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america implicated in china and European union investment agreement
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चीन और यूरोपियन यूनियन के निवेश समझौते में अमेरिका ने फंसाया पेच
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Tanuja Yadav
Updated Fri, 25 Dec 2020 03:10 PM IST
चीन और अमेरिका
- फोटो : pixabay
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चीन और यूरोपियन यूनियन (ईयू) के बीच प्रस्तावित निवेश समझौते पर सहमति बनने के बावजूद इस पर दस्तखत का कार्यक्रम फिलहाल टल गया है। बताया जाता है कि अमेरिका ने इसमें शुरुआती पेच फंसाया है। उसके बाद फ्रांस और पोलैंड ने इसे वीटो करने का एलान कर दिया। जबकि पहले इस करार पर इसी हफ्ते दस्तखत होने की संभावना जताई गई थी।
करार की शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए ईयू के व्यापार वार्ताकार वाल्दिस दोमब्रोवस्किस और चीन के व्यापार वार्ताकार लिउ ही की बैठक भी तय हो गई थी, लेकिन ये बैठक टाल देनी पड़ी। पहले खबर आई कि ब्रेक अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन की टीम ने लगाया है।
बाइडन के मनोनीत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने संदेश भेजा कि अगला अमेरिकी प्रशासन अपने यूरोपीय पार्टनर्स के साथ आर्थिक मसलों पर चीन को लेकर मौजूद साझा चिंताओं पर जल्द से जल्द विचार-विमर्श करना चाहता है। ये आशंका पहले से जताई जा रही थी कि अगर ईयू ने अलग से समझौता कर लिया तो यह कदम चीन के मामले में यूरोप के साथ मिलकर साझा रणनीति बनाने की निर्वाचित राष्ट्रपति बाइडन की इच्छा के खिलाफ होगा।
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इन खबरों के बाद फ्रांस ने साफ एलान कर दिया कि वह चीन के साथ होने वाले निवेश समझौते का समर्थन नहीं करेगा। फ्रांस के व्यापार उप मंत्री फ्रैंक रीस्टर ने पेरिस के अखबार ला मोंड से कहा- अगर जबरिया मजदूरी खत्म करने की दिशा में हम नहीं बढ़ सकते तो फ्रांस को चीन में निवेश सुविधा प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं है।
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रीस्टर ने कहा कि व्यापार समझौतों का उपयोग सामाजिक मुद्दों पर प्रगति के लिए करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस समझौते पर सहमति बनी है, उससे चीन के बाजार तक ज्यादा पहुंच तो बनेगी, लेकिन उससे यूरोपीय निवेश को सुरक्षा नहीं मिलेगी। रीस्टर ने कहा कि चीन में अचानक राष्ट्रीयकरण की संभावना से यूरोपीय कंपनियों को सुरक्षा देना बहुत अहम है। रीस्टर ने दावा किया कि बेल्जियम, लग्जमबर्ग और नीदरलैंड्स भी इस मामले में फ्रांस के रुख के साथ हैं।
उधर पोलैंड ने गुरुवार को ईयू से अनुरोध किया कि वह चीन के साथ समझौता करने में जल्दबाजी ना करे। उसने कहा कि उसे अमेरिका से सहयोग करते हुए इस दिशा में बढ़ाना चाहिए। वेबसाइट पोलिटिको.ईयू के मुताबिक उससे बातचीत में ईयू एक राजनयिक ने यह स्वीकार किया कि ईयू-चीन समझौते के मुद्दे पर ईयू को कई सदस्य देशों के विरोध का सामना करना पड़ा है। विरोध की वजह मुख्य रूप से चीन में निवेश संरक्षण के प्रावधान का कथित रूप से कमजोर होना और इसमें जबरिया श्रम रोकने की शर्त शामिल ना होना है।
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अब तक चीन या ईयू दोनों में से किसी ने ये जानकारी नहीं दी है कि दोनों पक्षों के बीच अगली वार्ता कब होगी। इस बारे में मीडिया के सवालों पर दोनों जगहों से सिर्फ यह कहा गया कि चीन और ईयू लगतार संपर्क में हैं और बचे-खुचे मुद्दों को हल करने की कोशिश कर रहे हैं।
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