किसान आंदोलन: राकेश टिकैत का बयान, सरकार के लिए चेतावनी या बेचैनी?

  • भूमिका राय
  • बीबीसी संवाददाता
राकेश टिकैत

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"कान खोलकर सुन ले दिल्ली, ये किसान भी वही हैं और ट्रैक्टर भी वही होंगे. अबकी बार आह्वान संसद का होगा. कहकर जाएंगे संसद पर. इस बार चार लाख नहीं चालीस लाख ट्रैक्टर जाएंगे."

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने मंगलवार को एक सभा को संबोधित करते हुए यह बयान दिया.

किसान नेता राकेश टिकैत बीते कुछ हफ़्तों से लगातार महापंचायतों में हिस्सा ले रहे हैं. सभाओं को संबोधित कर रहे हैं. अपने हर संबोधन में वो सरकार को चुनौती देते हुए नज़र आते हैं.

मंगलवार को एक सभा को संबोधित करते हुए राकेश टिकैत ने कहा, "तिरंगा भी फहरेगा और पार्लियामेंट पर फहरेगा, ये कान खोलकर सुन लो. ये ट्रैक्टर जाएंगे वहीं और हल के साथ जाएंगे. उन पार्कों में, पार्लियामेंट के बाहर जहां साल 1988 में आंदोलन हुआ, जो पार्क हैं वहां के, वहां पर ट्रैक्टर चलेगा, वहां पर खेती होगी."

उन्होंने आगे कहा, "जो इंडिया गेट है वहां जो पार्क है वहां ट्रैक्टर चलेगा, खेत जुताई वहीं पर होगी.या तो बिल वापस ले लें, एमएसपी पर क़ानून बनाएं, नहीं तो घेराबंदी दिल्ली की पक्की होगी."

राकेश टिकैत

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टिकैत के बयान में चेतावनी या झुंझलाहट?

हालांकि ये ट्रैक्टर रैली कब होगी उसकी तारीख़ के संबंध में उन्होंने कहा कि इसका फ़ैसला संयुक्त किसान मोर्चा करेगा.

उन्होंने कहा, "इस बार चार लाख ट्रैक्टर नहीं, 40 लाख ट्रैक्टर होंगे." लेकिन ये कोई पहला मौक़ा नहीं है जब राकेश टिकैत ने इस तरह का बयान दिया है.

राकेश टिकैत ने 28 जनवरी को ऐलान किया था कि देश का किसान सीने पर गोली खाएगा, पर पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने यह धमकी भी दी थी कि "तीनों कृषि क़ानून अगर वापस नहीं लिये गए, तो वे आत्महत्या करेंगे, लेकिन धरना-स्थल खाली नहीं करेंगे."

राकेश टिकैत की अपील का असर उस वक़्त देखा जा चुका है, जब वो मीडिया से बात करते-करते भावुक हो गए थे. 28 जनवरी की सुबह लग रहा था कि ग़ाज़ीपुर धरना स्थल खाली होने वाला है लेकिन उनकी उस भावुक अपील ने एक तरह से आंदोलन को नई दिशा दे दी.

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लेकिन क्या उनका ये हालिया बयान सरकार के लिए चेतावनी है या फिर उनकी झुंझलाहट?

इस पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, "यह सरकार को एक चेतावनी है कि अगर आप हमें बिल्कुल छोड़ दोगे, ये मान लोगे कि ये बैठे हैं, इन्हें बैठे रहने दो तो हम कुछ ना कुछ तो निर्णय लेंगे ही."

धर्मेंद्र मलिक नहीं मानते हैं कि यह बयान किसी झुंझलाहट में दिया गया है.

वो कहते हैं, "झुंझलाहट किस बात की? हम तो जा रहे हैं, देश में आंदोलन को बना-बढ़ा रहे हैं. हमारा तो काम चल रहा है.देश में आंदोलन खड़ा हो रहा है.लेकिन अगर आपने (सरकार) ये मान लिया है कि किसान अहिंसात्मक रूप से इस तरह बैठा हुआ है तो आपको ग़लतफ़हमी नहीं होनी चाहिए."

