पश्चिम बंगाल चुनाव: मुस्लिम आबादी वाली सीटों पर त्रिकोणीय मुक़ाबले का फ़ायदा ममता को या मोदी को?

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
सांकेतिक तस्वीर

इमेज स्रोत, NURPHOTO

पश्चिम बंगाल की राजनीति मुसलमानों को नाराज़ करके नहीं लड़ी जा सकती.

ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 30 फ़ीसद है. सीटों के लिहाज़ से बात करें तो लगभग 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है.

यही वजह है कि कांग्रेस, लेफ़्ट, बीजेपी और टीएमसी सब इन वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं.

कांग्रेस और लेफ़्ट का गठबंधन पहले ही हो चुका था, लेकिन उनके साथ अब फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी भी हैं. राजनीति में सीधे तौर पर उनकी पहली बार एंट्री हुई है.

पिछले सप्ताह तीनों पार्टियों ने संयुक्त रूप से एक रैली की थी, जिसके बाद कांग्रेस में इस गठबंधन के बाद कुछ बग़ावती सुर सुनाई दिए. रैली में अब्बास सिद्दीक़ी के व्यवहार को देखकर लेफ्ट पार्टी के स्थानीय नेताओं में भी इस गठबंधन को लेकर थोड़ी असहजता देखने को मिल रही है.

दूसरी तरफ़ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी भी चुनावी मैदान में उतरने का एलान कर चुके हैं.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का जो मुक़ाबला अब तक त्रिकोणीय लग रहा था, क्या वो ओवैसी और सिद्दीकी की एंट्री से बदल जाएगा?

ममता बनर्जी

इमेज स्रोत, Sanjay Das/BBC

टीएमसी को नुक़सान

यही समझने के लिए हमने बात की वरिष्ठ पत्रकार महुआ चटर्जी से.

महुआ कहती हैं, "ओवैसी और सिद्दीक़ी दोनों बिल्कुल अलग भूमिका में है. ओवैसी का पश्चिम बंगाल में कोई दख़ल नहीं है. ना तो उनकी भाषा बंगाली मुसलमानों जैसी है और ना ही बंगाल के बारे में उनको ज़्यादा पता है, ना ही वो वहाँ के रहने वाले हैं. ऐसे में सोचने वाली बात है कि बंगाली मुसलमान उनको वोट क्यों देंगे?

फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ का मामला अलग है. वो बंगाली मुसलमान हैं. उनका कुछ दख़ल हुगली ज़िले की सीटों पर हैं जहाँ से वो ताल्लुक़ रखते हैं. उसके बाहर उनका कोई प्रभुत्व नहीं है. लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है. सीटों के बंटवारे में उनको हिस्सा भी बड़ा चाहिए. आने वाले दिनों में सीटों के बंटवारे को लेकर मामला फंस सकता है. इसलिए ओवैसी और सिद्दीक़ी को एक नहीं कहा जा सकता क्योंकि दोनों का प्रभाव का स्तर अलग है."

ओवौसी और सिद्दीक़ी के बीच के इस अंतर को कांग्रेस और लेफ़्ट भी समझती हैं. शायद इसलिए उन्होंने फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के अब्बास सिद्दीक़ी के साथ गठबंधन किया है.

लेफ़्ट कांग्रेस की संयुक्त रैली

इमेज स्रोत, Twitter/WB YOUTH CONGRESS

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

पिछले चुनाव में लेफ़्ट का हिंदू वोट बीजेपी के साथ चला गया और मुसलमान वोट टीएमसी के साथ. इसलिए इस बार अब्बास सिद्दीक़ी को अपने साथ लाकर लेफ़्ट गठबंधन, मुसलमान वोट अपने साथ करना चाहती है, ताकि टीएमसी को नुक़सान पहुँचाया जा सके.

बंगाल में बीजेपी भी मुसलमान वोटरों की अहमियत समझती है और इसलिए स्थानीय जानकार मानते हैं कि ओवैसी उनकी चुनावी रणनीति का ही एक हिस्सा हैं. टीएमसी भी ओवैसी को बीजेपी की ही 'बी टीम' क़रार देती है.

महुआ कहती हैं कि बीजेपी वैसे तो किसी चुनाव में मुसलमान उम्मीदवार ना के बराबर उतारती है. लेकिन इस बार देखने वाली बात होगी कि बंगाल चुनाव में बीजेपी कुछ मुसलमान उम्मीदवार को उतारती है या नहीं.

