[ संजय गुप्त ]: कोरोना के कहर से बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का एक माह पूरा होने के साथ ही केंद्र सरकार ने प्रतिबंधों में ढील देनी शुरू कर दी है। इसी क्रम में गत दिवस शॉपिंग मॉल्स, बाजार, मार्केटिंग कांप्लेक्स को छोड़कर अन्य दुकानों को खोलने की इजाजत दी गई। इसके पहले संक्रमण मुक्त इलाकों में सीमित कारोबारी गतिविधियों की अनुमति दी गई थी। इन फैसलों पर सियासी नुक्ताचीनी करने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि यह आपदा इतनी बड़ी है कि कोई भी उसकी विकरालता का अनुमान नहीं लगा सकता। ऐसे विकट समय उचित यही है कि हालात के हिसाब से फैसले लिए जाएं और उनमें जरूरी फेर-बदल किए जाएं।

विपक्षी दल लॉकडाउन पर राजनीति करने से बचें

विपक्षी दल इन फैसलों को लेकर अनावश्यक राजनीति करने से बचें तो बेहतर, क्योंकि वे सहयोग करने के नाम पर कुल मिलाकर भ्रम ही फैला रहे हैं। उन्हें इसका अहसास होना चाहिए कि भारत में अन्य देशों के मुकाबले कोरोना का प्रकोप कहीं कम है और ऐसा लॉकडाउन पर सही तरह से अमल के कारण ही संभव हो पाया है। इसे संभव करने में सबसे बड़ी भूमिका है डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों के साथ सफाईकर्मियों की। दुर्भाग्य से उन्हें हमलों और अभद्रता का शिकार होना पड़ा। उन्हें इस सबसे बचाने के लिए ही महामारी अधिनियम में संशोधन के बाद राज्यों को यह देखना होगा कि वैसी घटनाएं न होने पाएं जैसी इंदौर, मुरादाबाद के साथ अन्य कई शहरों में हुईं।

देश में कोरोना के मरीज तो बढ़ रहे हैं, लेकिन रफ्तार में कमी आई

हालांकि देश में कोरोना के मरीज अभी भी बढ़ रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या दोगुना होने की रफ्तार में कमी आई है और संक्रमण से मुक्त होने वाले जिलों की संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन इसी के साथ प्रशासनिक राजधानी दिल्ली और वित्तीय राजधानी मुंबई के साथ-साथ कई बड़े शहरों में संक्रमण नियंत्रित होता नहीं दिखता। इसके चलते यह संदेह हो रहा कि इन शहरों में कहीं लॉकडाउन बढ़ाना न पड़े। यह आशा की जानी चाहिए कि दिल्ली, मुंबई समेत अन्य शहरों में जल्द ही कोरोना का संक्रमण थमता हुआ दिखेगा। इसके लिए हरसंभव प्रयास भी किए जाने चाहिए, क्योंकि बड़े शहर विकास के वाहक होते हैं।

कोरोना वायरस ने दुनिया की चूलें हिलाकर रख दी

कोरोना वायरस ने दुनिया की चूलें हिलाकर रख दी हैं। समृद्ध और ताकतवर देश उसके सामने असहाय से हैं। पूरा विश्व आर्थिक मंदी की चपेट में है और आर्थिक गतिविधियां शुरू करना एक बड़ी चुनौती बन गया है। कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 से सबसे अधिक अमेरिका और यूरोप के देश पीड़ित हैं। सबसे अधिक लोगों की मौत इन्हीं देशों में हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस महामारी के प्रकोप को अमेरिका पर हमले की संज्ञा देते हुए चीन की घेरेबंदी तेज कर दी है। कुछ अन्य देश भी कोरोना के कहर के लिए चीन को जिम्मेदार बता रहे हैं।

आखिर वुहान में कोरोना वायरस का प्रसार क्यों और कैसे हुआ?

