कोरोना वायरस: क्या भारत के लिए इतना सख़्त लॉकडाउन ज़रूरी था?

  • नितिन श्रीवास्तव
  • बीबीसी संवाददाता
मोदी

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भारत में कोरोना वायरस का पहला पॉज़िटिव केस 30 जनवरी, 2020 को केरल में सामने आया था.

इसके 52 दिन बाद, 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की.

रात आठ बजे हुए इस संबोधन के सिर्फ़ चार घंटे बाद, यानी रात 12 बजे से पूर्ण लॉकडाउन लागू हो गया था.

उस दिन यानी 24 मार्च तक पूरे भारत में कोरोना वायरस के कुल 564 केस पॉज़िटिव पाए गए थे इसके चलते हुई मौतों की संख्या 10 बताई गई थी. यानी कुल 1.77% की मौतें.

लौटते हैं मई महीने के तीसरे हफ़्ते में और फ़िलहाल भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या है 108,923.

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ इनमें से 45,299 अब संक्रमण रहित यानी ठीक हो चुके हैं. कोरोना वायरस के चलते मरने वालों की संख्या है 3,435. यानी कुल 3.17% की मौत.

सवाल यही कि क्या भारत के लिए इतना सख़्त लॉकडाउन वाक़ई ज़रूरी था?

दूसरी तरफ़ एक ऐसा पहलू है जिसे भारत ही नहीं पूरी दुनिया देख रही है.

बेरोज़गारी का, ग़रीबी के गर्त में दोबारा जाने का, अपनों से बिछड़े रहने का और कई लोगों की मौतों का जो लॉकडाउन के बीच आनन-फ़ानन में अपने घरों के लिए तो निकले लेकिन रास्तों में भूख-प्यास या सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो गए.

अनुमान है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए घोषित किए गए लॉकडाउन के दौरान अब तक क़रीब 12 करोड़ लोग बेरोज़गार हो चुके हैं.

इनमें से अधिकतम देश के असंगठित क्षेत्र से हैं यानी दिहाड़ी या शॉर्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कामगार.

क़रीब इतने ही अगर बेरोज़गार नहीं हुए तो पिछले दो महीनों से बिना सैलरी के घर बैठे काम शुरू होने का इंतज़ार कर रहे हैं.

देश की अर्थव्यवस्था का आलम ये है कि बीते दो महीनों के भीतर ही सरकार को 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा करनी पड़ गई.

मामले की गंभीरता का अंदाज़ा लगाने के लिए जानते चलिए कि ये राशि भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की 10% है.

सुरक्षाकर्मी

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लॉकडाउन क्यों?

कोविड-19 एक ऐसी बीमारी है जिससे निपटने में पूरी दुनिया जुटी हुई है.

चीन के वुहान से पैर पसारने वाले इस वायरस ने अपनी आगोश में दुनिया के विकसित देशों से लेकर पिछड़े देशों तक, सबको निगलने की कोशिश की है.

स्पेन हो या इटली, अमरीका हो या ब्रिटेन, जापान हो या दक्षिण कोरिया, कनाडा हो या ब्राज़ील, हर देश में ये वायरस मौतों और संक्रमण की गहरी छाप छोड़ रहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ के मुताबिक़, दुनिया में कोरोना वायरस के कुल मामले 47 लाख पार कर चुके हैं जिनमें से तीन लाख से ज़्यादा की मौतें हो चुकी हैं.

कुछ देशों ने भारत की तरह टोटल लॉकडाउन लगाकर इसे थामने की ठानी, तो कइयों ने 'आंशिक लॉकडाउन' यानी अलग-अलग इलाक़ों और संक्रमण के ख़तरों के ज़्यादा या कम होने की घटनाओं के आधार पर इसे लागू किया.

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समाप्त

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स की प्रोफ़ेसर जयति घोष को लगता है कि भारत ने लॉकडाउन की घोषणा करने में देर भी की और 'एक लोकतांत्रिक सरकार होते हुए अपने करोड़ों कामगारों के लिए बेहद कम सोचा.'

उन्होंने कहा, "बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल या पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों ने लॉकडाउन को भारत से बेहतर हैंडल किया. प्रवासियों को घर लौटने का समय दिया और उन्हें सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध कराया. जबकि भारत में प्रवासियों को क़रीब 45 दिन तक तो ट्रांसपोर्ट से वंचित रखा गया और जहाँ थे वहीं भूखे-प्यासे रहते रहे. फिर दबाव में ट्रेन शुरू की तो किराया ऐसे कि मध्यम-वर्गीय ही उसके टिकट ख़रीद सकें."