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लेकिन इस तरह के 'उकसावे' वाला बयान क्यों?

इस पर किसान नेता राकेश टिकैत के मीडिया सलाहार और भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं, "ये बयान कहीं से भी उकसाने वाला बयान नहीं है. हम दिल्ली के लिए ही आए थे और हम बॉर्डर पर बैठे हुए हैं. दिल्ली जाने का हमारा भी अधिकार है तो क्या हम देश के नागरिक नहीं हैं? क्या हम दिल्ली नहीं जा सकते? "

लेकिन बयान एक व्यक्ति दे रहा है और बयान देने के बाद फ़ैसले की ज़िम्मेदारी संयुक्त मोर्चे पर छोड़ देता है. बयान देने की इतनी जल्दबाज़ी क्यों है?

इस पर धर्मेंद्र मलिक कहते हैं,"ये तो हमने भी कहा है कि जो भी तय करना है वो संयुक्त मोर्चा ही करेगा लेकिन अगर कुछ नहीं होगा तो इस तरह का भी कुछ हो सकता है.संयुक्त मोर्चे की जो बैठक होगी उसमें इस बार ये बात रखी जाएगी."

वो कहते हैं, "नहीं बयान देने की कोई जल्दबाज़ी नहीं है. और बयान दे देने से कुछ बदल थोड़े ही जा रहा है.ये तो एक तैयारी है. लोग तैयारी करेंगे. अगर राकेश टिकैत कहीं जा रहे हैं तो उन्हें वहां जाकर कोई मैसेज तो देना पड़ेगा...तो उनको (किसानों) तैयार रहने को कहा है. कि आप तैयार रहो, आपको कभी भी कॉल किया जा सकता है."

राकेश टिकैत के इस बयान के संबंध में जब हमने संयुक्त किसान मोर्चा की नेता कविता से बात की तो उन्होंने बताया, ''किसान नेता राकेश टिकैत ने जो बयान दिया है वो अभी आधिकारिक तौर पर संयुक्त किसान मोर्चा को नहीं मिला है.''

विज्ञान भवन में किसान नेताओं का जो समूह सरकार से बातचीत करने के लिए जाता है, कविता उनमें से एक हैं.

किसान आंदोलन

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'संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐसा कोई फ़ैसला नहीं किया'

बीबीसी से बातचीत में कविता ने कहा- "संयुक्त किसान मोर्चा ने इस तरह का कोई फ़ैसला नहीं लिया है. लेकिन अगर ये राकेश टिकैत जी का प्रपोज़ल है तो बैठक में ये कभी ना कभी तो आएगा और तब ही इस पर चर्चा भी होगी और निर्णय भी लिया जाएगा. आज की तारीख़ में तो कम से कम संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है."

संयुक्त किसान मोर्चा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने भी बीबीसी से बातचीत में कहा कि किसान मोर्चा टिकैत के इस बयान का समर्थन नहीं करता है.

राकेश टिकैत के इस बयान के मायने समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह से भी बात की.

ग्रामीण मुद्दों पर काम करने वाली वेबसाइट ruralvoice.in के संपादक हरवीर सिंह ऐसे कई आंदोलनों को कवर कर चुके हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस बात से तो कोई भी इनक़ार नहीं कर सकता है कि आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच एक डेड-लॉक सा हो गया है. चाहे सरकार की तरफ़ से या फिर किसानों की तरफ़ से बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है. क्योंकि सरकार ने स्पष्ट कह दिया है कि हमने जो प्रपोज़ल दिया है हम उसी पर हैं और दूसरी तरफ़ किसान भी साफ़ कह रहे हैं कि जब तक बिल रद्द नहीं होता, हम हटेंगे नहीं. यानी गतिरोध तो है."

