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बाला साहेब होते तो सरकार के कान मरोड़ कर सीधे रास्ते पर ले आते: संजय राउत

गेटवे ऑफ इंडिया के पास कोलाबा के पॉश इलाके में बाल ठाकरे की प्रतिमा के विरोध के संबंध में राउत ने कहा, कुछ लोग नहीं चाहते थे कि प्रतिमा लगे. वो सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का हवाला दे रहे हैं. विरोध के बावजूद प्रतिमा का उद्घाटन हुआ.

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शिवसेना को बाल ठाकरे की क्यों आई याद?
शिवसेना को बाल ठाकरे की क्यों आई याद?
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शिसवेना को बाला साहेब की आई याद
  • बाल ठाकरे होते तो सरकार को करते सीधा

‘देश में आज जिस तरह का माहौल है उसमें बाला साहेब की सख्त जरूरत थी.’ ये कहना है शिवसेना सांसद संजय राउत का. शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की जयंती के एक दिन बाद राउत का ये बयान सामने आया है. उन्होंने पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने लेख में कहा कि किसानों को प्रदर्शन करते 60 दिन हो चुके हैं और बातचीत अभी तक बेनतीजा है.  

'बाला साहेब जैसी लीडरशिप आज नहीं दिखती' 

राउत ने लिखा, “इस तरह के वक्त में सरकार के कान मरोड़ कर सीधे रास्ते पर लाने के लिए आपको बाला साहेब की जरूरत थी. आज भी लोग उनका नाम सुनकर जोश में आ जाते हैं, क्योंकि उनमें वो करिश्मा था जिससे कि वो किसी मुद्दे पर पूरे देश को आंदोलित कर सकते थे. ऐसी लीडरशिप आज देखने को नहीं मिलती.”  

'बाल ठाकरे के शब्द ही इंसाफ थे'  

गेटवे ऑफ इंडिया के पास कोलाबा के पॉश इलाके में बाल ठाकरे की प्रतिमा के विरोध के संबंध में राउत ने कहा, कुछ लोग नहीं चाहते थे कि प्रतिमा लगे. वो सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का हवाला दे रहे हैं. विरोध के बावजूद प्रतिमा का उद्घाटन हुआ. राउत ने लिखा, “बाला साहेब कोर्ट के आदेशों की चिंता नहीं करते थे. वो अपने आप में एक कोर्ट थे. एक बार वो अपनी कुर्सी पर बैठ जाते थे तो कोर्ट शुरू हो जाता था. उनके शब्द ही इंसाफ थे.”   

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'राम लोगों के दिलों में बसते हैं, राम मंदिर में नहीं'  

राउत ने कहा कि असली राम लोगों के दिलों में बसते हैं, राम मंदिर में नहीं. राउत ने लिखा, “मूर्तियां, सरकारी योजनाएं और इमारतों के नाम बाला साहेब पर रखे जाते हैं. लेकिन लोग उन्हें याद रखें, उसके लिए उनकी शख्सियत को इन सब चीजों की जरूरत नहीं थी. लोग भगवान राम को तब भी नहीं भूलते, अगर उनका मंदिर अयोध्या में नहीं बनता. ऐसे ही बाला साहेब को उनके कामों के लिए याद किया जाएगा.”   
 

 

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