कोरोना लॉकडाउन: प्रवासी मज़दूरों से किराया नहीं लिया जाए - सुप्रीम कोर्ट
भारत में प्रवासी मज़दूरों की बदहाली पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उनसे ट्रेन या बस का किराया नहीं लिया जाए और बसों से अपने घर लौटने वाले मज़दूरों को भी खाना-पीना मुहैया कराया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवासी मज़दूरों के हालात पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को नोटिस जारी किया था.
कोर्ट ने पूछा था कि इन सरकारों ने प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को ठीक करने के लिए क्या किया है?
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गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और एम.आर. शाह की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार समेत कई राज्य सरकारों ने अदालत में अपना पक्ष रखा. क़रीब घंटे भर की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों की सहायता करने के लिए कई निर्देश जारी किए.
बीबीसी हिंदी के सहयोगी पत्रकार सुचित्र मोहंती सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे. इस मामले में हुई सुनवाई और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बारे में वो यहाँ विस्तार से बता रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी सरकारों के लिए जारी निर्देश
- किसी भी प्रवासी मज़दूर से ट्रेन या बस का किराया ना लिया जाये. रेलवे का किराया दो राज्य सरकारों के बीच शेयर किया जाए, प्रवासी मज़दूरों से नहीं.
- जब भी राज्य सरकारें ट्रेनों की माँग करें, तो रेलवे उन्हें ट्रेनें उपलब्ध कराए.
- ट्रेन यात्रा के दौरान, स्टेशन से ट्रेन के चलने पर राज्य सरकारें यात्रियों के खाने और पीने की व्यवस्था करें. रेलवे मज़दूरों को यात्रा के दौरान खाना-पानी मुहैया कराए.
- बसों में भी मज़दूरों को खाना और पानी दिया जाए.
- राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करें कि पंजीकरण के बाद प्रवासी मज़दूरों को जल्द से जल्द बसें मुहैया करवाई जाएं.
- जो प्रवासी मज़दूर सड़कों पर पैदल सफ़र करते दिखें, स्थानीय प्रशासन उनके खाने-पीने की व्यवस्था करे और उन्हें शेल्टर होम में ले जाए.
- सुप्रीम कोर्ट मानता है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कई प्रयास किये हैं, लेकिन लोगों तक इनका फ़ायदा पहुँचता दिख नहीं रहा क्योंकि कई जगह चूक हुई है.
- प्रवासी मज़दूरों के पंजीकरण की प्रक्रिया में कई ख़ामियाँ दिखती हैं. उनके परिवहन और खाने-पीने की व्यवस्था में भी दिक्कते हैं. ऐसा भी हुआ है कि मज़दूरों ने पंजीकरण करवा लिया, फिर भी उन्हें अपने घर लौटने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा.
- यूपी, महाराष्ट्र सरकार की दलीलों को हमने सुना. पर कई राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं दे पाईं. उन्हें इसके लिए कुछ वक़्त दिया जाता है. केंद्र और राज्य सरकारें क्या-क्या प्रयास कर रही हैं, वो उन्हें दर्ज करें.
- सरकारें सुप्रीम कोर्ट को बताएं कि उनका ट्रांसपोर्ट प्लान क्या है, रजिस्ट्रेशन कैसे किया जा रहा है और कितने प्रवासी मज़दूर अभी घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं, उनकी संख्या कितनी है.
- यह जानकारी देने के लिए सभी राज्य सरकारों को 5 जून तक का समय दिया जाता है.
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प्रवासी मज़दूरों पर सुनवाई के दौरान
बहुत से प्रवासी मज़दूरों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में खड़े वरिष्ठ वकील कॉलिन गोन्ज़ाल्विस ने अदालत से गुज़ारिश की थी कि "इस मामले में दख़ल दिए जाने की ज़रूरत है. साथ ही केंद्र सरकार को कुछ दिशा-निर्देश भी दिए जाने चाहिए."
कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने गुज़ारिश की थी कि "प्रवासी मज़दूरों की स्थिति को देखते हुए सर्वोच्च अदालत आज ही सभी पक्षों की सुनवाई कर ले और जल्द से जल्द इस मामले में आदेश दे."
सुनवाई के दौरान इंदिरा जयसिंह ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों की जितनी संख्या है, उसे देखते हुए श्रमिक ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि "बीते कुछ दिनों में कुछ ही अप्रिय घटनाएं हुई हैं, लेकिन इन्हें बार-बार दिखाया गया है."
कोर्ट में मेहता ने कहा, "पहले लॉकडाउन की घोषणा 24 मार्च को हुई थी जिसके दो मक़सद थे. एक तो ये कि कोरोना वायरस की चेन को तोड़ा जाए और दूसरा ये कि हेल्थकेयर सिस्टम को इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार किया जा सके. अब केंद्र सरकार ने तय किया है कि प्रवासी मज़दूरों को शिफ़्ट किया जाये और जब तक हर प्रवासी मज़दूर अपने घर नहीं पहुँच जाता, तब तक सरकार जो प्रयास कर रही है, वो जारी रहेंगे."
'अब तक 91 लाख मज़दूरों को घर पहुँचाया'
तुषार मेहता ने कहा कि 27 मई तक प्रवासी मज़दूरों के लिए 3700 स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं. औसतन क़रीब 1 लाख 85 हज़ार मज़दूर रोज़ाना इन ट्रेनों से सफ़र कर रहे हैं.
