कोरोना वायरस के कारण हुए चार लॉकडाउन से क्या हासिल हुआ?

  • गुरप्रीत सैनी
  • बीबीसी संवाददाता
लॉकडाउन

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भारत में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं और अब भारत सबसे ज़्यादा मामलों वाले शीर्ष 10 देशों में शामिल हो गया है. इसी डर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो महीने पहले लॉकडाउन लागू किया था. अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या लॉकडाउन फ़ेल हो गया है?

ये सवाल विपक्षी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी उठाया है. उन्होंने कहा, "नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि 21 दिन में कोरोना की लड़ाई जीती जाएगी. चार लॉकडाउन हो गए, तकरीबन 60 दिन हो गए. लॉकडाउन का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ. उल्टा बीमारी बढ़ती जा रही है."

लेकिन भारत सरकार लॉकडाउन को लगातार कामयाब बता रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में लॉकडाउन की कई उपलब्धियां भी गिनाईं और कहा कि मामले भले ही बढ़ रहे हों, लेकिन देश में इस बीमारी से मौतों की संख्या दुनिया में सबसे कम रही है.

तो अब दोनों दावों में से कौन-से दावे में दम है? ये समझने के लिए सबसे पहले ये जानना होगा कि लॉकडाउन आख़िर लगाया क्यों गया था, उसका मक़सद क्या था?

लॉकडाउन से क्या थी उम्मीद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लॉकडाउन की घोषणा की थी तो इस बात पर ज़ोर दिया था कि "हमें कोरोना संक्रमण के साइकल को तोड़ना है."

दूसरा, सरकार लॉकडाउन के ज़रिए कुछ वक़्त चाहती थी, ताकि वो लॉकडाउन के बाद कोरोना के प्रकोप को संभालने के लिए तैयारी कर सके.

वीडियो कैप्शन, कोरोना लॉकडाउन में हो रहे हैं नए-नए आविष्कार

तो क्या ये मक़सद पूरे हो सके हैं? इस पर दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के मेडिसिन डिपार्टमेंट के वाइस चेयरमैन डॉक्टर अतुल कक्कड़ कहते हैं कि शुरुआती वक़्त में मामलों को स्लो डाउन करने में तो लॉकडाउन से कुछ मदद मिली ही थी, नहीं तो पीक बहुत पहले आ सकता था.

वहीं जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर डीएस मीणा कहते हैं कि ये नया वायरस था.

"लॉकडाउन से इस वायरस को समझने और जानने का वक़्त मिला. कोरोना मरीज़ों का इलाज किस तरह से करना है, टेस्टिंग किस तरह से करनी है, इसे लेकर स्वास्थ्य कर्मियों को पहले जानकारी नहीं थी. इस दौरान इस पर प्रोटोकॉल बनाए गए. ज़रूरत के हिसाब से इनमें बदलाव किया गया. अब इस वायरस से निपटने के लिए पहले से ज़्यादा समझ और ज़्यादा संसाधन हैं."

नक्शे पर

दुनिया भर में पुष्ट मामले

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स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां

आंकड़े कब अपडेट किए गए 5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST

'सकारात्मक नहीं नकारात्मक कामयाबी'

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर से वायरोलॉजी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर टी जैकब जॉन मानते हैं कि आप ये नहीं कह सकते कि ये लॉकडाउन पूरी तरह से फ़ेल हो गया है, क्योंकि जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस लॉकडाउन की आर्थिक क़ीमत चुकानी होगी, "ये ज़रूर हुआ - चाहे कुछ और हुआ हो या ना हुआ हो."

"लॉकडाउन से तीन नतीजे मिलने की बात कही जा रही थी. उम्मीद थी कि इससे महामारी स्लो डाउन हो जाएगी. साथ ही लॉकडाउन के बाद के वक़्त के लिए तैयारी कर ली जाएगी. तीसरी बात कही गई थी कि लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को नुक़सान भी हो सकता है."

