क्लाइमेट इमरजेंसी की ज़रूरत क्यों, बताया संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेश ने दुनिया के तमाम देशों से क्लाइमेट इमरजेंसी की घोषणा करने के लिए कहा है.
पेरिस जलवायु समझौते के पांच साल पूरे होने के मौके पर आयोजित वर्चुअल समिट में एंटोनियो गुटरेश ने महामारी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए कम कार्बन वाले ईंधन की तुलना में जीवाश्व ईंधन पर 50 प्रतिशत अधिक ख़र्च करने के लिए धनी देशों की आलोचना की है.
ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र और फ्रांस द्वारा आयोजित इस मीटिंग में एंटोनियो गुटरेश ने कहा कि 38 देश क्लाइमेट इमरजेंसी पहले ही घोषित कर चुके हैं और बाकी देशों को भी ऐसा ही करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कार्बन न्यूट्रालिटी का लक्ष्य हासिल करने के बाद ही क्लाइमेट इमरजेंसी ख़त्म होगी. कार्बन न्यूट्रालिटी का मतलब कार्बन-डाय-आक्साइड का कम से कम उत्सर्जन करना है.
महामारी से हुए नुकसान की भरपाई के लिए जीवाश्म ईंधन पर अधिक ख़र्च के बारे में उन्होंने कहा कि इसका मतलब होगा भावी पीढ़ी से उधार लेकर ख़र्च करना.
उन्होंने कहा कि हम अपने संसाधनों को इस तरह ख़र्च नहीं कर सकते जिससे अगली पीढ़ी पर बिखरती धरती का बोझ पड़े.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने इस बैठक में नए लक्ष्य और योजनाओं के साथ आने वाले देशों की सराहना की.
कार्बन उत्सर्जन करने वाले ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, रूस और मेक्सिको जैसे कई बड़े देश इस मीटिंग में हिस्सा नहीं ले रहे हैं.
प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत न सिर्फ पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के ट्रैक पर है, बल्कि उम्मीदों से बढ़कर उन पर काम कर रहा है.
उन्होंने कहा कि ''आज जब हम और ऊंचाई की तरफ देख रहे है तब हमें अपने अतीत को नहीं भूलना चाहिए. हमें सिर्फ़ एक बार फिर अपनी महत्वाकांक्षा की समीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी उपलब्धियों की भी समीक्षा करनी चाहिए.''
पेरिस जलवायु समझौता
पेरिस जलवायु समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा है.
ये समझौता सभी देशों को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है. यह मांग ग़रीब और बेहद ग़रीब देशों की ओर से रखी गई थी.
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2 डिग्री से अधिक तापमान बढ़ने से धरती की जलवायु में बड़ा बदलाव हो सकता है. इसकी वजह से समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, ज़मीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ सकती हैं.
वैसे भी औद्योगिकीकरण शुरू होने के बाद से धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है.
वैज्ञानिक इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को ज़िम्मेदार मानते हैं. ये गैस इंसानी ज़रूरतों, जैसे; बिजली उत्पादन, गाड़ियाँ, फ़ैक्टरी और बाक़ी कई वजहों से पैदा होती हैं.
इस दौरान जो गैस उत्सर्जित होती हैं, उनमें मूल रूप से कार्बन डायऑक्साइड शामिल है. यह गैस धरती के वायुमंडल में डरावने तौर पर जमा हो रही है. कार्बन डायऑक्साइड ही सूरज से आने वाले तापमान को सोखकर धरती के तापमान को बढ़ाती है, जिसकी वजह से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है.
पेरिस समझौते के मुताबिक़ दुनिया के क़रीब 55 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को इसे मानना है.
भारत से पहले 61 देशों ने इस समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है, जो क़रीब क़रीब 48 फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं.
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भारत की मंज़ूरी के बाद यह आंकड़ा ज़रूरी सीमा के क़रीब पहुंच गया है क्योंकि दुनिया भर के कार्बन उत्सर्जन का लगभग सात फ़ीसदी भारत ही उत्सर्जित करता है.
चीन और अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को सौंपी अपनी योजना में कहा था कि वो 40 फ़ीसदी बिजली का उत्पादन गैर जीवाश्म ईंधनों से करेगा.
इसमें कहा गया है कि भारत ने भविष्य में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के ज़रिए सबसे ज़्यादा बिजली उत्पादन को लक्ष्य बनाया है.
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