दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम पर भारत और इंग्लैंड के बीच तीसरा टेस्ट मैच शुरु हो गया है. हर भारतवासी के लिए ये गर्व का विषय हो सकता है कि ये स्टेडियम अहमदाबाद में है. हाल तक ये रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड के पास था, जिसमें करीब एक लाख दर्शक क्रिकेट का लुत्फ उठा सकते थे. लेकिन अहमदाबाद के मोटेरा में मौजूद क्रिकेट स्टेडियम मेलबर्न से काफी आगे जा चुका है. एक लाख 32 हजार दर्शक यहां बैठकर क्रिकेट का आनंद ले सकते हैं, बाकी सुविधाएं तो ऐसी कि दुनिया का कोई स्टेडियम उसके आसपास फटक भी नहीं सकता.
लेकिन राष्ट्रीय खुशी के इस क्षण में भी कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है. और दर्द भी किस बात का, आखिर स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी के नाम पर क्यों रखा गया. गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के स्वामित्व वाले इस स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम है. और इसी बात पर रंज. रंज करने वाली पार्टी कांग्रेस है और हल्ला मचाने वाले राहुल गांधी सहित तमाम पार्टी नेता, जो वैसे भी नरेंद्र मोदी पर हमला करने का कोई मौका छोड़ते नहीं हैं.
इसलिए हुआ है स्टेडियम का नामकरण
सवाल ये उठता है कि अगर दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी के नाम पर रखा गया, तो इसमें परेशानी क्या है. जाहिर है, ये नामकरण इसलिए नहीं हुआ है कि नरेद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं. नामकरण इसलिए क्योंकि जिस क्रिकेट एसोसिएशन के स्वामित्व वाला ये स्टेडियम है, उस एसोसिएशन के वो पांच साल तक अध्यक्ष रह चुके हैं.
जाहिर है, भारत में क्रिकेट का खेल अभी तक बीसीसीआई की अगुआई में सरकार से बाहर स्वतंत्र ढंग से चलता है, स्वायत्त ढंग से चलता है. बीसीसीआई और उससे जुड़ी संस्थाएं न सिर्फ क्रिकेट के खेल का आयोजन करती हैं, बल्कि उससे जुड़े संसाधनों को विकसित करती हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं स्टेडियम, जहां राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट मैच आयोजित होते हैं.
गुजरात में भी दुनिया के जिस सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का उदघाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों आज हुआ, उसका स्वामित्व गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन का है. जीसीए ने ही अपने संसाधनों के जरिये करीब आठ सौ करोड़ रुपये की लागत से इस नायाब स्टेडियम का निर्माण किया है, जिसे नरेंद्र मोदी का नाम दिया गया है. जीसीए ने खुद अपने पास से करीब तीन सौ करोड़ रुपये निकाले हैं, जबकि बाकी का कर्जा लिया है, जिसकी भरपाई वो खुद आने वाले समय में करेगी, जब दुनिया के इस सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में आईपीएल सहित तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मैच होंगे, जिनसे राज्य एसोसिएशनों की सबसे अधिक कमाई होती है.
मोदी ने तीन दशक पुराने स्टेडियम को बनवाया अत्याधुनिक
मोदी के नाम पर स्टेडियम का नाम क्यों रखा गया, इसे लेकर कोहराम मचाने वाले लोग ये आसानी से भूल जाते हैं कि वो नरेंद्र मोदी ही थे, जिन्होंने गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर मोटेरा के जीर्ण -शीर्ण हो चुके तीन दशक पुराने स्टेडियम को गिराकर उसकी जगह अत्याधुनिक स्टेडियम बनाने का सुझाव जीसीए के अपने साथियों को दिया था. उस वक्त मोदी गुजरात के सीएम थे. सितंबर 2009 में अपने 59वें जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले वो जीसीए के अध्यक्ष बने थे और पांच साल के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने गुजरात मे क्रिकेट के विकास और नई प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए खूब काम किया. न सिर्फ नई पिचें बनाई गई, बल्कि अच्छे प्रशिक्षकों की नियुक्ति की गई, जो नई प्रतिभाओं को निखार सकें.
