अखिल गोगोईः सीएए के विरोध के दौरान गिरफ़्तार कार्यकर्ता की सेहत को लेकर चिंता, सात महीने से हैं बंद
- दिलीप कुमार शर्मा
- जोरहाट से, बीबीसी हिंदी के लिए
असम के जाने-माने आरटीआई कार्यकर्ता एवं कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई बीते सात महीनों से जेल में बंद हैं. हाल ही में उनकी सेहत को लेकर चिंता जताई जाने वाली ख़बरें आई हैं जिसके बाद उनकी पत्नी, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने उन्हें रिहा किए जाने की अपील की है.
अखिल गोगोई की पत्नी गीताश्री तामुली ने फेसबुक पर लिखा है कि उन्हें समाचार चैनलों और फेसबुक के माध्यम से अखिल के बीमार पड़ने की ख़बरें मिल रही है, मीडिया में उनके शरीर में कोविड-19 के लक्षण होने की बात भी सामने आई है.
गीताश्राी ने बीबीसी से कहा, "अखिल से मिलने को लेकर मैंने पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत से फोन पर एक बार आग्रह किया था. लेकिन उन्होंने विशेष अनुमति के लिए कामरूप महानगर के जिला उपायुक्त के समक्ष ऑनलाइन आवेदन करने के लिए कहा. यह मई महीने की बात है जब देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था. मैंने ऑनलाइन आवेदन भी किया था लेकिन ज़िला उपायुक्त ने करीब दो सप्ताह इंतज़ार करवाने के बाद बिना कोई कारण उल्लेख किए उस आवेदन को खारिज कर दिया."
गुवाहाटी के बी बरुआ कॉलेज में असमिया भाषा की शिक्षिका गीताश्री आगे कहती है, "इसके बाद मैं अपने वकील के साथ एनआईए यानी नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की अदालत से अनुमति लेकर अखिल से जेल में मिलने गई थी लेकिन वहां ड्यूटी ऑफिसर ने हमें गेट के बाहर ही रोक दिया. उन लोगों ने कहा कि हाई कोर्ट से अनुमति लेकर आइए. मुझे अब अखिल के स्वास्थ्य को लेकर चिंता हो रही है.पिछले तीन महीनों से न उनसे मिल पाई हूं और न ही फोन पर कोई खबर मिली है."
गीताश्री कहती हैं कि अखिल बिना कोई समझौता किए अलग-अलग मुद्दों पर आंदोलन करते हैं और हमेशा मीडिया की चर्चा में रहते है, यह सारी बातें शायद सरकार को थोड़ा असहज करती हों.
उन्होंने कहा,"पहले की सरकार (कांग्रेस सरकार) के कार्यकाल में भी अखिल को कई बार गिरफ्तार किया गया था परंतु इतने लंबे वक्त तक जेल में नहीं रखा. दरअसल बात केवल अखिल गोगोई की नहीं है बल्कि उन सभी संगठनों की है जो बिना समझौता किए सामाजिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाते है. उनको इस तरह से दबाने का प्रयास करना असम के अच्छे भविष्य के लिए सही कदम नहीं हो सकता."
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई की रिहाई को लेकर कई जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता राज्य सरकार से अपील कर रहे हैं.
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पूर्व बीजेपी नेता ने भी की अपील
पूर्व भाजपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मीरा बोरठाकुर ने अपने फेसबुक वॉल पर असोम संग्रामी मंच की 6 जुलाई की एक पोस्ट को शेयर किया जिसमें लिखा था,"मुख्यमंत्री महोदय अखिल गोगोई को बहुत कष्ट दिया जा चुका है. क्या अब उन्हें मिलने वाली चिकित्सा से भी वंचित रहना पड़ेगा? स्वास्थ्य मंत्री जी अगर आप कोविड महामारी संक्रमण को रोकने को लेकर सही में गंभीर है तो अखिल गोगोई के बारे में मीडिया में आई हाल की ख़बरों को गंभीरता से लें."
