शिवसेना-बीजेपी की लड़ाई मोहरों के बूते लड़ी जा रही है?

  • प्रवीण शर्मा
  • बीबीसी हिंदी के लिए
शिवसेना

इमेज स्रोत, Satyabrata Tripathy/Hindustan Times via Getty Imag

मुंबई को मायानगरी कहा जाता है और दशकों से पूरा देश इसके मायाजाल में बंधा हुआ है. लेकिन, कुछ वक़्त से मुंबई में राजनीति की एक ऐसी जंग चल रही है जिसे पूरा देश हैरत से देख रहा है.

इस खेल में सस्पेंस, ड्रामा, इमोशंस, एक्शन, नेता, पुलिस, मीडिया, ड्रग्स और यहां तक कि सिनेमा वाले कलाकार भी शामिल हैं.

राजनीति की इस जंग के दो मुख्य किरदार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और शिवसेना हैं.

2019 के आख़िर से शुरू हुई इस जंग की कड़ी में हालिया मसला महाराष्ट्र की शिवसेना की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार का वह फ़ैसला है जिसमें राज्य सरकार ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति को वापस ले लिया है.

ऐसे में अब सीबीआई को किसी भी मामले की जाँच से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी. हालांकि इस फ़ैसले का पहले से चल रही जाँचों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने पिछले बुधवार को इस क़दम का एलान किया.

टीआरपी घोटाले पर बवाल

इससे एक दिन पहले ही टीआरपी घोटाले की यूपी पुलिस की सीबीआई से जाँच कराने की माँग को मानते हुए केंद्र ने सीबीआई को आदेश दिया और इसके बाद यह जाँच सीबीआई के सुपुर्द कर दी गई.

दरअसल, 17 अक्तूबर को लखनऊ में टीआरपी से छेड़छाड़ की एक एफ़आईआर दर्ज हुई थी. इसके बाद यूपी पुलिस ने इस मामले को सीबीआई को सौंपने की माँग की थी.

लेकिन, इसमें पेचीदा बात यह है कि "टीआरपी घोटाले" की जाँच मुंबई पुलिस पहले से कर रही है.

मुंबई पुलिस

इमेज स्रोत, Getty Images

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह ने आठ अक्तूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी और दो अन्य चैनलों पर टीआरपी में छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था.

इसके बाद से राजनीति गर्मा गई. वैसे तो टीआरपी स्कैम से शिवसेना या बीजेपी का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए था. लेकिन, जिस दिन यूपी पुलिस से सीबीआई ने मामला अपने हाथ में लिया, उसी रात रिपब्लिक टीवी पर बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा नौ बजे की डिबेट में शामिल हुए. बहस इसी मसले पर थी.

लेकिन, सीबीआई को मंज़ूरी देने से रोकने का मामला क़ानूनी है या ये पूरी राजनीतिक जंग है?

महाराष्ट्र टाइम्स के सीनियर असिस्टेंट एडिटर विजय चोरमारे कहते हैं कि ये पॉलिटिकल गेम तो चल ही रहा है.

चोरमारे कहते हैं, "सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले को सीबीआई को देने का कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन राजनीतिक वजहों से इसे सीबीआई को दे दिया गया. अभी टीआरपी स्कैम वाले मामले में भी इस केस को महाराष्ट्र पुलिस के काम में अड़ंगा डालने और अपने लोगों को बचाने के लिए इसे सीबीआई को दिया गया है."

वरिष्ठ पत्रकार वेंकटेश केसरी कहते हैं, "ये जो पूरा इश्यू चल रहा है इसमें लीगल कुछ भी नहीं है. ये पूरी तरह से राजनीतिक मामला है. सुशांत केस में भी हमने ऐसा ही देखा था. ये क़ानूनी या तकनीकी मुद्दा नहीं है."

केसरी कहते हैं, "महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना साथ लड़े थे, लेकिन सरकार नहीं बन पाई. इसका ग़ुस्सा बीजेपी में है. बंगाल में चुनाव हैं, वहां भी केंद्र और राज्य में टकराव है. राजस्थान में भी बीजेपी ने हाल में सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया."

हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच चल रही कड़ी लड़ाई के बीच में ही हाल में बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना के संजय राउत की मुलाक़ात भी हुई है. दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे और नरेंद्र मोदी ने भी एक-दूसरे के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कड़ी टिप्पणी नहीं की है.

ऐसे में यह भी क़यास लगाए जा रहे हैं कि कहीं यह दुश्मनी ऊपर से दिखाने के लिए तो नहीं है और अंदरख़ाने आगे चलकर दोनों पार्टियों में संबंध ठीक हो सकते हैं.

हालांकि, चोरमारे कहते हैं, "ये दुश्मनी दिखावे वाली नहीं है. "

मोदी ठाकरे

इमेज स्रोत, PUNIT PARANJPE/AFP via Getty Images

कैसे बिगड़े दोनों पार्टियों के संबंध?