प्रोफ़ेसर घोष का इशारा प्रवासियों के उस बड़े पलायन की ओर है जो लॉकडाउन की घोषणा के बाद दूर-दराज़ इलाक़ों में फँस गए थे.

हालाँकि, केंद्र सरकार ने जिन दो वजहों से लॉकडाउन की घोषणा की थी उसका उद्देश्य भी स्पष्ट था.

पहला था इस वायरस के फैलाव को तत्काल प्रभाव से रोकना क्योंकि इसके संक्रमण की दर जिसे 'आरओ' कहते हैं उसे क़ाबू में रखना था और दुनिया के दूसरे देशों के तजुर्बे और डब्लूएचओ की चेतावनियों के मुताबिक़ क्वारंटीन ही इसका एकमात्र इलाज दिख रहा था.

केंद्र सरकार के एकाएक लॉकडाउन घोषित करने का दूसरा मक़सद था कोरोना पॉज़िटिव मामलों के ग्राफ़ को ऊपर जाने से रोकना.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे 'फ़्लैटेन द कर्व' कहा जा रहा है और इस प्रक्रिया से अस्पतालों में मरीज़ों के लिए बेड, ऑक्सीजन वेंटिलेटर्स, पीपीई किट्स वग़ैरह जुटाने का समय मिल जाता है.

संपूर्ण लॉकडाउन के एक लंबे दौर के पीछे शायद सरकार की एक उम्मीद भी रही होगी कि शायद इस बीच कोई वैक्सीन या इलाज का ईजाद हो सके.

स्वास्थ्यकर्मी

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जिसने उम्मीद बांधी

इस बीच दो महत्वपूर्ण चीज़ें प्रमुख रूप से उभर कर आईं.

पहली ये कि किसी देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी होने में कितना वक़्त लग रहा है. इसे डबलिंग रेट के नाम से जाना जाता है और भारत की बात हो लॉकडाउन शुरू होने के बाद से अब तक इसमें ख़ासी बेहतरी देखी गई है.

दूसरा है 'आर नॉट' या R0 जो बताने का प्रयास करता है कि एक संक्रमित व्यक्ति से इंफ़ेक्शन कितने दूसरे लोगों तक फैल सकता है.

अगर इसकी दर 1% से नीचे रहती है तो उसका मतलब ये कि संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं जबकि भारत में ये दर 1-2.5% के बीच रही है जिसका मतलब मामलों को कम करने की ज़रूरत बनी रही.

वैसे लॉकडाउन के बाद उपजी दिक्क़तों से केंद्र में आसीन भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय भी इत्तेफ़ाक रखते हैं. हालाँकि उनका तर्क दूसरा है.

उनके मुताबिक़, "ये सही नहीं है कि सरकार ने लॉकडाउन करते समय कामगारों के बारे में नहीं सोचा. प्रधानमंत्री लगातार इस पर नज़र बनाए हुए थे और मंत्रिमंडल में अलग-अलग कोर ग्रुप बना दिए गए थे. लेकिन ये स्थिति बिल्कुल नई थी, जिससे निपटने का भारत के पास कोई तजुर्बा नहीं था. न किसी बाबू के पास, न किसी नेता के पास. आख़िर भारत-पाक युद्ध के दौरान भी ट्रेन बंद नहीं करनी पड़ी थी. प्रयास पूरा किया गया लेकिन हम ये कह सकते हैं कि तकलीफ़ नहीं हुई लोगों को, मज़दूरों को ख़ासतौर से. लेकिन इसने ये भी दिखाया हमारे मज़दूर भाई-बहन पैदल भी यात्रा कर सकते हैं, वे कितने दृढ़ संकल्प वाले हैं और उनमें हुनर की कमी नहीं".

भारत में कोरोनावायरस के मामले

यह जानकारी नियमित रूप से अपडेट की जाती है, हालांकि मुमकिन है इनमें किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नवीनतम आंकड़े तुरंत न दिखें.

राज्य या केंद्र शासित प्रदेश कुल मामले जो स्वस्थ हुए मौतें
महाराष्ट्र 1351153 1049947 35751
आंध्र प्रदेश 681161 612300 5745
तमिलनाडु 586397 530708 9383
कर्नाटक 582458 469750 8641
उत्तराखंड 390875 331270 5652
गोवा 273098 240703 5272
पश्चिम बंगाल 250580 219844 4837
ओडिशा 212609 177585 866
तेलंगाना 189283 158690 1116
बिहार 180032 166188 892
केरल 179923 121264 698
असम 173629 142297 667
हरियाणा 134623 114576 3431
राजस्थान 130971 109472 1456
हिमाचल प्रदेश 125412 108411 1331
मध्य प्रदेश 124166 100012 2242
पंजाब 111375 90345 3284
छत्तीसगढ़ 108458 74537 877
झारखंड 81417 68603 688
उत्तर प्रदेश 47502 36646 580
गुजरात 32396 27072 407
पुडुचेरी 26685 21156 515
जम्मू और कश्मीर 14457 10607 175
चंडीगढ़ 11678 9325 153
मणिपुर 10477 7982 64
लद्दाख 4152 3064 58
अंडमान निकोबार द्वीप समूह 3803 3582 53
दिल्ली 3015 2836 2
मिज़ोरम 1958 1459 0

स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

11: 30 IST को अपडेट किया गया

बिना लक्षण वाले मामलों ने बढ़ाई चुनौती?