दरअसल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध कर रहे अखिल गोगोई को बीते साल 12 दिसंबर को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद उन पर राज्य के अलग-अलग थानों में कई और मामले दर्ज हुए थे.जबकि अखिल के खिलाफ दो मामले एनआईए ने भी दर्ज किए है. अखिल गोगोई के साथ उनके संगठन केएमएसएस के तीन और शीर्ष नेता धज्य कोंवर, बिट्टू सोनोवाल और मानस कोंवर भी गुवाहाटी सेंट्रल जेल में बंद है.
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अखिल गोगोई पर दर्ज इन मामलों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील शांतनु बोरठाकुर ने बीबीसी से कहा,"सीएए के विरोध के बाद अखिल गोगोई पर कुल 12 मामले दर्ज हुए है. इनमें 10 मामले असम पुलिस के है और दो मामले एनआईए ने दर्ज किए है. कई मामलों में जमानत मिली है लेकिन अभी एनआईए के दो मामलों में और असम पुलिस के तीन मामलों में जमानत नहीं मिली है.हमने कोर्ट में जमानत की अर्जी लगा रखी है. जहां तक एनआईए के मामलों की बात है तो जांच एजेंसी ने हाल ही में आरोप-पत्र दाखिल कर दिया है और अब हम जमानत की प्रक्रिया में आगे बढ़ रहे है. "
एक सवाल का जवाब देते हुए वकील बोरठाकुर कहते है,"इन मामलों में राज - द्रोह की कोई बात ही नहीं है. मुझे नहीं मालूम कि उन लोगों ने कैसे आईपीसी की धारा 124 ए के तहत इन मामलों को पंजीकृत किया है. एनआईए ने तो आतंकवाद कानून का प्रोविज़न डाल दिया है. जांच एजेंसी के लोग कह रहे हैं कि ये गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) एक्ट का मामला है. हालांकि उनके पास ऐसे कुछ भी तथ्य नहीं है केवल अखिल के भाषण है जिनको वे यहां हुई हिंसा का आधार बता रहे हैं."
अखिल के खराब सेहत के बारे में जानकारी देते हुए वो कहते है," एनआईए अदालत ने 7 जुलाई को गुवाहाटी सेंट्रल जेल प्रशासन को अखिल गोगोई का कोविड टेस्ट करवाने का निर्देश दिया है. लेकिन सरकार के स्तर पर आगे क्या किया गया, अबतक हमें जानकारी नहीं मिली है. अखिल को लेकर असम सरकार का रवैया काफी सख्त रहा है. सरकार के वकील अदालत में अखिल को लेकर जिस कदर पूर्ण पैमाने पर आपत्ति करते है उससे तो यही लगता है कि सरकार फिलहाल अखिल को रिहा करने के पक्ष में नहीं है."
क्या कह रही है पुलिस
अखिल गोगोई के सेहत को लेकर मीडिया में लगातार आ रही खबरों के बाद पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि अखिल गोगोई के स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जिला उपायुक्त या फिर स्वास्थ्य विभाग को सटीक जानकारी होगी, अगर संबंधित प्राधिकरण हमें उनके स्वास्थ्य मुद्दे के बारे में सूचित करती है तो हम निश्चित रूप से उनके इलाज के लिए सभी जरूरी उपाए करेंगे.
राज्य में तेजी से फैलते हुए कोरोना संक्रमण के प्रभाव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने असम की अलग-अलग जेलों में बंद विदेशी नागरिकों को मानवीय आधार पर छोड़ा है लेकिन अखिल गोगोई के मामले में सरकार की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं.
असम की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता बीते कुछ दिनों से अखिल गोगोई के खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्हें रिहा करने की अपील कर रहें है.
असम के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई ने राज्य सरकार से अखिल गोगोई तथा उनके संगठन के अन्य नेताओं को तत्काल जेल से रिहा करने की मांग की है.
