कोरोना: अंतिम संस्कार के बाद अस्पताल ने कहा, 'मरीज़ ज़िंदा है'
भार्गव परीख
बीबीसी गुजराती
गुजरात के अहमदाबाद सिविल अस्पताल में रविवार को एक अजीबोग़रीब वाक़या हुआ.
यहां पहले एक मरीज़ के परिजनों को सूचना दी गई कि उनकी कोविड-19 संक्रमण के कारण मौत हो गई है. इसके ठीक दूसरे दिन परिवार को अस्पताल से फ़ोन आया कि मरीज़ का कोरोना टेस्ट निगेटिव आया है और उनकी सेहत में सुधार हो रहा है, इसलिए उन्हें घर ले जाया जा सकता है.
इस फ़ोन कॉल के बाद जब परिजन मरीज़ को लेने अस्पताल पहुंचे तो उन्हें फिर बताया गया कि मरीज़ की मौत हो चुकी है.
निकोल इलाक़े में रहने वाले देवराम (71) को सांस लेने में तकलीफ़ के बाद 28 मई को अहमदाबाद सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था. देवराम डायबिटीज़ के मरीज़ भी थे.
अस्पताल प्रशासन ने देवराम के दामाद नीलेश निकते से एक ‘सहमति पत्र’ पर हस्ताक्षर करने को कहा जिसमें लिखा था कि अगर इलाज के दौरान मरीज़ को कुछ हो गया तो यह अस्पताल की ज़िम्मेदारी नहीं होगी.
नीलेश ने बीबीसी गुजराती को बताया, “मेरे ससुर को सिविल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां आजकल कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज चल रहा है. उस समय उनका शुगर लेवल 575 था जो बहुत ज़्यादा है. जब अस्पताल प्रशासन ने मुझसे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा तब मैंने उनसे अपने ससुर को देखने की ज़िद की. इसके बाद अस्पताल के स्टाफ़ ने उन्हें वीडियो कॉल किया. उस समय वो ठीक लगे. उन्हें देखने के बाद ही मैंने दस्तख़त किए.”
अंतिम संस्कार के बाद कहा, मरीज़ की हालत में सुधार है
नीलेश का कहना है कि इसके बाद इलाज शुरू हो गया और उन्हें अपने ससुर के ठीक होने की उम्मीद थी.
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वो बताते हैं, “अस्पताल की औपचारिकताएं पूरी करके हम घर आ गए थे. अगले दिन हमें फ़ोन आया कि मेरे ससुर की कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से मौत हो गई है. इसके बाद जब मेरा परिवार अस्पताल पहुंचा तो हमें नीले रंग की पीपीई किट में ढंका एक शव सौंप दिया गया. उस समय तक हमें उनके कोरोना पॉज़िटिव होने की रिपोर्ट नहीं दी गई थी. अस्पताल के स्टाफ़ ने हमें उनके कपड़े दिखाए तो मैंने मान लिया कि मेरे ससुर का निधन हो गया है. उस वक़्त मैंने उनका चेहरा नहीं देखा. इसके बाद हम अंतिम संस्कार की तैयारियों में व्यस्त हो गए.”
मामला यहीं ख़त्म नहीं हुआ. इसके अगले दिन नीलेश के परिवार को अस्पताल से फिर एक फ़ोन आया.
वो बताते हं, “अगले दिन मुझे बताया गया कि मेरे ससुर की कोविड-19 रिपोर्ट निगेटिव आई है और उन्हें जनरल वार्ड में लाया जा रहा है. अस्पातल ने हमें उन्हें घर वापस ले जाने की सलाह दी.”
अस्पताल के इस फ़ोन कॉल से नीलेश के परिवार में घबराहट छा गई और सब सोचने लगे कि उन्होंने देवराम की जगह किसका अंतिम संस्कार कर दिया.
घबराए हुए नीलेश और अन्य परिजन एक बार फिर अस्पताल पहुंचे लेकिन वहां स्टाफ़ ने उन्हें बताया कि देवराम की मौत हो गई है और ये साबित करने के लिए उनके पास काग़ज़ भी हैं. परिवार को लगा कि शायद कोई ग़लतफ़हमी हो गई इसलिए वो वापस घर लौट आए.
एक और मोड़
इस बीच नीलेश के पास अस्पताल से एक और फ़ोन आया.
वो बताते हैं, “ये अस्पताल की ओर से हमें तीसरा फ़ोन था. इस बार उन्होंने कहा कि मेरे ससुर की सेहत में सुधार हो रहा है और हमें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. जब हमने उन्हें पिछली दो कॉल्स के बारे में बताया और अपने ससुर की सेहत के बारे में सही जानकारी देने को कहा तो हॉस्पिटल स्टाफ़ ने कहा कि उनका हेल्थ अपडेट दो घंटे पहले ही आया है. वो एक पल कह रहे थे कि मेरे ससुर की मौत हो गई है और अगले ही पल कह रहे थे कि उनकी हालत में सुधार हो रहा है.”
अस्पातल के डीन ने इस पूरी गड़बड़ी की पुष्टि की है. डॉक्टर शशांक पंड्या ने बीबीसी गुजराती से बातचीत में कहा कि ये सब ग़लतफ़हमी की वजह से हुआ.
कैसे हुई ये गड़बड़ी?
देवराम को 28 मई को सिविल हॉस्पिटल में लाया गया था. उनके लक्षण देखते हुए उन्हें गुजरात कैंसर रिसर्च इंस्टिट्यूट के कोविड-19 वार्ड में भर्ती कराया गया, जहां टेस्टिंग के लिए सैंपल लिए गए.
29 मई की दोपहर देवराम की मौत हो गई और उनका शव परिजनों को सौंप दिया गया. जब कोविड-19 के किसी संदिग्ध मरीज़ की मौत होती है तो उसे सुरक्षा कारणों से पीपीई किट में लपेट कर दिया जाता है. इसलिए परिवार को देवराम का शव भी वैसे ही सौंपा गया.
अन्य फ़ोन कॉल्स के बारे में डॉक्टर पंड्या ने बताया कि मौत तक देवराज की कोविड-19 रिपोर्ट नहीं आई थी. मौत के बाद जब उनकी रिपोर्ट आई तो वो कोरोना वायरस निगेटिव पाए गए. अस्पताल स्टाफ़ ने रिपोर्ट आने के बाद देवराज के परिवार को फ़ोन कर दिया और कहा कि उन्हें जनरल वार्ड में शिफ़्ट किया जा रहा है. उन्हें देवराज की मौत के बारे में नहीं पता था.
डॉक्टर पंड्या ने शवों की अदला-बदली से इनकार किया है और इसे सिर्फ़ दुर्भाग्यपूर्ण ग़लतफ़हमी का मामला बताया है. उन्होंने नीलेश और देवराज के अन्य परिजनों से माफ़ी भी मांगी है.
नीलेश अस्पताल प्रशासन की माफ़ी से संतुष्ट हैं. वो कहते हैं, “उन्होंने हमसे माफ़ी मांग ली है और हम इस मामले को लंबा नहीं खींचना चाहते. लेकिन इस ग़लतफ़हमी की वजह से मेरे परिवार को दोहरे मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा. हम दुआ करते हैं कि ऐसा कभी किसी के साथ न हो.”
देवराम के परिवार में उनकी पत्नी, तीन बेटियां, दो दामाद और एक नाती हैं.
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कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
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वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
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दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
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हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
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अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.