फ़्लैशबैक में जाएं तो महाराष्ट्र की इस दिलचस्प पटकथा की शुरुआत 24 अक्तूबर 2019 से होती है. उस दिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आए थे.

इन चुनावों में बीजेपी और शिवसेना साथ लड़े थे. दूसरी ओर, कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन था.

बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत लायक़ सीटें मिल गई थीं, लेकिन मुख्यमंत्री कौन बनेगा इसे लेकर मामला फँस गया.

ख़ैर, बीजेपी और शिवसेना की बात बन नहीं पाई. राज्य में कुछ दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लग गया.

चोरमारे कहते हैं, "बीजेपी और शिवसेना के बीच ढाई-ढाई साल की सहमति बनी थी, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने इसे मानने से इनकार कर दिया. इससे शिवसेना नाराज़ हो गई."

22 नवंबर 2019 की शाम एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने ऐलान किया था कि शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस में समझौता हो गया है और उद्धव ठाकरे अगले पाँच साल तक राज्य के सीएम रहेंगे.

ऐसे में बीजेपी ने दांव चला. 23 नवंबर, शनिवार को तड़के राष्ट्रपति शासन हटा और इसके तुरंत बाद राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी के अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी.

हालांकि, राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने न सिर्फ़ अपनी पार्टी को टूटने से बचा लिया, बल्कि वे अजीत पवार को मनाने और पार्टी में वापस लौटने के लिए राज़ी करने में भी सफल रहे.

शिवसेना बीजेपी

इमेज स्रोत, Getty Images

बीजेपी और शिवसेना के बीच वाक़ई में क्या चल रहा है?

इस पर वेंकटेश केसरी कहते हैं, "कोई भी राज्य सरकार केंद्र के साथ टकराव मोल नहीं लेती जब तक कि चीज़ें हद से आगे न बढ़ जाएं."

वे कहते हैं कि शिवसेना और बीजेपी में राज्य में नंबर वन पार्टी होने की लड़ाई है.

केसरी के मुताबिक़, "शिवसेना को अपने आप को नंबर वन पर रखना है, लेकिन वह नंबर दो बन गई है. दूसरी तरफ़, बीजेपी उसे याद दिलाती रहती है कि आप नंबर दो हैं."

वे कहते हैं, "हालांकि, शिवसेना को अगर बीजेपी मुख्यमंत्री की कुर्सी देने को राज़ी हो तो शायद दोनों पार्टियां साथ आ सकती हैं."

बीजेपी की आंतरिक राजनीति

फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ले ली लेकिन जब उन्हें लग गया कि वो बहुमत नहीं साबित कर पाएंगे तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली और अजीत पवार फिर से उपमुख्यमंत्री बन गए.

चोरमारे कहते हैं, "महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार के न बनने के पीछे बीजेपी की आंतरिक राजनीति भी वजह हो सकती है. सरकार बनाने के दौरान अमित शाह ने कोई दख़ल नहीं दिया."

वे कहते हैं कि केंद्र में बीजेपी अच्छे नेताओं को लाने की कोशिश के तहत फडणवीस को दिल्ली बुलाना चाहती है.

वे कहते हैं कि बिहार में जिस तरह से फडणवीस को चुनाव प्रचार की ज़िम्मेदारी दी गई है उसे इसी दिशा में एक क़दम माना जा सकता है.

चोरमारे कहते हैं कि शायद बीजेपी देवेंद्र फडणवीस को केंद्र में लाना चाहती है.

तब से आज तक महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और शिवसेना के बीच शह और मात का खेल चल रहा है.

बीजेपी-शिवसेना

इमेज स्रोत, INDRANIL MUKHERJEE/AFP via Getty Images

शिवसेना और बीजेपी में कब-कब ठनी?

राज्य में शिवसेना की एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी के साथ तनाव बढ़ना शुरू हो गया था. एक साल से भी कम वक़्त में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते अपने निचले स्तर पर पहुँच चुके हैं.

मौजूदा टीआरपी घोटाले में चल रही तनातनी के अलावा इस दौरान ऐसी कई दूसरी घटनाएं भी हुई हैं जिन पर दोनों पार्टियां खुलकर एक-दूसरे के विरोध में आ गईं.

पालघर मामला

इसी साल 16 अप्रैल को पालघर में दो साधुओं की लिंचिंग किए जाने का मसला भी बेहद गर्माया. बीजेपी ने इस मामले में उद्धव सरकार पर कड़ा हमला बोला. पालघर मामले की जाँच को लेकर पुलिस को कटघरे में खड़ा किया गया.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत

इसके बाद जून में एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से दोनों पार्टियों के बीच चीज़ें और बिगड़ती चली गई हैं.

सुशांत सिंह की मौत ख़ुदकुशी थी या हत्या, इसे लेकर दोनों पार्टियों को एक-दूसरे पर हमलावर होने का मौक़ा मिल गया.

