कोरोना वायरस: इंदौर में मरीज़ों की संख्या तेजी से आगे क्यों बढ़ रही है?
- शुरैह नियाज़ी
- बीबीसी हिंदी के लिए
मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में कोरोना मरीज़ों की संख्या 1000 हजार को पार चुकी है.
इंदौर में 25 मार्च की स्थिति में केवल 4 कोरोना मरीज़ थे वही 23 अप्रैल की स्थिति में यही आंकड़ा 1029 पर पहुंच गया.
इंदौर में मौतों की तादाद को भी देखा जायें तो वहां अब तक 55 लोगों की मौत हो चुकी है.
इंदौर जिस तरह से कोरोना का हॉटस्पॉट बना है उससे न सिर्फ प्रदेश सरकार बल्कि केंद्र सरकार भी हैरान है.
केंद्र सरकार ने इंदौर के लिये एक केंद्रीय दल भी भेजा ताकि स्थिति पर काबू पाया जा सकें.
इंदौर की स्थिति को जानने के लिये हमने इस मामले में नज़र रखने वालों से बातचीत की ताकि इस नतीज़े पर पहुंचा जाए कि आख़िर चूक किस स्तर पर हुई?
इंदौर के श्री अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मेडिसिन डिर्पाटमेंट के प्रमुख डाक्टर रवि दोसी ने अब तक 550 कोरोना पीड़ित मरीज़ों को देखा है.
उन्होंने कहा, "इनमें से कम से कम 70 प्रतिशत ऐसे मरीज़ थे जिसमें किसी भी तरह के कोरोना के लक्ष्ण नही दिख रहे थे."
कम्युनिटी ट्रांसमिशन?
जब उनसे पूछा गया कि क्या यह माना जा सकता है कि इंदौर जैसे शहर में कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरु हो गया है तो उन्होंने कहा कि इसको अभी तक डॉक्यूमेंट नही किया गया है.
वहीं मेडिकल एथिक्स पर काम करने वाले डाक्टर अनंत भान का मानना है कि इंदौर की स्थिति को ज्यादा से ज्यादा लॉकडाउन का पालन कराने और टेस्ट कराकर पॉजिटिव मरीज़ों को चिह्नित करने से ही काबू में किया जा सकता है.
डॉ. अनंत भान ने बताया, "ज़रुरत इस बात की है कि टेस्ट की तादाद लगातार बढ़ायी जाए और कोरोना पॉजिटिव लोगों को पहचाना जा सके."
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी दिक़्क़त इंदौर के मामले में जो आ रही है वो टेस्ट रिपोर्ट आने में देरी है.
उन्होंने कहा, "इसकी वजह से देखने में आ रहा है कि जब तक रिपोर्ट आती है तब तक ये लोग कई मामलों में संक्रमण दूसरे लोगों में फैला चुके होते हैं."
प्रदेश में 23 अप्रैल की स्थिति में 8526 मरीज़ों की रिपोर्ट आना बाक़ी है.
रिपोर्ट में देरी और कोरोना वायरस
मध्यप्रदेश से दिल्ली और पड्डुचेरी सैंपल जहाज़ से भेजे जा रहे है.
इस क्षेत्र के लोगों का मानना है कि इससे स्थिति पर काबू पाना आसान नही होगा. जहां इसमें पैसा भी ज्यादा लगेगा वही देरी भी होगी.
वही इंदौर में अब सिर्फ एक दिन की टेस्ट किट जांच के लिये बची है. इसके बाद जांच को मैन्युअल सिस्टम से करना पड़ेगा जिसमें सिर्फ 125- 150 सैंपल की ही जांच हो पायेंगी.
इंदौर के कमिश्नर ने मांग की है कि जल्द से जल्द उन्हें टेस्ट किट उपलब्ध कराई जायें.
डॉ. अनंत भान का यह भी कहना है कि टेस्ट के नतीज़ों के लिये बार बार दिल्ली सैंपल भेजने के बजाय उसे भोपाल और इंदौर जैसे शहरों में ही ज्यादा से ज्यादा किया जाए तो नतीजे बेहतर होगें.
वहीं, जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह संयोजक अमूल्य निधि का कहना है कि सरकार ने शुरुआती दौर में थोड़ी बहुत व्यवस्थित योजना बनाई थी लेकिन वह प्लान बदल के नया प्लान लाया गया जिसकी वजह से स्थिति काफी बदली है.