गुजरात क्रिकेट एसोसिशन की जिम्मेदारी मई 2014 में देश का पीएम बनने के बाद छोड़ने के छह महीने पहले ही मोदी ने मोटेरा को लेकर अपनी योजना को ठोस स्वरुप दिया था. उन्हीं की परिकल्पना के आधार पर उनके बाद जीसीए के अध्यक्ष बने अमित शाह और वरिष्ठ उपाध्यक्ष परिमल नथवाणी ने स्टेडियम के काम को आगे बढ़ाया. अमित शाह ने जब लोढ़ा कमिटि की सिफारिशों के तहत जीसीए अध्यक्ष पद को छोड़ा, उसके बाद नई पीढ़ी ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाया. जीसीए में संयुक्त सचिव रहे जय शाह, जो फिलहाल बीसीसीआई के सचिव और एशियन क्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष हैं, उन्होंने नथवाणी और उनके बेटे धनराज नथवाणी के साथ मिलकर इस परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाया. धनराज फिलहाल जीसीए के उपाध्यक्ष हैं और सारा रुटीन कामकाज देखते हैं.
दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों को आज इस नये स्टेडियम की भव्यता और यहां की सुंदरता टीवी के पर्दे पर दिख रही है, लेकिन ठीक एक साल पहले जब 24 फरवरी 2020 को यहां नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम हुआ था, तो उस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले लोगों को इसकी भव्यता का अंदाजा लग गया था, क्योंकि 90 फीसदी काम तब तक पूरा हो चुका था.
स्वाभाविक है कि जब नये स्टेडियम का औपचारिक तौर पर उदघाटन राष्ट्रपति के हाथों होना था, तो इसका नामकरण भी होना था. देश में जितने भी स्टेडियम हैं, सबके नाम हैं, ज्यादातर उन व्यक्तियों के नाम पर हैं, जो क्रिकेट प्रशासन से जुड़े रहे हैं, इसके विकास में अपनी भूमिका निभाते आए हैं. ऐसे मे इसमें कोई अचंभा नहीं होना चाहिए कि इसे नरेंद्र मोदी का नाम क्यों दिया गया. एक पल को भूल जाइए कि मोदी पौने तेरह साल तक गुजरात के सीएम रहे या फिर 2014 से देश के पीएम हैं. मोदी सिर्फ जीसीए अध्यक्ष की अपनी भूमिका में ही इस बात के स्वाभाविक हकदार हैं कि उनके नाम पर स्टेडियम का नाम रखा जाए. वैसे भी स्टेडियम का नाम क्या रखा जाए, ये तय करने का काम संबंधित क्रिकेट एसोसिएशनों का होता है, न कि सरकारों का, क्योंकि इनकी मालिकी सरकार की नहीं होती है, क्रिकेट संघों की होती है.
कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत
जहां तक सरदार पटेल के नाम पर पुराने स्टेडियम के होने का सवाल है, और नये स्टेडियम को मोदी का नाम देने का मुद्दा है, वहां आलोचक ये भी आसानी से भूल जाते हैं कि नव निर्मित नरेंद्र मोदी स्टेडियम उसी सरदार पटेल स्पोर्ट्स इन्क्लेव का हिस्सा रहने वाला है, जहां बीस से भी अधिक ओलंपिक खेलों की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना है, बड़े पैमाने पर खिलाड़ियों के लिए आवासीय सुविधाएं विकसित होने वाली हैं और ये सुविधाएं अहमदाबाद को स्वाभाविक तौर पर देश के स्पोर्ट्स सिटी के तौर पर पहचान देंगी, जिसकी तरफ इशारा खुद गृह मंत्री अमित शाह ने किया.
जो कांग्रेस पार्टी नरेंद्र मोदी का नाम मोटेरा के नये स्टेडियम को दिये जाने पर सबसे अधिक सवाल खड़ा कर रही है, उसको खुद आत्म मंथन करने की जरूरत है. अगर कोई ये पूछे ले कि राजीव गांधी भला कौन से देश के बड़े खिलाड़ी थे, जिनके नाम पर भारत का सर्वश्रेष्ठ खेल पुरस्कार ‘राजीव गांधी खेलरत्न पुरस्कार’ दिया जाता है.
अगर क्रिकेट की ही बात कर लें, तो कोई पूछ सकता है कि हैदराबाद के क्रिकेट स्टेडियम को राजीव गांधी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम का नाम क्यों दिया गया, जबकि उनका हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन से कोई लेना-देना नहीं था, जिसकी मालिकी वाला ये स्टेडियम है.
कांग्रेस पार्टी के इन नेताओं के मुकाबले बीजेपी के बड़े नेताओं में नरेंद्र मोदी के पहले सिर्फ अरुण जेटली के नाम पर एक स्टेडियम है, वो भी नामकरण हाल में हुआ है. जेटली लंबे समय तक डीडीसीए के प्रेसिडेंट रहे और देश में क्रिकेट को प्रोत्साहन देने में बड़ी भूमिका निभाई, ये बात किसी से छुपी नहीं हैं.
