कोरोना के दौर में बिहार में चुनाव की आहट, प्रवासी मज़दूर बने बड़ा मुद्दा

  • नीरज प्रियदर्शी
  • बीबीसी हिंदी के लिए
नीतीश कुमार

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क्या बिहार का विधानसभा का चुनाव अपने तय समय से होगा? अगर "हां" तो चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा क्या होगा?

यह दोनों सवाल मौजूदा समय में बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं. कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार के कारण लॉकडाउन लंबा खिंच रहा है, जबकि चुनाव का समय क़रीब आ रहा है.

यह बात राजनेता समझ रहे हैं, चुनाव को लेकर वे अलग-अलग दावे कर रहे हैं, वोटरों को लुभाने की हरसंभव कोशिश हो रही है, विपक्ष अपने लिए मुद्दे तैयार कर रहा है और चर्चा है कि हर स्तर पर चुनाव की तैयारियाँ भी शुरू हो गई हैं.

क्या कहता है चुनाव आयोग?

बात जहाँ तक चुनाव के समय से होने की है, तो बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एचआर श्रीनिवास कहते हैं, "नियमों के मुताबिक़ इलेक्शन पीरियड छह महीने का होता है. जो 27 मई से शुरू हो रहा है. मौजूदा विधानसभा 27 नवंबर को भंग हो जाएगी. राज्य के मौजूदा हालात और चुनाव संबंधित दूसरी अन्य जानकारियाँ हमने केंद्रीय चुनाव आयोग से साझा कर दी हैं. आगे जैसा गाइडलाइन केंद्र की तरफ़ से जारी किया जाएगा, उसी अनुसार निर्णय होगा."

चुनाव से संबंधित तैयारियों को लेकर श्रीनिवास ने बताया, "वोटर लिस्ट अपडेट करने और नए वोटरों को जोड़ने का काम तो हम जनवरी-फ़रवरी माह से ही कर रहे हैं. अभी भी चुनाव में काफ़ी समय है. तैयारियों के लिए जो निर्धारित समय है वह 27 मई से शुरू हो गया है, हमें उम्मीद है कि केंद्रीय चुनाव आयोग जल्द ही इस संबंध में कोई फ़ैसला ले लेगा. यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आने वाले हफ़्तों में बिहार में संक्रमण के प्रसार की स्थिति क्या रहती है."

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स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां

आंकड़े कब अपडेट किए गए 5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST

कैसे होगा चुनाव?

फ़िलहाल बिहार में कोविड 19 का संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल रहा है. रोज़ाना सैकड़ों की संख्या में संक्रमित बढ़ रहे हैं.

पॉज़िटिव मामलों की संख्या तीन हज़ार को पार कर गई है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि जून-जुलाई के दरम्यान संक्रमण का प्रसार सबसे ज़्यादा होगा.

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ऐसे में अक्तूबर-नवंबर के माह में अपने पूर्व-निर्धारित समय पर चुनाव होने की संभावना कितनी है इसे लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के एक बयान ने चर्चाओं का बाज़ार गर्म कर दिया है.

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने 26 अप्रैल को कहा था, "चुनाव आयोग कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन के दौरान दक्षिण कोरिया में संपन्न हुए राष्ट्रीय चुनाव का अध्ययन कर रहा है कि कैसे जब महामारी अपने चरम की तरफ बढ़ रही थी, तब दक्षिण कोरिया ने इतने बड़े स्तर पर राष्ट्रीय चुनाव करा लिया."

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयिक्त एस वाई कुरैशी बीबीसी से कहते हैं, "वैसे तो चुनाव की तारीख़ और उसे लेकर अधिसूचना जारी करने का समय नियम के मुताबिक मतदान की तिथि से कम से कम 26 दिन पहले का है, इसके अतिरिक्त अधिक से अधिक और 21 दिनों का समय भी चुनाव आयोग के पास रहता है इस लिहाज से आने वाले दो-तीन महीने काफ़ी अहम होने वाले हैं, ताकि यह पता किया जा सके कि क्या हमारे पास पर्याप्त संसाधन और व्यवस्था है कि हम दक्षिण कोरिया के मॉडल पर चुनाव करा सकें. मेरी समझ से अगर आयोग दक्षिण कोरिया के मॉडल पर विचार कर रहा है तो यह अच्छी बात है, इसे अपने यहाँ भी लागू किया जा सकता है."

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शुरू हो गई है चुनाव की राजनीति!

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ये तो सबको पता है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे लेकर चर्चा बहुत कम हुई.

