योगी आदित्यनाथ क्या प्रवासी मज़दूरों पर बयान देकर घिर गए हैं?

  • सरोज सिंह
  • बीबीसी संवाददाता
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान को लेकर यूपी से महाराष्ट्र तक हंगामा मचा हुआ है.

दरअसल 24 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक वेबिनार में हिस्सा ले रहे थे.

वहां लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश के अंदर जितनी भी मैनपॉवर हमारी है, इन सबकी स्किल मैपिंग के साथ-साथ कमिशन का गठन करके व्यापक स्तर पर रोज़गार उत्तर प्रदेश के अंदर उपलब्ध कराने की कार्रवाई सरकार कर रही है. अब अगर किसी सरकार को मैनपॉवर चाहिए, तो इस मैनपॉवर को सोशल सिक्युरिटी की गारंटी राज्य सरकार देगी, उनका बीमा कराएगी, उनको हर तरह से सुरक्षा देंगे. लेकिन साथ-साथ राज्य सरकार बिना हमारे परमिशन के हमारे लोगों को लेकर नहीं जाएगी, क्योंकि कुछ राज्यों में जो लोगों की दुर्गति हुई है, जिस प्रकार का व्यवहार हुआ है उसको देखते हुए हम इनकी सोशल सिक्युरिटी की गारंटी अपने हाथों में लेने जा रहे हैं. इसके लिए मैंने आज एक कमिशन बनाने की व्यवस्था की है."

इस पूरे बयान में से "राज्य सरकार बिना हमारे परमिशन के हमारे लोगों को लेकर नहीं जाएगी" हिस्से को लेकर विवाद छिड़ गया है.

राहुल गांधी

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वर्चुअल प्रेस कॉन्फ़्रेंस में योगी सरकार के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.

उन्होंने कहा, "हर भारतीय के पास देश में कहीं भी जाकर अपने सपने पूरे करने का अधिकार हैं. ये लोग उत्तर प्रदेश की संपत्ति नहीं हैं, बल्कि भारत के नागरिक हैं. हमारा काम उनके सपने पूरे करने में मदद करना है ना कि ये तय करना कि वो कहाँ काम करेंगे, कहाँ नहीं."

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के इस बयान के तुरंत बाद अपनी तरफ ये एक बयान जारी किया.

अपने बयान में उन्होंने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार से परमिशन लेने की ज़रूरत पड़ेगी, तो जो मज़दूर महाराष्ट्र में काम के लिए एंट्री लेना चाहते हैं तो उन्हें भी महाराष्ट्र सरकार से मंज़ूरी लेनी पड़ेगी.

राज ठाकरे ने ये भी जोड़ा कि महाराष्ट्र सरकार को इस बयान को गंभीरता से लेना चाहिए. जब भी प्रवासी मज़दूर महाराष्ट्र में आएं तो उनका रजिस्ट्रेशन कराना चाहिए, आईडी प्रूव और पूरा ब्यौरा लेना चाहिए और लोकल पुलिस स्टेशन पर इसका रिकॉर्ड रखना चाहिए. महाराष्ट्र सरकार को प्रवासी मज़दूरों के लिए इन सभी नियमों का सख़्ती से पालन करना चाहिए.

राज ठाकरे

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राज ठाकरे की पार्टी हमेशा से इस विचारधारा को मानती आई है कि महाराष्ट्र में रोज़गार पर पहला हक़ मराठियों का है. उत्तर भारतीयों का विरोध की उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है.

हालाँकि इस पूरे मसले पर ना तो शिवसेना ने ना ही एनसीपी ने अभी कोई जवाब दिया है. लेकिन उत्तर प्रदेश के प्रवासी मज़दूरों पर महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री ने बीबीसी मराठी सेवा के मयंक भागवत से ये जरूर कहा, "इतने सालों तक वो सत्ता में थे, लेकिन मज़दूर लोगों के लिए कुछ नहीं किया, अपने यहां लोगों को रोज़गार नहीं दे पाए. महाराष्ट्र ने इन्हें रोज़गार दिया. ये तो ऐसे है माँ ने नहीं संभाला, लेकिन मौसी ने संभाला. हमने मज़दूरों को दो महीने तक खाना दिया. अब वो घर जाना चाहते है. हम उन्हें आगे भी संभालेंगे. योगी आदित्यनाथ को अपने राज्य में देखना चाहिए. हम अपना संभाल लेंगें."