पूर्व मुख्यमंत्री गोगोई ने एक ट्वीट कर कहा,"अखिल गोगोई और उनके अन्य नेताओं की हिरासत अलोकतांत्रिक, गैरकानूनी और लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. हम सरकार से उन्हें तुरंत रिहा करने का आग्रह कर रहे हैं."
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हालांकि तरुण गोगोई की सरकार के दौरान ही मार्च 2010 में सरकार की एक गुप्त रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि अखिल गोगोई का भूमिगत नक्सली संगठन सीपीआई-माओवादी के साथ घनिष्ठ संबंध था. उस समय अखिल गोगोई ने असम सरकार को आरोप साबित करने के लिए चुनौती भी दी थी. लेकिन बाद में यह मामला ठंडा पड़ गया.
सीपीआई-माओवादी के साथ नाम जोड़े जाने पर उस समय अखिल गोगोई ने कहा था, "मैं एक मार्क्सवादी हूं और सामाजिक परिवर्तन में विश्वास करता हूं. लेकिन मैं माओवादी नहीं हूं. वे बड़े पैमाने पर गतिविधियों में विश्वास नहीं करते हैं. हम अपने संगठन कृषक मुक्ति संग्राम समिति के जरिए जनता को असली परिवर्तन के लिए संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं."
अन्ना आंदोलन से हुआ नाम
गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने दिल्ली के जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनलोकपाल की माँग को लेकर साल 2011 में जब धरना दिया था उस समय अखिल गोगोई उनकी टीम के अहम सदस्य थे.
अखिल शुरू से असम में नदी बांध से लेकर किसानों के ज़मीन से जुड़े कई अहम मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाते आ रहे हैं.
कई बार उनके विरोध प्रदर्शन से सरकार के सामने परेशानियां खड़ी हुई है. फिर चाहे असम में कांग्रेस की सरकार रही हो या अब भारतीय जनता पार्टी की. अखिल ने भ्रष्टाचार से लेकर सीएए तक हर मुद्दे पर इन सरकारों को घेरा है.
अगले साल 2021 में असम में विधानसभा चुनाव है और कोरोना के कारण कई अहम मुद्दों पर फिलहाल बात नहीं हो पा रही है. ऐसे में राजनीति के जानकार भाजपा सरकार के चुनावी नफे-नुकसान को अखिल गोगोई जैसे नेता की रिहाई से जोड़कर देख रहें है.
असम के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ गोस्वामी कहते है,"अखिल गोगोई का यह पूरा मुद्दा एक राजनीतिक मुद्दा है. लिहाजा ऐसे व्यक्ति को फौजदारी मुकदमे के तहत गिरफ्तार करने की बात तो समझ में आती है, लेकिन इतने लंबे समय के लिए उन्हें जेल में डालने के पीछे इस सरकार के राजनीतिक उद्देश्य को भी समझा जा सकता है.दूसरी बात यह है कि यह सरकार उन लोगों के प्रति असहनशील है जो इसका विरोध करते हैं या फिर उनके प्रति असहमती जताते हैं. अगले साल चुनाव होने है और सरकार से बीते पांच साल का हिसाब मांगा जाएगा. अगर अखिल गोगोई बाहर आते है तो वे बिना किसी समझौते के फिर सरकार पर सवाल खड़ा करेंगे. लिहाजा यह पूरा मुद्दा इन बातों के इर्द-गिर्द है."
असम प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष विजय कुमार गुप्ता अखिल गोगोई के मामले में अपनी सरकार पर उठ रहें सवालों का जवाब देते हुए कहते है,"अखिल गोगोई के मामले में कानून अपना काम कर रहा है.अगर वे निर्दोष है तो अदालत है और हम सभी को न्यायपालिका पर भरोसा है. बात जहां तक उनके स्वास्थ्य की है तो अदालत से जो भी निर्देश आएगा, हमारी सरकार उसका पूरा पालन करेगी."
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