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#जीवनसंवाद: मन के अंधेरे!
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#जीवनसंवाद: मन के अंधेरे!

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#JeevanSamvad: मन का वह हिस्सा, जिसमें रोशनी नहीं पड़ती, धीरे-धीरे अंधेरा वहां जमा होता जाता है. प्रकाश की कमी नहीं होत ...अधिक पढ़ें

हमारे फैसले, निर्णय प्रक्रिया और चिंतन मिलकर ही हमें बनाते हैं. जो कुछ होते हैं उसमें परिस्थितियों की भूमिका तो होती है लेकिन वह सब कुछ नहीं होती. अगर ऐसा होता तो हमें इतने आविष्कार, नई खोजें, नए विचार और नए रास्ते कैसे मिलते. हम सब पुरानी ही चीज़ों से बचे रहते. अंधेरों से चिपके रहते, तो नए उजाले हम तक कैसे पहुंचते. नए उजालों की मशाल थामने कोई तो आता ही है. कोई तो होगा ही जो लीक को छोड़कर अपनी राह चलेगा. जो सुंदर और लुभावने रास्तों को छोड़कर अपनी पगडंडी की ओर चलेगा!

लेकिन ज्यादातर लोग ऐसा नहीं कर पाते. उन तक, उनकी आत्मा तक वह उजाले पहुंच ही नहीं पाते, जिनसे मन के वह टुकड़े प्रकाश से भर सकें जिनमें न जाने कब से अंधेरा जमा है. ऐसा करने से हमें कौन रोकता है. हम ऐसा क्यों नहीं कर पाते. इसकी वजह बहुत गहरी तो नहीं है लेकिन स्पष्ट नहीं हैं. क्योंकि हम लगातार बाहर की ओर देखते रहते हैं. निरंतर बाहर की ओर देखते रहने से हमें हर चीज़ बाहर से जुड़ी नजर आती है. जबकि उसका केंद्र हम ही होते हैं.

हम जैसे ही खिड़की दरवाज़े खोलते हैं, प्रकाश कमरे में स्वयं आ जाता है. उसे कहीं से लाना नहीं होता. वह तो हमेशा ही उपस्थित होता है. दिमाग़ की रोशनी भी ऐसी ही चीज़ है. वह हमेशा उपस्थित होती है, लेकिन हम ही हैं जो रोशनी के रास्ते उसके लिए बंद रखते हैं!


हमारी शक्तियों का केंद्र हमारा चेतन मन (कॉन्शियस माइंड) नहीं है. वह तो केवल पेड़ है, हम सब जानते हैं कि पेड़ को शक्ति कहां से मिलती है. पेड़ की सारी शक्ति उसकी जड़ों में होती है. जड़ें दूसरा पेड़ बना सकती हैं, लेकिन जड़ों के बिना पेड़ नहीं खड़ा रह सकता. अवचेतन मन (सबकॉन्शियस माइंड) हमारी जड़ है. एक तरह का पावर हाउस है.
हमारी पूरी विचार प्रक्रिया को कंट्रोल करने वाला सर्वर रूम है! वैज्ञानिकों ने इसे साबित किया है कि हम जैसेे भी हैैं, अपने अवचेतन मन के कारण हैं.


हम अपने जो संकट हल नहीं कर पा रहे हैं/ उन तक नहीं पहुंच पा रहे, उसके मूल में अवचेतन मन ही है. अगर नींद नहीं आती, मन बेचैन रहता है. चिंता में डूबे-डूबे लगता है अब सिर फट जाएगा. हमेशा शंका में डूबे रहते हैं. आने वाली चिंता को दिमाग पर लादे फिरते रहतेे हैं. अतीत के बोझ से मुक्त नहीं है तो यकीन मानिए आपको सबसे पहले अपने अंतर्मन तक पहुंचना चाहिए. जड़ तक पहुंचना चाहिए. जड़ तक पहुंच कर ही आप शरीर के प्रश्नों को हल कर पाएंगे.


मन के ज्यादातर अंधेरे यहीं छुपे होते हैं. लेकिन हम इन तक पहुंच ही नहीं पाते. हमारा पूरा ध्यान पेड़ पर होता है जड़ तक नहीं! इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि मन का वह हिस्सा, जिसमें रोशनी नहीं पड़ती, धीरे-धीरे अंधेरा वहां जमा होता जाता है.
प्रकाश की कमी नहीं होती. प्रकाश तो हमेशा मौजूद होता है. केवल यह होता है कि बंद खिड़की और दरवाज़े उस रोशनी पर पर्दा डाले बैठेे रहते हैं, जिससे आत्मा रोशन होती है.


हम कैसे निर्णय लेते हैं, हमारे फैसले किन चीज़ों पर आधारित होते हैं, यह जानने के लिए बाहर से थोड़ा सा विश्राम जरूरी है! जरूरी है, अपने भीतर और अंदर की तरफ झांकना! जो भी प्रश्न बाहर हैं, वह हमारे कारण ही उपस्थित हैं. अपने फैसलों के लिए दूसरों को जिम्मेदार मत ठहराइए. ध्यान रहे जब यहां दूसरा कहा जा रहा है तो इसका अर्थ है आपके अलावा हर कोई. अगर आप अपने निर्णय स्वयं नहीं लेते तो यह संसार की समस्या नहीं है. यह दुनिया का नहीं आप का संकट है. कबीर को याद करते हुए भीतर की ओर जाइए....
'जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ.'


अपने ही भीतर जाना है. वहीं डूबना है. सारे प्रश्नों के उत्तर वहीं हैं. मन के सारे अंधेरे वहीं बैठे हैं, अवचेतन को थोड़ी रोशनी दीजिए वह आपको भरपूर उजाला देगा. बाहर मत खोजिए, रोशनी के सारे रास्ते केवल भीतर हैं!

संपर्क: ई-मेल: dayashankarmishra2015@gmail.com. आप अपने मन की बात फेसबुक और ट्विटर पर भी साझा कर सकते हैं. ई-मेल पर साझा किए गए प्रश्नों पर संवाद किया जाता है.

(https://twitter.com/dayashankarmi )(https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)

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Tags: Dayashankar mishra, JEEVAN SAMVAD