रोशनी ऐक्ट: वो स्कैम जिसे लेकर जम्मू और कश्मीर में मचा है हंगामा -प्रेस रिव्यू

जम्मू और कश्मीर

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जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने केंद्र शासित प्रदेश में विवादास्पद रोशनी ऐक्ट के लाभार्थियों की सूची जारी की है. अंग्रेज़ी अख़बार इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़ रोशनी ऐक्ट के तहत आवंटित किए गए ज़मीन के पट्टे रद्द किए जा रहे हैं और इस प्रक्रिया पर डिविजनल कमिश्नर नज़र रखे हुए हैं.

इस सिलसिले में डिप्टी कमिश्नर्स को विस्तृत रिपोर्ट फ़ाइल करने के लिए कहा गया है. इस क़ानून का फ़ायदा उठाने वाले प्रभावशाली लोगों की जांच भी की जा रही है ताकि उनके नाम सार्वजनिक किए जा सकें.

जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट ने रोशनी ऐक्ट को अवैध और असंवैधानिक करार देते हुए इस क़ानून के तहत आवंटित की गई ज़मीनों की जांच के लिए सीबीआई को आदेश भी दिया है. अख़बार के मुताबिक़ सीबीआई ने इस सिलसिले में अभी तक चार मामले भी दर्ज किए हैं.

जम्मू एंड कश्मीर स्टेट लैंड (वेस्टिंग ऑफ़ ऑनरशिप टू द ऑक्युपेंट्स) ऐक्ट, 2001 को रोशनी ऐक्ट के नाम से भी जाना जाता है. कहा जा रहा है कि कई प्रभावशाली राजनेताओं, कारोबारियों, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को इस क़ानून के तहत ज़मीन आवंटित कर फ़ायदा पहुंचाया गया है.

रोशनी ऐक्ट के तहत 20 लाख 60 हज़ार कनाल ज़मीन का आवंटन उनके कब्ज़ाधारियों को किया जाना था. ऐसी योजना थी कि इससे 25,448 करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा और ये रकम जम्मू और कश्मीर के ऊर्जा क्षेत्र में किया जाएगा. इस क़ाननू के तहत कुल 604,602 कनाल (जम्मू में 571,210 कनाल और कश्मीर में 33,392 कनाल) ज़मीन का आवंटन किया गया.

साल 2014 में सीएजी की रिपोर्ट में ये बात सामने आई कि 348,160 कनाल ज़मीन के बदले सरकारी खजाने में केवल 76.24 करोड़ रुपये ही जमा हुए जबकि ये रकम 317.54 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी. पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रोशनी ऐक्ट को साल 2018 में ख़त्म कर दिया था लेकिन हाई कोर्ट ने अक्टूबर में इस क़ानून को अवैध और असंवैधानिक करार दे दिया.

इलाहाबाद हाई कोर्ट

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'शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर एतराज़ के फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं'

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि देश के नागरिकों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हो.

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साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन पर आपत्ति जताने वाले पिछले दो फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं थे. इस ख़बर को हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता दी है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और विवेक अग्रवाल की दो जजों की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रहने वाले सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये कहा.

प्रियंका ने अपना धर्म परिवर्तन किया था और उनके पिता ने पुलिस में इस बाबत शिकायत की थी. पुलिस की कार्रवाई को निरस्त करने के लिए पति-पत्नी दोनों ने अदालत की शरण ली. अख़बार लिखता है कि यह फ़ैसला अदालत ने 11 नवंबर को ही दे दिया था लेकिन इसे सार्वजनिक सोमवार को किया गया है.

अख़बार के अनुसार अब जबकि उत्तर प्रदेश सरकार शादी के लिए धर्म परिवर्तन से जुड़ा एक क़ानून बनाने की योजना पर काम कर रही थी तो हाई कोर्ट का यह फ़ैसला उसके लिए समस्या पैदा कर सकता है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने एक भाषण के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही एक आदेश का उल्लेख करते हुए कहा था कि 'शादी-ब्याह के लिए धर्म-परिवर्तन आवश्यक नहीं है, नहीं किया जाना चाहिए और इसको मान्यता नहीं मिलनी चाहिए. सरकार भी निर्णय ले रही है कि हम लव-जिहाद को रोकने के लिए सख़्ती से कार्य करेंगे. एक प्रभावी क़ानून बनाएंगे.'

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला उसके दो पुराने फ़ैसलों के लिहाज से भी विरोधाभासी है जो साल 2014 और 2020 में एकल जज की बेंच ने सुनाए थे.

Lotay Tshering, भारत में भूटान के राजदूत, वेतसोप नामग्याल

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चीनी गांव को लेकर जारी विवाद

चीन के मीडिया ने सोमवार को दावा किया कि जिस सीमावर्ती गांव को उसने भूटान की सीमा पर बसाया गया गांव बताया था, वो चीन की सीमा में ही है. लेकिन जो तस्वीर जारी की गई है उसमें इसे दोनों देशों के बीच विवादित ज़मीन पर बसा दिखाया गया है.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने अपने पहले पन्ने पर इस ख़बर को प्रमुखता दी है. अख़बार ने ग्लोबल टाइम्स के हवाले से बताया कि पंगड़ा नामक गांव को नया नया बसाया गया है और सितंबर के महीने में यहां लोगों ने रहना भी शुरू कर दिया है. लेकिन जो तस्वीर अख़बार में छपी है उसमें इसे विवादित क्षेत्र में दिखाया गया है.

अभी पिछले हफ़्ते ही भूटान ने इस बात से इनकार किया था कि यह गांव उनके इलाके में पड़ता है. भारत में भूटान के राजदूत वेतसोप नामग्याल ने द हिंदू अख़बार को बताया था कि "भूटान के अंदर चीन का कोई गांव नहीं है."

ग्लोबल टाइम्स ने दक्षिण पश्चिम चीन में स्थित यादॉन्ग काउंटी के प्रशासन के हवाले से बताया कि यहां 27 घरों में 124 लोग रह रहे हैं. साथ ही यह भी बताया कि यह गांव काउंटी से 35 किलोमीटर दूर है.

चीन की मीडिया के मुताबिक इस गांव में 27 घर हैं और अलकतरे से बनी सड़कें हैं. साथ ही यहां एक चौराहा, ग्राम समिति, स्वास्थ्य केंद्र, पुलिस, बच्चों के स्कूल, सुपरमार्केट और प्लास्टिक रनवे मौजूद हैं.

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