दुनियाभर के यूथ हैशटैग वॉयसफॉरयूथ के तहत कर रहे लॉकडाउन की कहानियां शेयर
स्कूल बंद हैं और ऑनलाइन कक्षाओं का दौर जारी है। पर अब बच्चोंकिशोरों का मन ऊब रहा है। उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा है तो परेशान न हों। इस दौर में ऐसा स्वाभाविक है।
नई दिल्ली [सीमा झा]। यह साल क्या यूं ही बीत जाएगा, यह सवाल परेशान करता है मुझे। कहती हैं इस साल दसवीं की परीक्षा देने वाली किरण गर्ग। उनके मुताबिक, जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तो लगा था कि बस कुछ ही दिनों की बात है। गर्मी की छुट्टियों के बाद बड़े बच्चे स्कूल जा सकेंगे, लेकिन अब कुछ भी कहना मुश्किल है। दोस्तो, यदि आप भी किरण की तरह अच्छे समय के इंतजार में ऊब रहे हैं, पढ़ाई मुश्किल से हो रही है, चिड़चिड़ापन हावी है तो आप अकेले नहीं।
यहां 130 से अधिक देश वायरस के साथ लड़ाई में शामिल हैं। हर कोई आपकी तरह ही इन मुश्किलों से निपटना सीख रहा है। इसी सिलसिले में दुनियाभर के यूथ हैशटैग वॉयसफॉरयूथ के तहत लॉकडाउन की कहानियां शेयर कर रहे हैं। जैसे बुल्गारिया की मारिया ने कहा, ‘मैं दिव्यांग हूं। यह समय परेशान करने वाला है। एकाग्र रह सकूं, इसलिए कभी खुद को खाली नहीं छोड़ती।’ वह इन दिनों दर्शनशास्त्र पढ़ रही हैं और नई भाषा भी सीख रही हैं।
अभी तो उड़ान बाकी है:
इस समय बहुत से छात्र-छात्राएं कॉलेज में दाखिले की तैयारी में हैं। वे भविष्य की योजनाएं बना रहे हैं। कुछ हैं, जिन्हें इंटर्नशिप करनी है, रिसर्च के लिए तैयारी करनी है। यदि आप भी उनमें से हैं तो स्कूल प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा की बात आपकी मदद कर सकती है, ‘किसी भी शुरुआत के लिए बेहतर प्लानिंग चाहिए, पर इसके लिए पहले कम समय मिलता था। अब आपको कुछ नई चीजों को एक्सप्लोर करना चाहिए।’ पर यदि आप केवल योजनाओं को ही सब कुछ मानते हैं तो 2019 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार पाने वाले डॉ. पीटर रैटक्लिफ की बात जरूर ध्यान में रखें।
हाल में एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि हमें भविष्य की तैयारी पहले करनी होती है, पर भविष्य पता नहीं होता-जैसे पुरस्कार मिलने के बाद 300 कार्यक्रम तय हुए, पर कोरोना के कारण टल गए। वे कहते हैं, ‘हम जो योजनाएं बनाते हैं जरूरी नहीं कि वे पूरी हों। जैसे मुझे केमिस्ट्री पढ़नी थी, पर शिक्षक ने मेडिसिन लेने को कहा तो ले लिया। आज मुझे यह काम पसंद है।’ उनके मुताबिक, निर्णय करने से अधिक आप क्यों करना चाहते हैं, यह जानना जरूरी है।
जगा लें ‘ओलंपिक स्पिरिट’ :
बाल मनोवैज्ञानिक गगनदीप कौर कहती हैं, ‘परेशानी तब शुरू होती है, जब हम अपनी दिक्कतों को गिनने लगते हैं। उसी के इर्दगिर्द सोचते हैं। घर पर रहते हुए अचानक आपको दिक्कतों का एहसास हो तो अपना फोकस शिफ्ट कर लेना चाहिए।’ उनके मुताबिक, खेल की दुनिया भी लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित है, लेकिन खिलाड़ियों ने खुद को नकारात्मक प्रभावों से खुद को बचाए रखने की शानदार कोशिश की है।
लॉकडाउन के शुरुआती दौर में विराट कोहली ने कहा था, ‘मैं इन दिनों इस प्रयास में हूं कि जब वापसी हो तो उसी बिंदु से शुरुआत करूं, जहां रुकना पड़ा था।’ लॉकडाउन न होता तो इस समय आप विंबलडन और ओलंपिक का आनंद ले रहे होते। मुश्किल समय सबके लिए है, लेकिन ओलंपिक की तैयारी कर रहे खिलाड़ी वीडियो के जरिए हैशटैग ‘स्टे स्ट्रॉन्ग, स्टे ऐक्टिव, स्टे हेल्दी’ का संदेश देकर खिलाड़ियों को वर्कआउट का संदेश रहे हैं।
