इस कहानी की शुरुआतवहां से करते हैंजहां दरअसल वक़्त थम गया थासाल 1964 के अक्टूबर महीने की 9 तारीख़उस दिन गुरु दत्त शाम से ही घर पर थेआर्क रॉयलजो बंबई की पैडर रोड पर थाशराब के आदी गुरु दत्त उस दिन शाम से ही शराब पी रहे थेलेकिन ऐसी क्या बात थीजो उन्हें शराब में डुबो रही थीक्यों उसी रात गुरु दत्त, गीता दत्त पर भड़क उठे

उस रात गुरु दत्त और अबरार अल्वी आख़िरी बार मिले थेवो ही अबरारजो गुरु दत्त की फ़िल्मों के राइटर थेऔर उनके दोस्त भीगुरु दत्त उस रात काफ़ी हताश थेउदास थेउन्होंने उस रात अपने दिल की बात कही थीबात फ़िल्मों को अलविदा करने की थी…अगर तुम बुरा ना मानोतो मैं रिटायर होना चाहता हूं…” लेकिन रिटार्यमेंट की बात गुरु दत्त की ज़ुबां पर आई ही क्योंक्या 39 साल में भी कोई रिटायरमेंट की सोच सकता हैपर गुरु दत्त सोच चुके थेवैसे 9 अक्टूबर की रात को ही गुरु दत्त के पास गीता दत्त का फ़ोन आयादोनों के बीच कोई ना कोई बात तो ज़रूर हुईनहीं तो गुरु दत्त, फ़ोन पर भड़क नहीं उठतेऐसी कोई तो बात ज़रुर थीजो गुरु दत्त को चुभ रही थीगुरु दत्त के जिगरी दोस्त और जाने माने राइटर अबरार अल्वी अपनी किताब “टेन ईयर्स विद गुरु दत्त” में लिखते हैं…उस दिन उनका मूड कुछ ज़्यादा ही बिगड़ गया थाउनका गीता दत्त के साथ झगड़ा हुआ थागीता ने अपनी बेटी को उसके पिता से मिलने के लिए मना कर दिया थाजबकि गुरु दत्त अपनी बेटी के साथ कुछ वक़्त बिताना चाहते थेउनका हर फ़ोन कॉल के साथ गुस्सा बढ़ता जा रहा थाऔर आख़िर में उन्होंने गीता को एक अल्टीमेटम दे दिया… “ बच्ची को भेजोनहीं तो तुम मुझे मरा देखोगी”

उस वक़्त गीता दत्त.. गुरु दत्त के साथ नहीं रह रही थींमगर वो तब से गुरु दत्त के साथ थींजब से आरपार फ़िल्म बननी शुरु हुईवैसे एक एक्टर और सिंगर के बीच रिश्ता पनपते कम ही दिखते हैंतो क्या गीता को गुरु की सादगी और नया नज़रिया पसंद आयाया फिर गुरु दत्त के मन में कुछ और ही ख्याल बुन रहे थेजिसके ख़बरें उन दिनों बहुत बनींदोनों की मोहब्बत जल्द ही सुर्खियों में आईलोगों ने ये कहना शुरु किया कि गुरु दत्त गीता रॉय से फाइनेंशलन सिक्योरिटी के लिए शादी करना चाहते हैंऐसे में गुरु दत्त के कहने पर ही गीता रॉय ने गायकी छोड़ी

ख़ैर दोनों की शादी हुईऔर आरपार फ़िल्म हिट हो गई.. जिसके बाद गीता ने फिर से गाना शुरु कर दियालेकिन क्यों एक वक़्त के बाद उनके रिश्ते बिगड़ने लगेक्यों गुरु दत्त, गीता को अपने नज़दीक ना तो रख पाएऔर ना ही अपने दिल से निकाल पाए… मगर एक बात तो थी कि गीता, गुरु दत्त के साथ रहीं या ना रहींपर उन्होंने गुरु दत्त की आख़िर फ़िल्म तक भी गाने गाएऔर वो आख़िरी फ़िल्म थी ‘काग़ज़ के फूल’..

 

काग़ज़ के फूल.. फ़िल्म इंडस्ट्री की ख़ामियों को दिखाने वाली फ़िल्म थीगुरु दत्त एक सीरियस रियलिस्टिक फ़िल्म बनाने की ज़िद्द पर अड़े थे..वो इंडस्ट्री की ख़ामियों को दिखाना चाहते थेवैसे जब गुरु दत्त ने इस फ़िल्म को बनाने की सोचीतो उनके दोस्त और हमदर्द, उनके इस फ़ैसले से ख़ुश नहीं थेउन्होंने गुरु दत्त को ये फ़िल्म बनाने से मना कियालेकिन क्यों, इसकी कहानी गुरु दत्त से जुड़ी थी