वहीं उनका यह भी आरोप है कि सरकार बुलेटिन के आकड़ों में भी अंतर पैदा कर रही है.
आंकड़ों में अंतर
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उन्होंने कहा, "सरकार ने 5 अप्रैल 2020 से विदेश से आये लोगों (जिन्हें क्वारंटीन या आइसोलेशन में रखा गया था) की जानकारी देना बंद कर दिया है. साथ ही जो राज्य का बुलेटिन है उसमें से बहुत सारी जानकारी सारे अनियमित और अधूरी है."
अमूल्य निधि ने बताया, "स्वास्थ्य बुलेटिन में 18-19 अप्रैल को कई सारे ज़िलों के पॉजिटिव केसों के आकड़ें कम हो गये जो की भ्रम पैदा करने के साथ ही आकड़ों की पारदर्शिता पर सवाल पैदा करते है. यह आंकड़े देश और वैश्विक स्तर पर साथ ही साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन और अनुसंधान के लिए जरूरी हैं. सरकार को समीक्षा करनी चाहिए कि आखिर बुलेटिन में ऐसा क्यों और किसने किया? जानकारी गलत देना या छुपाना भी जन विरोधी हैं."
अगर इंदौर आई केंद्रीय टीम को देखा जाये तो उस टीम ने इंदौर में हुये प्रयासों और ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों की सराहना की है.
लेकिन इंदौर की स्थिति कई सवाल पैदा कर रही है जैसे इंदौर में मरीज की मृत्यु के बाद टेस्ट रिजल्ट आना, 2-3 दिन या अस्पताल में दाखिल होने के बाद उसी दिन दम तोड़ना, ज्यादा मृत्यु दर और कई इलाको में गैर- कोरोना पीड़ित मृत लोगों की संख्या बहुत अधिक होना.
22 अप्रैल को जारी आकड़ें को देखे तो अकेले इंदौर में ही 2000 से अधिक सैंपल की रिजल्ट आना बाक़ी थी.
भरोसा बढ़ाए जाने की ज़रूरत
हालांकि सामाजिक कार्यक्रता मानते है कि ज़रुरत इस बात की है कि सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित की जाए जिससे उनमें विश्वास बढ़ाया जाए.
वहीं सामाजिक कार्यक्रता इस बात पर आवाज़ उठा रहे है कि इंदौर और भोपाल जैसे शहरों में ज्यादातर मरीज प्राइवेट अस्पतालों में दाखिल है.
उन्होंने सवाल उठाये हैं कि मरीज सरकारी अस्पताल में कम क्यों है जब कि सरकारी स्वास्थ्य विभाग का अमला 16-18 घंटे कम कर रहे है. ये निर्णय कैसे लिया जा रहा है कि कौन मरीज किस अस्पताल में जायेगा, नियोजन कैसे हो रहे है.
इन लोगों का कहना है कि सरकार को निजी क्षेत्र के बजाय सरकार अस्पतालों को प्राथमिकता देनी चाहिये ताकि वह इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा सकें जो आगे भी काम आयेंगा. लेकिन प्रायवेट अस्पतालों पर निर्भरता से सरकारी पैसे का ही नुक़सान होगा.
सरकार ने आइसोलेंशन सेंटर और क्वारेंटीन सेंटर की जानकारी भी सार्वजनिक नही की है. इससे लोगों को उन सेंटर में उपलब्ध सुविधाओं और कमियों के बारे में भी पता चलेगा.
वहीं यह लोग यह भी चाहते है कि सरकार इस बात की तैयारी शुरु करें कि पूरे इंदौर संभाग में लॉकडाउन के बाद किस तरह से खोला जायेंगा.
उसके लिये एक निश्चित प्लान सरकार को तैयार करना चाहिये.
वहीं, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा का मानना है कि इंदौर शहर में कोरोना पर जल्द ही काबू पा लिया जाएगा.
उन्होंने कहा, "3 मई तक स्थिति पर पूरी तरह से नियंत्रण होगा. सरकार पूरी तरह से लग गई है. इंदौर में जरुर कुछ मामलें बढ़े है लेकिन वह जल्द ही काबू में होगें."
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