डॉक्टर जैकब जॉन मानते हैं कि "लॉकडाउन जिस एक चीज़ में पूरी तरह कामयाब रहा है वो है सिर्फ़ अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने में."

साथ ही डॉक्टर जैकब जॉन कहते हैं कि, "इस बात के कोई सबूत नहीं मिलते कि भारत में संक्रमण फैलने की स्पीड कम हुई है. भारत में हर रोज़ संक्रमण के मामले पिछले दिन से ज़्यादा होते हैं और ये तेज़ी से बढ़ रहे हैं."

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लेकिन क्या घटी मृत्यु दर

मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए तो उन्होंने लॉकडाउन की कई उपलब्धियां गिनाईं.

उन्होंने दावा किया कि लॉकडाउन की वजह से भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले हालात को बहुत बेहतर तरीक़े से संभाला. इससे रिकवरी रेट बढ़ा, मृत्यु दर या मौतों की संख्या बहुत कम हो गई.

लव अग्रवाल ने बताया कि मार्च में जो रिकवरी रेट क़रीब 7.1 प्रतिशत था, "वो दूसरा लॉकडाउन शुरू होने के वक़्त बढ़कर 11.42 हो गया था. वहीं तीसरा लॉकडाउन शुरू करने के समय पर बढ़कर 26.95 प्रतिशत हुआ और आज हम देख रहे हैं कि फ़ील्ड में कोशिशें करने की वजह से वो लॉकडाउन के इस मौजूदा वक़्त में बढ़कर 41.61 प्रतिशत हो चुका है."

साथ ही उन्होंने ये भी दावा किया कि भारत में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों में मृत्यु दर दुनिया में सबसे कम यानी क़रीब 2.8 प्रतिशत हो गई है, जबकि दुनियाभर में मृत्यु दर औसतन 6.4 प्रतिशत है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन सब उपलब्धियों का मुख्य कारण लॉकडाउन को बताया - उन्होंने कहा कि इस दौरान हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया, लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सका, साथ ही कंटेनमेंट के क़दमों के ज़रिए चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन को कमज़ोर किया जा सका.

लेकिन आगे की तैयारी क्या है?

लेकिन डॉ जैकब जॉन सरकार के इन दावों पर सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं कि सरकार दावे तो कर रही है लेकिन आंकड़े पेश नहीं कर रही कि उन्होंने कितने बेड तैयार कर लिए हैं, कितने वेंटिलेटर तैयार कर लिए हैं.

वो कहते हैं कि मुंबई से अब भी बेड कम पड़ने की ख़बरे आ रही हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में बेड हैं तो स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है.

"सरकार को बताना चाहिए कि इसके लिए उनकी क्या तैयारी है? सरकार कह रही है कि लॉकडाउन में प्लानिंग की, पर क्या प्लानिंग की है? एक नागरिक के तौर पर हमें इसमें से कोई जानकारी नहीं दी गई है."

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उनका ये भी कहना है कि लॉकडाउन ने मामलों को उस तरह स्लो डाउन नहीं किया, जिस तरह हम चाहते थे.

जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अगर दुनिया में प्रति लाख आबादी पर 69.9 केस रिपोर्ट हुए हैं, तो भारत में ये क़रीब महज़ 10.7 केस प्रति लाख रिपोर्ट हुए हैं.

हालांकि, डॉक्टर जैकब जॉन कहते हैं कि मामले इसलिए कम दिख रहे हैं, क्योंकि पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है.

उनका कहना है कि भारत की महज़ एक फ़ीसदी आबादी का टेस्ट हुआ है, इसलिए कोई नहीं जानता कि 99 फ़ीसदी आबादी में क्या चल रहा है, वहां हो रही मौतों को भी नहीं गिना जा रहा, क्योंकि मौतों की गिनती भी इसी एक फ़ीसदी आबादी में से की जा रही है.