चैनलों पर दिन-रात की बहस शुरू हो गई. सुशांत की गर्लफ्रेंड रहीं रिया चक्रवर्ती पर हत्या के आरोप लगे. साथ ही मुंबई पुलिस की मामले की जाँच के तौर-तरीक़ों पर भी ज़बरदस्त तरीक़े से सवाल खड़े किए गए.

सुशांत राजपूत

इमेज स्रोत, PRATHAM GOKHALE/HINDUSTAN TIMES VIA GETTY IMAGES

सीबीआई को मामला सौंपने पर विवाद

मामला तब फिर फँस गया जब बिहार पुलिस ने सुशांत की मौत के मामले में एक एफ़आईआर दर्ज कर ली. बिहार पुलिस क्या इस मामले की जाँच कर सकती है या नहीं- इसे लेकर ख़ूब बवाल मचा. तब के बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के बयान भी ख़ूब सुर्ख़ियों में रहे.

इसके बाद बिहार पुलिस ने मामला सीबीआई को सौंपने की सिफ़ारिश की और केंद्र सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया.

महाराष्ट्र सरकार ने इस पर कड़ी आपत्ति की थी और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था. हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे सीबीआई को सौंपने पर अपनी मुहर लगा दी.

शिवसेना, कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को लगता है कि बीजेपी की केंद्र सरकार अपने राजनीतिक फ़ायदे और विरोधियों को फँसाने के लिए सीबीआई, ईडी और दूसरी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.

ड्रग्स और बॉलीवुड की बदनामी

सुशांत मामले में जब रिया चक्रवर्ती पर हत्या करने जैसे आरोप साबित नहीं हो सके तो ड्रग्स को लेकर जाँच चलने लगी. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने रिया, उनके भाई और कुछ अन्य लोगों को एनडीपीएस एक्ट में गिरफ़्तार कर लिया.

इसके अलावा, दीपिका पादुकोण, सारा अली ख़ान, श्रद्धा कपूर और रकुल प्रीत सिंह जैसी बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस से ड्रग्स चैट को लेकर पूछताछ की.

इसे लेकर "बॉलीवुड को बदनाम करने" और "फ़िल्म इंडस्ट्री से ड्रग्स का सफ़ाया करने" जैसे दो मसलों पर एक तरफ़ शिवसेना खड़ी थी तो दूसरी तरफ़ बीजेपी. मामला संसद में भी ख़ूब गर्माया.

इससे पहले 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जाँच केंद्रीय एजेंसी एनआईए को सौंपने को लेकर शिवसेना और बीजेपी आमने-सामने आ गई थीं.

भीमा कोरेगांव

भीमा कोरेगांव की जाँच

महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले के अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र की समीक्षा के लिए की गई बैठक के एक दिन बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले की जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी थी.

केंद्रीय गृह मंत्रालय के इस फ़ैसले के बाद महाराष्ट्र सरकार और केंद्र में विवाद पैदा हो गया था.

31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में लोगों को कथित रूप से उकसाने के लिए नौ कार्यकर्ताओं और वकीलों को महाराष्ट्र पुलिस ने 2018 में गिरफ़्तार किया था.

राज्य सरकार ने संकेत दिए थे कि यदि पुणे पुलिस आरोपों को साबित करने में विफल रही तो मामला एक विशेष जाँच दल (एसआईटी) को सौंपा जा सकता है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पिछली भाजपा सरकार ने अभियुक्तों को फँसाने की साज़िश रची थी इसलिए इस मामले की समीक्षा होनी चाहिए.

लेकिन, केंद्र ने यह मामला एनआईए को सौंप दिया और इससे शिवसेना और बीजेपी के बीच विवाद पैदा हो गया था.

शिवसेना

इमेज स्रोत, Kunal Patil/Hindustan Times via Getty Images

कौन से राज्य सीबीआई जाँच से कर चुके हैं इनकार

सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगातार केंद्र पर लगते रहे हैं. इन्हीं आरोपों का हवाला देते हुए पहले भी कई राज्य अपने यहां सीबीआई को जाँच करने से रोक चुके हैं.

हाल में ही, राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार ने 19 जुलाई को अपने यहां सीबीआई की जाँच की अनुमति वापस ले ली थी. उस वक़्त कांग्रेस में सचिन पायलट की बग़ावत चल रही थी.

पश्चिम बंगाल ने नवंबर 2018 में इसी तरह की अनुमति से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे. लेकिन, तब कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा था कि भले ही जीसी (जनरल कंसेंट) वापस ले लिया जाए, लेकिन सीबीआई केंद्रीय अफ़सरों की जाँच कर सकती है.

पंजाब सरकार भी 2018 में सीबीआई की जाँच को अनुमति देने से मना कर चुकी है.

छत्तीगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने भी जनवरी 2019 में सीबीआई को अपने यहां जाँच करने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया था. राज्य ने जीसी वापस ले लिया था.

यह भी पढ़ें:

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)