चीन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के साथ ही यह प्रचारित कर रहा है कि उसके यहां स्थितियां अब सामान्य हो चुकी हैं और जिस वुहान शहर से कोरोना वायरस फैला वहां भी हालात नियंत्रित हैं, लेकिन उसके किसी दावे पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि वहां संक्रमण फिर से फैलने की खबरें आ रही हैं। चीन के इसी रवैये के चलते यह पता लगाने की मांग तेज हो रही है कि आखिर वुहान में कोरोना वायरस का प्रसार क्यों और कैसे हुआ? यह वन्य जीवों से मानव शरीर में आया अथवा किसी प्रयोगशाला से? इन सवालों का जवाब सामने आना ही चाहिए ताकि यह अंदेशा दूर हो कि कहीं यह वायरस किसी जैविक हमले का हिस्सा तो नहीं? जैविक हमलों के लिए डर्टी बम तैयार करना एक हकीकत है। ट्रंप का बयान इसी ओर संकेत कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने तो साफ-साफ कहा है कि चीन ने जरूरी जानकारी दुनिया से छिपाने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का जो काम किया उसकी उसे कीमत चुकानी पड़ेगी।

कारोबारियों को नहीं सूझ रहा कि वे आधी क्षमता से उद्यम कैसे चलाएं

चूंकि भारत अधिक आबादी वाला विकासशील देश है और यहां एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो गरीबी रेखा से नीचे हैं और जो रोज कमाने-खाने वाले हैं इसलिए पश्चिमी देशों के मुकाबले उसे कहीं अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इनसे तभी उबरा जा सकता है जब कारोबारी गतिविधियां फिर शुरू हो सकें। सरकार इसके उपाय कर रही है, लेकिन कारोबारी आशंकित हैं कि उन्हें कच्चा माल कैसे मिलेगा और उनके उत्पादों की मांग कब और कैसे बढ़ेगी? सरकार ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं उनका पालन करते हुए उद्योग-व्यापार शुरू करना आसान नहीं। वैसे भी कारोबारियों को यह नहीं सूझ रहा कि वे आधी क्षमता से अपने उद्यम कैसे चलाएं? उनके सामने और भी कई दुविधा हैं। इन्हें जल्द दूर किया जाना चाहिए।

शारीरिक दूरी संक्रमण से बचाव का उपाय अवश्य है, लेकिन भूल हो सकती है

हालांकि केंद्र ने इसे लेकर तो स्पष्टीकरण जारी कर दिया कि किसी कारखाना परिसर में कोरोना का संक्रमण पाए जाने पर उसके मालिक पर कार्रवाई तभी होगी जब उसकी लापरवाही पाई जाएगी, लेकिन आखिर यह कैसे तय होगा कि लापरवाही बरती गई अथवा अनजाने में भूल हुई? एक तो यह नहीं माना चाहिए कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित होने के बाद भी काम पर जाएगा और दूसरे इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि कई लोगों में संक्रमण के लक्षण दिखते ही नहीं। नि:संदेह शारीरिक दूरी संक्रमण से बचाव का एक उपाय अवश्य है, लेकिन सतर्कता के बावजूद किसी से भी भूल हो सकती है।

आसार कम हैं कि निजी क्षेत्र के बंद कारखाने फिर से चल सकेंगे

फिलहाल आसार कम हैं कि निजी क्षेत्र के बंद कारखाने फिर से चल सकेंगे। उन्हें फिर से चलाने के लिए कामगार चाहिए और वे या तो अपने गांव चले गए हैं या फिर बीच रास्ते में ठहरे हुए हैं। जब कारोबारी गतिविधियां शुरू करने की तैयारी हो रही है तब केंद्र और राज्यों को इस पर कोई फैसला करना होगा कि कामगारों को उनके गांव जाने की व्यवस्था की जाए या फिर उन्हें कार्यस्थलों में पहुंचाने की?

कारोबारी भी केंद्र सरकार से पैकेज की प्रतीक्षा कर रहे हैं  

केंद्र सरकार को इससे भी अवगत होना चाहिए कि कारोबारी अपने लिए उसी तरह के किसी पैकेज की प्रतीक्षा कर रहे हैं जैसा गरीबों-किसानों को दिया गया है। जब सरकार यह अपेक्षा कर रही है कि न तो किसी का वेतन कटे और न ही नौकरी जाए तब फिर उसे यह भी देखना चाहिए कि कारोबारी इसके लिए सक्षम भी तो बनें। तमाम कारोबारी इस स्थिति में ही नहीं कि बंद पड़े अपने कारोबार के बाद भी कामगारों को वेतन दे सकें। स्पष्ट है कि सरकार को ऐसे कारोबारियों को राहत देने के कुछ वैसे ही कदम उठाने होंगे जैसे कई अन्य देशों और खासकर यूरोपीय देशों और अमेरिका ने उठाए हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]