इस बीच उन लोगों की तादाद भी बढ़ रही थी जो कम से कम भारत में संपूर्ण लॉकडाउन के पक्ष में नहीं थे.

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर स्टीव हैंके का इशारा उन कोरोना पॉज़िटिव मामलों की ओर है जिनमें बुखार, खाँसी या साँस फूलने के कोई भी लक्षण नहीं दिखते.

ऐसे मामलों को 'एसिम्टोमैटिक' कहा जाता है और भारत में अभी तक रिपोर्ट हुए कोरोना पॉज़िटिव मामलों में इनका हिस्सा 60% से ज़्यादा है.

प्रोफ़ेसर स्टीव हैंके ने बताया, "कोरोना वायरस की समस्या ये है कि बिना लक्षण वाले स्रोत अनजाने में इसका संक्रमण कर सकते हैं. इसलिए, इससे लड़ने का एक ही कारगर तरीक़ा है और वायरस की टेस्टिंग और ढूंढने का कुछ वैसा प्रयास जैसा सिंगापुर जैसे देश ने किया. दिक्क़त यही है कि भारत के पास इसकी क्षमता कम है."

'एसिम्टोमैटिक मामलों' को चिंताजनक बताया जा रहा है क्योंकि लॉकडाउन के बावजूद अगर किसी में ये वायरस है और बिना लक्षण के तो किसी को भनक लगे बिना संक्रमण बढ़ता जाएगा.

उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने भी दुनिया भर में कोरोना वायरस से निपटने वाली नीति में लॉकडाउन तो शामिल किया है लेकिन साथ ही वायरस के फैलने वाले दो क्षेत्र भी चिन्हित किए हैं.

कोविड-19 से निपटने के लिए डब्लूएचओ के विशेष दूत डेविड नाबारो के अनुसार, "सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है कम्युनिटी स्प्रेड का और उसके बाद क्लस्टर स्प्रेड का. भारत में कम्युनिटी स्प्रेड के मामले नहीं देखने को मिले और मुंबई या दिल्ली में क्लस्टर यानी एक इलाक़े में इसके संक्रमण के ज़्यादा मामले आए हैं."

सुरक्षाकर्मी

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जानकारों को लगता है कि भारतीय लॉकडाउन की शुरुआती नीति हताहतों की संख्या पर क़ाबू पाने की थी और वो शुरुआती चार हफ़्तों के भीतर ही दिख चुकी थी.

जाने-माने हृदय विशेषज्ञ डॉक्टर देवी शेट्टी के मुताबिक़, "समय रहते लॉकडाउन ख़त्म कर सोशल डिस्टेंसिंग पर ध्यान दिए जाने की ज़्यादा ज़रूरत रही है."

उन्होंने लॉकडाउन के तीसरे हफ़्ते में ही कह दिया था, "हम कह सकते हैं कि जल्दी लिए गए लॉकडाउन के फ़ैसले से भारत ने वायरस से मरने वालों की दर को 50% तक गिरा लिया है. कई दूसरे देश ये करने में असफल रहे. मुझे नहीं लगता हॉटस्पॉट्स के अलावा पूरे देश को बंद करने की कोई मेडिकल वजह है."

नक्शे पर

दुनिया भर में पुष्ट मामले

Group 4

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स्रोत: जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां

आंकड़े कब अपडेट किए गए 5 जुलाई 2022, 1:29 pm IST

ज़्यादा बेहतर तरीक़े से लागू हो सकता था लॉकडाउन?

मेडिकल एक्सपर्ट्स के अलावा कई राजनीतिक विश्लेषक भी इस लंबे चले लॉकडाउन को बारीकी से देखते आ रहे हैं.

बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार की राजनीतिक सम्पादक अदिती फड़नीस इनमें से एक हैं.

उन्होंने बताया, "लॉकडाउन लागू करने की प्रक्रिया ज़्यादा बेहतर हो सकती थी. मिसाल के तौर पर अगर सिक्किम और गोवा में केस कम और पूरे कंट्रोल में थे तो वहाँ इंडस्ट्रीज़ को क्यों बंद कर दिया गया. अगर मुंबई हवाई अड्डे को पहले बंद कर दिया होता तो मुंबई में इतनी भीषण स्थिति न होती. लेकिन एक सवाल ये भी है कि अगर केंद्र में आईके गुजराल या देवगौड़ा की सरकार होती तो वो इससे कैसे निपटती."