बयान पर कहासुनी

सोशल मीडिया पर भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान की काफ़ी चर्चा हो रही है. बीबीसी ने अपने फ़ेसबुक पन्ने पर इसी विषय पर कहासूनी की थी. बड़ी संख्या में लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी.

कहासुनी

बिश्वेश्वर चौधरी ने लिखा, "कोई भी भारतीय वो किसी भी राज्य का हो, वो बिना सरकार की अनुमति के किसी भी राज्य में काम कर सकता है. अगर ये बयान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरफ़ से आया है तो ये संविधान विरोधी है. मैं नहीं समझता कि कोई भी मुख्यमंत्री इस तरह का बयान दे सकता है."

वहीं, संतोष कदम लिखते हैं, "ये बहुत अच्छा बयान है, एक ताक़तवर नेता का. हमें हर राज्य में उन जैसे मुख्यमंत्री की ज़रूरत है."

बालकृष्ण यादव ने इसे अच्छा फ़ैसला बताया है. उन्होंने लिखा, "प्रवासी मज़दूरों के साथ महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. हमें उन मज़दूरों की मदद करनी चाहिए ताकि उन्हें नौकरी के लिए बाहर न जाना पड़े."

देवेंद्र सिंह लिखते हैं, "वैसे तो ये फ़ैसला संविधान के अनुसार नहीं है, लेकिन जिस तरह से अलग-अलग राज्यों में मज़दूरों के साथ बुरे वक्त में बुरा सलूक हुआ, उसमें ये फ़ैसला सही है."

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मज़दूर कहाँ मज़दूरी करें, ये अधिकार किसका?

भारत में कोई भी नागरिक किसी राज्य में जा कर काम कर सकता है इस पर कोई रोक नहीं है. हालाँकि सरकारी नौकरियों में कुछ नियम और शर्तें ज़रूर हैं.

प्रवासी मज़दूरों पर कोरोना के दौर पर काम करने वाले, राजेंद्रन राघवन से बीबीसी ने बात की.

उन्होंने कहा, "मैंने योगी आदित्यनाथ का बयान नहीं सुना है, लेकिन प्रवासी मज़दूरों की सोशल सिक्युरिटी काफ़ी ज़रूरी है. चाहे वो राज्य सरकार लें या फिर केंद्र सरकार देंखे. इस पर बहुत पहले अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट भी दी है. लेकिन आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ है."

अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी 2007 में असंगठित श्रेत्र में काम करने वाले कामगारों की दशा और दिशा पर सुझाव देने के लिए बनी थी.

राजेंद्रन के मुताबिक़ ये सही वक़्त है कि मज़दूरों के समाजिक सुरक्षा के बारे में सोचा जाए. हमें इसे एक राज्य बनाम दूसरा राज्य के रूप में नहीं देखना चाहिए और ना ही इस पर कोई झगड़ा होना चाहिए, कि ये मेरा काम है या तुम्हारा काम है.

वो आगे कहते हैं, "जब भी एक प्रवासी मज़दूर ग़़रीब राज्य से दूसरे अमीर राज्य में जाता है तो अमीर राज्यों का भी एक दायित्व होता है, कर्तव्य होता है कि ग़रीब प्रांतों से आए प्रवासी मज़दूरों की देखभाल करें. इस पूरे कोविड19 के दौर में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ है."

प्रवासी मजदूर

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मुख्यमंत्री का बयान कितना सही है?

बीबीसी ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस पर उनका पक्ष जानना चाहा.

उत्तर प्रदेश में देश के अलग-अलग राज्यों से अब तक 26 लाख प्रवासी मज़दूर वापस आ चुके हैं.

उत्तर प्रदेश सरकार के मीडिया एडवाइजर मृत्युंजय कुमार ने बीबीसी को बताया कि मुख्यमंत्री ने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा.

