को अपने ढंग से परिभाषित करना चाहती है. इसलिए रिपोर्ट पूरी तरह से भारत विरोधी एजेंडे का एक हिस्सा है. उनकी दृष्टि कितनी बाधित है इसी से पता चलता है कि प्रतिदिन भारत के सैकड़ों टीवी चैनलों पर स्वतंत्र डिबेट होती है, अख़बारों पर कोई नियंत्रण नहीं है. सोशल मीडिया पर पूरी छूट है. यदि यह आज़ादी नहीं है तो और क्या है."

हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट ऐसी पहली रिपोर्ट नहीं है जिसमें भारत की रैंकिंग नीचे आई है. वे कहते हैं कि पिछले कुछ साल से लगातार अलग-अलग रिपोर्ट्स में भारत की रैंकिंग में गिरावट आ रही है.

लेखक, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता आकार पटेल कहते हैं, "पिछले 5-6 साल से लगातार कई इंडेक्स में भारत की रेटिंग गिर रही है. चाहे वर्ल्ड बैंक की दो इंडेक्स, वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की 2-3 इंडेक्स, इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल समेत 40 ऐसे इंडेक्स हैं जहां पर 2014 से भारत की रेटिंग नीचे आई है. ये एक गवर्नेंस का मसला है. 2014 के पहले भारत में जो गवर्नेंस थी वैसी अब नहीं है."

राकेश सिन्हा कहते हैं कि ये पश्चिमी देशों में मौजूद एक तबक़े की भारत की छवि ख़राब करने की सोची-समझी साज़िश है. वे कहते हैं, "पश्चिमी देशों की ताक़तों को भारत का एक महाशक्ति के तौर पर खड़ा होना हज़म नहीं हो रहा है."

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अभी भी आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर बने हुए हैं.

हालांकि, प्रो. सिन्हा कहते हैं, "मैं इस रिपोर्ट को अनाप-शनाप मानता हूं. नरेंद्र मोदी सरकार की एक भी नीति ऐसी नहीं है जिसमें किसी भी धर्म या जाति के साथ भेदभाव हुआ है. सारी नीतियां ग़रीबों के लिए हैं. मुसलमानों का दावा है कि सबसे ज़यादा ग़रीब उनके धर्म में हैं तो उज्जवला योजना, जनधन योजना, आयुष्मान योजनाओं का लाभ उनके पास पहुँचा है."

महिलाएं

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देश-द्रोह के क़ानून के दुरुपयोग का ज़िक्र

इस रिपोर्ट में भारत के देशद्रोह के क़ानूनों के कथित तौर पर दुरुपयोग का ज़िक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों, छात्रों और आम नागरिकों को इन क़ानूनों का निशाना बनाया गया है.

प्रो. सिन्हा कहते हैं, "फ्रीडम हाउस को इसके कुछ आंकड़े भी देने चाहिए थे. वे बताएं कि 130 करोड़ लोगों में से कितनों पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं?"

आकार पटेल कहते हैं, "देशद्रोह के मसले पर सुप्रीम कोर्ट कई दफ़ा कह चुका है कि जब तक किसी स्पीच में हिंसा भड़काने की बात न की जाए उसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता. लेकिन, सरकारें और पुलिस इसपर अमल नहीं करती हैं. पिछले पाँच साल में देशद्रोह के केस बढ़े हैं. वर्षों तक केस चलते हैं और उसके बाद लोगों को छोड़ दिया जाता है. ये सरकारी पैसे और वक्त की बर्बादी है."

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में नागरिकता क़ानून (सीएए) में हुए बदलावों को भेदभाव वाला बताया गया है और कहा गया है कि पिछले साल फ़रवरी में इस क़ानून के चलते हुए विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा हुई. इसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए जिनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं.

रिपोर्ट में भारत में कोरोना वायरस महामारी से निबटने के लिए पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के चलते प्रवासी मज़दूरों को हुई दिक्क़तों का भी ज़िक्र किया गया है. साथ ही कहा गया है कि अक्सर मुसलमानों को वायरस फैलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया था.

बीजेपी

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क्या है भारत का स्कोर?

फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 रिपोर्ट में भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र दर्जा दिया गया है. इसमें 100 के मानक पर भारत का स्कोर 67 तय किया गया है.