बहराल, भारत में जैसे-जैसे लॉकडाउन की समयसीमा बढ़ती गई, कोविड19 पॉज़िटिव मामलों की फ़ेहरिस्त भी लंबी होती गई है.

मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ ये अंदाज़ा लग चुका था कि संक्रमित मामलों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि भारत प्रतिदिन अपनी टेस्टिंग सुविधाएँ बढ़ा रहा था.

सरकार का भी दावा रहा है कि टोटल लॉकडाउन जल्द लागू होने की वजह से भारत संक्रमित मामलों की संख्या को धीमा कर सका वरना 100,000 मामले कम से कम तीन हफ़्ते पहले पहुँच जाते.

भाजपा प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं, "मोदी सरकार ने सभी परिणामों को ध्यान में रखते हुए इतने लंबे देशव्यापी लॉकडाउन का फ़ैसला लिया. राज्यों को साथ मिलाकर चलते हुए और सभी के हितों की रक्षा करते हुए."

लेकिन सूत्रों के मुताबिक़ मई के दूसरे हफ़्ते में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियो के साथ हुई वीडियो कॉनफ़्रेंसिंग के दौरान, "प्रधानमंत्री ने इस ओर साफ़ इशारा किया कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की समस्या इतनी बड़ी हो जाएगी, केंद्र सरकार को इसका अनुमान नहीं था."

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प्रवासी मज़दूरों का हसास क्यों नहीं था सरकार को?

सवाल उठना लाज़मी है कि केंद्र सरकार को इस बात का अहसास क्यों नहीं था कि चार घंटे के नोटिस में पूरे देश में यातायात, फ़ैक्टरी-इंडस्ट्री, दुकानें-दफ़्तर-स्कूल वग़ैरह बंद करने के बाद प्रवासी कहाँ जाएंगे.

पड़ोसी नेपाल ने भी टोटल लॉकडाउन लागू करने के पहले सभी लोगों को 12 घंटों की मोहलत दी थी अपने गाँव-घर लौट जाने की.

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के वेंकटेश नायक को लगता है कि "लॉकडाउन को मुसीबत में पड़े उन लाखों कामगारों के गौरवपूर्ण और सम्मानित ज़िंदगी जीने के मूल अधिकार पर एक प्रहार के तौर पर देखा जाना चाहिए."

उन्होंने कहा, "भारत में प्रवासियों- जिसमें मज़दूर समेत वो भी शामिल हैं जो दूसरे प्रदेशों का रुख़ करते हैं- उनकी गणना 10 साल में एक बार सेंसस के ज़रिए होती है. 2001 में ये संख्या क़रीब 15 करोड़ थी और 2011 में क़रीब 45 करोड़ थी. इसमें बड़ा हिस्सा प्रवासी मज़दूरों का है. पिछले वर्षों में यूपीए और एनडीए सरकारों से संसद में प्रवासियों पर जब भी सवाल पूछे गए तो जवाब मिला कि अभी पूरा डेटा जमा नहीं हो सका है."

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कोरोना वायरस ट्रांसलेटर

इन सभी शब्दों का क्या मतलब है?

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  • एंटीबॉडीज टेस्ट

    ऐसा मेडिकल टेस्ट जिससे साबित हो सके कि किसी शख्स को कोरोना वायरस था और अब उसमें कुछ इम्युनिटी आ गई है. यह टेस्ट खून में एंटीबॉडीज का पता लगाता है, जिन्हें बीमारी से लड़ने के लिए शरीर पैदा करता है.

  • बिना लक्षण वाले

    ऐसा शख्स जिसे बीमारी हुई मगर उसमें कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए. कुछ स्टडीज से पता चला है कि कोरोना वायरस का शिकार हुए कुछ लोगों में तेज़ बुखार या कफ़ जैसे आम लक्षण नहीं नज़र आए.

  • कोरोना वायरस

    वायरस समूह में से एक वायरस जिससे मनुष्यों या जानवरों में गंभीर या हल्की बीमारी हो सकती है. पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस से कोविड-19 बीमारी हो रही है. सामान्य सर्दी या इंफ्लूएंजा (फ़्लू) फैलाने वाले दूसरे तरह के कोरोना वायरस हैं.

  • कोविड-19

    कोरोना वायरस की वजह से फैल रही बीमारी का सबसे पहले पता 2019 के अंत में चीन के वुहान में लगा. यह मूलरूप में फ़ेफ़ड़ों पर असर डालता है.