गुरु दत्त, काफ़ी भावुक थेऔर कहीं ना कहीं ज़िंदगी से निराश भीतो क्या वो अपनी सारी भावनाएं और निराशा इसी फ़िल्म के ज़रिए दिखाना चाहते थेमगर किसके लिए? गुरु दत्त, अपने दिल की बात पर्दे पर के ज़रिए बयान करना चाहते थेवो अपनी ज़िंदगी में किसे पाना चाहते थेऔर किससे दूर जाना चाह रहे थेकोई समझ नहीं पा रहा था..कम से कम ज्यादातर तो नही

एक इत्तेफाक से गुरू दत्त ने प्यासा में एक्टिंग की क्योंकि दिलीप कुमार, जिन्हें ध्यान में रखकर फिल्म लिखी गई थी, उन्होंने फिल्म में काम करने से ऐन वक्त पर इनकार कर दिया था…अब दिलीप साहब ने मना कर दिया तो फिल्म की हीरोइन मधुबाला और नरगिस ने भी फिल्म छोड़ दीऐसे में इत्तेफाकन एक जोड़ी बन गईगुरू दत्त और वहीदा रहमान की

वहीदा की हिंदी बहुत अच्छी नहीं थीफिर भी वहीदा गुरु दत्त की पहली पसंद बन गई थींक्या ये पसंद गुरु दत्त की निजी पसंद भी बनने वाली थी। गुरु दत्त की ज़िंदगी प्यासीसी दिख रही थीउधर गीता दत्त भले ही गुरु दत्त के साथ नहीं रह रही थींपर उनकी मौजूदगी गुरु दत्त की ज़िंदगी में अभी भी झलक रह थी। फ़िल्म छोटीबहू में गुरु दत्त के किरदार के लिए शशि कपूर से भी बात की गई थीपर गीता दत्त चाहती थींकि गुरु दत्त डायरेक्शन की बजाए एक्टिंग पर ज़ोर देंकागज़ के फूल के फ़्लॉप होने के बादगीता दत्त ने ही गुरु दत्त को एक्टिंग पर ध्यान देने को कहा

एक तरफ़, गुरु दत्त की ज़िंदगी में गीता दत्त की अभी भी दख़लअंदाज़ी थीतो दूसरी तरफ़गुरु दत्त किसी की मौजूदगी को महसूस करने लगे थेएक वैम्प का हीरोइन बनना कोई इत्तेफ़ाक नहीं थालेकिन इनकी मुलाक़ात और उसके बाद वहीदा की तरफ गुरु दत्त का झुकाव जरूर इत्तेफ़ाक ही था..

टेन ईयर्स विद गुरु दत्त में अबरार अल्वी लिखते हैं… “गीता के साथ गुरु दत्त का रिश्ता अब कड़वा हो रहा थाजिस कारण वो काफ़ी परेशान रहते थेवहीदा के साथ उन्हें क्रिएटिव और इंटेलेक्चुअल सुकून मिलाजिस कारण उनका झुकाव वहीदा की तरफ़ हुआ…”

गुरु दत्तवहीदा की नज़दीकियों की ख़बरें गीता दत्त तक भी पहुंचने लगींगीता, अबरार अल्वी से भी मिलीं और उनके अपने रिश्ते को बचाने की गुहार लगाईगीता दत्त आख़िरकार इतनी बेचैन क्यों हो रही थींगीता, अब हर वो कोशिश करने लगीं ताकि गुरु दत्त उनकी ज़िंदगी में वापस आ जाएं

गुरु दत्त और गीता दत्त..दो किनारे थेगीता दत्त पहले से ही एस्टैब्लिश्ड सिंगर थींउनका उठनाबैठना और दोस्त बंगाली घरानों से ताल्लुक़ रखते थेजहां गुरु दत्त अपने आपको कभी सहज महसूस नहीं कर पाएमगर वो कभी गीता से दूर नहीं जा पाएएक तरफ़ पत्नी से रिश्तेदूसरी तरफ़ वहीदा से मोहब्बततो कागज़ के फूल की नाकामयाबी उन्हें शराब में डुबा रही थीउन दिनों गुरु दत्त बहारें फिर भी आएंगी की शूटिंग कर रहे थेवो साल 1964 थाअक्टूबर की 9 तारीख़वो उस दिन एक बार फिर हताश थेउस रात वो कमरे में जो सोने गएतो फिर कभी नहीं उठे

गुरु दत्त को ज़िंदगी में बहारों की उम्मीद नहीं थीउस रात उन्होंने शराब के साथ स्लीपिंग पिल्स की ओवर डोज़ ली थी… 10 तारीख़ के दिन गीता घबराई हुईं सी अपने पति के घर पहुंचीदरवाज़े को तुड़वाया गयागुरु दत्त ने इस सीन को नहीं बदलाउन अल्फाज़ों को नहीं बदलाजो उन्होंने गीता से कहे थेकि तुम मेरा मरा मुंह देखोगीवो फ़नकारप्यार का प्यासाफ़िल्मों का प्यासा.. ज़िंदगी का प्यासा ही रह गया..