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बाजी पलट गई है! ट्रैक्टर रैली में मचे उपद्रव के बाद अपने घरों को रवाना हुए एक लाख किसान

जितेंद्र भारद्वाज, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Harendra Chaudhary Updated Wed, 27 Jan 2021 06:13 PM IST
सार

अब सरकार का पलड़ा भारी है। किसान संगठनों को अब दो लड़ाइयां लड़नी हैं। जो किसान और संगठनों के पदाधिकारी गिरफ्तार होंगे, उनकी रिहाई के लिए भी कदम बढ़ाना है...

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One lakh farmers rushed to their homes after a  violence in tractor rally, Delhi Police register 22 FIR
Tractor prade - फोटो : PTI
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विस्तार
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26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली में भाग लेने के लिए किसानों ने जो तेजी दिखाई थी, अब उसी रफ्तार से वे अपने घरों के लिए रवाना हो रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने 22 एफआईआर दर्ज कर उपद्रवियों पर शिकंजा कस दिया है। आरोपी गिरफ्तार किए जा रहे हैं। चूंकि अब किसान संगठनों के उन नेताओं का नाम भी एफआईआर में शामिल हो गया है, जो इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। इनमें से अधिकांश नेता वे हैं जो सरकार के साथ बातचीत में शामिल थे।



योगेंद्र यादव और राकेश टिकैत जैसे मीडिया फेस भी मुश्किल में फंस सकते हैं। इनका नाम भी एफआईआर में लिखा है। लाल किला पर हुए उपद्रव के बाद मंगलवार की रात और बुधवार को करीब एक लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर घरों की ओर चल पड़े हैं। जानकारों का कहना है कि लालकिला उपद्रव के बाद बाजी पलट गई है। अभी सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। केंद्र सरकार, आक्रामक मूड में है, अब बातचीत होगी या नहीं, तय नहीं है।


किसान संगठनों द्वारा गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा करने के बाद 22 जनवरी से 24 जनवरी के बीच करीब डेढ़ लाख किसान अपने ट्रैक्टर लेकर दिल्ली सीमा पर पहुंच गए थे। इनमें से अधिकांश ट्रैक्टर पंजाब के इलाकों से आए थे। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी ट्रैक्टर दिल्ली पहुंचे थे। दो किसान नेता, जिनका अपना संगठन है और वे इस आंदोलन में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले काम कर रहे थे, का कहना है कि सरकार जो चाहती थी, वैसा हो गया है। अब आरोप और प्रत्यारोप का कोई मतलब भी नहीं है।
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लाल किला उपद्रव मामले में भले ही किसी भी संगठन का हाथ हो, मगर उसकी जिम्मेदारी से किसान नेता भाग नहीं सकते। भारतीय किसान यूनियन के कई बड़े संगठनों में कथित तौर पर फूट पड़ गई है। हरियाणा सरकार ने सभी धरना स्थलों पर सख्ती बढ़ा दी है। खासतौर पर करनाल टोल प्लाजा के पास लगा लंगर हटवा दिया गया है। दूसरे इलाकों से भी किसान वापस लौट रहे हैं। टोल प्लाजा से भी किसानों को हटाया जा रहा है।
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हरियाणा के रोहतक, पानीपत, जींद, झज्जर, रेवाड़ी, भिवानी, कैथल, अंबाला और फतेहाबाद की ओर बुधवार को हजारों ट्रैक्टर वापस जाते हुए दिखाई दिए। पंजाब से जो किसान 23-24 जनवरी को इन जिलों से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे, अब उन्होंने घर का रुख कर लिया है। राजस्थान किसान संगठन के एक नेता ने कहा, किसान आंदोलन में शुरू से ही विभिन्न संगठन एकमत नहीं थे। कई संगठन तो बीच में अलग हो गए थे।

योगेंद्र यादव, राकेश टिकैत, बलदेव सिंह, किसान मजदूर संघर्ष समिति के सतनाम सिंह पन्नू, गुरनाम सिंह चढूनी, सरदार वीएम सिंह, दर्शनपाल, जोगिंदर सिंह उग्रहा व बलबीर सिंह रजेवाल आदि के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं थी। पिछले दिनों जब एक प्रेसवार्ता में युद्धवीर सिंह को बैठाया गया, तो गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की कमान संभाल रहे एक बड़े नेता को वह सब पसंद नहीं आया था। एक फरवरी के पैदल मार्च को लेकर भी किसान संगठनों में समान राय नहीं थी।
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पंजाब के एक युवा किसान नेता जो सरकार के साथ वार्ता में शामिल रहे हैं, उन्होंने भी एक इशारे में बहुत कुछ कह दिया है। उनका कहना था कि अब सरकार का पलड़ा भारी है। किसान संगठनों को अब दो लड़ाइयां लड़नी हैं। जो किसान और संगठनों के पदाधिकारी गिरफ्तार होंगे, उनकी रिहाई के लिए भी कदम बढ़ाना है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के कई सदस्य एक राय लेकर नहीं चल सके। समिति के वरिष्ठ सदस्य सरदार वीएम सिंह शुरुआत में ही आंदोलन से अलग हो गए थे। इस समिति में अविक साहा, आशीष मित्तल, अतुल अंजान, हन्नान मौला, दर्शनपाल, किरण विस्सा, कविथा कुरुगंती, कोडाली चंद्रशेखर, अयानकानू, राजा राम सिंह, सत्यवान, तेजेंद्र सिंह विर्क, अशोक धावले, वी.वेक्ट्रामयाह, सरदार जगमोहन सिंह, कृष्णा प्रसाद, प्रेम सिंह गहलावत, सुनीलम, मेघा पाटकर, राजू शेट्टी, प्रतिभा सिंधे, जगदीश ईनामदार, योगेंद्र यादव, रामपाल जाट और वीएम सिंह शामिल थे। इन सभी को अलग-अलग राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इनमें भी कई सदस्यों के बीच असहमति का भाव देखा गया है।

कई सदस्य, जो किसान आंदोलन में शामिल रहे हैं, उनकी पटरी राकेश टिकैत से नहीं बैठी। वीएम सिंह और योगेंद्र यादव का टिकैत के साथ कई मसलों पर कथित मतभेद रहा है। पंजाब के कुछ किसान संगठन नहीं चाहते थे कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का वर्किंग ग्रुप किसान आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले।

वजह, किसान आंदोलन में पंजाब के लोगों की भारी संख्या रही है। इन सबके बावजूद किसान आंदोलन दो माह तक आगे बढ़ता रहा। लेकिन लाल किला की घटना से अब ये संगठन बैकफुट पर हैं। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में आंदोलन के कई नेता अलग राह पर चले जाएं।

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