[ डॉ. निरंजन हीरानंदानी ]: कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद से ही रियल एस्टेट कारोबार के तमाम समीकरण बदलते जा रहे हैं। बाजार के रुझान के साथ ग्राहकों की पसंद-नापसंद बदल रही है। जब तक नए हालात को लेकर कोई एक खाका नहीं बनता तब तक यह कारोबार हालात से ताल मिलाने के लिए अपनी ओर से प्रयास करता रहेगा। इन्हीं प्रयासों का एक अहम पड़ाव बना है डिजिटल प्लेटफॉर्म। लॉकडाउन के चौथे चरण तक आते-आते रियल एस्टेट बिक्री एवं विपणन डिजिटल हो गई है। प्लानिंग, डिजाइन और र्आिकटेक्टर का काम र्आिटफिशियल इंटेलिजेंस एवं मशीन र्लंिनग से हो रहा है। ग्राहक भी मॉडल अपार्टमेंट में थ्री डी वॉक के जरिये मकानों का जायजा ले रहे हैं। वैसे कंस्ट्रक्शन साइट्स पर लॉकडाउन तीन के दौरान ही पूरी एहतियात के साथ काम शुरू भी हो चुका था। कुल मिलाकर लॉकडाउन ने रियल एस्टेट की दुकान बंद नहीं कराई है।

सुस्त अर्थव्यवस्था के कारण रियल एस्टेट बाजार मुश्किलों से जूझ रहा

जहां तक चुनौतियों की बात है तो पिछले कुछ वर्षों से रियल एस्टेट की राह में कई दुश्वारियां कायम हैं। कर्ज के पुनर्गठन, पूंजी की किल्लत, अनबिके मकान और सुस्त होती अर्थव्यवस्था के कारण बिक्री में ठहराव के कारण रियल एस्टेट बाजार मुश्किलों से जूझ रहा है। रेरा लागू होने के बाद रियल एस्टेट में नया दौर शुरू हुआ है। अब यह नियमन के दायरे में आ गया है। इस कारण बिल्डर अब उन पहलुओं के लिए भी जिम्मेदार हो गया है जो एक तरह से उसके नियंत्रण से बाहर हैं। ऐसी स्थिति में यदि किसी मंजूरी से जुड़ी फाइल पर कोई नौकरशाह कुंडली मारे बैठा हो तो उसके लिए भी डेवलपर ही जिम्मेदार माना जाएगा और वही देरी के लिए कीमत भी चुकाएगा। यह अनुचित है।

पैकेज में ऐसा कुछ नहीं जो रियल एस्टेट कारोबार में नकदी की धारा को बढ़ाए

कोविड-19 से उबरने के लिए दिए गए राहत पैकेज में भी इस उद्योग के लिए कोई सीधी मदद नहीं दी गई। फिर भी हमने पैकेज के कुछ पहलुओं पर गौर किया। जैसे रेरा के तहत छह महीने की दी गई रियायत को यदि एक साल बढ़ाते तो और बेहतर होता। किफायती मकान खरीदने वालों के लिए सीएलएसएस की मियाद एक साल बढ़ा देना भी सही है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत रियायती दरों पर किराये के मकान की योजना शहरी गरीबों और प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान साबित होगी। हालांकि पैकेज में ऐसा कुछ नहीं जो रियल एस्टेट कारोबार में नकदी की धारा को बढ़ाता, ऋण पुनर्गठन में डेवलपर की मदद करता और पूंजी की व्यवस्था करता ताकि अटकी हुई परियोजनाएं फिर से शुरू हो सकें। फिर भी पांच किस्तों में जारी किए गए पैकेज से मांग में तेजी के साथ अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार तो हैं।