सरकार का फ़ोकस लॉकडाउन को लागू कराने, संक्रमण के प्रसार को रोकने और लॉकडाउन के कारण बाहर फँसे प्रवासियों को बुलाने एवं उनके इंतज़ाम पर चला गया था. बिहार का विपक्ष इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेरने में लगा था.

लेकिन राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह ट्वीट कर कहा, "कोरोना संक्रमण ने दुनिया भर में जब कामकाज का तरीक़ा बदल दिया, तब इस साल बिहार विधानसभा का चुनाव भी ऑनलाइन क्यों नहीं हो सकता?" इससे एक नई चर्चा शुरू हो गई.

इसी चर्चा के क्रम में राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने यह बयान देकर विवाद पैदा कर दिया है कि "भाजपा अब नीतीश कुमार और सुशील मोदी दोनों से मुक्ति चाहती है. इसलिए इसमें मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में इन दोनों से अलग किसी तीसरे चेहरे को सामने लाती है."

शिवानंद तिवारी के इस बयान के बाद से भाजपा और जदयू के नेता उनपर लगातार हमलावर हैं.

इस तरह धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कोरोना काल में भी अब बिहार के विधानसभा चुनाव की चर्चा होने लगी है. नेता एक-दूसरे के ऊपर हमलावर हो रहे हैं. राजनीतिक बयानबाजियां तेज़ गई हैं, राजनीतिक पार्टियों की तरफ़ से ऑनलाइन माध्यमों का सहारा लेकर जनता से जुड़ने की कोशिशें भी शुरू हो गईं.

जो जितनी बड़ी पार्टी है, उसके पास उतना ही विशाल नेटवर्क है और उतना ही असरदार प्लेटफॉर्म.

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प्रवासी मज़दूरों का मुद्दा कितना बड़ा?

इस बात में तो अब कोई दो राय नहीं कि बिहार का विधानसभा चुनाव अगले दो महीनों में कोरोना संक्रमण के प्रसार की स्थिति पर निर्भर करेगा, लेकिन राजनीतिक पार्टियां, निर्वाचन आयोग और राजनेता अभी तक यही मानकर चल रहे हैं कि चुनाव का तरीक़ा भले बदल जाए, लेकिन चुनाव अपने समय पर होगा.

अब आते हैं कि अपने दूसरे सवाल पर कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा क्या होगा? इसका जवाब मिलता है लॉकडाउन के दौरान काम-धंधे बंद होने के कारण राज्य में वापस लौट रहे प्रवासी मज़दूरों की संख्या, उनके दुखों और संघर्ष की ख़बरों से जिनकी चर्चा देश से लेकर विदेश तक में है.

बिहार सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़ मंगलवार तक देश के अलग-अलग शहरों से 1026 ट्रेनों के ज़रिए 15.41 लाख लोग वापस बिहार आ चुके हैं.

आने वाले दिनों में इनकी संख्या 20 लाख को पार कर जाएगी क्योंकि 323 ट्रेनें अभी और शेड्यूल हैं. इसके अलावा भी लाखों की संख्या में प्रवासी मज़दूर पैदल, साइकिल, ठेले, ऑटोरिक्शा या अन्य निजी वाहन से किसी तरह घर वापस लौटे हैं.

लाखों की संख्या में राज्य वापस लौटे ये मज़दूर आने वाले विधानसभा चुनाव के लिहाज से निर्णायक भूमिका में हैं क्योंकि विपक्ष ने प्रवासियों के मुद्दे पर शुरू से ही सरकार को घेर रखा है.

चाहे वह कोटा में फँसे छात्रों को बुलाने का बात हो या प्रवासी मज़दूरों के लिए लौटने की व्यवस्था की बात हो, बिहार सरकार का स्टैंड प्रवासियों के मुद्दे पर लगातार बदलता आया है.

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दक्षिण और पूर्वी एशिया में भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले सबसे अधिक हैं. .  .

शुरू में सरकार ने प्रवासियों को प्रवेश देने से मना कर दिया. बाद में जब केंद्र की तरफ से स्पेशल ट्रेनें चलाई जाने लगीं तो बिहार सरकार को अपना रुख़ बदलना पड़ा.

इसी तरह शुरू में सरकार ने कहा कि वह लौटने वाले सभी लोगों के लिए क्वारंटीन सेंटर बनाएगी. लेकिन बाद में जब क्वारंटीन सेंटर कम पड़ने लगे और वहां से बदइंतजामी की ख़बरें आने लगीं तो लोगों के लिए होम क्वारंटीन का विकल्प भी दे दिया गया.