उन्होंने कहा, "आप उनके बयान को पूरा सुनें. अभी रेल मंत्री ने महाराष्ट्र सरकार से प्रवासी मज़दूरों की लिस्ट माँगी. लेकिन महाराष्ट्र सरकार वो लिस्ट नहीं दे पा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास कोई डेटा उपलब्ध नहीं है. हमारी सरकार को अब तक ये पता नहीं चल पा रहा है कि हमारे प्रदेश के कितने लोग कहाँ-कहाँ फँसे हैं. इसलिए कोई मज़दूर कहीं भी जाता है तो आयोग को सूचित कर दे कि हम इस राज्य में इस काम के लिए जा रहे हैं. इससे हमारे पास एक डेटा रहेगा. कल को कोई अप्रिय घटना उनके साथ घटित होती है तो हमारे पास उसकी जानकारी होनी चाहिए. दरअसल ये पूरी प्रक्रिया मैपिंग की है, ना कि अनुमति देने की है."

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक दूसरी परेशानी भी है. राज्य में 26 लाख प्रवासी मज़दूर देश के अलग-अलग राज्यों से आए हैं.

उनमें से अधिकतर कोरोना पॉज़िटिव हैं. मुख्यमंत्री ने ख़ुद कहा, "मुंबई से आने वाले जो भी कामगार हैं उनमें से 75 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है. दिल्ली से आने वाले कामगारों में 50 फ़ीसदी ऐसे हैं जिनमें संक्रमण है. अन्य राज्यों से आने वालों में 20 से 30 फ़ीसदी लोग व्यापक संक्रमण की चपेट में हैं. हमारे लिए एक चुनौती बनी हुई है लेकिन मज़बूती के साथ हमारी टीमें पूरी तरह जुटी हुई हैं."

ऐसे में ये प्रवासी मज़दूर राज्य के हर हिस्से में संक्रमण का ख़तरा और बढ़ा सकते हैं. एक बात जो उन्होंने नहीं कही, वो ये कि इससे राज्य में बेरोज़गारी के आँकड़े भी बढ़ सकते हैं.

हालांकि राज्य सरकार दावा कर रही है कि 14 लाख प्रवासी मज़दूरों के लिए पहले राउंड की स्किल मैपिंग सरकार कर चुकी हैं. मज़दूरों को उनकी क्षमता के आधार पर नौकरी देने की व्यव्सथा की जा रही है, जिसपर माइग्रेशन कमिशन भी आने वाले दिनों में काम करेगा. इस संबंध में मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर ख़ुद जानकारी दी.

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महाराष्ट्र सरकार की मजबूरी

योगी सरकार के इस बयान की सोशल मीडिया पर जितनी चर्चा है उतनी चर्चा महाराष्ट्र सरकार में नहीं है.

महाराष्ट्र की राजनीति पर क़रीब से नज़र रखने वाले इसे राजनीति से जोड़ कर देख रहे हैं.

हेमंत देसाई ऐसे ही वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनके मुताबिक़, "पिछले दिनों पालघर में साधुओं की हत्या पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फ़ोन किया था. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में महाराष्ट्र के एक भवन की बात उद्धव ठाकरे ने की है. उद्धव ठाकरे मौजूदा परिप्रेक्ष्य में कोई विरोध दर्ज कराते हुए सीधे दिखना नहीं दिखना चाहते."

हेमंत देसाई के मुताबिक़ इस वक़्त राज्य सरकार कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रही है. उनके मुताबिक़ एक तरफ भारत में सबसे ज़्यादा कोरोना के मरीज़ महाराष्ट्र में हैं. सरकार उसे ठीक से संभालने में जुटी है.

वहीं दूसरी ओर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने राज्यपाल बीएस कोशियारी से सोमवार को मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात के बाद ही अटकलों का बाज़ार गर्म है कि महाराष्ट्र में राज्य सरकार अस्थिर है.

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तीसरा मोर्चा केंद्र की तरफ से रेल मंत्री पीयूष गोयल ने खोल रखा है, जो रात दिन ट्विटर पर महाराष्ट्र सरकार से मज़दूरों की सूची और ट्रेन की संख्या मांगते हैं.

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ऐसे में महाराष्ट्र सरकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ चौथा फ्रंट खोलना नहीं चाहती. लेकिन ये भी सच है कि वो सीधे नहीं बोलेंगे, तो उनके दूसरे मंत्री और सहयोगी दलों इस पर ज़रूर प्रतिक्रिया देंगे. ये पूरा मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़ा है.

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