  • संक्रमण की तेज़ी को रोकना

    ट्रांसमिशन की दर को कम करना ताकि चार्ट पर प्रदर्शित किए जाने पर मामलों की संख्या के आधार पर पीक को फ्लैट कर कर्व को नीचे लाया जाए ताकि स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके.

  • फ़्लू

    इंफ्लूएंजा का संक्षिप्त नाम. एक वायरस जो कि सीजनल बीमारियों में मनुष्यों और जानवरों में फैलता है.

  • सामुदायिक प्रतिरोधक क्षमता

    एक बड़ी आबादी तक पहुंचने के बाद किस तरह से एक बीमारी का फैलाव सुस्त पड़ता है.

  • लड़ने में सक्षम

    ऐसा शख्स जिसका शरीर किसी बीमारी के सामने टिक सके या उसे रोक दे वह इससे इम्यून कहा जाता है. एक बार जब कोई शख्स कोरोना वायरस से उबर जाता है तो ऐसा माना जाता है कि वह एक निश्चित अवधि तक इस बीमारी का फिर से शिकार नहीं हो सकता.

  • वायरस के असर करने की अवधि

    किसी बीमारी का शिकार होने और उसका लक्षण दिखाई देना शुरू होने के बीच की अवधि

  • लॉकडाउन

    आवाजाही या रोज़ाना की ज़िंदगी पर पाबंदियां, जिनमें सार्वजनिक इमारतें बंद हैं और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए कहा गया है. कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कई देशों में लॉकडाउन को कड़े उपायों के तौर पर लागू किया गया है."

  • शुरुआत

    किसी क्लस्टर या अलग-अलग इलाकों में तेज रफ्तार से बीमारी के कई मामले सामने आना.

  • महामारी

    किसी गंभीर बीमारी का कई देशों में एकसाथ तेजी से फैलना महामारी कहलाता है.

  • एकांतवास

    किसी संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के लिए इसकी जद में आए लोगों को अलग रखना.

  • सार्स

    सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम एक कोरोना वायरस का ही प्रकार है जो कि एशिया में 2003 में शुरू हुआ था.

  • सेल्फ-आइसोलेशन

    घर पर ही रहना और अन्य लोगों से सभी तरह के संपर्क से बचना ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.

  • सामाजिक दूरी

    अन्य लोगों से दूर रहना ताकि बीमारी के ट्रांसमिशन की रफ्तार कम की जा सके. सरकार की सलाह है कि अपने साथ रह रहे लोगों के अलावा दोस्तों और रिश्तेदारों से न मिलें. साथ ही सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल से भी बचें.

  • आपातकालीन स्थिति

    किसी संकट के वक्त सरकार द्वारा रोज़ाना की जिंदगी पर पाबंदी लगाने के मकसद से उठाए गए कदम. इसमें स्कूलों और दफ्तरों को बंद करना, लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगाना और यहां तक कि सैन्य बलों को तैनात करना ताकि रेगुलर इमर्जेंसी सेवाओं को सपोर्ट किया जा सके."

  • लक्षण

    संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर की कोशिश के तौर पर इम्यून सिस्टम से किसी बीमारी के संकेत. कोरोना वायरस का मुख्य लक्षण बुखार, सूखी खांसी और सांस लेने में दिक्कत होना है."

  • टीका

    ऐसा इलाज जिससे शरीर एंटीबॉडीज पैदा करता है, जो कि बीमारी से लड़ता है और आगे के संक्रमण से लड़ने की इम्युनिटी देता है."

  • वेंटीलेटर

    ऐसी मशीन जो कि ऐसे वक्त पर शरीर के लिए सांस लेने का काम करती है जब फ़ेफ़ड़े काम करना बंद करने लगते हैं.

  • विषाणु

    एक छोटा सा एजेंट जो कि किसी जीवित सेल के भीतर अपनी कॉपी बना लेता है. वायरस की वजह से ये सेल मरने लगती हैं और शरीर की सामान्य केमिकल प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर देती हैं जिससे बीमारी हो जाती है.

मुख्य कहानी नीचे जारी है

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय मानते हैं कि, "लॉकडाउन के बाद निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को नुक़सान हुआ है, चीज़ें बाधित हुई हैं, लोगों को परेशानी हुई है."

लेकिन उनका तर्क है, "कहते हैं न कि विपरीत परिस्थिति में भी एक अवसर होता है. भारत के लिए ये एक अवसर है कि हम इसमें पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएँ."

इस बीच कोविड-19 से निपटने के लिए कुछ तथ्य सभी के सामने आ चुके हैं.