उनका मानना है कि ओवैसी की पश्चिम बंगाल चुनाव में एंट्री ही बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हुई है ताकि उनकी पार्टी टीएमसी के मुसलमान वोट काट सके. ओवैसी पर इस तरह के आरोप कई लोग लगाते हैं कि उनकी राजनीति बीजेपी को चुनावी फ़ायदा पहुँचाने के लिए होती है लेकिन मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबक़ा संसद में मुसलमानों के मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले नेता के तौर पर भी देखता है.

हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन पर इस तरह के आरोप लगे लेकिन उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा और उनकी पार्टी ने पाँच सीटें हासिल की.

यानी लेफ्ट गठबंधन अब्बास सिद्दीक़ी के सहारे और बीजेपी ओवौसी के सहारे टीएमसी के मुसलमान वोटर में सेंधमारी की कोशिश में जुटी है.

फ़ुरफ़ुरा शरीफ

इमेज स्रोत, Sanjay Das

आख़िर क्यों?

पश्चिम बंगाल में मुसलमान वोटर कुछ इलाक़ों में केंद्रीत ही नहीं है, बल्कि जगह-जगह फैले हुए भी है.

बांग्लादेश सीमा से लगे राज्य के ज़िलों में मुस्लिमों की आबादी बहुतायत में है. मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में तो कहीं-कहीं इनकी आबादी 50 फ़ीसद से ज़्यादा है. इनके अलावा दक्षिण और उत्तर 24-परगना ज़िलों में भी इनका ख़ासा असर है.

विधानसभा की 294 सीटों में से 70 से 100 सीटों पर इस तबक़े के वोट निर्णायक हैं.

साल 2006 तक राज्य के मुस्लिम वोट बैंक पर वाममोर्चा का क़ब्ज़ा था. लेकिन उसके बाद इस तबक़े के वोटर धीरे-धीरे ममता की तृणमूल कांग्रेस की ओर आकर्षित हुए और साल 2011 और 2016 में इसी वोट बैंक की बदौलत ममता सत्ता में बनी रहीं.

पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी

इमेज स्रोत, Sanjay Das/BBC

इमेज कैप्शन, पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी

बीजेपी को फ़ायदा

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का नुक़सान बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा सकता है?

इस पर महुआ कहती हैं, "अगर ओवौसी कुछ सीटों पर वोट काट सके तो ऐसा संभव है. कोशिश पूरी है कि ओवैसी को बंगाल चुनाव में चिराग पासवान बनाया जाए."

जैसे चिराग ने बिहार चुनाव में सीटें भले ही ना जीती हों, लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी की सीटें ज़रूर घटा दीं थी. वैसे ही इस बार ओवैसी भले ही बंगाल चुनाव में जीत ना दर्ज करें. लेकिन टीएमसी का खेल ख़राब कर सकते हैं.

वो बताती हैं कि लेफ़्ट कांग्रेस और अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी की संयुक्त रैली के बाद लेफ्ट के वोटर बहुत उत्साहित नज़र नहीं आ रहे. ऐसे में देखना होगा कि बंगाल में लेफ़्ट का प्रदर्शन कैसा रहेगा. लेफ़्ट और कांग्रेस के साथ आने से जो चुनाव त्रिकोणीय लगने लगा था, वो अब दोबारा से ममता - मोदी के बीच का मुक़ाबला बनता जा रहा है.

एक दूसरी बात भी है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. ओवैसी और सिद्दीक़ी के आने से वोटों का ध्रुवीकरण ज़रूर होगा, हिंदू वोट और ज़्यादा संगठित होंगे और इसका फ़ायदा बीजेपी को हमेशा होता है. बीजेपी की रणनीति ऐसा करने की दिख भी रही है.

कांग्रेस के अंदर ही अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी के साथ गठबंधन पर ख़ूब खींचतान चल रही है. आनंद शर्मा ने इस गठबंधन पर जैसे ही सवाल खड़े किए, तो अगले ही दिन बीजेपी ने इस पर प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस गठबंधन पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगा दिए. यही आरोप वो टीएमसी पर भी लगाते आई है.

छोड़िए YouTube पोस्ट, 1
Google YouTube सामग्री की इजाज़त?

इस लेख में Google YouTube से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Google YouTube cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए 'अनुमति देंऔर जारी रखें' को चुनें.

