इसराइल और यूएई की दोस्ती के मायने क्या हैं? ईरान की राह मुश्किल
इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात ने आपसी संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एक समझौता किया है, इसके साथ ही इसराइल ने वेस्ट बैंक में अपने कब्ज़े वाले हिस्सों की विवादास्पद योजनाओं को निलंबित करने पर सहमति ज़ाहिर की है.
बताया जा रहा है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के बीच बातचीत करवाई है.
उन्होंने ही एक 'आश्चर्यजनक' बयान में इसकी घोषणा की, उन्होंने दोनों देशों के समझौते को 'ऐतिहासिक' बताया और कहा कि 'यह शांति की दिशा में एक बड़ी सफ़लता है.'
अब तक इसराइल के अरब देशों के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं रहे हैं. लेकिन ईरान से जुड़ी चिंताओं ने इन दोनों देशों के बीच अब एक 'अनौपचारिक संपर्क' को जन्म दिया है.
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस समझौते से फ़लस्तीनी नेता कथित तौर पर हैरान हैं.
राष्ट्रपति महमूद अब्बास के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह सौदा 'राजद्रोह' से कम नहीं है और संयुक्त अरब अमीरात में मौजूद फ़लस्तीनी राजदूत को वापस बुलाया गया है.
वहीं राष्ट्रपति ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू और अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद अल-नाह्यान के बीच समझौते को 'वास्तव में एक ऐतिहासिक क्षण' कहा है.
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1948 में इसराइल बनने के बाद से यह सिर्फ़ तीसरा इसराइल-अरब शांति समझौता है. इससे पहले मिस्र ने 1979 में और जॉर्डन ने 1994 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
प्रेस से बात करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, "अब जब 'बर्फ़' पिघल ही गई है तो मुझे उम्मीद है कि कुछ और अरब-मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात का अनुसरण करेंगे." उन्होंने बताया कि आने वाले हफ़्तों में व्हाइट हाउस में इसके लिए एक हस्ताक्षर समारोह रखा जाएगा.
इससे पहले, राष्ट्रपति ट्रंप के घोषणा वाले ट्वीट के जवाब में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हिब्रू में लिखा था: 'ऐतिहासिक दिन.'
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विदेश नीति की जीत?
एक टीवी संबोधन में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि उन्होंने 'वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करने की योजना' को फ़िलहाल स्थगित कर दिया है, लेकिन इस योजना से जुड़े दस्तावेज़ उनकी 'मेज़ पर रखे रहेंगे.'
अगर इसराइल इस योजना पर अभी आगे बढ़ता तो वेस्ट बैंक के कुछ हिस्से आधिकारिक रूप से इसराइल के कब्ज़े में आ सकते थे.
दरअसल, वेस्ट बैंक में बनाई गईं यहूदी बस्तियों को लेकर इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच विवाद बना रहा है. वेस्ट बैंक की छोटी सी ज़मीन पर क़रीब 30 लाख लोग रहते हैं जिनमें 86 फ़ीसदी (लगभग 25 लाख) फ़लस्तीनी और 14 फ़ीसदी (4,27,800) इसराइली बस्तियों के लोग हैं.
अधिकतर इसराइली बस्तियाँ 70, 80 और 90 के दशक में बसाई गईं, लेकिन बीते 20 सालों में उनकी जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है. वहीं फ़लस्तीनी अपने क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक, पूर्वी यरूशलम और ग़ज़ा पट्टी को मिलाकर अपना एक देश बनाना चाहते हैं.
संयुक्त अरब अमीरात से समझौते के बाद प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि 'यहूदिया और समारिया (वेस्ट बैंक के क्षेत्र) में अमरीकी सहयोग से हमारी संप्रभुता को लागू करने की मेरी योजना में कोई बदलाव नहीं आया है. मैं इसके लिए प्रतिबद्ध हूँ. यह बदला नहीं है. मैं आपको याद दिलाता हूँ कि मैंने ही इस मुद्दे को बतौर पीएम उठाया और मैं विश्वास दिलाता हूँ कि ये मुद्दा मेरी टेबल पर बना रहेगा.'
नेतन्याहू ने कहा है कि वो ऊर्जा, जल और पर्यावरण संरक्षण समेत कई अन्य क्षेत्रों में संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिलकर काम करेंगे. साथ ही इसराइल कोरोना वायरस वैक्सीन विकसित करने में यूएई के साथ सहयोग करेगा.
बताया गया है कि आने वाले हफ़्तों में इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात के प्रतिनिधिमंडल निवेश, पर्यटन, सीधी उड़ानों, सुरक्षा, दूरसंचार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, संस्कृति, पर्यावरण, पारस्परिक दूतावासों की स्थापना और अन्य क्षेत्रों में आपसदारी स्थापित करने के लिए द्विपक्षीय सौदों पर हस्ताक्षर करेंगे. यह कार्यक्रम अमरीकी में आयोजित होने की संभावना है.
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विश्लेषकों का विचार है कि इस समझौते का मतलब राष्ट्रपति ट्रंप के लिए 'एक विदेश नीति की जीत' हो सकता है, जो नवंबर में फिर से चुनाव में उतरने वाले हैं और प्रधानमंत्री नेतन्याहू को व्यक्तिगत रूप से बढ़ावा देंगे, जो कथित भ्रष्टाचार के मामले में मुक़दमे का सामना कर रहे हैं.