रिपोर्ट में राजनीतिक अधिकारों के लिए 40 अंकों में से भारत को 34 नंबर दिए गए हैं. जबकि नागरिक अधिकारों में 60 अंकों में से भारत को 33 नंबर ही मिले हैं.

पिछले साल भारत का स्कोर 70 था और इसका दर्जा फ्री यानी स्वतंत्र का था.

इसी तरह से इंटरनेट की आज़ादी को लेकर भारत का स्कोर 51 रहा और इसमें भी भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा दिया गया है.

कश्मीर पर फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में "भारतीय कश्मीर" पर एक अलग रिपोर्ट जारी की गई है. इस रिपोर्ट में कश्मीर का दर्जा पिछले साल के जैसे ही "स्वतंत्र नहीं" रखा गया है. पिछले साल यह स्कोर 28 था जो कि अब घटकर 27 रह गया है.

2013 से 2019 के बीच भारतीय प्रशासित कश्मीर को आंशिक स्वतंत्र का दर्जा दिया गया था.

इस साल की रिपोर्ट में कश्मीर में राजनीतिक अधिकारों को 40 में से 7 नंबर दिए गए हैं, जबकि नागरिक अधिकारों में 60 में से 20 अंक मिले हैं.

वीडियो कैप्शन, कश्मीर में जनमत संग्रह के पेंच

प्रेस की आज़ादी

इस विषय पर भारत का स्कोर 4 में से 2 है. फ्रीडम हाउस ने कहा है कि मोदी सरकार के तहत हालिया वर्षों में प्रेस की आज़ादी पर हमले नाटकीय रूप से बढ़े हैं.

प्रो. सिन्हा कहते हैं, "उन्हें बताना चाहिए कि किस अख़बार के संपादक को गिरफ्तार किया गया है, किस अख़बार पर सेंसरशिप लागू किया गया है. क्या किसी अख़बार के संपादकीय को प्रतिबंधित किया गया है?"

रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया में विरोधी स्वरों को दबाने के लिए अधिकारियों ने सुरक्षा, मानहानि, देशद्रोह और हेट स्पीच और अदालत की अवमानना के क़ानूनों का इस्तेमाल किया है.

प्रेस की आज़ादी के मसले पर पटेल कहते हैं, "नए आईटी एक्ट में सरकारी अफ़सरों को मीडिया को क़ाबू करने की ताक़त दे दी गई है. दूसरा, भारत में सरकार और सरकारी कंपनियों का मीडिया को विज्ञापन देने का ख़र्च इतना बड़ा है कि मीडिया सरकारी दबाव में रहता है. भारत में मीडिया को स्वतंत्र कहना बहुत मुश्किल है."

इसमें ये भी कहा गया है कि राजनेताओं, कारोबारियों और लॉबीइस्ट्स और प्रमुख मीडिया शख्सियतों और मीडिया आउटलेट्स के मालिकों के बीच के गठजोड़ के ख़ुलासे ने लोगों का प्रेस पर भरोसे को कम किया है.

धार्मिक आज़ादी

फ्रीडम हाउस ने लोगों को अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करने में मिलने वाली आज़ादी के आधार पर भारत को 4 में से 2 नंबर दिए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, भारत आधिकारिक तौर पर सेक्युलर राज्य है, लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी संगठन और कुछ मीडिया आटलेट्स मुस्लिम-विरोधी विचारों को प्रमोट करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गतिविधि को बढ़ावा देने का आरोप नरेंद्र मोदी की सरकार पर भी लगता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि गायों के साथ दुर्व्यवहार या गोहत्या के लिए मुसलमानों पर हमले किए जाते हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कोरोना वायरस महामारी के दौर में देश के मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर वायरस को फैलाने के आरोप लगाए गए. इन आरोपों को लगाने वालों में सत्ताधारी पार्टी के अधिकारी भी शामिल रहे हैं.

प्रो. सिन्हा कहते हैं, "भारत की राष्ट्रवादी ताक़तें ऐसी रिपोर्टों की न चिंता करती हैं, न परवाह करती हैं. नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा है कि भारत लोकतंत्र की जननी है. इसलिए हम सदैव लोकतंत्र को मज़बूत करने का काम करेंगे."

BBC ISWOTY

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