बिहार की ये तस्वीरें नीतीश सरकार के कामकाज पर उठाती हैं गंभीर सवाल

  • नीरज प्रियदर्शी
  • पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए
टूटा हुआ पुल

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बिहार में किसकी सरकार है? सरकार में बैठे लोगों से यह पूछने पर जवाब मिलता है 'सुशासन की सरकार.'

वहीं विपक्ष के नेताओं से जवाब उल्टा मिलता है. कोई कहता है भ्रष्ट सरकार है, कोई कहता है डबल इंजन की सरकार है, कोई कुछ भी कह देता है.

लेकिन पिछले तीन दिनों से बिहार के अलग-अलग ज़िलों से जो तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जो बता रहीं हैं कि बिहार में सबकुछ अच्छा नहीं है.

एक ओर जहाँ बिहार में कोरोना वायरस का विस्फोट हो चुका है और पिछले तीन दिनों से रोज़ाना हज़ार से ज़्यादा नए मामले आ रहे हैं, अस्पतालों में बेड की कमी हो गई है.

वहीं दूसरी ओर बाढ़ ने भी बिहार में तबाही मचानी शुरू कर दी है. उत्तरी बिहार और कोसी क्षेत्र के इलाक़ों के सैकड़ों गाँवों में बाढ़ का पानी घुस गया है.

ऐसे वक़्त में जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वो स्थिति की भयावहता को बयान करती हैं.

बह गया 'पुल' का एप्रोच रोड

पुल

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पहली तस्वीर बिहार के गोपालगंज ज़िले से है जिसमें नवनिर्मित पुल का एप्रोच रोड टूटा हुआ दिखाई देता है.

रिकॉर्ड्स के मुताबिक़, गंडक नदी के ऊपर गोपालगंज के सत्तरघाट के पास बने इस पुल का उद्घाटन इसी साल 16 जून को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए किया था.

209.39 करोड़ की लागत से बने पुल के उद्घाटन के महज़ 29 दिन बाद ही इसका एप्रोच रोड टूट गया है. पुल पर आवागमन बंद है.

गोपालगंज के डीएम अरशद अज़ीज़ ने बीबीसी को बताया, "गंडक में पानी का दबाव ज़्यादा हो जाने की वजह से एप्रोच रोड टूटा है. पुल को किसी तरह की क्षति नहीं हुई है. कटाव और अधिक न हो इसके लिए उपाय कर दिए गए हैं."

गोपालगंज, छपरा, सिवान आदि को उत्तर बिहार से जोड़ने वाले इस पुल के एप्रोच रोड के इतनी जल्दी टूट जाने पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार पर भ्रष्टाचारी होने का इल्ज़ाम लगाया है.

उनका कहना है, "263 करोड़ से आठ साल में बना लेकिन मात्र 29 दिनों में ही ढह गया पुल. संगठित भ्रष्टाचार के भीष्म पितामह नीतीश जी इस पर एक शब्द नहीं बोलेंगे और ना ही साइकिल से रेंज रोवर की सवारी कराने वाले भ्रष्टाचारी सहपाठी पथ निर्माण मंत्री को बर्खास्त करेंगे. बिहार में चारों ओर लूट ही लूट मची है."

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इस पुल के शिलान्यास के समय अप्रैल 2012 में भी मुख्यमंत्री ख़ुद यहाँ आए थे और कहा था कि चार सालों में पुल बनकर तैयार हो जाएगा. लेकिन उद्घाटन आठ साल बाद 2020 में हुआ.

विपक्ष के आरोपों पर बीबीसी ने सरकार के पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव से भी बात की.

वो कहते हैं, "राजद झूठा प्रोपेगैंडा फैला रहा है जबकि पुल को कुछ हुआ भी नहीं. पुल से क़रीब 2 किलोमीटर पहले के एप्रोच रोड को थोड़ा सा नुक़सान पहुँचा है. वो भी तीन से चार दिनों के अंदर दुरुस्त कर लिया जाएगा."

मेडिकल स्टोर के गेट पर मर गया कोरोना का मरीज़

मरा हुआ आदमी

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सोशल मीडिया पर बिहार की एक और वायरल तस्वीर भागलपुर की है. जिसमें कथित तौर पर एक आदमी की दवा दुकान की गेट पर मौत हो गई.

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बुधवार को दिन में लगभग 11:30 बजे अस्थमा का रोगी युवक दुकान पर इनहेलर लेने के लिए आया था. दवा लेने से पहले ही गेट पर उनकी मौत हो गई. युवक की कोरोना जाँच रिपोर्ट शाम में आई, जो पॉज़िटिव थी.

