कोविड-19 के सैंपल टेस्ट के लिए अब भारत को नहीं रहना पड़ेगा चीन पर निर्भर
सलमाान रावी
बीबीसी संवाददाता
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए कोई एक चीज़ जिसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया जाता रहा है वो है- टेस्टिंग.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महामारी के शुरुआती वक़्त में ही अपनी सलाह में कहा था कि कोरोना वायरस का मुक़ाबला करने के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम नियमित तौर पर हाथ धोएं और ज़्यादा से ज़्यादा सैंपल टेस्ट करें.
भारत में कोरोना टेस्ट को लेकर हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं लेकिन अब भारत इसमें आत्मनिर्भर बनने जा रहा है.
कोरोना वायरस टेस्ट के लिए संभावित व्यक्ति का सैंपल लेना होता है. यह सैंपल स्वैब से लिया जाता है. अभी तक भारत, चीन से स्वैब लेता था. लेकिन भारत के लिए अच्छी ख़बर ये है कि सैंपल लेने के लिए इस्तेमाल होने वाला यह स्वैब भारत में ही बनने लगा है.
भारतीय कंपनियों के आपसी सहयोग से यह संभव हो सका है.
इसका एक दूसरा फ़ायदा यह है कि जिस कीमत पर ये अभी मौजूद हैं उसके सिर्फ़ 10 फ़ीसदी कीमत पर इनका उत्पादन किया जा रहा है.
इसका मतलब ये हुआ कि अब तक जो 'स्वैब' हम चीन से आयात कर रहे थे उसमे सिर्फ़ एक स्वैब की क़ीमत 17रुपए के आस पास आ रही थी. एक मुश्किल यह भी थी कि इसके लिए भारत को चीन पर निर्भर भी रहने की मजबूरी बनी रहती थी.
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इसके साथ ही ये भी ज़रूरी नहीं था कि ये स्वैब सही ही हों क्योंकि कई राज्यों ने इनके ख़राब होने की शिकायत की थी.
अब जबकि भारत में ही स्वैब का निर्माण किया जाने लगा है तो इसका मतलब ये हुआ कि प्रति स्वैब की क़ीमत आयात किये गए स्वैब के मुक़ाबले काफी कम होगी.
भारत में बनने वाला यह स्वैब दो रुपए से भी कम क़ीमत पर उपलब्ध है.
बीबीसी से बात करते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के ग्रुप प्रेसिडेंट ज्योतिंद्र ठक्कर ने बताया कि यह टेक्सटाइल मिनिस्ट्री की और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की पहल का नतीजा है और मंत्रालय की ही ओर से इसे लेकर गाइडलाइन आई थी.
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वो कहते हैं, "भारत अब स्वैब का निर्माण करने लगा है. स्वैब दिखने में ईयर-बड जैसा होता है लेकिन मूल रूप से उससे कुछ अलग होता है. इसमें स्टिक तुलनात्मक रूप से थोड़ी लंबी होती है. इस स्टिक के अंतिम छोर पर मेडिकली अप्रूव्ड पॉली-कॉर्बोनेट लगा होता है. रिलायंस पॉलीएस्टर बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है. लेकिन इसे मैन्युफैक्चर करके पूरा स्वैब तैयार करने की काबिलियत हमारे पास नहीं थी. तो हमने क्या कि इसे जॉन्सन एंड जॉन्सन को इसे मैन्युफैक्चर करने के लिए दिया. .यानी रॉ मैटेरियल रिलायंस का और मैन्युफैक्चर जॉन्सन एंड जॉन्सन का."
वो कहते हैं कि अब जब भारत में स्वैब बनने लगा है तो इसकी क़ीमत दो रुपए से भी कम पड़ रही है जो कि चीन से आयातित स्वैब की क़ीमत की तुलना में काफी कम है.
वो बताते हैं कि दुनिया भर में कोरोना टेस्ट हो रहे हैं, जिसकी वजह से स्वैब की कमी हो रही है. चीन एकमात्र देश है जो इसे निर्यात करता है. ऐसे में भारत का इस लिहाज़ से आत्मनिर्भर होना एक बड़ी कामयाबी है.
इन कंपनियों में भारत स्थित 'रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड', 'जॉनसन ऐंड जॉन्सन' के अलावा 'माइलैब डिस्कवरी सॉल्युशन' भी शामिल हैं.
माइलैब में इसके निर्माण के लिए उद्योगपति आधार पूनावाला और अभिजीत पवार ने हाथ मिलाया है.