जहां तक मोदी का सवाल है, उन्होंने पौने तेरह साल के अपने सीएम कार्यकाल के दौरान या फिर छह साल से ज्यादा के अपने पीएम कार्यकाल के दौरान न तो किसी एक सरकारी योजना को अपने नाम पर रखा है, न ही किसी सरकारी इमारत को अपने नाम पर होने दिया है. देश के तमाम हिस्सों में बीजेपी की सरकारें हैं, मोदी देश ही नहीं, दुनिया के लोकप्रिय नेताओ में से एक हैं, लेकिन मोदी ने देश के किसी भी राज्य में कोई भी सरकारी भवन अपने नाम पर होने नहीं दिया. जो तमाम लोकप्रिय योजनाएं लांच की, उनके भी नाम उज्ज्वला से लेकर आयुष्मान हैं, मोदी का नाम इनमें कही नहीं है.
और जहां तक सरदार पटेल की साख को कम करन का सवाल है, इस तरह के प्रश्न उठाना भी हास्यास्पद है. 2014 लोकसभा चुनावों के करीब सात महीने पहले जब अक्टूबर 2013 में मोदी ने सरदार जयंती के मौके पर गुजरात के केवडिया में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए भूमिपूजन किया था, तो उस वक्त सबको ये चुनावी हथकंडा लगा था. लेकिन चार साल से भी कम समय में मोदी ने ये सुनिश्चित किया कि केवडिया के आदिवासी बहुल इलाके में न सिर्फ दुनिया की सबसे उंची प्रतिमा बन जाए, वो भी सरदार की, बल्कि वहां इस तरह से विकास कार्य और बाकी संसाधन जुटाए जाएं कि पूरी दुनिया उसकी नोटिस ले. कहना न होगा कि केवड़िया आज हर सैलानी के लिए आकर्षण का बड़ा केंद्र है. सरदार छोड़िए, सुभाषचंद्र बोस से लेकर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर जैसे तमाम राष्ट्रीय नेताओं की याद को मजबूत करने का काम मोदी ने किया है, उनके नाम पर बड़े कार्यक्रम रखकर या फिर उनकी याद में बड़े स्मारक बनाकर.
1992-93 में जीसीए के अघ्यक्ष बनने के बाद अमीन को पता चला कि जीसीए पर करीब 8 करोड़ रुपये का कर्ज और स्टेडियम को दुरुस्त करने के लिए कोई फंड नहीं है. ऐसे में उन्होंने अदाणी समूह और गुजरात सरकार की कंपनी जीएमडीसी से 20-20 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद लेकर दोनों पैविलियनों को उनका नाम दिया और आधे-अधूरे स्टेडियम को पूरा किया. नये स्टेडियम में भी अदाणी समूह के साथ ही रिलायंस समूह के नाम पर पैवेलियन होने की जहां तक बात है, उसके पीछे भी सीधी सी बात ये है कि इस नये स्टेडियम के निर्माण में भी इन दोनों औद्योगिक समूहो ने बड़ा आर्थिक योगदान दिया है.
जहां तक जय शाह का सवाल है, युवा जय ने रिलायंस समूह से जुड़े राज्यसभा के सदस्य परिमल नथवाणी और उनके बेटे धनराज नथवाणी के साथ मिलकर रिकॉर्ड समय में स्टेडियम के निर्माण को पूरा किया है, बिना किसी सरकारी सहायता के, जिस उपलब्धि पर पूरा भारत गर्व कर सकता है. इसलिए दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम भारत में होने का गर्व करने की जगह ‘हम दो, हमारे दो’ का सियासी बाण चलाना बेमानी है, अन्यथा जानकार लोग और सियासी विरोधी ‘हम तीन, हमारे बाईस’ की याद दिलाना शुरु कर देंगे, जिस पर जवाब भी देते नहीं बनेगा कांग्रेस और उसके नेताओं को. (ये लेखक के निजी विचार हैं)
लेखक नेटवर्क18 समूह में मैनेजिंग एडिटर के तौर पर कार्यरत हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से 1995-96 में पत्रकारिता की ट्रेनिंग, बाद में मास कम्युनिकेशन में पीएचडी. अमर उजाला समूह, आजतक, स्टार न्यूज़, एबीपी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ में काम करने के बाद अप्रैल 2019 से नेटवर्क18 के साथ. इतिहास और राजनीति में गहरी रुचि रखने वाले पत्रकार, समसामयिक विषयों पर नियमित लेखन, दो दशक तक देश-विदेश में रिपोर्टिंग का अनुभव.
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