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राफेल सौदा: कैग की रिपोर्ट, दसॉल्ट और एमबीडीए ने पूरा नहीं किया ऑफसेट करार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Amit Mandal Updated Thu, 24 Sep 2020 07:06 AM IST
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Rafale India Deal News CAG raised questions, said- Offset conditions not fulfilled
राफेल इंडिया: राफेल विमान
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने बुधवार को संसद में पेश रिपोर्ट में भारत को अत्याधुनिक तकनीक के ऑफसेट करार अभी तक पूरा न करने पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन और यूरोपीय मिसाइल निर्माता कंपनी एमबीडीए की खिंचाई की है। 36 राफेल विमानों की खरीद में तकनीक का हस्तांतरण अहम मुद्दा था। तकनीक डीआरडीओ को हस्तांतरित होनी थी और इसका इस्तेमाल हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिए जेट इंजन बनाने में किया जाना है। दसॉल्ट एविएशन राफेल विमानों की निर्माता कंपनी है जबकि एमबीडीए विमान के लिए मिसाइल सिस्टम की आपूर्तिकर्ता है।



संसद में पेश रिपोर्ट में कैग ने भारत की ऑफसेट नीति की प्रभावकारिता की गंभीर तस्वीर पेश की। इसमें कहा गया कि विदेशी वेंडरों का एक भी ऐसा मामला नहीं मिला जिसमें भारतीय उद्योग को तकनीक हस्तांतरित की गई होगा। विदेशी निवेश हासिल करने वाले 63 सेक्टरों में से रक्षा क्षेत्र 62वें नंबर पर है। रिपोर्ट में कहा गया, 36 मीडियम मल्टी कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से संबंधित ऑफसेट अनुबंध में वेंडरों मेसर्स दसॉल्ट एविएशन और एमबीडीए ने डीआरडीओ को अत्याधुनिक तकनीकी की प्रारंभिक पेशकश कर अपने ऑफसेट करार का 30 प्रतिशत पूरा करने का प्रस्ताव किया था।


कैग के अनुसार, डीआरडीओ इस तकनीक का इस्तेमाल हल्के लड़ाकू विमान के लिए स्वदेश में ही विकसित इंजन कावेरी के लिए करना चाहता है लेकिन अभी तक वेंडर ने तकनीक हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की। पांच राफेल विमानों का पहला बैच 29 जुलाई को भारत पहुंचा था। करीब चार साल पहले भारत ने फ्रांस से 59,000 करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों की खरीद का सौदा किया था। इसके तहत कुल लागत का कम से कम 30 फीसदी खर्च कर कंपोंनेट की खरीद करनी थी या अनुसंधान और डेवलपमेंट सुविधाएं स्थापित करनी थी।
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दरअसल, जब सरकार किसी दूसरे देश की कंपनी से बड़ा करार करती है तो, कुछ भारतीय कंपनियों के साथ समझौता होता है। इन्हें ऑफसेट पार्टनर कहा जाता है यानी इन कंपनियों को वह विदेशी जिससे कुछ खरीदा जा रहा है या करार हो रहा है, वह अलग-अलग किस्म के काम देगा। यह नियम 300 करोड़ रुपये से अधिक की सभी खरीद पर लागू होता है। कैग ने कहा, वेंडर अपने ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहे। रक्षा मंत्रालय को ऑफसेट नीति की समीक्षा करने और लागू करने की आवश्यकता है।
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कैग ने कहा, 2005 से मार्च 2018 तक 66,427 करोड़ रुपये के 48 ऑफसेट करार विदेशी वेंडरों से हुए और दिसंबर 2018 तक 19,223 करोड़ की कीमत के ऑफसेट देश में होने थे लेकिन इनमें से मात्र 11,396 करोड़ रुपये ही आए जा ेकि प्रतिबद्धता का मात्र 59 फीसदी ही है।

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