कोरोना का टीकाकरण शुरू हुआ तो लोगों में काफी उत्साह और भरोसा दिखा कि अब जल्दी ही इस संक्रमण के खतरे से मुक्ति मिल जाएगी। मगर जैसे-जैसे टीकाकरण आगे बढ़ने लगा, लोगों का उत्साह ठंडा पड़ता नजर आने लगा। टीकाकरण अभियान अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रहा है। जिन लोगों ने इसके लिए पंजीकरण कराया था, वे भी संशकित होकर पांव पीछे खींचने लगे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और मुख्यमंत्रियों का टीकाकरण के दूसरे चरण में आगे आना लोगों के डिगे भरोसे को फिर से बहाल करने में मददगार साबित हो सकता है।

हालांकि टीकाकरण शुरू होने के पहले ही कुछ लोगों ने इस पर एतराज जताना शुरू कर दिया था। कुछ राजनेताओं ने अंतिम परीक्षण से पहले लोगों को लगाए जाने पर सवाल उठाए थे। मगर चिकित्सक लगातार भरोसा दिलाते रहे कि इस टीके का दुष्प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ेगा। इसीलिए टीकाकरण के पहले दिन एम्स के निदेशक और सीरम इंस्टीट्यूट के मुखिया ने खुद टीका लगवाया, ताकि लोगों में भरोसा बन सके। मगर पहले ही दिन कुछ लोगों के अस्वस्थ होने की खबर आ गई। फिर कुछ चिकित्सकों ने चिट्ठी लिख कर विरोध जताया कि वे यह टीका नहीं लगवाएंगे। इन सबका लोगों के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

हालांकि टीकाकरण के पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अगली कतार में काम करने वाले लोगों को लगाया जा रहा है, पर उनमें भी इस टीकाकरण को लेकर भ्रम है। इस बीच कोवैक्सीन बनाने वाली संस्था भारत बायोटेक ने एक निर्देश जारी करते हुए कहा कि जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है या कोई बीमारी है, उन्हें यह टीका नहीं लगवाना चाहिए। उस निर्देश में विभिन्न रोगों की सूची भी दी गई। इस तरह लोगों में पैदा हुई आशंका भय में बदलती नजर आने लगी। स्वाभाविक ही इसका असर टीकाकरण पर पड़ा और यह अभियान अपने लक्ष्य से काफी पीछे चलना शुरू हो गया।

इस तरह टीकों की बर्बादी भी हो रही है, क्योंकि एक बार खुलने के बाद टीके देर तक नहीं रखे जा सकते। जाहिर है, इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग और सरकार की चिंता बढ़ गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन बार-बार लोगों को आश्वस्त करते रहे हैं, फिर समझाया है कि टीका लगवाने को लेकर किसी प्रकार की झिझक नहीं होनी चाहिए। अब मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में प्रधानमंत्री ने भी दूसरे चरण में खुद टीका लेने की घोषणा कर दी है, तो निस्संदेह इसका सकारात्मक संदेश जाएगा।

विपक्षी दलों के नेता और बहुत सारे आम लोग भी यह सवाल उठा रहे थे कि अगर कोरोना के टीके सुरक्षित हैं, तो पहले मंत्री और सांसद खुद क्यों नहीं लगवाते। कुछ देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने टीकाकरण के पहले ही दिन टीके लगवाए थे। अब ऐसे सवाल करने वालों के मन में शायद कोई शंका न रहे। यों भी प्रधानमंत्री की बातों का लोगों पर प्रभाव पड़ता है, उनके इस कदम से टीकाकरण अभियान को बल मिलेगा।

हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब किसी व्यापक टीकाकरण अभियान को लेकर लोगों के मन में शंका और भय देखा गया है। चेचक और पोलियो टीकों को लेकर भी शुरू में ऐसी ही भ्रांतियां बनी रही थीं। पोलियो की खुराक को लेकर बने भ्रमों को तोड़ने में लंबा समय लगा था। प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के इस दिशा में आगे बढ़ने से वह हिचक दूर होगी और स्वास्थ्यकर्मियों तथा आम लोगों का विश्वास बनेगा।