बिहार में रोज़ 10 लाख रोज़गार देने का नीतीश का दावा कितना सच - फ़ैक्ट चेक
- टीम बीबीसी हिंदी
- नई दिल्ली
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र पहली वर्चुअल रैली की.
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का दावा था कि इस रैली को राज्य में 25 लाख से अधिक लोगों ने देखा.
'निश्चय संवाद' नाम की इस रैली को नीतीश कुमार और पार्टी के फ़ेसबुक अकाउंट, ट्विटर हैंडल के अलावा jdulive.com के ज़रिए भी प्रसारित किया गया.
रैली के बाद सबसे पहले तो बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रैली में 25 लाख लोगों के हिस्सा लेने के दावे पर सवाल खड़े किए.
नीतीश कुमार के दावों की हक़ीक़त?
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जेडीयू ने दावा किया कि उसकी वर्चुअल रैली को विभिन्न माध्यमों के ज़रिए 25 लाख से अधिक लोगों ने देखा है.
हालांकि, नीतीश कुमार के ट्विटर हैंडल से इसे अब तक 50 हज़ार से अधिक लोग, फ़ेसबुक पेज से 3.81 लाख से अधिक लोग, जनता दल यूनाइटेड के ट्विटर हैंडल से 2 हज़ार से अधिक लोग और फ़ेसबुक पेज से 3.27 लाख से अधिक लोग इस वर्चुअल रैली को देख चुके हैं.
कुल मिलाकर यह संख्या 10 लाख भी नहीं पहुंचती है. वैसे जेडीयू का दावा है कि उसके jdulive.com वेबसाइट के ज़रिए भी लोगों ने इस वर्चुअल रैली को देखा है.
10 लाख रोज़गार रोज़ाना?
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने 2 घंटे 53 मिनट के भाषण में अपने 15 साल के कार्यकाल का ब्यौरा देते हुए कहा कि कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन से बेरोज़गारी बढ़ी है.
पर नीतीश कुमार ने साथ ही कहा, "रोज़गार के मामले में राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के द्वारा 5,60,246 योजनाओं में 14,71,50,481 मानव दिवसों का सृजन किया गया है."
उन्होंने कहा, "अप्रैल महीने के बाद से ही मनरेगा और दूसरी योजनाओं में काम शुरू हुआ जिसके बाद औसतन प्रतिदिन लगभग 10 लाख लोगों को काम मिल रहा है."
अगर मुख्यमंत्री के इस आंकड़े को देखें तो उन्होंने पहले ही साफ़ किया था कि 14 करोड़ से अधिक कार्यदिवस बनाए गए यानी उन्होंने मनरेगा समेत राज्य की विभिन्न योजनाओं के ज़रिए रोज़ाना दिए जा रहे कामों के हवाले से 10 लाख का आंकड़ा पेश किया.
1 अप्रैल से 6 सितंबर तक 158 दिन होते हैं अगर इन दिनों के दौरान 14,71,50,481 रोज़गार दिए गए तो इस हिसाब से प्रतिदिन 9,31,332 रोज़गार दिए गए.
इन आंकड़ों के हिसाब से मुख्यमंत्री ने कहा कि रोज़ाना 10 लाख लोगों को रोज़गार मिल रहा है.
हालाँकि, क्या इसमें अब भी रोज़ाना 10 लाख लोग जुड़ रहे हैं, उन्होंने यह साफ़ नहीं किया.
बिहार में मनरेगा की स्थिति
मनरेगा के तहत किसी भी कार्ड होल्डर को साल में 100 दिन काम देना अनिवार्य है. नए वित्त वर्ष में अप्रैल के बाद से 83 लाख से अधिक नए मनरेगा कार्ड जारी हुए हैं जो 7 साल में एक रिकॉर्ड है.
इन नए कार्डों में सबसे अधिक 21.09 लाख उत्तर प्रदेश में बने हैं तो वहीं उसके बाद बिहार का नंबर है जहां पर 11.22 लाख नए मनरेगा कार्ड जारी हुए हैं.
मनरेगा पर नज़र रखने वाली संस्था पीपल्स एक्शन फ़ॉर एम्पलॉयमेंट गारंटी के अनुसार, बिहार में 41 लाख से अधिक मनरेगा के कार्डधारक हैं जिनमें से इस साल सिर्फ़ 34.3 लाख कार्डधारकों को ही काम मिला यानी कि 18 फ़ीसदी कार्डधारकों को काम नहीं मिला.
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह साफ़ नहीं किया कि लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों से वापस लौटे तकरीबन 20 लाख मज़दूरों के लिए किन कामों का बंदोबस्त किया गया है. उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि जो लोग बाहर से लौटे हैं उनके लिए रोज़गार सृजन के बहुत से काम हो रहे हैं.
उन्होंने कहा, "हर ज़िले में '7 निश्चय' योजना के अंतर्गत ज़िला निबंधन एवं परामर्श केंद्र बनाए गए हैं इसमें 1 लाख 64 हज़ार 153 लोगों का अनुबंधन किया गया है और राज्य की विभिन्न योजनाओं से 53,452 लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराया गया है."
यानी वापस लौटे 20 लाख लोगों में से सिर्फ़ 53,452 लोगों को ही रोज़गार मिल पाया है.
वहीं, CMIE (सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) की अगस्त की रिपोर्ट के अनुसार बिहार बेरोज़गारी के मामले में देश में दूसरे पायदान पर पहुंच गया है जो कि अप्रैल में पांचवें पायदान पर था.
अप्रैल के मुक़ाबले अगस्त में बिहार का बेरोज़गारी का प्रतिशत 46.6 फ़ीसदी से घटकर 13.4 फ़ीसदी हो गया है.
लेकिन इसके साथ ही अप्रैल में बेरोज़गारी के मामले में पूरे देश में जो बिहार पांचवें पायदान पर था वह अब दूसरे स्थान पर आ गया है. जो बताता है कि बिहार में बेरोज़गारी की समस्या गंभीर बनी हुई है.
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