नरेंद्र मोदी और अमित शाह को क्लीनचिट ना देने वाले अशोक लवासा कौन हैं?

  • टीम बीबीसी हिंदी
  • नई दिल्ली
लवासा

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इमेज कैप्शन, निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा

एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बुधवार को सूचित किया कि उसने भारत के निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा को निजी क्षेत्र और सार्वजनिक-निजी साझेदारी के क्षेत्र से जुड़े कामकाज के लिए अपना उपाध्यक्ष नियुक्त किया है.

एडीबी ने एक बयान में कहा कि लवासा वर्तमान में भारत के चुनाव आयुक्तों में से एक हैं और पूर्व में भारत के केंद्रीय वित्त सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में सचिव और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव सहित कई वरिष्ठ पदों पर कार्य कर चुके हैं.

बताया गया है कि लवासा एडीबी में दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे जिनका कार्यकाल 31 अगस्त को समाप्त होने जा रहा है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ चुनाव आयोग से इस्तीफ़ा देकर ही अशोक लवासा यह पद संभाल सकते हैं और अगर वे ऐसा करते हैं तो कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफ़ा देने वाले वे दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे.

हालांकि अशोक लवासा की तरफ़ से इस नई नियुक्ति पर कोई बयान सामने नहीं आया है.

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इमेज कैप्शन, वरिष्ठ पत्रकार सिदार्थ वरदराजन का ट्वीट

वरिष्ठ पत्रकार सिदार्थ वरदराजन ने एक ट्वीट में लिखा है कि मोदी सरकार ने अशोक लवासा के पास अब कोई विकल्प नहीं छोड़ा है, क्योंकि पीएम मोदी और शाह के मामले में लवासा की आपत्ति के बाद उनके ख़िलाफ़ जिन मामलों में जाँच बैठाई गई है, अगर वे एडीबी के पद को ठुकरा दें और चुनाव आयोग में बने रहें, तो उन्हें उनका सामना करना होगा.

सोशल मीडिया पर चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रास्ते में आने के बाद से ही अशोक लवासा को निर्वाचन आयोग से दूर किये जाने के कयास लगाये जा रहे थे.

यही वजह है कि अशोक लवासा की एडीबी में नियुक्ति की घोषणा के साथ ही उस विवाद की भी दोबारा चर्चा हो रही है.

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तब हुआ क्या था?

पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों को लेकर विपक्ष ने चुनाव आयोग के समक्ष कुछ शिकायतें दर्ज कराई थीं.

चुनाव आयोग इन पर विचार करने बैठा जिसके बाद आयोग के तीन सदस्यों में से दो, मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा पीएम मोदी को क्लीन चिट दे रहे थे, जबकि अशोक लवासा पीएम मोदी और अमित शाह को क्लीन चिट दिये जाने पर सहमत नहीं थे.

तब फ़ैसला सर्वसम्मति से नहीं, बल्कि बहुमत से हुआ और पीएम मोदी और शाह को क्लीन चिट मिली. आयोग ने आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के छह मामलों में पीएम मोदी को क्लीन चिट दी थी.

लवासा की चिट्ठी मीडिया के हाथ लगने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बयान जारी कर इसे ग़ैरज़रूरी विवाद बताया था

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इमेज कैप्शन, लवासा की चिट्ठी मीडिया के हाथ लगने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बयान जारी कर इसे ग़ैरज़रूरी विवाद बताया था

अशोक लवासा चाहते थे कि 'उनकी अल्पमत की राय को कम से कम रिकॉर्ड किया जाए.'

उनका आरोप था कि 'अल्पमत की राय को दर्ज भी नहीं किया जा रहा है', इसीलिए उन्होंने आचार संहिता से संबंधित चुनाव आयोग की बैठकों में जाना बंद कर दिया था.

इस बारे में अशोक लवासा की एक चिट्ठी भी स्थानीय मीडिया के हाथ लगी थी, जिसमें उन्होंने लिखा था, "कई मामलों में उनके अल्पमत के फ़ैसले को दर्ज नहीं किया गया और लगातार उनकी राय को दबाया जाता रहा है जो कि इस बहुसदस्यीय वैधानिक निकाय के स्थापित तौर तरीक़ों से उलट है."

कांग्रेस ने इसे चुनाव आयोग की संस्थागत स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न क़रार दिया था.

इस दौरान ऐसे कई मौक़े आये जिन पर अशोक लवासा का रुख मोदी सरकार को चुभता रहा.

