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समाज

पीपीई किट में डॉक्टर कैसे रहते हैं 10 घंटे

क्रिस्टीने लेनन
१५ मई २०२०

कोरोना वायरस ने दुनिया में हर कहीं डॉक्टरों की जिंदगी बदल कर रख दी है. भारत में हाल अलग नहीं. घर और अस्पताल के बीच तालमेल बिठाने में हो रही दिक्कतों के बीच डॉक्टर अपना काम कर रहे हैं.

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पीपीई किट में डॉक्टर
पीपीई किट मरीजों के बीच काम कर रहे डॉक्टरों को सुरक्षा देती हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Inganga

कोरोना वायरस के संकट से लोगों को बचाने की कोशिश में जुटे डॉक्टर इन दिनों काम के बोझ से दबे हुए हैं. लगातार काम से शारीरिक और मानसिक थकान पैदा हो ही रही है, परिवार की चिंता अलग से है. अधिकतर डॉक्टरों के लिए महामारी के दौरान या महामारी की चपेट में आए मरीज का इलाज करने का यह पहला मौका है. मध्य प्रदेश का इंदौर शहर कोरोना का प्रकोप झेल रहा है. शहर में संक्रमण के शिकार लोगों की संख्या दो हजार से अधिक है. दो डॉक्टरों की जान कोरोना वायरस के चलते जा चुकी है.

चुनौतीपूर्ण हैं परिस्थितियां 

शहर के कुछ डॉक्टर और नर्स इलाज करते वक्त कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. इसके बाद डॉक्टर और सावधानी बरत रहे हैं. डॉ राजेन्द्र उइके शहर के एमवाई अस्पताल में काम करते है. उनकी ड्यूटी दो बार कोरोना वार्ड में लग चुकी है. डॉ राजेंद्र कहते हैं कि बचाव के लिए जरूरी पीपीई किट हमेशा पहने रहना पड़ता है. इस गर्मी में लगातार 6 से 10 घंटे इसे पहने रहने से मुश्किल होती है. वह कहते हैं, "किट पहनने के बाद कुछ खाना-पीना तो दूर, टॉयलेट तक नहीं जा सकते. शुरू शुरू में तकलीफ अधिक होती थी लेकिन अब आदत में शुमार हो गया है."

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एमवाईएच इंदौर की डॉ करुणा मुजालदा कहती हैं कि अपने 10 साल के करियर में उन्होcने इतनी सख्त ड्यूटी कभी नहीं की. पीपीई किट केवल एक बार ही उपयोग में लाया जाता है. डॉ करुणा बताती हैं, "कम से कम किट का उपयोग करने की कोशिश होती है. इसलिए एक बार पहनने के बाद ड्यूटी खत्म होने के बाद ही इसे निकालते हैं. अगले लगभग 8 घंटे के लिए खाना-पीना सब बंद. यहां तक कि वाशरूम भी नहीं जाते." डॉ सुमित विश्वकर्मा कहते हैं कि पीपीई किट पहनने- उतारने की प्रक्रिया में ही 1 घंटे का समय लग जाता है, इसलिए भी डॉक्टरों को इसे हमेशा पहने रहना पड़ता है. इसमें पसीना बहुत आता है और घबराहट होती है. डॉक्टर खुद भी तनाव और मानसिक थकान का सामना कर रहे हैं. इस गर्मी में लगातार 10 घंटे तक इसे पहने रहना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

थकान, बेचैनी और तनाव

कोरोना मरीजों के आईसीयू वार्ड में तैनात रहीं सीनियर न्यूरोलोजिस्ट डॉ अर्चना वर्मा का कहना है, "नींद नहीं आती, आंखों के सामने अस्पताल और मरीजों का चेहरा घूमता रहता है." पीपीई किट में 10 घंटे काम करना बेहद थका देने वाला होता है.  डॉ अर्चना बताती हैं, "ऐसी स्थिति में काम पर फोकस बनाए रखना आसान नहीं होता, लेकिन मरीजों की जिंदगी बचाना ही डॉक्टरों का काम होता है, खुद को लगातार रीचार्ज करते रहना पड़ता है." 

