पुराने वाहनों के निपटान के लिए केंद्र सरकार व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लाने की तैयारी कर रही है। इस संदर्भ में सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने प्रस्ताव पेश किया है, जिस पर कैबिनेट की ओर से विचार किया जा रहा है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल से पुरानी डीजल और 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों के दिल्ली-एनसीआर में चलने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से ही इस पॉलिसी पर विचार किया जा रहा था। पुराने वाहनों के निपटान को लेकर भारत में अब तक कोई स्पष्ट नीति नहीं है।

सरकार का कहना है कि नई नीति बनने के बाद सभी तरह के वाहन इसके दायरे में आएंगे। बीते साल केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस नीति के लागू होने के बाद भारत ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकेगा। इसकी वजह यह है कि वाहनों में स्क्रैपिंग स्टील, अल्युमिनियम और प्लास्टिक लग सकेगा। इससे लागत भी 20 से 30 पर्सेंट तक कम हो सकेगी। आइए जानते हैं, दुनिया भर में बेकार हुई पुरानी गाड़ियों का कैसे होता है निपटारा…

US का प्रोग्राम ऑफ क्लंकर्स: अमेरिका और ब्रिटेन में पुराने और ज्यादा फ्यूल खर्च करने वाले वाहनों को नए वाहनों से बदलने के लिए 2009 में एक पॉलिसी लाई गई थी। इसके पीछे दोनों देशों का उद्देश्य मोटर इंडस्ट्री की सेल को बढ़ाना और इमिशन को काबू करना था। अमेरिका में यह प्रोग्राम ‘कैश फॉर क्लंकर्स’ कहलाया जिसमें लोगों को 7.7 किलोमीटर माइलेज वाले पुराने वाहनों को बदले 2500 डॉलर से 4500 डॉलर के बीच दिए जाते थे।

UK में मिलता है इंसेंटिव: ब्रिटेन ने कार मालिकों को पुराना वाहन बदलने और नया खरीदने के लिए 2000 पाउंड का इंसेंटिव दिया, लेकिन यह स्कीम ज्यादा फ्यूल इफिशिएंट वाहन के लिए ही थी। हाउस ऑफ कॉमंस लाइब्रेरी में दिए गए व्हीकल स्क्रैपेज स्क्रीम ब्रीफिंग पेपर के मुताबिक इसी योजना के तहत 4 लाख लोगों के क्लेम को सबमिट किया गया।

चीन में दो बार आई है पॉलिसी: बीजिंग में प्रदूषण फैलाने वाली कारों को खत्म करने के लिए दो बार इंसेंटिव पॉलिसी लाई गई है। 2011 में नीति लाई गई थी, जिसमें 1995 या उससे रजिस्टर हुए वाहनों का टारगेट किया गया था। तब लोगों को पुराने वाहनों को बदलने पर 350 डॉलर से लेकर 2,300 डॉलर तक की रकम दी जाती थी।

पुरानी गाड़ियों के पार्ट्स होते हैं रिसाइकल: इसके बाद 2014 में बीजिंग में उन कारों को स्क्रैप करने के लिए नई पॉलिसी लाई गई, जो फ्यूल स्टैंडर्ड्स और प्रदूषण के मानकों को पूरा नहीं करती थीं। उस वक्त ऐसी गाड़ियों की संख्या 3,30,000 के करीब थी। अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में वाहनों के 80 से 90 फ़ीसदी पार्ट्स को रिसाइकल करने के लिए गाइडलाइंस है। एंड ऑफ लाइफ रेगुलेशन मैन्युफैक्चरर्स को वाहन के फाइनल डिस्पोजल की जिम्मेदारी देता है।