यही ओलंपिक स्पिरिट खिलाड़ियों को हार नहीं मानने देती, बल्कि ‘बाउंस बैक’ के लिए प्रेरित करती है। टोक्यो ओलंपिक की वेबसाइट पर इसे देख सकते हैं। भारत में भी खिलाड़ी ऐसे वीडियो जारी कर लोगों को प्रेरणा देने का प्रयास कर रहे हैं।
बनेंगे और भी मजबूत
पिछले दिनों अल्फाबेट इंक, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने एक वर्चुअल समारोह में अपनी बातों से सबका दिल जीत लिया। यह समारोह उन छात्रों को समर्पित था,जो इस वर्ष ग्रेजुएट हुए। उन्होंने कहा कि यह साल छात्रों के लिए मुश्किल भरा तो है, पर उन्हें भरोसा है कि वे इस परीक्षा में पास हो जाएंगे। इससे निकलकर वे और मजबूत बनेंगे।
उन्होंने अतीत की उन आपदाओं के उदाहरण भी दिए, जो जानलेवा थीं, पर छात्रों को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाईं। उन्होंने दुनिया के छात्रों को तीन सलाह दी। पहला, धैर्य रखें और आशावादी बनें। इस समय तकनीक की मदद लें, ताकि अपने ख्वाब को सच में बदल सकें। दूसरा, आज देखा गया ख्वाब ही कल सच बन सकता है और तीसरा, आप जो कुछ करते हैं, खुले दिमाग और जुनून के साथ करें। यकीन करें कि हर पर्वत के पास पहुंचने के लिए रास्ता होता है, पर वह घाटी से नहीं दिखाई देता।
स्थिति चाहे जैसी हो, उसका सामना करना चाहिए
ज्योति अरोड़ा, प्रिंसिपल, डीडब्ल्यूयूपीएस, गौतमबुद्ध नगर कहती हैं कि जो हमने नहीं सोचा वह हो गया, तो परेशानी स्वाभाविक है। चाहे जैसी स्थिति आपके सामने आए, उसका सामना करना चाहिए। इसे स्वीकार कर लिया तो आपकी राह आसान हो जाएगी। यह सबके लिए चुनौतीपूर्ण है। शिक्षकों के लिए भी और अभिभावकों के लिए भी।
यह सही है कि आपको ऑनलाइन स्कूल का तरीका नहीं भा रहा या आप इससे जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहे, लेकिन जब विकल्प ही यही है, तो आपको इसे ही खूबसूरत बनाना है। यह और कारगर बन सकता है, जब पैरेंट्स-टीचर्स का तालमेल हो। बच्चों के साथ टीचर्स का इमोशनल कनेक्शन बनाने की दिशा में काम हो। बेशक आपने इस मुश्किल समय में इतना कुछ सीखा है, जो आमतौर पर कम ही संभव हो पाता।
काम की बात
- एक बार में एक काम करें।
- घर पर योग और कसरत के साथ
- शारीरिक सक्रियता चिंता को छूमंतर करने में खास मददगार है।
- कोई पछतावा या गलती का एहसास हो तो हमेशा याद रहे कोई परफेक्ट नहीं। हां, कोशिश जारी रहे।
- सुधार के लिए कड़े प्रयास के लिए खुद को तैयार रखना है, यह मंत्र खुद को याद दिलाते रहें।
- कोई मुश्किल हो तो पैरेंट्स से शेयर करने की शुरुआत करने का भी यह अच्छा समय है।
- डिजिटल दुनिया से भी समुचित दूरी जरूरी है।
बीच की राह निकालनी होगी
साइकोथेरेपिस्ट और बाल मनोवैज्ञानिक गगनदीप कौर का कहना है कि इस समय चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बात पर बिगड़ जाना, ऑनलाइन कक्षाओं में रुचि न लेना जैसी समस्याएं किशोरों में आम हैं। वे घर पर कुछ शेयर करने से बचते हैं, तो इसका अर्थ है पैरेंट्स खुद अपनी समस्याओं में इतने उलझे हैं कि वे उनसे अपनी बात कह नहीं पाते, जबकि शेयरिंग बहुत जरूरी है। भावनाएं बंद रहें, तो वे निगेटिव हो जाती हैं। एक बीच की राह निकालनी होगी।