कोरोना वायरस महामारी के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति के लिए ये दोनों नेता आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं और इनकी साख ख़राब हुई है. साथ ही इसराइल में वेस्ट बैंक पर कब्ज़े के हिमायती लोगों ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू की ताज़ा घोषणा पर ग़ुस्सा व्यक्त किया है.
वहीं अमरीका में संयुक्त अरब अमीरात के राजदूत यूसेफ़ अल-ओतैबा ने कहा कि 'इसराइल के साथ समझौता एक कूटनीतिक जीत है. इससे अरब और इसराइल के संबंध निश्चित रूप से आगे बढ़ पाएंगे जिससे तनाव कम होगा और परिवर्तन की नई सकारात्मक ऊर्जा बनेगी.'
ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार जेरेड कुशनर ने कहा है कि 'उन्हें नहीं लगता कि इसराइल अमरीकी के साथ चर्चा किए बिना वेस्ट बैंक पर कोई भी क़दम उठाएगा.' उन्होंने कहा कि उन्हें इसराइल और यूएई के बीच 'बहुत जल्दी' संपर्क स्थापित होने की उम्मीद है.
बड़ा क़दम - पर कुछ सवाल बाकी
बीबीसी के डिफ़ेंस संवाददाता जोनाथन मार्कस का नज़रिया है कि पूर्ण राजनयिक संबंधों की स्थापना; दूतावासों का आदान-प्रदान; और इसराइल-यूएई के बीच सामान्य व्यापार संबंध एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक क़दम है, लेकिन इस बारे में अनिवार्य रूप से कुछ सवाल उठाते हैं.
क्या इस समझौते का पूरा वादा साकार हो पाएगा? और क्या अन्य खाड़ी देश भी इसी तरह का रास्ता अपना सकते हैं?
यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि इस समझौते में क्या नहीं है. यह फ़लस्तीनियों के सवाल को हल करने की व्यापक शांति योजना से दूर है जिसे राष्ट्रपति ट्रंप ने लंबे समय तक बढ़ावा दिया है. हालांकि, इसमें सभी पक्षों के लिए कुछ अल्पकालिक लाभ छिपे हैं.
मसलन, व्हाइट हाउस ने इसकी घोषणा पहले की और अब यह समझा जा रहा है कि यह राष्ट्रपति ट्रंप की मामूली ही सही, पर एक राजनयिक जीत है, वो भी ऐसे समय में जब उनके लिए आगामी राष्ट्रपति चुनाव बहुत आसान नहीं दिख रहा.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू संयुक्त अरब अमीरात के साथ इस 'शांति पहल' को कुछ इस तरह से देख सकते हैं कि अगर वे आगे इसराइल के आम चुनाव में भाग लेते हैं तो उनकी संभावना बढ़ सकती है.
संयुक्त अरब अमीरात के लिए, यह कहना कठिन है कि उन्हें इसका तात्कालिक लाभ क्या हैं.
हालांकि, अमरीका के साथ उसके संबंध मज़बूत होंगे और इसराइल के साथ समझौते से उसे महत्वपूर्ण आर्थिक, सुरक्षा और वैज्ञानिक लाभ मिल सकते हैं.
कुल मिलाकर यह एक ऐसा समझौता है जो संभावित रूप से पहले दिखाई देने की तुलना में अधिक या कम, दोनों तरह के नतीजे पेश कर सकता है. और जहाँ तक फ़लस्तीनियों का सवाल है, तो इस ख़बर को हताशा के अलावा किसी और तरह से देख पाना उनके लिए मुश्किल है, क्योंकि उन्हें फिर से एक ओर धक्का दिया गया है.
किसने क्या प्रतिक्रिया दी?
यूके के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि वेस्ट बैंक में कब्ज़े की कार्यवाही आगे ना बढ़े, यह अच्छी बात है और इसराइल-यूएई के इस समझौते से मध्य-पूर्व में शांति बहाल करने में मदद मिलेगी.
मिस्र के राष्ट्रपति ने भी इस डील का स्वागत किया है, वहीं जॉर्डन के विदेश मंत्री अयमान सफ़ादी ने कहा है कि इस समझौते से रुकी हुए शांति समझौतों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
लेकिन फ़लस्तीन के एक वरिष्ठ अधिकारी, हनान अशरावी ने इस डील की यह कहते हुए निंदा की है कि 'यूएई इसराइल के साथ अपने गुप्त संबंधों और सौदों पर अब खुलकर सामने आ गया है.' उन्होंने प्रिंस मोहम्मद को कहा: "तुम्हारे ये 'दोस्त' बस कहीं तुम्हें बेच ना दें."
ईरान की तसनीम न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, ईरान के रेवोलूश्नरी गार्ड्स ने इस समझौते को 'शर्मनाक' बताया है और ग़ज़ा और हमास में सक्रिय मिलिटेंट संगठनों ने भी इस डील को 'अपने लोगों की पीठ में छुरा घोपने जैसी हरक़त' करार दिया है.
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