'मृत्यु दर कम नहीं, बल्कि बहुत ज़्यादा'

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डॉक्टर जैकब जॉन दावा करते हैं कि "भारत सरकार के दावों से उलट भारत की असल केस फ़ेटेलिटी 17.8% है, जो दुनिया में कहीं ज़्यादा है. वहीं भारत की इंफ़ेक्शन फ़ेटेलिटी भी 3.6 प्रतिशत है."

डॉक्टर जैकब जॉन का कहना है कि केंद्र सरकार केवल फ़ेटेलिटी बताती है, वो ये नहीं बताती कि ये इंफ़ेक्शन फ़ेटेलिटी रेट है या केस फ़ेटेलिटी रेट है, "ये दोनों ही अलग हैं और केस फ़ेटेलिटी बहुत ही चिंताजनक स्तर पर है."

ये मृत्यु दर उन्होंने किस आधार पर निकाली है? इस पर डॉ जैकब जॉन ने बताया, मृत्यु दर दो तरह से देखी जाती है. एक इंफ़ेक्शन फ़ेटेलिटी, दूसरी केस फ़ेटेलिटी.

मान लीजिए 1000 लोगों को इंफ़ेक्शन हुआ, तो उनमें से जितने लोगों की मौत होगी, वो इंफ़ेक्शन फ़ेटेलिटी होगी.

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कोरोना वायरस ट्रांसलेटर

इन सभी शब्दों का क्या मतलब है?

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  • एंटीबॉडीज टेस्ट

    ऐसा मेडिकल टेस्ट जिससे साबित हो सके कि किसी शख्स को कोरोना वायरस था और अब उसमें कुछ इम्युनिटी आ गई है. यह टेस्ट खून में एंटीबॉडीज का पता लगाता है, जिन्हें बीमारी से लड़ने के लिए शरीर पैदा करता है.

  • बिना लक्षण वाले

    ऐसा शख्स जिसे बीमारी हुई मगर उसमें कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए. कुछ स्टडीज से पता चला है कि कोरोना वायरस का शिकार हुए कुछ लोगों में तेज़ बुखार या कफ़ जैसे आम लक्षण नहीं नज़र आए.

  • कोरोना वायरस

    वायरस समूह में से एक वायरस जिससे मनुष्यों या जानवरों में गंभीर या हल्की बीमारी हो सकती है. पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस से कोविड-19 बीमारी हो रही है. सामान्य सर्दी या इंफ्लूएंजा (फ़्लू) फैलाने वाले दूसरे तरह के कोरोना वायरस हैं.

  • कोविड-19

    कोरोना वायरस की वजह से फैल रही बीमारी का सबसे पहले पता 2019 के अंत में चीन के वुहान में लगा. यह मूलरूप में फ़ेफ़ड़ों पर असर डालता है.

  • संक्रमण की तेज़ी को रोकना

    ट्रांसमिशन की दर को कम करना ताकि चार्ट पर प्रदर्शित किए जाने पर मामलों की संख्या के आधार पर पीक को फ्लैट कर कर्व को नीचे लाया जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके.

  • फ़्लू

    इंफ्लूएंजा का संक्षिप्त नाम. एक वायरस जो कि सीजनल बीमारियों में मनुष्यों और जानवरों में फैलता है.

  • सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता

    एक बड़ी आबादी तक पहुंचने के बाद किस तरह से एक बीमारी का फैलाव सुस्त पड़ता है.

  • लड़ने में सक्षम

    ऐसा शख्स जिसका शरीर किसी बीमारी के सामने टिक सके या उसे रोक दे वह इससे इम्यून कहा जाता है. एक बार जब कोई शख्स कोरोना वायरस से उबर जाता है तो ऐसा माना जाता है कि वह एक निश्चित अवधि तक इस बीमारी का फिर से शिकार नहीं हो सकता.