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वो कहते हैं,"बीते महीने की 22 तारीख़ को आख़िरी बार किसानों और सरकार के बीच बातचीत हुई थी तो अब झुंझलाहट तो है, लेकिन यह झुंझलाहट दोनों तरफ़ है. किसान चाहते हैं कि उनकी मांग मानी जाए और आंदोलन ख़त्म हो लेकिन वो साथ ही ये भी दिखाना चाहते हैं कि हम कमज़ोर नहीं पड़ रहे हैं और टिकैत जी का बयान भी कुछ ऐसा ही है."

हरवीर सिंह मानते हैं कि जगह-जगह पंचायतें करने के पीछे भी यह एक बड़ा कारण है.

40 लाख ट्रैक्टर के साथ रैली निकालने के बयान को हरवीर सिंह पॉश्चरिंग (तेवर दिखाना) मानते हैं.

वो कहते हैं, "चालीस लाख ट्रैक्टर के बयान से सरकार को यह बताने की कोशिश है कि जो किसान संगठन हैं वो अभी भी मज़बूत हैं और वो अपना अग्रेसिव अप्रोच जारी रखेंगे. इसके साथ ही दूसरी बात ये भी है कि जो आंदोलन चल रहे हैं वो दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहे हैं तो संभव है कि वो दबाव की रणनीति अपनाना चाहते हों."

लेकिन हरवीर सिंह राकेश टिकैत के बयान के उस हिस्से पर भी ज़ोर देते हैं जिसमें टिकैत ने तारीख़ तय करने का फ़ैसला संयुक्त किसान मोर्चा को दिया है.

वो कहते हैं, "एक पब्लिक रैली में माहौल बनाने के लिए और लोगों को आंदोलन से जोड़ने के लिए, उन्होंने ऐसा बयान दिया होगा. लेकिन फ़िलहाल इसमें बहुत अधिक व्यावहारिकता नहीं दिख रही लेकिन इतना ज़रूर है कि ये साफ़ संकेत दिया गया है कि किसान अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं और आंदोलन कहीं से भी कमज़ोर नहीं पड़ा है."

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ऐसे बयान क्यों देते हैं आंदोलनों के नेता?

हरवीर सिंह मानते हैं कि जब भी इस तरह के नेता या फिर राजनेता इस तरह की सभाओं में बोलते हैं तो उनके भाषण या संबोधन में ज़रूर कुछ ऐसा होता है, जो न्यूज़वर्दी हो, हाइलाइट हो जाए. या उस पर चर्चा शुरू हो जाए.

हरवीर सिंह, राकेश टिकैत के हालिया बयान को भी इसी संदर्भ में देखते हैं.

हरवीर सिंह मानते हैं कि राकेश टिकैत इस आंदोलन का चेहरा हैं और उनकी कही बात पर चर्चा होती ही है लेकिन चाहे राकेश टिकैत हों या कोई भी किसान नेता वो अपने बयान के साथ राइडर ज़रूर लगाते हैं.

वो अपने भाषणों में भी संयुक्त किसान मोर्चा को ही पंच और मंच कहते हैं, ऐसे में ये तो स्पष्ट है कि आंदोलन का जो भी क़दम होगा वो किसी के बयान से नहीं बल्कि सिंघु बॉर्डर के हेडक्वॉर्टर से ही तय होगा.

हालांकि हरवीर सिंह ये भी कहते हैं "बयानों को लेकर किसान नेताओं की आक्रामकता तो हमेशा रही है लेकिन पहले के आंदोलन और अब के आंदोलन में एक अंतर ज़रूर है कि पहले एक नेता होता था और अब कोई एक नेता नहीं है. इसलिए यहां पर किसी एक व्यक्ति का फ़ैसला उतना मायने नहीं रखता."

BBC ISWOTY

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