दुनिया का सबसे छोटा और दुर्लभ सूअर लॉकडाउन में
६ अगस्त २०२०भारत में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू बुखार के संक्रमण के पहले मामले के सामने आने के कारण पिग्मी सूअरों के साथ ऐसा किया गया है. इस बीमारी का ना कोई इलाज है और ना ही कोई टीका बना है. अफ्रीकी स्वाइन फ्लू एक बहुत ही ज्यादा संक्रामक बीमारी है जिसमें जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा होता है. असम के सरकारी पशुपालन विभाग के एक अधिकारी प्रदीप गोगोई बताते हैं कि इस वायरस ने अब तक करीब 16,000 पालतू सूअरों की जान ले ली है.
अब वायरस का खतरा इन शर्मीले केवल 10-इंच लंबे पिग्मी हॉग्स तक पहुंच गया है. इस प्रजाति का प्राकृतिक आवास तो बहुत पहले ही छिन गया था और सन 1960 के दशक में इन्हें लुप्त मान लिया गया था. लेकिन हाल के दशकों में एक कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम और कई अन्य संरक्षण प्रयासों के तहत सूअरों की इस खास स्पीशीज को वापस लाया जा सका है. फिलहाल ऐसे 300 पिग्मी हॉग्स हैं जिन्हें असम के अलग अलग हिस्सों में रखा गया है. अब वायरस के चलते अभी भी खतरे में पड़ी इस किस्म के फिर से खत्म होने का खतरा मंडराने लगा है.
भारत में कितना खतरा
भारत में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के मामले की पुष्टि 18 मई को हुई थी. इसके बाद से ही ब्रीडिंग सेंटरों को एक तरह से लॉकडाउन में रखा जाने लगा और कई सावधानियां बरती जाने लगीं. इस बारे में बताते हुए पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम के प्रमुख पराग डेका कहते हैं, "यह बहुत डरावना है. इससे पूरी की पूरी आबादी मिट सकती है.'' पिग्मी हॉग्स को बचाने वाला यह कार्यक्रम भारतीय प्रशासन, स्थानीय गैर-लाभकारी संस्था अरण्यक और ब्रिटेन की संस्था डरेल वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट मिल कर चलाते हैं.
यह वायरस सूअरों के बीच सीधे संपर्क, संक्रमित मीट या संक्रमित चीजों से फैलता है. ब्रिटेन के पियरब्राइट इंस्टीट्यूट में इस वायरस पर रिसर्च करने वाली लिंडा डिक्सन ने बताया कि इसकी अब तक कोई वैक्सीन नहीं बनी है और पहला टीका आने में कम से कम दो से तीन साल का वक्त लग जाएगा. डिक्सन बताती हैं कि फिलहाल सच यह है कि जिस भी सूअर को यह वायरस लगा उसका मरना तय है यानि ये जंगली या पालतू किसी भी सूअर की पूरी पूरी आबादी मिटा सकता है.
कैसा है पिग्मी हॉग्स का लॉकडाउन
असम में राजधानी गुवाहाटी और एक अन्य जगह नामेरी में स्थित ब्रीडिंग सेंटर में 82 पिग्मी सूअर रख गए हैं. यहां इन्हें सुरक्षित रखने के लिए दो समानांतर सुरक्षा बाड़ें खड़ी की गई हैं. आम लोगों को इन्हें देखने जाने की अनुमति नहीं है और इन केंद्रों पर कार तक पार्क नहीं की जा सकती. इनकी देखभाल करने वाले जो स्टाफ के सदस्य कैंपस के बाहर रहते हैं उन्हें भी आने के बाद अपने जूते बाहर छोड़ने होते हैं, फिर स्नान करना होता है, हाथ पैर धोकर, पैरों को एंटी-वायरल तरल में डुबोने के बाद नए जूते पहन कर ही वे अंदर जा सकते हैं.
पिग्मी हॉग उन गिने चुने स्तनधारी जीवों में आते हैं जो अपने और परिवार के रहने के लिए सूखी घास के शानदार घोंसले बनाते हैं. ऐसा करने वाली ये सूअरों की एकलौती प्रजाति है. इस इलाके में जंगली भालुओं में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू का संक्रमण पहुंचने के कारण पिग्मी के केयरटेकर्स काफी चिंता में हैं. ऊपर से विश्व भर में कोरोना वायरस की महामारी के कारण इनकी फंडिंग में भी काफी गिरावट आई है.
आरपी/सीके (एपी)
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