  • डब्लूएचओ समेत दुनिया की कई नामचीन फ़ार्मा कंपनियों के मुताबिक़ कोरोना को रोकने वाली वैक्सीन बनने में कम से कम 18 महीने लग सकते हैं.
  • डब्लूएचओ के कुछ आला मेडिकल प्रोफेशनल्स ने ये भी कहा है कि ऐसे कई वायरस रहे हैं, जिनमें एड्स शामिल है, जिनकी वैक्सीन आज तक नहीं बन सकी.
  • कोरोना वायरस को दूर रखने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना सबसे कारगर तरीक़ा साबित हो रहा है.
  • बच्चों और वृद्ध लोगों को इस वायरस से ख़ासतौर पर बचाने की ज़रूरत है क्योंकि कम इम्युनिटी वालों पर इसके केस ज़्यादा दिखे हैं.

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट और इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल एथिक्स के सम्पादक, डॉक्टर अमर जेसानी को लगता है कि लॉकडाउन कोविड-19 से निपटने का अंतिम पड़ाव नहीं बल्कि बस एक ज़रिया हो सकता है.

उनके मुताबिक़, "लॉकडाउन किसी पैंडेमिक (महामारी) का इलाज नहीं है. इसका मक़सद वायरस संक्रमण की दर को थामना भर होता है जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं को तैयारी का समय मिल सके बड़े स्तर के फैलाव से निपटने के लिए."

सवाल और जवाब

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आपके सवाल

  • कोरोना वायरस क्या है? लीड्स के कैटलिन से सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले

    कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी है जिसका पता दिसंबर 2019 में चीन में चला. इसका संक्षिप्त नाम कोविड-19 है

    सैकड़ों तरह के कोरोना वायरस होते हैं. इनमें से ज्यादातर सुअरों, ऊंटों, चमगादड़ों और बिल्लियों समेत अन्य जानवरों में पाए जाते हैं. लेकिन कोविड-19 जैसे कम ही वायरस हैं जो मनुष्यों को प्रभावित करते हैं

    कुछ कोरोना वायरस मामूली से हल्की बीमारियां पैदा करते हैं. इनमें सामान्य जुकाम शामिल है. कोविड-19 उन वायरसों में शामिल है जिनकी वजह से निमोनिया जैसी ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं.

    ज्यादातर संक्रमित लोगों में बुखार, हाथों-पैरों में दर्द और कफ़ जैसे हल्के लक्षण दिखाई देते हैं. ये लोग बिना किसी खास इलाज के ठीक हो जाते हैं.

    कोरोना वायरस के अहम लक्षणः ज्यादा तेज बुखार, कफ़, सांस लेने में तकलीफ़

    लेकिन, कुछ उम्रदराज़ लोगों और पहले से ह्दय रोग, डायबिटीज़ या कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ रहे लोगों में इससे गंभीर रूप से बीमार होने का ख़तरा रहता है.

  • एक बार आप कोरोना से उबर गए तो क्या आपको फिर से यह नहीं हो सकता? बाइसेस्टर से डेनिस मिशेल सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल

    जब लोग एक संक्रमण से उबर जाते हैं तो उनके शरीर में इस बात की समझ पैदा हो जाती है कि अगर उन्हें यह दोबारा हुआ तो इससे कैसे लड़ाई लड़नी है.

    यह इम्युनिटी हमेशा नहीं रहती है या पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती है. बाद में इसमें कमी आ सकती है.

    ऐसा माना जा रहा है कि अगर आप एक बार कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं तो आपकी इम्युनिटी बढ़ जाएगी. हालांकि, यह नहीं पता कि यह इम्युनिटी कब तक चलेगी.

    यह नया वायरस उन सात कोरोना वायरस में से एक है जो मनुष्यों को संक्रमित करते हैं.
  • कोरोना वायरस का इनक्यूबेशन पीरियड क्या है? जिलियन गिब्स

    वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन पांच दिनों में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. लेकिन, कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण दिख सकते हैं.

    कोविड-19 के कुछ लक्षणों में तेज बुख़ार, कफ़ और सांस लेने में दिक्कत होना शामिल है.

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि इसका इनक्यूबेशन पीरियड 14 दिन तक का हो सकता है. लेकिन कुछ शोधार्थियों का कहना है कि यह 24 दिन तक जा सकता है.

    इनक्यूबेशन पीरियड को जानना और समझना बेहद जरूरी है. इससे डॉक्टरों और स्वास्थ्य अधिकारियों को वायरस को फैलने से रोकने के लिए कारगर तरीके लाने में मदद मिलती है.

  • क्या कोरोना वायरस फ़्लू से ज्यादा संक्रमणकारी है? सिडनी से मेरी फिट्ज़पैट्रिक

    दोनों वायरस बेहद संक्रामक हैं.

    ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित एक शख्स औसतन दो या तीन और लोगों को संक्रमित करता है. जबकि फ़्लू वाला व्यक्ति एक और शख्स को इससे संक्रमित करता है.

    फ़्लू और कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ आसान कदम उठाए जा सकते हैं.

    • बार-बार अपने हाथ साबुन और पानी से धोएं
    • जब तक आपके हाथ साफ न हों अपने चेहरे को छूने से बचें
    • खांसते और छींकते समय टिश्यू का इस्तेमाल करें और उसे तुरंत सीधे डस्टबिन में डाल दें.
  • आप कितने दिनों से बीमार हैं? मेडस्टोन से नीता

    हर पांच में से चार लोगों में कोविड-19 फ़्लू की तरह की एक मामूली बीमारी होती है.

    इसके लक्षणों में बुख़ार और सूखी खांसी शामिल है. आप कुछ दिनों से बीमार होते हैं, लेकिन लक्षण दिखने के हफ्ते भर में आप ठीक हो सकते हैं.

    अगर वायरस फ़ेफ़ड़ों में ठीक से बैठ गया तो यह सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया पैदा कर सकता है. हर सात में से एक शख्स को अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.

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मेरी स्वास्थ्य स्थितियां

आपके सवाल

  • अस्थमा वाले मरीजों के लिए कोरोना वायरस कितना ख़तरनाक है? फ़ल्किर्क से लेस्ले-एन

    अस्थमा यूके की सलाह है कि आप अपना रोज़ाना का इनहेलर लेते रहें. इससे कोरोना वायरस समेत किसी भी रेस्पिरेटरी वायरस के चलते होने वाले अस्थमा अटैक से आपको बचने में मदद मिलेगी.

    अगर आपको अपने अस्थमा के बढ़ने का डर है तो अपने साथ रिलीवर इनहेलर रखें. अगर आपका अस्थमा बिगड़ता है तो आपको कोरोना वायरस होने का ख़तरा है.

  • क्या ऐसे विकलांग लोग जिन्हें दूसरी कोई बीमारी नहीं है, उन्हें कोरोना वायरस होने का डर है? स्टॉकपोर्ट से अबीगेल आयरलैंड

    ह्दय और फ़ेफ़ड़ों की बीमारी या डायबिटीज जैसी पहले से मौजूद बीमारियों से जूझ रहे लोग और उम्रदराज़ लोगों में कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर हो सकता है.

    ऐसे विकलांग लोग जो कि किसी दूसरी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं और जिनको कोई रेस्पिरेटरी दिक्कत नहीं है, उनके कोरोना वायरस से कोई अतिरिक्त ख़तरा हो, इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं.

  • जिन्हें निमोनिया रह चुका है क्या उनमें कोरोना वायरस के हल्के लक्षण दिखाई देते हैं? कनाडा के मोंट्रियल से मार्जे

    कम संख्या में कोविड-19 निमोनिया बन सकता है. ऐसा उन लोगों के साथ ज्यादा होता है जिन्हें पहले से फ़ेफ़ड़ों की बीमारी हो.

    लेकिन, चूंकि यह एक नया वायरस है, किसी में भी इसकी इम्युनिटी नहीं है. चाहे उन्हें पहले निमोनिया हो या सार्स जैसा दूसरा कोरोना वायरस रह चुका हो.

    कोरोना वायरस की वजह से वायरल निमोनिया हो सकता है जिसके लिए अस्पताल में इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
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अपने आप को और दूसरों को बचाना

आपके सवाल

  • कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सरकारें इतने कड़े कदम क्यों उठा रही हैं जबकि फ़्लू इससे कहीं ज्यादा घातक जान पड़ता है? हार्लो से लोरैन स्मिथ

    शहरों को क्वारंटीन करना और लोगों को घरों पर ही रहने के लिए बोलना सख्त कदम लग सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया जाएगा तो वायरस पूरी रफ्तार से फैल जाएगा.

    क्वारंटीन उपायों को लागू कराते पुलिस अफ़सर

    फ़्लू की तरह इस नए वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है. इस वजह से उम्रदराज़ लोगों और पहले से बीमारियों के शिकार लोगों के लिए यह ज्यादा बड़ा ख़तरा हो सकता है.

  • क्या खुद को और दूसरों को वायरस से बचाने के लिए मुझे मास्क पहनना चाहिए? मैनचेस्टर से एन हार्डमैन

    पूरी दुनिया में सरकारें मास्क पहनने की सलाह में लगातार संशोधन कर रही हैं. लेकिन, डब्ल्यूएचओ ऐसे लोगों को मास्क पहनने की सलाह दे रहा है जिन्हें कोरोना वायरस के लक्षण (लगातार तेज तापमान, कफ़ या छींकें आना) दिख रहे हैं या जो कोविड-19 के कनफ़र्म या संदिग्ध लोगों की देखभाल कर रहे हैं.