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से प्रवासी मज़दूर फ़िलहाल आ तो रहे हैं, लेकिन अपने किराए का पैसा और रास्ते का ख़र्च ख़ुद वहन कर रहे हैं. सरकार ने घोषणा की हुई है कि लोगों को टिकट का पैसा और आने का ख़र्च 21 दिनों को क्वारंटीन पीरियड पूरा करने के बाद दिया जाएगा.

क्या लौट आए प्रवासी मज़दूर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव का मुद्दा बनेंगे? और अगर बनेंगे तो किसे नुक़सान और किसको फ़ायदा होगा?

वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "फ़िलहाल तो सबसे बड़ा मुद्दा प्रवासी मज़दूर ही हैं. क्योंकि अभी उनमें ग़ुस्सा है मौजूदा सरकार के प्रति. शुरू में उन्हें बुलाने पर सरकार का रुख़ नरम रहा और अब जब किसी तरह लौट आए तब यहाँ की कुव्यवस्था की मार झेल रहे हैं. कई क्वारंटीन सेंटर्स से शिकायतें आई हैं. लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि चुनाव तक यह ग़ुस्सा बना रहता है कि नहीं!"

मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "प्रवासियों के मुद्दे पर दोनों सत्ताधारी पार्टियों जेडीयू और भाजपा को नुक़सान हो सकता है. लेकिन यह नुक़सान जेडीयू के लिए ज़्यादा होगा क्योंकि भाजपा केंद्र के स्तर से एक अलग भूमिका में है. विपक्ष को इसका सीधा फ़ायदा मिल सकता है, अगर वह बीते दिनों की तरह ही इस मुद्दे पर सरकार पर लगातार दबाव बनाए रखें."

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क्या हैं सरकार के इंतजाम?

प्रवासी मज़दूरों के लिए सबसे बड़ी चिंता राज्य में रोज़गार की है. क्योंकि यहाँ काम और उचित मज़दूरी नहीं मिल पाने के कारण ही वे दूसरे शहर में मज़दूरी करके कमाने गए थे.

क्या प्रवासी मज़दूरों की चिंता सरकार की चिंता भी है? यह जानने के लिए हमने बात की बिहार सरकार के श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा से.

सिन्हा कहते हैं, "मनरेगा, जल-जीवन-हरियाली, कृषि आधारित उद्योग और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत हमने 50 लाख लोगों के काम का इंतज़ाम किया है. उनमें से कुशल श्रमिकों को छांटकर उनके स्किल के आधार पर काम में लगाया जाएगा. सारे ज़िलों से उनकी लिस्ट मंगा ली गई है."

सिन्हा ने यह भी कहा कि लॉकडाउन पीरियड के दौरान क़रीब ढाई लाख से अधिक लोगों के मनरेगा के नए जॉब कार्ड बने हैं. पांच लाख से अधिक लोगों को काम मिला है.

लेकिन हमारी पड़ताल में ऐसा कोई प्रवासी मज़दूर अभी तक क्यों नहीं मिला जिसका जॉब कार्ड बना या फिर उसे काम मिला हो जबकि हमने पटना, भोजपुर, छपरा में लौटे दर्जनों प्रवासी मज़दूरों से बात की है!

मंत्री विजय कुमार सिन्हा इसके जवाब में कहते हैं, "हमारा काम वो बताना हैं जहाँ हमने काम किया और लोगों को लाभ मिला है. मैं आपको बताता हूं कि पूर्णिया और उसके आस-पास के दो हज़ार मज़दूरों को उनके स्किल के आधार पर टेलरिंग का काम मिला है. दूसरी तमाम जगहों पर भी कोशिशें चल रही हैं और जिसका मनरेगा का जॉब कार्ड बना है वो ऑन रिकार्ड है, केवल हमारे कहने से नहीं. इस सरकार का अधिक से अधिक फोकस यहां की कृषि आधारित व्यवस्था में अधिक से अधिक रोज़गार पैदा करने पर है."

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भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

विपक्ष कहाँ है?

जहाँ तक सवाल प्रवासी मज़दूरों के मुद्दे पर विपक्ष की भूमिका की है तो वह पिछले कई दिनों से इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही है.

इस दौरान बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया के ज़रिए लगातार बाहर फँसे मज़दूरों के साथ संवाद स्थापित किया है. उनकी मदद के इंतजाम भी किए हैं.

लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी क्या बिहार की विपक्षी पार्टी राजद को आने वाले विधानसभा चुनाव में प्रवासियों का सपोर्ट मिल पाएगा?

इसके जवाब में राजद के नेता और तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव कहते हैं, "हमारी पार्टी हमेशा से ग़रीबों और वंचितों की मदद के लिए आगे आती रही है. हमने राजनीति के लिए नहीं बल्कि मानवता के लिए मज़दूरों की मदद की. इस सरकार ने जिनके साथ परायों की तरह व्यवहार किया, हमने उन्हें अपना माना. तब जाकर सरकार को भी विवश होना पड़ा."

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वे कहते हैं, "एक बात पक्की है कि लौटकर आए ये प्रवासी मज़दूर भले राजद को सपोर्ट करें या नहीं करें, लेकिन वे इस सरकार को किसी क़ीमत पर सपोर्ट नहीं करेंगे क्योंकि इस सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया, उल्टा उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया."

प्रवासियों का मुद्दा तो है ही, इसके अलावा विपक्ष इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से यह भी सवाल कर रहा है कि वे इस पूरे कोरोना काल के दौरान अभी तक एक बार भी आवास से बाहर क्यों नहीं निकले हैं, जबकि दूसरे अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री लगातार लोगों के बीच जा रहे हैं, सड़क पर दिख रहे हैं.

विपक्ष के इस सवाल के जवाब में जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहते हैं, "हमारे मुख्यमंत्री दिखावे में नहीं भरोसा करते हैं. वे दिन-रात प्रवासियों की चिंता में ही लगे हैं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए लगातार उनसे बात कर रहे हैं. उनकी समस्याएं सीधे सुन रहे हैं. उनका निपटारा तत्काल कर रहे हैं. और रही बात बाहर निकलने की तो मुख्यमंत्री सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब समझते हैं."

विपक्ष के आरोपों पर सरकार और सत्ताधारी पार्टी भले अपने अंदाज में जवाब दे, लेकिन उनके जवाब से एक बात स्पष्ट है कि आने वाले चुनाव में प्रवासियों की भूमिका अहम रहने वाली है. यह अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी समझने लगे हैं इसलिए सरकार का सारा फ़ोकस प्रवासियों को रोज़गार देने पर शिफ़्ट हो गया है.

सवाल और जवाब

कोरोना वायरस के बारे में सब कुछ

आपके सवाल

  • कोरोना वायरस क्या है? लीड्स के कैटलिन से सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले

    कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है

    सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं

    कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.

    ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.

    कोरोना वायरस के अहम लक्षणः ज्यादा तेज बुखार, कफ़, सांस लेने में तकलीफ़

    लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.

  • एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता? बाइसेस्टर से डेनिस मिशेल सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल

    जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.

    यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.

    ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.

    यह नया वायरस उन सात कोरोना वायरस में से एक है जो मनुष्यों को संक्रमित करते हैं.
  • कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है? जिलियन गिब्स

    वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.

    कोविड-19 के कुछ लक्षणों में तेज बुख़ार, कफ़ और सांस लेने में दिक्कत होना शामिल है.

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.

    इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.

  • क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है? सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक

    दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.

    ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.

    फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.

    • बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
    • जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
    • खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
  • आप कितने दिनों से बीमार हैं? मेडस्टोन से नीता

    हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.

    इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.

    अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.

End of कोरोना वायरस के बारे में सब कुछ

मेरी स्वास्थ्य स्थितियां

आपके सवाल

  • अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है? फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन

    अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.

    अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.

  • क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है? स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड

    ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.

    ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.

  • जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं? कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे

    कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.

    लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.

    कोरोना वायरस की वजह से वायरल निमोनिया हो सकता है जिसके लिए अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
End of मेरी स्वास्थ्य स्थितियां

अपने आप को और दूसरों को बचाना

आपके सवाल

  • कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है? हार्लो से लोरैन स्मिथ

    शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.

    क्वारंटीन उपायों को लागू कराते पुलिस अफ़सर

    फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.

  • क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए? मैनचेस्टर से एन हार्डमैन

    पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.

    मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.

    फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.

    यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.

  • अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए? लंदन से ग्राहम राइट

    अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.

    सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.

End of अपने आप को और दूसरों को बचाना

मैं और मेरा परिवार

आपके सवाल

  • मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा? बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल

    गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.

    यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.

    गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.

  • मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए? मीव मैकगोल्डरिक

    अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.

    अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.

    ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.

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    चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.

    ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.

    हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

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