भागलपुर के स्थानीय पत्रकार रंजन बीबीसी को बताते हैं, "सबसे हैरान कर देने वाली बात ये रही कि युवक की लाश उसी स्थिति में गेट पर ही पांच घंटे से अधिक समय तक पड़ी रही. पुलिस आई लेकिन उसने कुछ नहीं किया. एंबुलेंस आई लेकिन लौट गई. आख़िर में किसी तरह नगर निगम की ओर से दो लोगों को भेजा गया, लेकिन उनके पास पीपीई किट ही नहीं थी. बगल वाले दुकान से पीपीई किट मंगाई गई और तब जाकर शव को वहाँ से अस्पताल ले जाया गया."

भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रभारी अधीक्षक डॉ. कुमार गौरव ने बीबीसी से कहा, "ऐसी घटना हो जाने के बाद लोगों को तत्काल एंबुलेंस के लिए कॉल करना चाहिए था. जहाँ तक देरी की बात है तो यह जगज़ाहिर है कि हमारे पास आदमियों की कमी है. अधिकांश मेडिकल स्टाफ़ के संक्रमित हो जाने की वजह से हम मैनपावर की भारी कमी से गुज़र रहे हैं."

अस्पताल में ठेले पर बैठकर इलाज करने जाते डॉक्टर

बिहार

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बिहार की ही एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसमें एक डॉक्टर ठेले पर बैठकर कोविड केयर सेंटर में इलाज करने जाते दिखते हैं. नीचे घुटने के ऊपर तक पानी है.

यह तस्वीर सुपौल ज़िले के नगर पंचायत वार्ड नंबर 2 की है, जहाँ एक रेस्ट हाउस में कोविड केयर सेंटर बनाया गया है.

ठेले से सेंटर पहुँचने का कारण डॉक्टर अमरेंद्र जलजमाव को बताते हैं.

वो कहते हैं, "लगातार बारिश की वजह से पानी जमा हो गया है. ठेले या रिक्शा के सिवा कोई और विकल्प नहीं है. नर्सों को और भी दिक्कत होती है क्योंकि ठेला या रिक्शा हर समय उपलब्ध नहीं रहता है."

सुपौल के वरिष्ठ पत्रकार राकेश चंद्रा बताते हैं, "बारिश के दिनों में यहाँ जलजमाव आम बात है. हर साल कहा जाता है कि इस बार शहर में जलजमाव नहीं होगा. आप ही सोचिए कि कोविड केयर सेंटर के पास अगर ऐसी व्यवस्था है तो दूसरी जगहों का क्या हाल होगा.".

बाढ़ में कैसे लड़ेंगे कोरोना से लड़ाई

लोग

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दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए "घर में रहने और बाहर नहीं निकलने" के उपाय को सबसे बेहतर माना गया है.

स्वयं बिहार सरकार ने भी कोरोना की विस्फोटक स्थिति को काबू में करने के लिए पूरे राज्य में 31 जुलाई तक लॉकडाउन लगा दिया है.

लेकिन वे लोग घर में नहीं रह सकते जिनके घर में, गांव में बाढ़ का पानी घुस आया है.

गोपालगंज, सीतामढ़ी, मधुबनी, शिवहर, सुपौल और दरभंगा ज़िले के सैकड़ों गाँव जलमग्न हो चुके हैं.

सीतमाढ़ी और मधुबनी में कई जगहों पर नेशनल हाइवे पर भी बाढ़ का पानी चढ़ गया है. गंडक, कोसी, बागमती, कमला समेत उत्तर बिहार की तमाम नदियाँ उफान पर हैं.

पीड़ित लोग अपने जान-माल की रक्षा के लिए घर छोड़कर ऊँचे स्थानों पर चले गए हैं. कहा जा रहा है कि लगातार हो रही बारिश और नदियों के बढ़ते जलस्तर के कारण इस बार प्रलयंकारी बाढ़ की संभावना है.

बिहार आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से 16 जुलाई को दोपहर दो बजे तक के आँकड़ों के अनुसार बिहार के 137 पंचायतों के 2.18 लाख लोग इस वक्त बाढ़ से प्रभावित हैं.

सरकार की ओर से अभी 13 रिलीफ़ कैंप चलाए जा रहे हैं, जिनमें 2731 लोग रह रहे हैं. इसके अलावा 37 कम्युनिटी किचन भी चलाया जा रहा है जिसमें 15,746 लोग खाना खा रहे हैं.

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