आत्म निर्भरता की ओर अग्रसर
सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के सीईओ आधार पूनावाला का कहना है, ''इससे भारत दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहेगा और टेस्ट करने वाले किट बनाने और उनकी उपलब्धता को लेकर आत्म निर्भर रहेगा. ये हमारे अपने भारत का बना हुआ टेस्टिंग किट है.''
टेस्टिंग किट बनाने के लिए 'माइलैब' के साथ आधार पूनावाला और अभिजीत पवार की कंपनियों की साझेदारी पर टिप्पणी करते हुए बायोकॉइन की सीइओ किरण मजूमदार शाह कहती हैं कि वो बहुत खुश हैं कि भारत में काम कर रही कंपनियों ने इस टेस्टिंग किट को बनाने के लिए हाथ मिलाया है और ये पूरी तरह से भारतीय किट है.
माइलैब के हंसमुख रावल कहते हैं कि उनकी कंपनी ने भारत सरकार के आईसीएमआर को 7,00,000 ऐसी किट उपलब्ध करा दी हैं जबकि इनके उत्पादन को और तेज़ कर दिया गया है ताकि देश के किसी भी राज्य में इसकी कोई कमी न हो और सरकारी महकमे को किसी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़े.
आठ कंपनियों ने शुरू किए उत्पादन
इसी तरह देश के विभिन्न राज्यों में स्थित कंपनियां भी टेस्टिंग किट बनाने के काम में जुट गई हैं.
बीबीसी ने तमिलनाडु की स्वास्थ्य विभाग की सचिव बीला राजेश से बात करने की कोशिश की लेकिन वो उपलब्ध नहीं थीं.
हालांकि, तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि ऐसी आठ कंपनियां हैं जिन्होंने कोविड-19 की जांच करने वाली किट और एन-95 मास्क के अलावा इस महामारी से निपटने के लिए दूसरे ज़रूरी उत्पाद भी बनाने शुरू कर दिए हैं. जैसे पीपीई और वेंटीलेटर. इनमें भारत स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी 'हुंडई' भी सहयोग कर रही है, जिसके देश के विभिन्न हिस्सों में कई प्लांट हैं.
इन कंपनियों में 'एयर लिक्विड', 'निसान', त्रिवित्रोन हेल्थकेयर, किरित केयर, राजेश्वरी लाइफकेयर और हेल्थफार्मा शामिल हैं.
आनंद महिंद्रा ने उठाए कई क़दम
भारत सरकार ने इस महामारी के लड़ने के लिए 11 सदस्यों वाली एक एम्पावर्ड कमेटी का गठन भी किया है जिसके प्रमुख पीडी वाघेला हैं.
वाघेला ने हाल में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि शुरुआत में देश को 2.01 करोड़ पीपीई की आवश्यकता थी लेकिन 2. 20 करोड़ का उत्पादन शुरू हो गया और उन्हें भेजा भी जाने लगा.
वाघेला का कहना है कि पहले भारत में पीपीई बनाने की ज़्यादा सुविधाएं नहीं थीं. हालांकि अब उनका कहना है कि भारत इसके उत्पादन में आत्मनिर्भर बन रहा है.
उनके अनुसार, अब ये उद्योग 7000 करोड़ तक पहुँच चुका है.
देश की जानी मानी कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा के मालिक आनंद महिंद्रा ने तो लॉकडाउन से पहले ही अपनी कंपनी की विभिन्न इकाइयों में वेंटिलेटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करवा दिया था.
हाल ही में उन्होंने ट्वीट कर कहा कि भारत इस महामारी के तीसरे चरण में पहुँच चुका है जब वेंटिलेटर्स की ज़रूरत और बढ़ जाएगी.
उन्होंने पहले ही महिंद्रा के सभी रिसॉर्ट्स को कोविड-19 के आइसोलेशन के लिए उपलब्ध करा दिया है.
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कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है
सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं
कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.
ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.
लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.
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जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.
यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.
ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.
कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है?जिलियन गिब्स
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वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.
इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.
क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है?सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक
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दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.
ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.
फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.
बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
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हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.
इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.
अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
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अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.
अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.
क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है?स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड
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ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.
ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.
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कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.
लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है?हार्लो से लोरैन स्मिथ
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शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.
फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.
क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए?मैनचेस्टर से एन हार्डमैन
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.
मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.
फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.
यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.
अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए?लंदन से ग्राहम राइट
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.
सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.
मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा?बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.
यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.
गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.
मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?मीव मैकगोल्डरिक
जेम्स गैलेगरस्वास्थ्य संवाददाता
अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.
अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.
ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.
बच्चों के लिए क्या जोखिम है?लंदन से लुइस
बीबीसी न्यूज़हेल्थ टीम
चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.
ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.
हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.