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लवासा के पास अभी समय था

अशोक लवासा ने 23 जनवरी 2018 को भारत के चुनाव आयुक्त के तौर पर पद संभाला था. वे हरियाणा कैडर के (1980 बैच) के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं.

अगर सब सही रहता तो अशोक लवासा अप्रैल 2021 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनते और 2022 अक्टूबर तक यूपी, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव कराते.

अब वरिष्ठता क्रम में तीसरे नंबर पर सुशील चंद्रा हैं जो मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के बाद यह महत्वपूर्ण पद संभालेंगे.

भारत के चुनाव आयुक्त बनने से पहले वो 31 अक्तूबर 2017 को केंद्रीय वित्त सचिव के पद से सेवा-निवृत्ति हुए थे.

भारत के वित्त सचिव रहने से पहले वो पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और नागर विमानन मंत्रालय में केंद्रीय सचिव रहे थे.

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37 साल का करियर

सक्रिय सेवा में अशोक लवासा को 37 से भी ज़्यादा सालों का अनुभव है. केंद्र और राज्य सरकार में रहते हुए उन्हें सुशासन और नीतिगत सुधार की पहलों में ख़ास योगदान देने का श्रेय दिया जाता है.

अशोल लवासा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई कई वार्ताओं में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं.

2015 में जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए पेरिस समझौते के दौरान लवासा ने भारतीय टीम का नेतृत्व किया था.

इसके अलावा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और कन्वेंशन ऑन बायोडायवर्सिटी एंड डीसर्टिफिकेशन के दौरान भी उन्होंने भारतीय टीम को लीड किया था.

आर्थिक मामलों के संयुक्त सचिव रहते हुए एशियन डेवलपमेंट बैंक से दर्जनों डेवलपमेंट लोन लेने और वित्तीय एक्शन टास्क फोर्स बनाने के लिए बातचीत की.

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इमेज कैप्शन, कुछ दिन पहले ही अशोक लवासा ने यह तस्वीर ट्वीट की थी और लिखा था कि 'अरुण जेटली की टीम में काम करना उनका सौभाग्य रहा'

वित्तीय सचिव

अशोक लवासा उस वक़्त वित्त सचिव रहे जब सरकार में बड़े बदलाव या बड़े फैसले हुए.

जीएसटी पेश किए जाने के वक़्त और रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के वक़्त वो वित्त सचिव के पद पर थे.

इसके अलावा जब बजट पेश किए जाने की तारीख़ को चार हफ्ते आगे बढ़ा दिया गया, उस वक़्त भी वो वित्त सचिव के अहम पद पर थे.

जब सामान्य वित्तीय नियमों में संशोधन किया गया, उस वक़्त भी वो ये अहम पद देख रहे थे.

वहीं पर्यावरण सचिव रहते हुए भी उन्होंने कई नीतिगत और प्रक्रियात्मक सुधारों की पहल की.

इसके अलावा भी उन्होंने बहुत से मंत्रालयों में अहम पद संभाले.

वो उर्जा मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव रहे, गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव रहे, आर्थिक मामलों के विभाग (वित्त मंत्रालय) में भी संयुक्त सचिव का पद संभाला.

हरियाणा के प्रशासन में भी उन्होंने कई अहम विभागों का काम देखा.

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आईएएस बनने से पहले

आईएएस बनने से पहले वो दिल्ली विश्वविद्यालय में अगस्त 1978 से दिसंबर 1979 तक लेक्चरर रहे.

अशोल लवासा ने दिसंबर 1979 से जुलाई 1980 तक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में प्रोबेशनरी ऑफ़िसर के तौर पर भी काम किया.

अशोक लवासा का जन्म 21 अक्तूबर 1957 को हुआ था.

उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए (इंग्लिश ऑनर्स) और इंग्लिश में ही एमए किया.

लवासा ने ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी से एमबीए भी किया है और उनके पास डिफेंस और स्ट्रेटेजिक स्टडिज़ में एम.फिल की डिग्री भी है.

अशोक लवासा को फ़ोटोग्राफ़ी का काफ़ी शौक़ है. अलग-अलग शहरों में उन्होंने अपनी खींची तस्वीरों की प्रदर्शनियां भी की हैं.

लवासा ने 'एन अनसिविल सर्वेंट' नाम की किताब भी लिख है. ये किताब 2006 में छपी थी.

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