अस्पताल में कोरोना मरीजों के बीच डॉक्टर
कोरोना संकट के कारण दुनिया भर में डॉक्टर काम के बोझ तले दबे हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa/Sputnik/T. Makeyeva

लंबे समय तक पीपीई पहनने से हाइपोक्सिया जैसे लक्षण आ रहे हैं. मानसिक और शारीरिक थकान तो इससे हो ही रहा है. इसके अलावा क्लॉस्ट्रोफोबिया, घुटन, उलझन और डिहाइड्रेशन की समस्या भी सामने आ रही है.  डॉ राजेन्द्र उइके कहते हैं कि शुरू में उन्हें शरीर में जलन और धुंधला दिखने की समस्या आई थी.

परिवार की चिंता

वेलेनटाइन डे के दूसरे दिन यानी 15 फरवरी को शादी के बंधन में बंधने वाले डॉ उमेश चंद्रा के सारे प्लान धरे के धरे रह गए. हनीमून मनाने की बजाय उमेश अब कोरोना पीड़ितों के इलाज में जुटे हुए हैं. उमेश कहते हैं कि परिवार वाले उन्हें लेकर चिंतित रहते हैं. लेकिन पत्नी और माता-पिता की तरफ से कोई दबाव नहीं है. परिवार के सदस्य दूसरे शहर में रहते हैं इसलिए उन्हें भी कोई चिंता नहीं है.

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डॉ करुणा की 4 साल की छोटी बेटी है. कोरोना ड्यूटी के दौरान वह अपनी बेटी से नहीं मिल पातीं. बेटी को संक्रमण से दूर रखने के लिए डॉ करुणा ने उसे अपने माता पिता के पास भेज दिया है. केवल वीडियो कॉल के जरिए संपर्क रहता है. डॉ करुणा कहती हैं, "बेटी गुमसुम सी रहती है, इससे गिल्ट फीलिंग भी होती है." 

दो बच्चों की माँ डॉ अर्चना वर्मा को भी परिवार और प्रोफेशन के बीच तालमेल बिठाने में पहली बार दिक्कत आ रही है. बच्चों से ना मिल पाने का दुख रहता है. डॉ अर्चना कहती हैं, "यह वक्त भी बीत जाएगा, यह सोच कर अपना दुख भूल जाते हैं."   

मरीजों की काउंसिलिंग

देश में कोरोना वायरस के प्रकोप से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में शामिल इंदौर में डॉक्टरों पर हमले भी हुए. मरीज के साथ आए लोग अक्सर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ बहस करने लग जाते हैं. डॉ अर्चना वर्मा कहती हैं, "कोरोना को लेकर लोगों में कम जानकारी और अधिक डर के चलते ऐसी स्थिति पैदा हो रही है. समझाने के बाद मरीज और उनके रिशतेदारों की चिंता दूर हो जाती है."

कोरोना पीड़ितों में घबराहट और डर बहुत ज्यादा है. इलाज के दौरान मरीजों को रिश्तेदार या दोस्त से मिलने की अनुमति नहीं होती, इसलिए डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ मरीजों के तनाव को कम करने के लिए तरह तरह के उपाय करते हैं. डॉक्टर एक दूसरे का हौसला भी बढ़ा रहे हैं और मरीजों का उत्साह भी बढ़ा रहे हैं. डॉ राजेन्द्र उइके कहते हैं, "मरीजों के ठीक होने में पॉजिटिव सोच और पॉजिटिव माहौल की जरूरत होती है. मरीज के रिश्तेदार और दोस्त आम दिनों में यह काम कर देते हैं. फिलहाल अस्पताल में भर्ती कोरोना पीड़ितों के लिए हम ही रिश्तेदार हैं और हम ही दोस्त."

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