    मास्क से आप खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा जब इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए और इन्हें अपने हाथ बार-बार धोने और घर के बाहर कम से कम निकलने जैसे अन्य उपायों के साथ इस्तेमाल किया जाए.

    फ़ेस मास्क पहनने की सलाह को लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं. कुछ देश यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके यहां स्वास्थकर्मियों के लिए इनकी कमी न पड़ जाए, जबकि दूसरे देशों की चिंता यह है कि मास्क पहने से लोगों में अपने सुरक्षित होने की झूठी तसल्ली न पैदा हो जाए. अगर आप मास्क पहन रहे हैं तो आपके अपने चेहरे को छूने के आसार भी बढ़ जाते हैं.

    यह सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने इलाके में अनिवार्य नियमों से वाकिफ़ हों. जैसे कि कुछ जगहों पर अगर आप घर से बाहर जाे रहे हैं तो आपको मास्क पहनना जरूरी है. भारत, अर्जेंटीना, चीन, इटली और मोरक्को जैसे देशों के कई हिस्सों में यह अनिवार्य है.

  • अगर मैं ऐसे शख्स के साथ रह रहा हूं जो सेल्फ-आइसोलेशन में है तो मुझे क्या करना चाहिए? लंदन से ग्राहम राइट

    अगर आप किसी ऐसे शख्स के साथ रह रहे हैं जो कि सेल्फ-आइसोलेशन में है तो आपको उससे न्यूनतम संपर्क रखना चाहिए और अगर मुमकिन हो तो एक कमरे में साथ न रहें.

    सेल्फ-आइसोलेशन में रह रहे शख्स को एक हवादार कमरे में रहना चाहिए जिसमें एक खिड़की हो जिसे खोला जा सके. ऐसे शख्स को घर के दूसरे लोगों से दूर रहना चाहिए.

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मैं और मेरा परिवार

आपके सवाल

  • मैं पांच महीने की गर्भवती महिला हूं. अगर मैं संक्रमित हो जाती हूं तो मेरे बच्चे पर इसका क्या असर होगा? बीबीसी वेबसाइट के एक पाठक का सवाल

    गर्भवती महिलाओं पर कोविड-19 के असर को समझने के लिए वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी बारे में बेहद सीमित जानकारी मौजूद है.

    यह नहीं पता कि वायरस से संक्रमित कोई गर्भवती महिला प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान इसे अपने भ्रूण या बच्चे को पास कर सकती है. लेकिन अभी तक यह वायरस एमनियोटिक फ्लूइड या ब्रेस्टमिल्क में नहीं पाया गया है.

    गर्भवती महिलाओंं के बारे में अभी ऐसा कोई सुबूत नहीं है कि वे आम लोगों के मुकाबले गंभीर रूप से बीमार होने के ज्यादा जोखिम में हैं. हालांकि, अपने शरीर और इम्यून सिस्टम में बदलाव होने के चलते गर्भवती महिलाएं कुछ रेस्पिरेटरी इंफेक्शंस से बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं.

  • मैं अपने पांच महीने के बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हूं. अगर मैं कोरोना से संक्रमित हो जाती हूं तो मुझे क्या करना चाहिए? मीव मैकगोल्डरिक

    अपने ब्रेस्ट मिल्क के जरिए माएं अपने बच्चों को संक्रमण से बचाव मुहैया करा सकती हैं.

    अगर आपका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ पैदा कर रहा है तो इन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान पास किया जा सकता है.

    ब्रेस्टफीड कराने वाली माओं को भी जोखिम से बचने के लिए दूसरों की तरह से ही सलाह का पालन करना चाहिए. अपने चेहरे को छींकते या खांसते वक्त ढक लें. इस्तेमाल किए गए टिश्यू को फेंक दें और हाथों को बार-बार धोएं. अपनी आंखों, नाक या चेहरे को बिना धोए हाथों से न छुएं.

  • बच्चों के लिए क्या जोखिम है? लंदन से लुइस

    चीन और दूसरे देशों के आंकड़ों के मुताबिक, आमतौर पर बच्चे कोरोना वायरस से अपेक्षाकृत अप्रभावित दिखे हैं.

    ऐसा शायद इस वजह है क्योंकि वे संक्रमण से लड़ने की ताकत रखते हैं या उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या उनमें सर्दी जैसे मामूली लक्षण दिखते हैं.

    हालांकि, पहले से अस्थमा जैसी फ़ेफ़ड़ों की बीमारी से जूझ रहे बच्चों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

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