  • वायरस के असर करने की अवधि

    किसी बीमारी का शिकार होने और उसका लक्षण दिखाई देना शुरू होने के बीच की अवधि

  • लॉकडाउन

    आवाजाही या रोज़ाना की ज़िंदगी पर पाबंदियां, जिनमें सार्वजनिक इमारतें बंद हैं और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए कहा गया है. कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कई देशों में लॉकडाउन को कड़े उपायों के तौर पर लागू किया गया है."

  • शुरुआत

    किसी क्लस्टर या अलग-अलग इलाकों में तेज रफ्तार से बीमारी के कई मामले सामने आना.

  • महामारी

    किसी गंभीर बीमारी का कई देशों में एकसाथ तेजी से फैलना महामारी कहलाता है.

  • एकांतवास

    किसी संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए इसकी जद में आए लोगों को अलग रखना.

  • सार्स

    सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम एक कोरोना वायरस का ही प्रकार है जो कि एशिया में 2003 में शुरू हुआ था.

  • सेल्फ-आइसोलेशन

    घर पर ही रहना और अन्य लोगों से सभी तरह के संपर्क से बचना ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.

  • सामाजिक दूरी

    अन्य लोगों से दूर रहना ताकि बीमारी के ट्रांसमिशन की रफ्तार कम की जा सके. सरकार की सलाह है कि अपने साथ रह रहे लोगों के अलावा दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिलें. साथ ही सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल से भी बचें.

  • आपातकालीन स्थिति

    किसी संकट के वक्त सरकार द्वारा रोज़ाना की जिंदगी पर पाबंदी लगाने के मकसद से उठाए गए कदम. इसमें स्कूलों और दफ्तरों को बंद करना, लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगाना और यहां तक कि सैन्य बलों को तैनात करना ताकि रेगुलर इमर्जेंसी सेवाओं को सपोर्ट किया जा सके."

  • लक्षण

    संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की कोशिश के तौर पर इम्यून सिस्टम से किसी बीमारी के संकेत. कोरोना वायरस का मुख्य लक्षण बुखार, सूखी खांसी और सांस लेने में दिक्कत होना है."

  • टीका

    ऐसा इलाज जिससे शरीर एंटीबॉडीज पैदा करता है, जो कि बीमारी से लड़ता है और आगे के संक्रमण से लड़ने की इम्युनिटी देता है."

  • वेंटीलेटर

    ऐसी मशीन जो कि ऐसे वक्त पर शरीर के लिए सांस लेने का काम करती है जब फ़ेफ़ड़े काम करना बंद करने लगते हैं.

  • विषाणु

    एक छोटा सा एजेंट जो कि किसी जीवित सेल के भीतर अपनी कॉपी बना लेता है. वायरस की वजह से ये सेल मरने लगती हैं और शरीर की सामान्य केमिकल प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर देती हैं जिससे बीमारी हो जाती है.

मुख्य कहानी नीचे जारी है

केस फ़ेटेलिटी मतलब - 1000 लोगों को इंफ़ेक्शन होता है तो उनमें से 800 ख़ुद ही ठीक हो जाते हैं. बचे हुए 200 को बीमारी होती है. तो उन 200 लोगों में से जितने लोगों की मौत होगी वो केस फ़ेटेलिटी मानी जाएगी.

भारत में कोरोना मृत्यु दर को समझाते हुए डॉक्टर जैकब जॉन कहते हैं, "कल इंफ़ेक्ट होने वाला कोई शख़्स आज नहीं मरेगा. पहले 7 से 10 दिन का इनक्यूबेशन पीरियड होता है. फिर लक्षण आते हैं. फिर व्यक्ति बहुत बीमार हो जाता है. उसके बाद उनकी मौत हो जाती है. इस सब में 3 से 4 हफ्ते का वक़्त लगता है."

"इसलिए इंफ़ेक्शन फ़ेटेलिटी और केस फ़ेटेलिटी निकालने के लिए चार या तीन हफ़्ते पहले के संक्रमित मामलों की संख्या को लिया जाता है और उन्हें आज की मौतों की संख्या से कैलकुलेट करके मृत्यु दर का प्रतिशत निकाला जाता है."

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समाप्त

डॉक्टर जैकब जॉन दावा करते हैं कि भारत की असल मृत्यु दर बेहद चिंताजनक और दुनिया में दूसरे देशों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है. वो कहते हैं कि भारत की मृत्यु दर बहुत कम होनी चाहिए थी, क्योंकि यहां 80 प्रतिशत आबादी 50 साल से कम उम्र की है.

वो दावा करते हैं कि अमरीका जैसे देश में एक लाख से ज़्यादा मौतों का आंकड़ा इसलिए दिखता है, क्योंकि वो लोग सारी आबादी में हुई मौतों को गिन रहे हैं, जबकि भारत महज़ अपनी एक फ़ीसदी आबादी का टेस्ट कर उनमें ही हुई मौतों को गिन रहा है, बाकी 99 प्रतिशत आबादी में क्या चल रहा है, किसी को नहीं पता.

वो कहते हैं कि भारत सरकार इसलिए कहीं ना कहीं इस बात से लगातार इनकार कर रही है कि देश में कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हुआ है.

डॉक्टर जैकब जॉन मानते हैं कि लॉकडाउन से की गई दो सकारात्मक उम्मीदें - कि महामारी धीमी हो जाए और हमें प्लानिंग के लिए वक़्त मिल जाए, दोनों ही नहीं हो पाया.

"एक देश के तौर पर हमने महामारी से निपटने में अच्छा काम नहीं किया, लेकिन हम कर सकते थे. क्योंकि भारत विकासशील देशों का लीडर है, हमारे पास स्किल है, नॉलेज है, टेलेंट है, इंटेलेक्चुअल पावर है, ख़ुद को ऑर्गेनाइज़ करने की एबिलिटी है, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं किया गया."

सवाल और जवाब

कोरोना वायरस के बारे में सब कुछ

आपके सवाल

  • कोरोना वायरस क्या है? लीड्स के कैटलिन से सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले

    कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है

    सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं

    कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.

    ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.

    कोरोना वायरस के अहम लक्षणः ज्यादा तेज बुखार, कफ़, सांस लेने में तकलीफ़

    लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.

  • एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता? बाइसेस्टर से डेनिस मिशेल सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल

    जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.

    यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.

    ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.

    यह नया वायरस उन सात कोरोना वायरस में से एक है जो मनुष्यों को संक्रमित करते हैं.
  • कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है? जिलियन गिब्स

    वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.

    कोविड-19 के कुछ लक्षणों में तेज बुख़ार, कफ़ और सांस लेने में दिक्कत होना शामिल है.

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.

    इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.

  • क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है? सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक

    दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.

    ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.

    फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.

    • बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
    • जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
    • खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
  • आप कितने दिनों से बीमार हैं? मेडस्टोन से नीता

    हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.

    इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.

    अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.

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मेरी स्वास्थ्य स्थितियां

आपके सवाल

  • अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है? फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन

    अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.

    अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.

  • क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है? स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड

    ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.

    ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.

  • जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं? कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे

    कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.

    लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.

    कोरोना वायरस की वजह से वायरल निमोनिया हो सकता है जिसके लिए अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
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अपने आप को और दूसरों को बचाना

आपके सवाल

  • कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है? हार्लो से लोरैन स्मिथ

    शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.

    क्वारंटीन उपायों को लागू कराते पुलिस अफ़सर

    फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.

  • क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए? मैनचेस्टर से एन हार्डमैन

    पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.

    मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.

    फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.

    यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.

  • अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए? लंदन से ग्राहम राइट

    अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.

    सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.

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मैं और मेरा परिवार

आपके सवाल

  • मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा? बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल

    गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.

    यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.

    गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.

  • मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए? मीव मैकगोल्डरिक

    अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.

    अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.

    ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.

  • बच्चों के लिए क्या जोखिम है? लंदन से लुइस

    चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.

    ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.

    हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

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