सरकार की ओर से तुषार मेहता ने दावा किया कि अब तक ट्रेन और सड़क मार्ग से क़रीब 91 लाख मज़दूरों को उनके गृह राज्य तक पहुँचाया गया है जिनमें से 80 प्रतिशत प्रवासी मज़दूर उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं.
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स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां
आंकड़े कब अपडेट किए गए
5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा कि प्रवासी मज़दूरों के आने-जाने का ख़र्च कौन उठा रहा है?
तो तुषार मेहता ने जवाब दिया, "दो राज्य आपसी समन्वय से मज़दूरों के आने-जाने की व्यवस्था देख रहे हैं. रेलवे स्टेशन तक पहुँचाना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है. स्टेशन पहुँचने पर मज़दूरों की स्क्रीनिंग होती है और जो फ़िट होते हैं उन्हें पहले से सेनेटाइज़ की गई ट्रेनों में बैठाया जाता है और ट्रेन में सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन होता है."
तुषार मेहता ने कोर्ट में दावा किया कि "प्रवासी मज़दूरों को ट्रेन में पहली मील (खाना) राज्य सरकार द्वारा दी जा रही है और जब ट्रेन चल पड़ती है तो रेल मंत्रालय द्वारा उन्हें खाना दिया जाता है. छोटी यात्रा में एक बार और लंबी दूरी की यात्रा में दो बार खाना दिया जाता है."
मेहता ने कहा कि गंतव्य पर पहुँचने के बाद राज्य सरकार लोगों को बसें मुहैया कराती हैं और जिनसे ये लोग अपने गाँवों तक जा रहे हैं.
तुषार मेहता ने दावा किया कि रेल के टिकट का ख़र्च या तो केंद्र सरकार उठाती है या राज्य सरकार, लेकिन प्रवासी मज़दूरों से कुछ नहीं लिया जा रहा.
'राज्यों की सीमाओं पर क्यों रोका गया?'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि प्रवासी मज़दूर जब तक घर नहीं पहुँच जाते, तब तक उनके खाने और अन्य ज़रूरी सामान की व्यवस्था का सरकारें ध्यान रखें.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि सभी प्रवासी मज़दूरों को शिफ़्ट होने में अभी कितना समय लगेगा? इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा, "क़रीब एक करोड़ लोग शिफ़्ट हो चुके हैं. बहुत से लोगों ने काम-धंधे खुलने के उम्मीद में शिफ़्ट ना होने का निर्णय लिया है."
तुषार मेहता ने कोर्ट में दावा किया था कि मज़दूर जहाँ हैं और जहाँ जाना चाहते हैं, उन दोनों राज्यों की सहमति से उन्हें शिफ़्ट किया जा रहा है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि उन घटनाओं का क्या जब देखा गया कि एक राज्य से प्रवासी मज़दूर दूसरे राज्य के बॉर्डर पर पहुँचे और उस राज्य ने उन्हें लेने से ही मना कर दिया? इसके बारे में भी कोई नीति होनी चाहिए.
इस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया कि "इसमें कोई विवाद नहीं है, कोई राज्य किसी भी अपने प्रवासी मज़दूर को दाख़िल होने से नहीं रोक रहा, आख़िरकार वो भारतीय हैं और इस देश के नागरिक हैं."
'टिकटों का पैसा कौन दे रहा?'
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि "आपने अभी भी साफ़तौर से नहीं बताया कि टिकटों का पैसा कौन दे रहा है?"
इसके जवाब में मेहता ने कहा, "या तो वो राज्य टिकट का पैसा दे रहा है जहाँ से प्रवासी मज़दूर जा रहे हैं या फिर वो जहाँ उन्हें पहुँचना है."
तब कोर्ट ने पूछा, "उन राज्यों का क्या जो प्रवासी मज़दूरों को टिकट के पैसे बाद में लौटाने की बात कर रहे हैं? क्योंकि मज़दूरों को इसकी समझ नहीं है कि किस सरकार से उन्हें पैसे लेने हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इसका जवाब चाहते हैं.
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अदालत में खड़े वरिष्ठ वकील पीएस नरसिम्हा ने कहा कि क़रीब 18 लाख लोग शिफ़्ट हो चुके हैं, प्रवासी मज़दूरों के लिए 1335 ट्रेनें चल रही हैं, हर स्तर पर व्यवस्था बनाने की कोशिश की गई है, कैंप विकसित किए गए हैं जिनमें लोगों को खाना दिया जा रहा है.
प्रवासी मज़दूरों को कैंपों में मिल रहे खाने पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, "क्या खाना दिया जा रहा है? कच्चा राशन दिया जा रहा है. दालें क्या खाना होती हैं. सरकार ये भी तो बताएं कि ये लोग जो सड़कों पर हैं, बुरी स्थिति में हैं, वो उन्हें पकाएंगे कहाँ?"
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कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
आप कितने दिनों से बीमार हैं?मेडस्टोन से नीता
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है?फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन
मिशेल रॉबर्ट्सबीबीसी हेल्थ ऑनलाइन एडिटर
अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं?कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.