चेतावनी: तीसरे पक्ष की सामग्री में विज्ञापन हो सकते हैं.

पोस्ट YouTube समाप्त, 1

ममता पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप

साल 2011 में राज्य की सत्ता में आने के साल भर बाद ही ममता ने इमामों को ढाई हज़ार रुपए का मासिक भत्ता देने का एलान किया था. उनके इस फ़ैसले की काफ़ी आलोचना की गई थी. कलकत्ता हाईकोर्ट की आलोचना के बाद अब इस भत्ते को वक़्फ़ बोर्ड के ज़रिए दिया जाता है.

लेकिन इस बार बीजेपी ने उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण के साथ हिंदू विरोधी होने के आरोप भी लगाए हैं.

इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी रणनीति थोड़ी बदली है. ममता ने राज्य के लगभग 37 हज़ार दुर्गापूजा समितियों को 50-50 हज़ार रुपए का अनुदान देने का एलान किया है. यही नहीं, कोरोना और लॉकडाउन की वजह से आर्थिक तंगी का रोना रोने वाली मुख्यमंत्री ने पूजा समितियों को बिजली के बिल में 50 फ़ीसद छूट देने का भी एलान किया. राज्य के आठ हज़ार से ज़्यादा ग़रीब ब्राह्मण पुजारियों को एक हज़ार रुपए मासिक भत्ता और मुफ़्त आवास देने की घोषणा की थी.

ओवैसी

इमेज स्रोत, Hindustan Times

ओवैसी फ़ैक्टर

बंगाल के अल्पसंख्यक मुख्य रूप से दो धार्मिक संस्थाओं का अनुसरण करते हैं. इनमें से देवबंदी आदर्शों पर चलने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अलावा फुरफुरा शरीफ़ शामिल है.

प्रोफ़ेसर समीर दास कोलकाता विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफ़ेसर हैं. बंगाल से फ़ोन पर बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "अब्बास सिद्दीक़ी और ओवैसी दोनों के मैदान में उतने से बंगाल के मुसलमान वोट बंट जाएँगे. दोनों नेताओं के फॉलोअर अलग-अलग हैं. अब्बास सिद्दीक़ी जिस फुरफुरा शरीफ़ के पीरज़ादा हैं उसको मानने वाले मॉडरेट मुसलमान माने जाते हैं. जबकि ओवैसी जिस तरह का प्रचार करते हैं, उनके साथ कट्टर मुसलमान ज़्यादा जुड़ते हैं."

जनवरी के महीने में ओवैसी ने अब्बास सिद्दीक़ी से मुलाक़ात की थी. कहा जा रहा था कि ओवैसी और अब्बास सिद्दीक़ी साथ आ सकते हैं. लेकिन अब्बास सिद्दीक़ी के लेफ़्ट कांग्रेस गठबंधन के साथ आने की वजह से समीकरण थोड़े बिगड़े नज़र आ रहे हैं.

प्रोफ़ेसर समीर कहते हैं, "हमने हाल के दिनों में देखा है कि सिद्दीक़ी जिस तरह की भाषा बोल रहे हैं, वो धीरे-धीरे ओवैसी जैसे ही कैम्पेन मोड में आ जाएंगे. फ़ुरफ़ुरा शरीफ को मानने वाले दक्षिण बंगाल के कुछ इलाक़ों में ही हैं. पश्चिम बंगाल के मुसलमान ये जानते हुए भी कि लेफ़्ट के साथ उनका गठबंधन इस बार सत्ता में नहीं आएगा, फिर भी वो अब्बास सिद्दीक़ी के लिए वोट करेंगे."

ओवैसी बंगाल चुनाव में कितनी बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं?

इस पर प्रोफ़ेसर दास कहते हैं, "किसे मालूम था कि बिहार में वो इतनी सीटें जीतेंगें? इसलिए उनको पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता. वो जिस तरह से प्रचार करते हैं, मुसलमानों को हाशिए पर किए जाने की बात करते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव में वो उसी तरह का प्रचार करेंगे और कट्टर मुसलमानों का गुट उनके साथ जुड़ेगा भी. भले ही उनको मिलने वाले वोट, उन्हें बंगाल में सीट ना जीता पाएं लेकिन एक बड़े मुसलमान तबक़े को अपनी तरफ़ कर सकते हैं."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)