रियल एस्टेट उद्योग को अपनी पुरानी समस्याओं का समाधान करना होगा

बदलाव के दौर में अब इस उद्योग में नई तकनीक पर आधारित ऑटोमेशन यानी स्वचालन की रफ्तार तेजी से बढ़ेगी। कोविड-19 के बाद बदल रही दुनिया वह पड़ाव है जब मानवीय क्षमताएं और नई तकनीकी की जुगलबंदी भविष्य से वर्तमान में ही साक्षात्कार करा रही हैं। इस नई परिपाटी में शारीरिक दूरी, मास्क और प्रोटेक्टिव गियर्स भी आम होंगे। सह-अस्तित्व के इस नए दौर में हम सभी को घर और व्यावसायिक परिसरों की कहीं अधिक आवश्यकता होगी। इसकी पूर्ति के लिए भारतीय रियल एस्टेट उद्योग को अपनी पुरानी समस्याओं का समाधान करना होगा। इसके लिए प्राधिकरणों की नीतियों में स्पष्टता चाहिए होगी। इसमें समयबद्ध और एक ही जगह से मिलने वाली स्वीकृतियां बहुत मददगार होंगी।

रियल एस्टेट को सहारा देने की जरूरत

रियल एस्टेट को इस कारण भी सहारा देने की जरूरत है, क्योंकि यह 250 से अधिक उद्योगों को फायदा पहुंचाता है। उसकी राह में चुनौतियों से प्राधिकारी संस्थाएं भी अवगत हैं। राहत पैकेज में कोई सीधी मदद न मिलने के बावजूद हम फिर से काम पर लौट आए हैं ताकि लोगों के आशियाने का सपना समय से पूरा कर सकें। हालांकि प्राधिकारी संस्थाएं यह आश्वासन दे रही हैं कि रियल एस्टेट की चुनौतियों को देखते हुए वे कोई समाधान तलाशने में जुटी हैं, लेकिन इसमें इतनी देरी न हो जाए जो हम पर भारी पड़ें।

विनिर्माण को शुरू कर मांग को बढ़ाने के कदम उठाए जाएं

जब एक बड़ा बदलाव आकार ले रहा है तो हमें भी अपने लिए एक नए ढांचे की दरकार होगी। लॉकडाउन के आरंभ से ही हम इसी स्थिति से दो-चार हैं और अब इससे बाहर निकलकर आगे बढ़ने की दरकार है। इसी कड़ी में हम नई तकनीक पर दांव लगा रहे हैं। ऑटोमेशन इनमें से एक है। आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से लैस डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है। यह अभी तक एहतियातन शुरुआत ही है। लॉकडाउन लगाकर लोगों की जिंदगी बचाकर एकदम सही किया गया। अब हमें आजीविका बचाने की दरकार है। हम आर्पूित शृंखला को दुरुस्त करें। विनिर्माण को शुरू कर मांग को बढ़ाने के कदम उठाए जाएं। अब अर्थव्यवस्था को रीबूट करने की आवश्यकता है और रियल एस्टेट उद्योग इस कवायद में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है, लेकिन उसे भी प्राधिकारी संस्थाओं से अपने हित में कुछ कदमों की अपेक्षा है।

आर्थिक दुष्प्रभाव को काबू में करने के लिए बनीं नीतियां धरातल पर उतरना चाहिए

नीतियों से यही अपेक्षा होती है कि वे धरातल पर उतरें। कोविड-19 महामारी के आर्थिक दुष्प्रभाव को काबू में करने के लिए कुछ अच्छे कदम जरूर उठाए गए, लेकिन वे धरातल पर साकार होते नहीं दिखते। दो उदाहरणों पर गौर करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने तरलता बढ़ाने के लिए रेपो दरों में कटौती की, लेकिन बैंकों ने मौजूदा ग्राहकों को इसका लाभ नहीं दिया। इसी तरह आरबीआइ ने रिवर्स रेपो दरें भी घटाईं, मगर बैंक इसके चलते उद्योग-व्यापार को कर्ज की मात्रा बढ़ाने के बजाय आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक की नकदी रिजर्व बैंक के पास ही रख आए। यदि यह रकम कर्ज के रूप में उद्योगों को मिल जाती तो लंबे अर्से से दर्द का सबब बना नकदी संकट दूर हो जाता। भली मंशा के बावजूद ये कदम फलीभूत न हो सके।

( लेखक नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल-नारडेको-के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं )